दिसंबर 2020 में झारखंड के पाकुड़ डिविजन के वन कार्यालय के सामने कई मजदूरों ने विरोध-प्रदर्शन किया था. करीब 250 मजदूरों को 9 महीने से मजदूरी नहीं दी गई थी. इसके बाद पाकुड़ फॉरेस्ट रेंजर अनिल कुमार सिंह ने एक जनहित याचिका डालकर हाईकोर्ट से मामले में हस्तक्षेप की मांग की थी. उन्होंने मजदूरों को बकाया करीब 10 लाख रुपए देने की मांग की थी. इस मामले में ताज़ा अपडेट ये है कि झारखंड सरकार ने फॉरेस्ट रेंजर अनिल को कारण बताओ नोटिस जारी करके पूछा है, क्यों न आपको सरकार के विरोध में जाने के लिए अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी जानी चाहिए? फॉरेस्ट रेंजर अनिल कुमार सिंह को नोटिस का जवाब देने के लिए एक महीने का वक्त दिया गया है.
अनिल की याचिका मुताबिक़ मजदूरों की पेमेंट रोक दी गई थी, क्योंकि पाकुड़ फारेस्ट डिविजन में डिविजनल फॉरेस्ट ऑफिसर की पोस्ट खाली थी.
करण बताओ नोटिस में क्या?
17 फ़रवरी को अनिल कुमार सिंह को अंडर सेक्रेटरी संतोष कुमार चौबे द्वारा साइन किया गया एक कारण बताओ नोटिस मिला, जिसमें उन्हें 17 मार्च तक जवाब देने को कहा गया है.
नोटिस में अनिल कुमार सिंह पर विभागीय जांच नतीजों का हवाला दिया गया है. उनके कामकाज के तरीकों पर सवाल उठाए गए हैं. कहा गया है कि एक टीम ने अनिल की पिछली गतिविधियों को देखा है. सरकारी कर्मचारी होते हुए सरकार के विरोध में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करके अनिल सिंह सरकार के खिलाफ़ गए हैं. नोटिस में अनिल पर अपनी ड्यूटी के दौरान अनुशासनहीनता आदि का हवाला भी दिया गया है. बताया गया है कि दो मामलों में सजा दिए जाने के बाद भी अनिल के आचरण में कोई बदलाव नहीं नज़र आ रहा है. ऐसे में सार्वजनिक हित में अनिल की नौकरी पर सवालिया निशान हैं और उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति दिए जाने के बारे में सोचा जा सकता है.
मामले को लेकर फॉरेस्ट रेंजर क्या कह रहे?
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए अनिल ने बताया कि मजदूरों के लिए उनके द्वारा दायर की गई जनहित याचिका लोकहित में थी. नोटिस में मुझे बताया गया है कि लोकहित में मेरे अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने के बारे में सोचा जा सकता है, लेकिन मैंने मजदूरों के लिए जो किया, वह लोकहित में था.
नोटिस में पिछले वाकयों को लेकर फॉरेस्ट रेंजर ने बताया कि मेरे पर झूठा आरोप लगाया गया था, क्योंकि मैंने अपने सीनियर अधिकारी को कमीशन देने से इनकार कर दिया था. मुझ पर आरोप लगाए गए कि मैंने 2.41 लाख रुपए के फ़र्ज़ी वाउचर भरे. जिस आदमी ने वह वाउचर भरे, उसका कुछ नहीं हुआ, लेकिन मुझे सजा दी गई. एक और मामले में मुझे बायोमेट्रिक अटेंडेंस को लेकर सजा दी गई, वो भी तब जब मैं फील्ड में था. इस मामले को लेकर जो अधिकारी पूछताछ कर रहे थे, उनकी भी बायोमेट्रिक अटेंडेंस नहीं थी. इन दोनों मामलों में मुझे सजा दी गई थी और मैं अदालत में गया था.
वन विभाग के एक सेक्रेटेरी ने नाम न बताने की शर्त पर इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा कि अनिल की आदतें दिक्कतें पैदा करनी की हैं. वह किसी भी मसले के लिए कोर्ट नहीं जा सकते, उसे नहीं जाना चाहिए. कारण चाहे अच्छा और बुरा जो भी हो. एक सरकारी कर्मचारी को सर्विस कंडक्ट नियमों का पालन करना होगा.
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