# इस मोड़ से जाते हैं:
हम सभी एक्स-रे से परिचित हैं.कभी हड्डी वगैरह की जांच के लिए, तो कभी मेट्रो, शॉपिंग मॉल या एयरपोर्ट जैसी जगहों में सिक्यूरिटी चेक के दौरान (बैग, लगेज वगैरह की जांच के लिए) हम-आप इस एक्स रे मशीन से दो चार होते रहते हैं.
हममें से कुछ लोग इन मशीनों को लेकर बड़े कॉंन्फिडेंट रहते हैं - सरकार ने लगवाई हैं, बड़े बड़े जानकार लोग इसके पीछे हैं, सारे सुरक्षा मानकों को फॉलो किया जाता है, पूरी दुनिया में इतने लोग और लोगों का सामान इससे गुज़रता है, तो स्पेसिफिकली हमें क्या ही हो जाएगा.
और कुछ लोग इस मशीन को लेकर बड़े आशंकित रहते हैं – अरे बाप रे! सुना है ये शरीर खराब कर देता है, इसमें से गुज़रने वाला खाना खाने से कैंसर हो सकता है, खाना तो ठीक है लेकिन सुना है पानी को तो बिल्कुल इसमें स्कैन नहीं करना चाहिए, जिसने एक्स रे का अविष्कार किया था वो खुद इसके चलते मर गया था.

चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना अब तक की सबसे भयानक परमाणु दुर्घटना है. इसमें भारी संख्या में जान माल की क्षती हुई और लगभग साढ़े तीन लाख लोग विस्थापित हो गए.
ये दोनों ही एप्रोच बहुत खतरनाक हैं. क्यूंकि पहली वाली एप्रोच हमारी इग्नोरेंस को दर्शाती है. और अतीत में इसी को चलते हादसे होते आए हैं. टाइटैनिक के डूबने से लेकर, रूस की चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना तक जैसे बड़े बड़े हादसे.
दूसरी वाली एप्रोच हमारी अज्ञानता, या अधकचरे ज्ञान को दर्शाती है. और इसी के चलते हम विकास की दौड़ में पीछे रह जाते हैं, और नई चीज़ों को स्वीकार करने से बचते हैं.
तो सही एप्रोच क्या है?
# होता है जब आदमी को इसका ज्ञान:
सही एप्रोच है ये जानना कि किसी चीज़ से हमें क्या नुकसान हो सकते हैं, और उन हानियों का आधार क्या है, लॉजिक क्या है?अब इस ‘जानने’ की प्रोसेस में भी एक बड़ी दिक्कत है – ज्ञान बहुत है, हर जगह फैला हुआ है. लेकिन उस ज्ञान को जानने के लिए भी ज्ञान की ज़रूरत है.

तो क्या ज्ञान अर्जित करने के लिए भी ज्ञान की ज़रूरत हैं? (तस्वीर: firebrandtalent.com)
कोई तो ऐसा हो जो हमें हमारी भाषा में बता सके कि क्या फायदे और खतरे हैं एक्स रे के. और ये भी बताए कि ये फायदे नुकसान हैं क्यूं? हमने कोशिश की है. सब कुछ अच्छे से बताने की और जितने हो सके उतने डाउट क्लियर करने की.
# ठहरे हुए पानी में कंकड़ न मार सांवरे:
ये जो कंकड़ मारने से हलचल मचती है न...ये हलचल दरअसल ये मन में तो पता नहीं पर पानी में ज़रूर मचती है. और शास्त्रों में इसे ही – तरंग या वेव कहा गया है.
# ऊंची-नीची, नीची-ऊंची, लहरों में तुम:
अब इन लहरों/तरंगों में आपने एक चीज़ गौर की होगी –ये तरंगे पत्थर मारने वाले स्थान में काफी घनी होती हैं, वहीं जितनी ये इंपेक्ट वाली जगह से दूर होती जाती हैं इनका घना-पन कम, और कम होता रहता है. और अंत में ये समाप्त हो जाती हैं.
दोस्तों इस घनेपन को ही ‘आवृति’ या ‘फ्रीक्वेंसी’ कहते हैं और दो उभारों/शिखरों के बीच की दूरी को तरंग-दैर्ध्य या वेवलेंथ. हम कहते हैं न कि ‘मैं तो उसके घर फ्रीक्वेंटली जाते रहता हूं’, बस वैसे ही.
तो लहरों के घनेपन को इस तरह भी कहा जा सकता है कि –
लहर जितना फैंके गए पत्थर से दूर जाती हैं उनकी आवृति या फ्रिक्वेंसी घटती रहती है और अंत में शून्य हो जाती है.अब गौर कीजिए कि जहां पर आपने पत्थर मारा वहां पर सबसे ज़्यादा एनर्जी थी लेकिन दूर होते-होते वो घटती चली गई. मतलब ये हुआ कि ‘आवृति’ घटी तो ‘एनर्जी’ घटी. तो,
जब कभी कोई आपसे कहे कि इस वेव की फ्रीक्वेंसी ज़्यादा है तो जान लो कि वो कहना चाह रहा है कि इस वेव में ज़्यादा ताकत, ऊर्जा या एनर्जी है.
# जब कहीं पे कुछ नहीं भी नहीं था, वही था, वही था:
ये तो थीं मेकेनिकल वेव जिनके लिए पानी की ज़रूरत थी. लेकिन एक वेव ऐसी भी होती है जिसके लिए पानी तो क्या किसी भी चीज़ की ज़रूरत नहीं होती.यानी ये ‘कुछ नहीं’ या ‘वैक्यूम’ में भी गति करती हैं. इन्हें इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगे कहते हैं. सूरज की रौशनी भी एक इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंग है. वैक्यूम में चलने के अलावा भी इनमें ढेरों विशेषताएं हैं. लेकिन इन तरंगों में भी फ्रीक्वेंसी और एनर्जी को आप रिलेट कर सकते हैं. यानी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्ज़ में भी जैसे-जैसे फ्रीक्वेंसी बढ़ी एनर्जी बढ़ी.

रंगों की दुनिया के इधर-उधर भी बहुत बड़ी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक दुनिया है.
सबसे कम एनर्जी वाली इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्ज़ में आती हैं रेडियो वेव. फिर माइक्रोवेव, फिर जैसे-जैसे एनर्जी बढ़ती जाती है वैसे-वैसे वेव्स इन्फ्रारेड, हमको दिखने वाले रंग, अल्ट्रावॉयलट, एक्स रे और गामा रे में बदलती चली जाती हैं.
# कितना बदल गया इंसान:
एनर्जी बढ़ती है तो उसका प्रभाव या असर करने की क्षमता भी बढ़ती चली जाती है. फिर चाहे वो प्रभाव फायदेमंद कहिए या नुकसानदायक.जैसे ये अपनी रेडियो वेव - सबसे कम असरकारक है, फिर आती माइक्रोवेव जिसमें थर्मल एनर्जी होती है. मतलब गर्मी उत्पन्न करने की क्षमता. फिर वो वेव्स जो हमको दिखती हैं, - रंगो के रूप में. ये इलेक्ट्रॉन के लेवल तक असर करती हैं. बेशक गुदगुदी करें, लेकिन करती हैं. फोटो केमिकल इफेक्ट इसी चक्कर में होता है.

इलाज करने से पहले जानना ज़रूरी है कि रोग क्या है और कहां पर है?
फिर आती हैं एक्स रे और गामा रे. इसका असर और भी ज़्यादा सूक्ष्म होता है. निर्जीवों में इलेक्ट्रॉन बांड्स तक को तोड़ मरोड़ सकते हैं और जीवों में डीएनए तक. यानी पदार्थ वही पदार्थ नहीं रहता, इंसान वही इंसान नहीं रहता.
# अंदर कितनी सर्दी है, बाहर कितनी गर्मी है:
राजेश और उसके दोस्तों को ईंटों को ट्रक से फर्स्ट फ्लोर तक पहुंचाना है. वो तीन तरीके से ऐसा कर सकते हैं.# एक तो ट्रक से ही ईंट फर्स्ट फ्लोर में फेंक फेंक कर,
# दूसरा ईंट ट्रक से उठाएं छत पर जाएं वहां रखें, और फिर वापस आएं और दूसरी उठाएं. मतलब चक्कर/फेरी लगाएं.
# तीसरा वो मानव श्रृंखला बनाएं और सब अपनी जगह पर खड़े रहकर ईंट को एक दूसरे को पास करें.

एनर्जी तीन तरह से ट्रेवल कर सकती है.
अब अगर ईंट को ‘एनर्जी’ और राजेश और दूसरे दोस्तों को ‘एनर्जी पहुंचाने का माध्यम’ मान लें तो पहली तरह से जो एनर्जी पहुंचाई जा रही है उसे विकिरण (रेडिएशन) कहते हैं, जैसे सूरज की गर्मी हम तक पहुंचती है.
दूसरी तरह के एनर्जी ट्रान्सफर को संवहन (कन्वेकशन) कहते हैं, पानी ऐसे ही तो गर्म होता है. नीचे वाले अणु गरम होकर ऊपर उठते हैं और उनकी जगह कम गर्म वाले अणु लेते हैं. इसलिए ही तो पानी उबलता है.
और तीसरी तरह के एनर्जी ट्रान्सफर को चालन (कन्डकशन) कहते हैं. इसमें गर्म अणु अपना स्थान नहीं बदलते, बस बगल वाले अणुओं को अपनी एनर्जी दे देते हैं. लोहे की रॉड ऐसे ही तो गर्म होती है.
# Ion के सौ टुकड़े करके हमने देखे हैं:
अब हमने रेडिएशन को इसलिए समझाया क्यूंकि इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगो का अर्थ ही होता है – विकिरण या रेडिएशन के माध्यम से एनर्जी का आदान-प्रदान.मतलब रेडियो वेव भी एक रेडिएशन है, रंग भी रेडिएशन हैं, माइक्रोवेव में भी रेडिएशन से खाना गर्म होता है. तो फिर जब कोई कहता है कि रेडिएशन से बचना चाहिए तो क्या इन सभी रेडिएशन्स से बचना चाहिए? रेडियो नहीं सुनना चाहिए? रंग नहीं देखने चाहिए? धूप नहीं सेंकनी चाहिए?

मित्रों अच्छे आतंकवाद और बुरे आतंकवाद जैसी कोई चीज़ नहीं होती. आतंकवाद, आतंकवाद होता है! हां, रेडिएशन के बारे में बात दूसरी है!
देखिए, गुड टेररिज्म और बैड टेररिज्म का तो नहीं पता लेकिन गुड रेडिएशन और बैड रेडिएशन की परिभाषा हमें पता है.
दरअसल दो तरीके के रेडिएशन होते हैं – नॉन-आयोनाईजिंग और आयोनाईजिंग. नॉन-आयोनाईजिंग रेडिएशन कुछ नहीं करते लेकिन आयोनाईजिंग रेडिएशन किसी परमाणु या अणु को आयोनाईज़ यानी चार्ज कर देते हैं. या यूं समझिये उसका स्वरूप बदल देते हैं. मतलब इलेक्ट्रॉन के लेवल तक प्रभाव डालते हैं. इसलिए खतरनाक होते हैं.
तो, ऊपर तक का लेख पढ़ के समझ गए होंगे आप कि एक्स-रे एक आयोनाईजिंग रेडिएशन है इसलिए खतरनाक है. और इतना खतरनाक है कि कैंसर से लेकर डीएनए में परिवर्तन तक कर सकता है.
# ये खलिश कहां से होती, जो जिगर के पार होता:
(वार्निंग: इस वाले भाग में थोड़ी नंबर्स वगरैह हैं, लेकिन कोई खतरे वाली बात नहीं है, आप पढ़ना ज़ारी रख सकते हैं.)एक्स-रे किसी पदार्थ को बेधकर भी जा सकती है. क्यूंकि ये होती ही इतनी पावरफुल है.
अब जैसे रंगों की फ्रीक्वेंसी का स्पेक्ट्रम होता है (लाल से लेकर बैंगनी तक या 430 गुणा टेन टू दी पावर ट्वेल्व, यानी 430 के आगे बारह ज़ीरो हर्ट्ज़ से 770 इन टू टेन टू दी पावर ट्वेल्व यानी 770 के आगे बारह ज़ीरो हर्ट्ज़ तक) वैसे ही एक्स रे की भी फ्रीक्वेंसी का भी स्पेक्ट्रम होता है - 3 इन टू टेन टू दी पावर सिक्सटीन से 3 इन टू टेन टू दी पावर नाइनटीन हर्ट्ज़ तक.
पहले वाली सबसे कम पावरफुल एक्स-रे है और दूसरी वाली एक्स-रे सबसे ज़्यादा. (क्यूंकि तरंगों के मामले में हमने ऊपर ही जान लिया था कि ‘पावर’ और ‘फ्रीक्वेंसी’ एक दूसरे के पर्यायवाची ही मानो.)
अब इन दोनों फ्रीक्वेंसीज़ के बीच में आने वाली सारी तरंगे भी एक्स-रेज़ ही हैं.

जहां काम आए सुई (तस्वीर: en.wikiversity.org)
ये एक्स-रे के स्पेक्ट्रम का ज्ञान आपको इसलिए दिया क्यूंकि पता चल जाए कि जैसे-जैसे एक्स-रे की फ्रीक्वेंसी (या पावर) बढ़ती है, उसकी बेधन शक्ति भी. यानी एक्स-रे की फ्रीक्वेंसी को घटा-बढ़ा के हम ये सुनिश्चित कर सकते हैं कि एक्स रे रुमाल को बेंध के जाए या लोहे को. अगर हम चाहते हैं कि एक्स रे पूरे शरीर को बेध जाए तो वैसी फ्रीक्वेंसी सेट कर सकते हैं, और अगर आप चाहते हैं कि, नहीं, ये हड्डियों को न बेध पाए, तो वैसी फ्रीक्वेंसी सेट कर सकते हैं.
इसी के चलते मेडिकल और मेट्रो वाले एक्स-रे बीच अंतर पैदा होता है.
# आप अंदर से कुछ और, बाहर से कुछ और नज़र आते हैं:
नीचे कुछ ऐसे मेडिकल एक्स-रे दे रहे हैं जो आयोनाईजिंग (नुकसानदायक) - विकिरण का उपयोग करते हैं# रेडियोग्राफी: जिसे हम नॉर्मली ‘एक्स-रे’ कह देते हैं. ब्लैक एंड वाइट हड्डियों की फ़ोटो दिखती है न जिसमें, वो!
# कम्प्यूटेड टोमोग्राफी (सीटी स्कैन): रेडियोग्राफी का थ्री डी वर्ज़न ही सीटी स्कैन कहलाता है. मतलब शरीर के एक भाग का चारों ओर से एक्स-रे करना. इसे आप एक्स-रे का 360 डिग्री व्यू भी कह सकते हैं.
# फ्लूरोस्कोपी: इतना समझ लीजिए कि एक्स से अगर फोटोग्राफी है फ्लूरोस्कोपी वीडियो बनाना है. वो भी लाइव.
पढ़ें: एमआरआई से एक आदमी की मौत के बावज़ूद आपको डरने की जरूरत क्यों नहीं है?
# तेरी गठरी में:
दुनिया भर में सुरक्षा जांच के दौरान एक्स-रे का उपयोग होना अब कोई नई बात नहीं रह गया.इस तरह की एक्स-रे सिक्यूरिटी स्कैनिंग केवल आपके बैग और अटैची की ही नहीं होती. बड़े-बड़े वाहन और कार्गो स्कैनर भी होते हैं. एक्स-रे इमेजिंग सामान को बिना खोले और बिना मैन्युअल रूप से निरीक्षण किए संदिग्ध आइटम खोजने के लिए आदर्श है. ये बड़ा फ़ास्ट होता है और विस्तृत छवियां उत्पन्न करता है जो दिखाता है कि प्रत्येक स्कैन किए गए ऑब्जेक्ट के अंदर क्या है.

दिल्ली मेट्रो का वो दरवाज़ा जिसमें से हर किसी को होकर जाना पड़ता है. (फोटो: infiniterootstravel.wordpress.com)
सिक्यूरिटी में यूज़ होने वाले एक्स-रे दो तरह के होते हैं -
# कैबिनेट एक्स-रे: वो जिसमें एक तरफ से सामान डालो तो दूसरी तरफ से निकलता है, और इस दौरान ये सामान की एक फोटो खींच लेता है. इस फोटो में अंदर का सब कुछ दिख जाता है. लेकिन इसमें सामान की ही जांच हो सकती है.
# गेट एक्स-रे: वैसे इसका ऑफिशियल नाम गेट एक्स रे नहीं Personnel Security Screening System है. लेकिन दरअसल ज़्यादातर मामलों में ये गेट के आकार का होता है और इसमें सामान के बदले व्यक्ति को गुज़ारा जाता है.
# हम दोनों हैं अलग-अलग, हम दोनों हैं जुदा जुदा:
मेडिकल एक्स-रे और सिक्यूरिटी एक्स-रे में से मेडिकल एक्स-रे ज़्यादा खतरनाक है.# अव्वल तो मेडिकल एक्स-रे में सिक्यूरिटी एक्स-रे की तुलना में ज़्यादा फ्रीक्वेंसी वाली एक्स-रेज़ यूज़ की जाती है और. वो इसलिए क्यूंकि जहां मेडिकल एक्स-रे में एक्स-रेज़ को पूरा शरीर बेधना पड़ता है, (हड्डी को छोड़कर).

पर्सनल सिक्यूरिटी स्क्रीनिंग सिस्टम (तस्वीर: astrophysicsinc.com)
वहीं दूसरी ओर सिक्यूरिटी एक्स-रे (फिर चाहे वो कैबिनेट एक्स-रे हो या गेट एक्स-रे) में एक्स-रेज़ का उद्देश्य बैग के भीतर रखे कपड़ों और अन्य वस्तुओं को भेदना नहीं बल्कि उसमें उपस्थित सभी पदार्थों और उनकी बनावट को जांचना होता है.
इसी के चलते मेडिकल एक्स-रे का रिज़ल्ट ब्लैक एंड व्हाईट लेकिन क्लियर होता है, गोया उसने हड्डियों की ब्लैक एंड व्हाईट फोटो ले ली हो. वहीं सिक्यूरिटी एक्स-रे का रिज़ल्ट कलर्ड लेकिन धुंधला होता है.
# दूसरा, मेडिकल एक्स-रे में एक्सपोज़र ज़्यादा समय तक भी होता है. अब सीटी स्कैन ही देख लीजिए जिसमें चारों ओर से घूम-घूम कर एक्स-रे लिए जाते हैं. उतने लंबे समय तक शरीर एक्स-रेज़ के प्रभाव में रहता है. वहीं दूसरी तरफ कैबिनेट एक्स-रे में तो शरीर एक्सपोज़ ही नहीं होता.
बचा गेट एक्स-रे. इसमें आयोनाईजिंग विकिरण की बहुत कम मात्रा प्रयुक्त होती है. इन प्रणालियों को ‘बैकस्केटर’ सिस्टम के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि ये सिस्टम जांचे जा रहे व्यक्ति के ऊपर बहुत ही कम मात्रा में एक्स-किरणों को फैंकते हैं, जो टकराकर वापस आ जाती हैं और इसी से व्यक्ति की इमेज तैयार होती है.
और इसलिए ही आपने देखा होगा कि सिक्यूरिटी चेक में उतनी ख़ास ‘सावधानी’ नहीं बरती जाती जितनी मेडिकल चेक-अप में. जहां मेडिकल चेकअप करते वक्त पेशेवर सुपरवीज़न की ज़रूरत होती है वहीं सिक्यूरिटी-स्कैनिंग में ऐसी किसी व्यवस्था की ज़रूरत नहीं पड़ती और न ही आपने कोई ऐसी व्यवस्था देखी ही होगी.

यात्री अपने सामान की रक्षा स्वयं करें. फिर इसके लिए एक्स-रे मशीन में ही क्यों न घुसना पड़े. : -)
अभी कुछ ही दिनों पहले चाइना में एक औरत अपने सामान के साथ-साथ कैबिनेट एक्स-रे में घुस गई थी और सामान के साथ सुरक्षित वापस भी आ गई थी.
पढ़ें: वीडियो नहीं, पहली बार चाइना का एक एक्स-रे वायरल हो रहा है
# कभी-कभी मेरे दिल में, सवाल आता है:
अब दो सवाल पैदा हुए –# सिक्यूरिटी एक्स-रे मानवों के लिए बिल्कुल भी खतरनाक नहीं है, मगर ये खाने-पीने वाली चीज़ों के लिए कितना खतरनाक है?
# मेडिकल एक्स-रे का रेडिएशन मानवों के लिए कुछ हद तक खतरनाक है, फिर भी इसका यूज़ क्यूं किया जाता है?
# डिश का मज़ा, चख तो लूं मैं ज़रा:
सिक्यूरिटी में यूज़ होने वाला एक्स रे, जिसमें से आपका खाना भी गुज़रता है, कितना सेफ है?हम आपको सीधे यूएस फूड ऐंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन की कही बात ही बता देते हैं -
मानकों की बात की जाए तो कैबिनेट एक्स-रे सिस्टम के किसी भी भाग के आधे सेंटीमीटर एरिया से 0.5 मिलीरोएंगटन से अधिक रेडिएशन नहीं निकलना चाहिए. लेकिन रेडिएशन इससे कहीं कम होता है.

सावधानी हटी, दुर्घटना घटी!
इसकी तुलना ऐसे की जा सकती है कि 'प्राकृतिक विकिरण' से ही एक आम इंसान और खाने पीने का सारा सामान इससे कहीं ज़्यादा एक्सपोज़ होता है.
प्राकृतिक विकिरण वो भी आयोनाईजिंग वाला हमेशा ही हमारे आस-पास मौजूद रहता है. इसमें से बीस प्रतिशत तो मानव के द्वारा ही निर्मित है. और इस बीस प्रतिशत में मेडिकल एक्स-रे का सबसे बड़ा योगदान है.
मतलब जब आपका खाना विधानसभा मेट्रो के सिक्यूरिटी चेक से गुज़र रहा है तो उसे इस कैबिनेट से होने वाले रेडिएशन से ज़्यादा नुकसान एम्स मेट्रो ने नज़दीक हो रहे किसी मेडिकल चेक से ज़्यादा है. मने, दोनों ही तरह से 'कथित रूप से' प्रदूषित हुआ भोजन आपका उससे कहीं कम नुकसान करेंगे जितना आपका वो व्हाट्सएप मैसेज करते हैं जिनमें फूलों के ऊपर गुड मॉर्निंग लिखा होता है.

प्रोसैस्ड फ़ूड जहां से गुज़रता है, मुकाबले बेचारी कैबिनेट मशीन तो 'कुछ भी नहीं' है. (तस्वीर: foodprocessing-technology.com)
अगर ये तुलना कन्फ्यूजिंग है तो यूं समझ लीजिये कि आपका खाना इन एक्स-रे कैबिनेट से गुज़रने के बाद भी सेफ है. (जब तक कि आप कोई डबल एजेंट न हों, और रूस आपके किचन तक न पहुंचा हो.)
पढ़ें: एक डबल एजेंट को जहर दिया गया और अब ब्रिटेन कुछ भी करने को तैयार है
अच्छा एक बात और - कैबिनेट एक्स-रे मशीन के अंदर भी रेडिएशन एक मिलीरोएंगटन से कम होता है, जबकि जब खाने को प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग) के लिए रखा जाता है, या उसमें से बैक्टीरया हटाए जाते हैं तो उसे तीस हज़ार मिलीरोएंगटन रेडिएशन (मिनिमम) से सामने एक्सपोज़ किया जाता है.(आप जान ही गए होंगे कि मिलीरोएंगटन, रेडिएशन नापने की इकाई है. इसमें एक्सप्लेन करने सा कुछ नहीं क्यूंकि हमने तुलनाएं करके समझ ही लिया कि कहां पर कितना रेडिएशन, कितना होना चाहिए, कितना खतरनाक है.)
# सदा तुमने ऐब देखा, हुनर को न देखा:
जब मेडिकल एक्स-रे इतना खतरनाक होता है तो उसका उपयोग किया ही क्यूं जाता है?देखिए किसी भी चीज़ का उपयोग करना केवल इसलिए बंद नहीं किया जा सकता कि उसके नुकसान हैं. बल्कि उसका उपयोग तब बंद किया जाता है जब फायदे की अपेक्षा नुकसान ज़्यादा या बराबर हों.
और मेडिकल एक्स-रे के केस में नुकसान कहीं कम हैं और फायदे कहीं ज़्यादा.

सैमसंग एस सेवन इतना कुख्यात हुआ, लेकिन कुछ शुरूआती 'झटकों' के बाद क्या मोबाइल फोन बिक्री में कोई कमी आई है?
अब जैसे मोबाइल के रेडिएशन की भी आए दिन बुराई होती रहती है, बिजली से लेकर प्लास्टिक, एयर कंडिशनर तक, हर चीज़ के नुकसान हैं लेकिन फिर भी हम इनका प्रयोग करते हैं न?
मेडिकल एक्स-रे के फायदों की बात करें तो बिना चीर फाड़ किए, बिना रोगी को पीड़ा दिए, अंदर के शरीर की जानकारी निकाल लाना एक जीवनदायनी अविष्कार कहलायेगा. तभी तो इतने दशकों से एक्स-रे की जगह कोई नहीं ले पाया है. सीटी स्कैन जैसे ‘अपडेट्स’ इसे और ज़्यादा लाभकारी बना देते हैं.
अब आते हैं नुकसान की बात पर –
शुरुआत में जब एक्स-रे की खोज हुई थी वैज्ञानिकों का मत था कि इससे कोई नुकसान नहीं है, इसकी ऑफिशियली खोज करने वाले और बाद में इस खोज के लिए नोबेल प्राइज पाने वाले विलहम कॉनरैड रॉटजन की मृत्यु भी इसके प्रभाव से नहीं हुई, जैसा कि कई लोगों का मानना है. लेकिन फिर धीरे-धीरे इसके दुष्प्रभाव सामने आने लगे. एक्स रे के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले और कल्ट फिगर बन चुके टेस्ला ने भी इसके उपयोग के चलते जलन वगरैह शिकायत की. बाद में पता चला कि इसके ढेरों नुकसान भी हैं.
पढ़ें: टेस्ला को ग़लत साबित करने के लिए एडिसन ने सबके सामने एक आदमी को करंट से मरवा डाला था!

रेडियो सीटी!
ऐसा अनुमान है कि कैंसर से प्रभावित एक हज़ार लोगों में से पांच लोगों को ये सीटी स्कैन कराने के चलते हुआ. और एक दूसरे अध्ययन ने ये पता लगाया कि सीटी स्कैन करवाने से कैंसर का खतरा एक से डेढ़ प्रतिशत तक बढ़ जाता है.
# एक एक्स-रे करवाने से किसी इंसान को उतना विकिरण सहना पड़ता है जितना 10 दिन का प्राकृतिक विकिरण.
# एक सीटी स्कैन से किसी इंसान को एक ही बार में उतना विकिरण सहन करना पड़ता है जितना वो दो से तीन साल में प्राकृतिक रूप से सहेगा.
# भ्रूण के लिए विकिरण का जोखिम ज़्यादा होता है, इसलिए गर्भवती महिलाओं को केवल बहुत ज़्यादा आवश्यक होने पर ही एक्स रे/सीटी स्कैन वगरैह करवाना चाहिए.
# अच्छा तो हम चलते हैं:
अगर हमें भूख न लगती तो हम मरते भी नहीं.क्यूंकि अगर हमें भूख नहीं लगती तो हम खाना नहीं खाते. और अगर खाना नहीं खाते तो उसके साइड इफ़ेक्ट भी नहीं होते. दुनिया में कोई भी चीज़ ऐसी नहीं है जिसका कोई साइड इफ़ेक्ट न हो. बल्कि आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि जो चीज़ जितनी लाभदायक है उसके उतने ज़्यादा नुकसान 'स्वीकार्य' होते हैं. फिलॉसोफी में इसे ही उपयोगितावाद कहते हैं.
पढ़ें: मेरे जिंदा रहने से यदि लोग क्रिकेट नहीं देख पा रहे तो मुझे मर जाना चाहिए: उपयोगितावाद
फिर भी हमें ये कहने में कोई गुरेज़ नहीं कि एक्स-रे, खास तौर पर सिक्यूरिटी वाला, आपके और आपके खाने के लिए पूरी तरह सेफ है.कुछ और एक्स्प्लेनर:
सुना था कि सायनाइड का टेस्ट किसी को नहीं पता, हम बताते हैं न!
क्या होता है रुपए का गिरना जो आपको कभी फायदा कभी नुकसान पहुंचाता है
जब हादसे में ब्लैक बॉक्स बच जाता है, तो पूरा प्लेन उसी मैटेरियल का क्यों नहीं बनाते?
प्लेसीबो-इफ़ेक्ट: जिसके चलते डॉक्टर्स मरीज़ों को टॉफी देते हैं, और मरीज़ स्वस्थ हो जाते हैं
रोज़ खबरों में रहता है .35 बोर, .303 कैलिबर, 9 एमएम, कभी सोचा इनका मतलब क्या होता है?
उम्र कैद में 14 साल, 20 साल, 30 साल की सज़ा क्यूं होती है, उम्र भर की क्यूं नहीं?
प्लास्टिक की बोतल में पानी पीने से पहले उसके नीचे लिखा नंबर देख लीजिए
हाइपर-लूप: बुलेट ट्रेन से दोगुनी स्पीड से चलती है ये
ATM में उल्टा पिन डालने से क्या होता है?