जब पानी लीटर में नापा जाता है तो बारिश मिलीमीटर और सेंटीमीटर में क्यूं नापी जाती है?
औसत से अधिक बारिश का क्या मतलब होता है?
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रामू से मास्साब ने फुटबॉल ग्राउंड की लंबाई नापने को कहा और श्यामू को सूरज से पृथ्वी के बीच की दूरी.
रामू इंचटेप लेकर फुटबॉल ग्राउंड की ओर दौड़ पड़ा और श्यामू पेंसिल-कॉपी लेकर स्टडी रूम. क्यूंकि रामू को पता है कि इंचटेप से फुटबॉल ग्राउंड की लंबाई आसानी से नाप जा सकती है. वहीं श्यामू को पता है कि सूरज से पृथ्वी की दूरी किसी इंचटेप से नहीं नापी सा सकती, तो वो कैलकुलेशन करने में लग जाता है. और दोनों अपने-अपने उत्तर लेकर मास्साब के पास पहुंचते हैं और शाबाशी पाते हैं.
यही क्रमशः मेज़रमेंट और कैलकुलेशन हैं.
कैलकुलेशन
तो बारिश को मापा यानी मेज़र किया जाता है, उसकी गणना या कैलकुलेशन नहीं की जाती. और बारिश को नापा जाता है लंबाई में.
बारिश नापने के लिए किसी रॉकेट साइंस की ज़रूरत नहीं. आपको एक बाल्टी चाहिए जिसमें बारिश का पानी इकट्ठा हो सकता है. फिर एक स्केल जिससे इकट्ठा हुए पानी की गहराई नापी जा सके. बस फिर आप स्केल को बाल्टी में डुबोकर यह कह सकते हो कि आज इतनी गहरी बारिश हुई.
मेज़रमेंट
लेकिन, जहां कैलकुलेशन में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि हमारे इक्वेशन और गुणा-भाग सही हों वहीं मापने में सबसे ज़्यादा ध्यान इस बात का रखा जाता है कि हमारे नापने के इंस्ट्रूमेंट सही हों.
तो जब बारिश को मापा जाता है तो सारे एप्रेट्स या यंत्र परफेक्ट होने होते हैं. अब बताइए, अगर आपका इंचटेप ही रोज़ सिकुड़ता रहे तो या आपका वजन करने वाला बांट ही रोज़ घिसता रहे तो?
इसलिए आपकी बाल्टी और आपके स्केल से इंस्पायर होकर वैज्ञानिकों ने जो ‘परफेक्ट’ वर्षा-मापी यंत्र बनाया उसे रेन गेज (या हाइड्रोमीटर, यूडोमीटर, प्लवीओमीटर या ओमब्रोमीटर) कहा जाता है.
यानी ऊपर बताई गई आपकी घरेलू विधि और रेन-गेज में ‘परफेक्शन’ के अलावा कोई और अंतर नहीं होता.
परफेक्शन # 1 - आपकी बाल्टी रिप्लेस हो जाती है कांच के सिलेंडर से. इसका नाम होता है कलेक्टिंग बोटल (इकट्ठा करने वाली बोतल). ये बाहर से कवर रहती है मेटल कंटेनर से.
परफेक्शन # 2 – सिलेंडर के ऊपर फनल एक लगा दिया जाता है, जिससे पानी इधर-उधर नहीं गिरता.
परफेक्शन # 3 – इस सिलेंडर को खुली जगह में रखा जाता है. पेड़ या किसी शेड के नीचे रख देने पर बारिश का पानी या तो रुक जाएगा या ज़्यादा इकट्ठा हो जाएगा. और बारिश या हवा से हिले डुले न इसलिए इसे एक कंक्रीट के ब्लॉक में सेट किया जाता है.
परफेक्शन # 4 – रोज़ ठीक एक ही समय में इस कांच के सिलेंडर में इकट्ठा हुए बारिश के पानी को एक बीकर में डाला जाता है. ठीक ‘समय’ या ‘समय अंतराल’ इसलिए जिससे कि ये बताया जा सके – पिछले दिन के मुकाबले आज इतनी बारिश हुई या पिछले चार घंटों में इतनी बारिश हुई या दिल्ली में इतनी तो मुंबई में इतनी बारिश हुई.
परफेक्शन # 5 – ये बीकर, जिसमें सिलेंडर का पानी डाला जाता है, दरअसल आपके घर के स्केल की तरह होता है. क्यूंकि इसमें पहले से ही मिलीमीटर और/या सेंटीमीटर मार्क होते हैं. स्केल पानी में डालने पर उसके भार से भी पानी की ऊंचाई बढ़ जाती न! इसलिए इस ‘आलरेडी मार्कड’ बीकर का इस्तेमाल किया जाता है.
परफेक्शन # 6 - इन सभी एप्रेट्स की लंबाई चौड़ाई पूरी दुनिया में एक सी रखी जाती है. जैसे कि फनल के मुंह का आकार पांच इंच, मेटल कंटेनर की ऊंचाई 203 एमएम.
आजकल सिलेंडर और बीकर अलग नहीं होते, सिलेंडर में ही मिलीमीटर और सेंटीमीटर मार्कड होते हैं.
भारत के अधिकांश जगहों में ‘मेट डिपार्टमेंट’ यानी ‘वर्षा विभाग’ दो बार बारिश की माप लेता है. एक सुबह 8 बजे और दूसरा शाम 5 बजे.
अब इस तरह का डेटा साल दर साल रखा जाता है. यहां तक 'माप' या 'मेज़रमेंट' ही काम आती है. लेकिन फिर जब हमारे पास बहुत ढेर सारा डाटा इकट्ठा हो जाता है (माना पचास साल का) तो हम कई चीज़ें कैलकुलेट कर सकते हैं. जैसे कि - हर साल औसतन कितनी बारिश होती है?, औसतन हर साल भारत में कितनी बारिश होती है?, हर साल औसतन मुंबई में कितनी बारिश होती है?, हर अगस्त के महीने में औसतन मुंबई में कितनी बारिश होती है?, हर अगस्त महीने के पहले सप्ताह में दिल्ली में औसतन कितनी बारिश होती है?, हर दिन पुणे में औसतन कितनी बारिश होती है? आदि, आदि...
अब अगर इस 'औसत' से कम या ज़्यादा बारिश होती है तो, न्यूज़ में आता है कि क्रमशः औसत से कम बारिश हुई या औसत से ज़्यादा बारिश हुई. लेकिन एक बात गौर करिएगा कि जब कभी न्यूज़ में आएगा कि 'औसत से कम बारिश हुई या ज़्यादा बारिश हुई' तो देश और काल ज़रूर मेंशन होंगे.
भारत के विभिन्न इलाकों की सालाना औसत वर्षा (फोटो: विकिपीडिया)
जैसे ये दो हाईपोथेटिकल कथन कि दिल्ली में इस अगस्त के महीने औसत से 20 मिमी अधिक वर्षा हुई या आगरा में आज औसत से 2 मिमी कम वर्षा हुई.
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