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कई किरदार अदा कर, मेरा अब 'मैं' कहां बाक़ी बचा है?

दिन गुलज़ार: आज पढ़िए कुसुमाग्रज की 4 रचनाएं,जिसका तर्जुमा गुलज़ार ने किया है.

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गुलज़ार.... वो जो किसी की कमर के बल पर नदी को मोड़ देता है. वो जो किसी की हंसी सुनवा के फ़सलों को पकवा देता है. वो जो गोरा रंग देकर काला हो जाना चाहता है. वो जिसका दिल अब भी बच्चा है. वो जिसके ख्वाब कमीने हैं. वो जो ठहरा रहता है और ज़मीन चलने लगती है. वो जो है तो सब कोरमा, नहीं हो तो सत्तू भी नहीं. वो जिसे अब कोई इंतज़ार नहीं. जन्मदिन का दिन गुजर गया, पर दिन अब भी गुलज़ार है. वाणी प्रकाशन को थैंक्यू वाली चिट्ठियां भेज-भेज हम आपको उनकी रचनाएं पढ़ा रहे हैं. gulzar poetryआज हम गुलज़ार की तर्जुमा की हुई रचनाएं आपको पढ़ाएंगे. विष्णु वामन शिरवाडकर ‘कुसुमाग्रज’ मराठी काव्य और नाटक के क्षेत्र में बड़ा नाम हैं. कुसुमाग्रज जहां एक ओर अपनी कविता द्वारा सामाजिक जीवन में अन्याय, असमानता और अत्याचार से उपजे विद्रूप और उसके आंतरिक द्वन्द्व का चित्रण करते हैं, वहीं दूसरी ओर गुलज़ार की कलम जीवन की बेहद मामूली चीज़ों में भी उदासी, खुशी, मिलन, बिछोह, प्रेम, घृणा व दर्द की नितान्त निजी अभिव्यक्तियां ढूंढने में उत्कर्ष पाती है. तो आज कुसुमाग्रज की चुनी सुनी नज्में पढ़ा रहे हैं. इनका तजुर्मा किया है अपने गुलज़ार ने. इस पेपरबाउंड कुसुमाग्रज की चुनी सुनी नज़्में (तर्जुमा) किताब में कुल जमा पन्ने 128 है. कीमत 200 रुपये. तजुर्मा गुलज़ार ने किया है. छापा वाणी प्रकाशन ने है. अब बढ़ते हैं कुसुमाग्रज, गुलज़ार की तरफ.
 

कुसुमाग्रज की चुनी सुनी नज़्में

शोहरत शोहरत मतलब पहले दिन तो फूलों का... सहरा और साफ़ा! दूसरे दिन उन फूलों से कूड़े में कुछ और इज़ाफ़ा! तब भी नहीं रहूंगा मैं तब भी रहूंगा तुम्हारी पलकों तले लरज़ते नमी के क़तरे में उल्झा उल्झा...!! इसी तरह मैं हंसूंगा तब भी कहूंगा, अब तक हूं एक उल्झन! नाटक हूं नायक और खलनायक भी मैं मैं सूत्र धार भी और मस्ख़रा भी बहुत से, मुख्तलिफ़ किर्दार अदा कर के मेरा अब ‘मैं’ कहां बाक़ी बचा है? गुलाब लोग कहते हैं यही ख़ार बिन कोई गुलाब होता नहीं एक भी कांटा मगर इस फूल पर है ही नहीं क्यारी क्यारी ओस के क़तरे जमे रहते हैं बस! इस लिए कहता हूं मैं आंसू बिन कोई गुलाब होगा नहीं!!
गुलज़ार की 4 कविताएं यहां पढ़िए