जो कभी पासा नहीं फेंकता वो कभी छक्का मारने की उम्मीद नहीं कर सकता.
कहना नवजोत सिंह सिद्धू का.
पासा फेंक दिया है. छक्का मारेंगे या नहीं, देखते हैं. चुनाव से पहले बहुत उठा-पटक होती है, लेकिन कोई आदमी राज्यसभा छोड़ जाए तो बड़ी बात है. सिद्धू की असल नाराजगी अकालियों से थी, जो रफ्ता-रफ्ता बीजेपी के लिए भी हो गई. आलाकमान जानती थी कि शेरी पा खुश नहीं हैं. इसीलिए उन्हें राज्यसभा लाया गया और बार-बार बादल सरकार को लताड़ने के बावजूद उनकी पत्नी को प्रदेश का चीफ पार्लियामेंटरी सेक्रेटरी बनाया गया. मन है, फिर भी नहीं माना. दोनों अलग हो गए हैं बीजेपी से और अब आम आदमी पार्टी (AAP) में जाएंगे. वो पार्टी जो पहली बार पंजाब में सत्ता पाने का सपना देख रही है.
क्या होगा सिद्धू के AAP में जाने का असर?
1. जट सिख
नवजोत सिंह सिद्धू जट सिख हैं, जो पंजाब में सबसे ताकतवर तबका है. पंजाब में 60 फीसदी से ज्यादा सिख हैं. उनमें से 21 फीसदी जट सिख हैं, लेकिन राजनीति में वो हमेशा हावी और असरदार रहे हैं. हालांकि AAP के पास बतौर एचएस फूलका एक जट सिख चेहरा है. लेकिन उनकी अपील सिद्धू जितनी बड़ी नहीं है.
2. रूठे पंथियों को मना लेंगे?
पंजाब में AAP पहली बार चुनाव लड़ रही है और उसकी संभावनाएं बहुत अच्छी हैं. लेकिन हाल-फिलहाल में वो कुछ धार्मिक पचड़ों में फंस गई. AAP पर पंजाब में सिखों की भावनाएं आहत करने के दो बड़े आरोप लगे. एक तो पोस्टर में स्वर्ण मंदिर के साथ अपना चुनावी सिम्बल झाड़ू दिखाना और दूसरा आशीष खेतान का पंजाब के यूथ मेनिफेस्टो को अपना ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ बताना. AAP ने इसके लिए माफी भी मांगी. केजरीवाल स्वर्ण मंदिर पहुंचकर बर्तन धो आए, सेवा कर आए.
ऐसे माहौल में जब परंपरावादी सिखों का एक तबका AAP से नाराज है और उस पर पंथ को लेकर असंवेदनशील होने के आरोप जोर-शोर से लग रहे हैं, सिद्धू के आने से छवि सुधार में मदद मिलेगी. पंजाब पॉलिटिक्स में पंथिक एजेंडा हमेशा हावी रहा है. इसीलिए करप्शन के आरोपों और ड्रग्स की जकड़न के बावजूद अकाली दल पंजाब में राज करता रहा है. क्योंकि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी समेत तमाम धार्मिक इकाइयों पर उसका कब्जा है. वो खुद को पंजाब में पंथ के रक्षक के तौर पर दर्शाने में कामयाब रहे हैं.
3. उनका बंदा तोड़ लिया
पॉलिटिक्स इन दिनों तथ्यों से ज्यादा परसेप्शन का खेल है. आप जनता को यकीन दिला दें बस. चुनाव से ठीक पहले सिद्धू को तोड़कर AAP ने पब्लिक में सीधा संदेश दिया है. ये परसेप्शन बनाने की कोशिश है कि बीजेपी-अकाली चुनाव हार रहे हैं, देखिए उनके बड़े नेता भी टूटकर आ रहे हैं. दिल्ली चुनाव से ठीक पहले BJP ने भी यही किया था. अश्विनी उपाध्याय, विनोद कुमार बिन्नी और शाजिया इल्मी ने चुनाव से पहले बीजेपी जॉइन कर ली थी. हालांकि वहां इसका कोई फायदा नहीं हुआ.
4. अकालियों की ऑथेंटिक आलोचना
परसेप्शन वाली बात को आगे बढ़ाते हुए. किसी पार्टी से निकला शख्स उस पार्टी की आलोचना करे, तो उसे ऑथेंटिक माना जाता है. नवजोत सिंह सिद्धू ने पब्लिक में अकालियों के खिलाफ ज्यादा नहीं बोला. लेकिन उनकी पत्नी नवजोत कौर के तेवर हमेशा सख्त रहे. बीजेपी-अकालियों ने नाराज पति-पत्नी को मनाने की कोशिश भी की.
इसी के तहत हाल ही में पंजाब सरकार ने नवजोत कौर को चीफ पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी बना दिया. फिर भी वो रुकी नहीं. इस पद पर रहने के दौरान एक अखबार से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘कुछ अकाली नेताओं की लाल बत्ती वाली गाड़ियां ड्रग्स सप्लाई कर रही हैं. और ये लालबत्ती गाड़ियां डिप्टी सीएम सुखबीर बादल ने हर टॉम, डिक और हैरी को दे दी हैं.’
आप कल्पना कर सकते हैं, एक संसदीय सचिव अपने मुख्यमंत्री का नाम लेकर ऐसा आरोप लगाए! अब संभावना यही है कि नवजोत कौर भी जल्द BJP से इस्तीफा देंगी और पति-पत्नी खुलकर बीजेपी-अकाली दल के खिलाफ ‘पोल खोल’ जैसा कैंपेन चलाएंगे.
5. स्टार प्रचारक
आम आदमी पार्टी की दिल्ली जीत में डॉ. कुमार विश्वास जैसे स्टार प्रचारकों का बड़ा रोल रहा. सिद्धू के आने से उन्हें पंजाब में एक लोकल स्टार प्रचारक मिल गया है. सिद्धू अटल बिहारी वाजपेयी के समय से बीजेपी के स्टार प्रचारकों की सूची में रहे हैं. वह बिलाशक शानदार वक्ता हैं. चुनावी रैलियों का अच्छा अनुभव है. जुमलों और मुहावरों के इस्तेमाल से अच्छा समां बांधते हैं. भगवंत मान चुटकियां अच्छी लेते हैं, लेकिन सिद्धू के तीर ज्यादा परिपक्व और नुकीले होते हैं. और सरकारें, सबसे ज्यादा सेंस ऑफ ह्यूमर से ही डरती हैं. कोई शक नहीं कि वे सिद्धू पंजाब में ढेर सारी रैलियों को संबोधित करेंगे.
6. कैप्टन के खिलाफ
कांग्रेस के कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बाद के दौर में पूरी ताकत झोंकी है. वह अकाली-बीजेपी सरकार के खिलाफ एंटी इंकम्बैंसी को भुनाने के लिए पूरे प्रदेश में यात्राएं कर रहे हैं. बाद के दिनों के सर्वे कांग्रेस का ग्राफ पहले के मुकाबले थोड़ा ऊपर भी दिखा रहे हैं. ऐसे में AAP को एक क्रेडिबल, लोकल हेवीवेट चेहरा चाहिए था जो पटियाला के शाही कैप्टन से लोहा ले सके. हालांकि पंजाब के गांवों में सिद्धू की वैसी अपील नहीं है और वहीं पर अकाली दल सबसे मजबूत है.
7. मोदी 0, केजरी 1
नवजोत सिंह सिद्धू को आप ज़रा अड़ियल नेता कह सकते हैं. लोकसभा चुनावों से पहले मोदी के लिए खूब प्रचार किया. लेकिन साफ कह दिया कि अमृतसर में अरुण जेटली के लिए प्रचार नहीं करूंगा. सिद्धू की असल नाराजगी अकालियों से थी और पंजाब के पक्षी बताते हैं कि वह अकालियों के साथ गठबंधन जारी रखने के खिलाफ थे. लेकिन बीजेपी के लिए ये रिश्ता तोड़ना संभव न था. इसलिए बीजेपी आलाकमान ने सिद्धू को मनाने की कोशिश की. जब वह बीमार हुए तो खुद प्रधानमंत्री ने ट्वीट करके उन्हें फाइटर बताया और अपनी शुभकामनाएं भिजवाईं.
Down but Not Out! Life threatening disease (DVT) With God 's Grace will recover. Life is Fragile, handle with Prayer. pic.twitter.com/ifz6UG5bny
— Navjot Singh Sidhu (@sherryontopp) October 6, 2015
मोदी खुद चाहते थे कि सिद्धू को किसी तरह बीजेपी में रोक लिया जाए. लेकिन इस समय मोदी को अपना सबसे बड़ा अपोनेंट मानने वाले केजरीवाल ने ये कोशिश नाकाम कर दी. ये खबर नेशनल मीडिया में अब तक सोमवार की सबसे बड़ी खबर है. दिल्ली तक संदेश गया है कि मोदी खुद इनवॉल्व थे, फिर भी केजरीवाल ने उनका बंदा तोड़ लिया.
लेकिन क्या वो CM फेस होंगे? इस खबर के लेखक की भविष्यवाणी है कि नहीं होंगे. खटैक!
ये भी पढ़ें: