भैयूजी महाराज का ताल्लुक शुजालपुर के एक ज़मींदार परिवार से था. उनके माता-पिता को लगता था कि वो सिविल सर्विस क्लीयर करेंगे लेकिन बीएससी करने के बाद भैयूजी महाराज ने कई छोटी नौकरियां की. महिंद्रा के सीमेंट प्लांट में प्रोजेक्ट इंजीनियर रहे, सियाराम सूटिंग्स के एक एड के लिए मॉडलिंग भी की थी. लेकिन बचपन से झुकाव आध्यात्म की तरफ था तो संत हो गए. सब छोड़कर 1995 में इंदौर आ गए. शुजालपुर में जो ज़मीन थी, उसका एक हिस्सा बेचकर उन्होंने इंदौर के सुखलिया में 2400 स्केवयर फुट का एक प्लाट खरीदा जिसपर 1999 में उनका आश्रम शुरू हुआ. भैयूजी महाराज एक ट्रस्ट भी चलाते थे जिसका नाम श्री सदगुरु दत्त धार्मिक एवं पारमार्थिक ट्रस्ट है. आम भाषा में इसे सूर्योदय परिवार कहा जाता है.

भैयूजी महाराज ने कई छोटी-छोटी नौकरियां की. मॉडलिंग भी.
क्रिकेट, कुश्ती, तलवारबाज़ी और घुड़सवारी के शौकीन भैयूजी महाराज की पकड़ पश्चिम मध्य प्रदेश के उन इलाकों में थी, जो महाराष्ट्र से लगे हुए हैं – माने इंदौर के आस-पास का इलाका. भैयूजी महाराज इलाके में जाने-पहचाने चेहरे थे और उनके प्रवचन होते रहते थे जिनमें नेता भी शिरकत करते थे. भवदीप कांग ने अपनी किताब 'गुरूज़ः स्टोरीज़ ऑफ इंडियाज़ लीडिंग बाबाज़' में भैयूजी महाराज के हवाले से लिखा है कि वो वीआईपी कल्चर के खिलाफ हैं. लेकिन देश के कई नामचीन वीआईपीज़ से उनके करीबी संबंध थे. गूगल पर भैयूजी महाराज सर्च करने पर कई राजनैतिक हस्तियों के साथ उनकी तस्वीरें मिलती हैं. इनमें शिवराज सिंह चौहान, आनंदीबेन पटेल, और पीएम मोदी शामिल हैं. मध्यप्रदेश के साथ-साथ महाराष्ट्र की राजनीति में भी उनकी अच्छी पकड़ थी. नरेंद्र मोदी ने जब दिसंबर 2012 में चौथी बार गुजरात के मुख्यमंत्री की शपथ ली, तो भैयूजी महाराज महमानों में मौजूद थे. भैयूजी महाराज ने ही मोदी जी का सद्भावना उपवास खत्म करवाया था. फिर जब मोदी जी देश के प्रधानमंत्री हुए तो उनके शपथग्रहण में भी भैयूजी पहुंचे थे. राष्ट्रपति रहते हुए प्रतिभा पाटील जब इंदौर आई थीं, तो भैयूजी महाराज को मिलने बुला लिया था. क्योंकि प्रोटोकॉल के चलते वो खुद नहीं जा सकती थीं.

शिवराज सिंह चौहान, रामनाथ कोविंद और देवेंद्र फडनवीस के साथ भैयूजी महाराज. (फोटोःफेसबुक)
दिल्ली में जनलोकपाल के वक्त जब अन्ना हज़ारे को अनशन तोड़ने के लिए मनाने की कोशिश हो रही थी, भैयूजी महाराज उस कवायद का हिस्सा थे. पिछले साल अगस्त में मेधा पाटकर नर्मदा डूब पीड़ितों को लेकर जल सत्याग्रह पर बैठ गई थीं. मेधा को मनाने के लिए भी मध्य प्रदेश सरकार ने भैयूजी महाराज को ही भेजा था. मध्यप्रदेश सरकार ने जिन पांच संतों को राज्यमंत्री का दर्जा देने का ऐलान किया था, उनमें भी भैयूजी महाराज का नाम था. उन्होंने कह दिया था कि वो किसी की भावना आहत नहीं करना चाहते और इसीलिए वो अपने नए दर्जे के साथ आने वाली किसी भी सुविधा का लाभ नहीं लेंगे.
भैयूजी महाराज एक गृहस्थ संत थे. उनकी पहली पत्नी माधवी के देहांत के बाद उन्होंने सार्वजनिक जीवन से संन्यास ले लिया था. कुछ समय बाद उन्होंने डॉ आयूषी से दूसरी शादी की थी. माधवी से उनकी एक बेटी भी थी जो पुणे में रहती थी और ये बताया जाता है कि वो 12 जून को ही (माने घटना के दिन) अपने पिता को सर्प्राइज़ देने के लिए इंदौर आई थी. दोपहर को भैयूजी महाराज ने सभी से कहा कि वो उनके कमरे से बाहर जाएं. इसके बाद भैयूजी महाराज ने कमरा अंदर से बंद कर लिया और बंदूक से फायर की आवाज़ आई.

भैयूजी महाराज का छोड़ा सूसाइड नोट.
जब कमरा खोला गया तो अंदर भैयूजी महाराज लहूलुहान पड़े थे. भैयूजी महाराज ने एक छोटा सा सूसाइड नोट छोड़ा, जिसमें लिखा था,
''some body should be there to handle duties of family. I am leaving too much stressed out, fed up.''
माने परिवार को संभालने के लिए कोई होना चाहिए. मैं बहुत दबाव में हूं और थक चुका हूं. मैं जा रहा हूं.
शुरुआती जानकारी यही है कि भैयूजी महाराज के परिवार में कुछ कलह थी जिसकी वजह से वो परेशान चल रहे थे. और संभवतः यही उनकी मौत की वजह थी.
कांग्रेस नेता मानक अग्रवाल ने भैयूजी की मौत पर ये कह दिया है कि ये सब राज्य की शिवराज सरकार द्वारा डाले गए दबाव का नतीजा है और इसकी सीबीआई जांच होनी चाहिए.
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