उत्तराखंड में भारत-चीन सीमा के पास एक बैली ब्रिज (पुल) 22 जून को टूट गया. यह पुल सामरिक रूप से काफी उपयोगी और अहम था. पुल ढहने की घटना पिथौरागढ़ जिले में हुई. एक ट्रक जब सड़क निर्माण से जुड़ी एक भारी भरकम मशीन को ले जा रहा था, उसी समय यह हादसा हुआ. ऐसे में ट्रक और मशीन, दोनों नीचे गिर गए. इसमें दो लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं. स्थानीय लोगों ने पुल टूटने के बारे में प्रशासन को बताया. पुल टूटने का वीडियो भी सामने आया है.
कहां और कैसे हुआ हादसा
जानकारी के अनुसार, चीन सीमा को जोड़ने वाली मिलम रोड का काम चल रहा है. इसके लिए सड़क के काम से जुड़ी भारी-भरकम मशीनों को भेजा जा रहा है. इसी के तहत 22 जून को भी एक मशीन ट्रक में लादकर ले जाई जा रही थी. धापा के पास सेनर नाले पर ट्रक जब पुल पार कर रहा था, तभी पुल ढह गया. ट्रक और मशीन, दोनों नीचे नाले में गिर गए. हादसा सुबह 10 बजे के करीब हुआ. दो घायलों को मुनस्यारी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया है.
पत्रकार पूनम पांडे ने पुल ढहने के हादसे का वीडियो ट्वीट किया है-
चीन बॉर्डर पर मिलम रोड का काम तेजी से करने के लिए इस भारी भरकम मशीन को ले जाया जा रहा था, लेकिन यह belly bridge इसका भार सहन नहीं कर पाया और भरभरा कर गिर पड़ा #Pithoragarh#Uttarakhandpic.twitter.com/0x6T0aUuVX
— Poonam Pandey (@pandeypoonam20) June 22, 2020
सीमा के पास भारत ने तेज कर रखा है काम
बता दें कि भारत ने हाल के दिनों में सीमावर्ती इलाकों में सड़क, पुल बनाने के काम तेज किया है. लद्दाख में भी चीन से लगती सीमा के पास सड़क बनाई जा रही है. इसी को लेकर चीन से उसका टकराव चल रहा है. वहीं पिछले महीने उत्तराखंड में ही लिपुलेख में उसने सड़क बनाने का काम पूरा किया था. इस पर नेपाल ने एतराज जताया है. साथ ही नेपाल ने इस इलाके पर अपना दावा किया है.

क्या होता है ‘बैली ब्रिज’
‘बैली ब्रिज’ लोहे के बने होते हैं. इनमें पुल का जो ढांचा होता है, वह पहले से तैयार होता है. जहां पुल बनाना होता है, वहां पर इसे लगा दिया जाता है. अक्सर इसका निचला हिस्सा लकड़ी का होता है, जिसे लोहे के गार्डर सहारा देते हैं. हालांकि अब कई जगहों पर सड़क भी बैली ब्रिज पर बनने लगी है.
ब्रिटेन के एक शख्स डॉनल्ड बैली ने इस तरह के पुल का डिजाइन तैयार किया था. उनके नाम पर ही इस तरह के पुल को ‘बैली ब्रिज’ कहा जाने लगा. वे पेशे से सिविल सर्वेंट थे, मगर उन्हें पुलों के अलग-अलग डिजाइन तैयार करने का शौक था.
बैली ब्रिज बनाने की शुरुआत अंग्रेजों ने ही की. दूसरे विश्व युद्ध के समय उन्होंने सेना के इस्तेमाल के लिए इस तरह के पुल बनाए. इन्हें बनाना आसान होता है. साथ ही यह तेजी से बन भी जाते हैं. इन्हें बनाने के लिए बड़ी मशीनरी और क्रेन की भी जरूरत नहीं पड़ती है. बैली ब्रिज के ढांचे को ट्रकों के जरिए एक जगह से दूसरी जगह भी ले जा सकते हैं. इस तरह के पुल ज्यादातर सैन्य उपयोग के लिए ही बनाए जाते हैं.
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