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सेक्रेड गेम्स पर सुधीर मिश्रा का इंटरव्यू : 'अगर वो (राजीव गांधी) चोर था तो मोदी क्या है वो भी कहो'

'हज़ारों ख्वाहिशें..' जैसी मज़बूत पोलिटिकल फिल्म बनाने वाले सुधीर मिश्रा से 'दी लल्लनटॉप' की बातचीत.

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'सेक्रेड गेम्स' के दो प्रमुख किरदार - सरताज और गायतोंडे. दूसरी तस्वीर राजीव गांधी की जो सीरीज में बार-बार दिखाए जाते हैं. और 'हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी' फेम राइटर डायरेक्टर सुधीर मिश्रा.
नेटफ्लिक्स पर 6 जुलाई को आई सीरीज 'सेक्रेड गेम्स' में राजीव गांधी के लिए जैसे शब्द यूज़ किए गए हैं, उस पर विरोध हो रहा है. किसी ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका भी डाली है कि सीरीज में से ऐसा कंटेंट हटवाया जाए. केस की सुनवाई आगे होनी है.
इस सीरीज की कहानी सरताज सिंह (सैफ अली ख़ान) से शुरू होती है. मुंबई पुलिस में इंस्पेक्टर है. उसे एक कॉल आता है कि "25 दिन में मुंबई खत्म हो जाएगी, बचा सकते हो तो बचा लो." कॉलर है बहुत बड़ा गैंगस्टर गणेश गायतोंडे (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) जो बरसों से गायब है. सरताज अब ये गुत्थी सुलझाने में लगा है. भारतीय गुप्तचर एजेंसी रॉ की अफसर अंजलि माथुर (राधिका आप्टे) भी केस में जुटी है. आठवें एपिसोड तक कई शॉकिंग चीजें हो चुकी हैं. कई पात्र मर चुके हैं. इसी दौरान चार-पांच जगह कांग्रेस के नेताओं पर टिप्पणियां हैं.
खासकर राजीव गांधी पर. चौथे एपिसोड में गायतोंडे बोलता है - "वो राजीव गांधी भी ऐसा इच किया. शाहबानो को अलग जलाया, देश को अलग. 1986 में शाहबानो को तीन तलाक दिया उसका पति. वो कोर्ट में केस लड़ी, जीती. लेकिन वो प्रधानमंत्री, राजीव गांधी, वो फट्टू बोला, 'चुप बैठ, औरत!' कोर्ट का फैसला उल्टा कर दिया और शाहबानो को मुल्लों के सामने फेंका." दूसरी जगह उनको बोफोर्स घोटाला करने वाला कहता है.
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इस मसले, अभिव्यक्ति की आज़ादी और राजनेताओं की फिल्मी आलोचना पर सुधीर मिश्रा से हमने बात की. वे जाने-माने राइटर-डायरेक्टर हैं. 2003 में आई उनकी फिल्म 'हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी' में 1975 की इमरजेंसी के दौर का मज़बूत चित्रण था और उसमें इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी को सीधे करप्शन करते हुए दिखाया गया था. सुधीर ने 'धारावी' (1992), 'चमेली' (2003), 'ये साली जिंदगी' (2011), 'इनकार' (2013), 'दास देव' (2018) जैसी फिल्में भी बनाई हैं. कल्ट कॉमेडी 'जाने भी दो यारों' (1983) को लिखने वाली टीम में भी वे थे. उनसे ये संक्षिप्त बातचीतः
'सेक्रेड गेम्स' में राजीव गांधी के चित्रण को लेकर जो विरोध, केस हो रहे हैं उस पर आपका क्या कहना है? कुछ नहीं हो रहा. लोग अपना बोल रहे हैं, बोलने दो. ये (सेक्रेड गेम्स) वेब पर है इसमें तुम क्या कर सकते हो. यही तो आजादी है वेब की. यहां सेंसर बोर्ड तो है नहीं न. लोग देख रहे हैं. मुझे तो अच्छी लगी. बाकी कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना.
सीज़न-1 पूरा देखा आपने? हां.
उसमें जहां बोफोर्स का ज़िक्र आता है, राजीव गांधी का विजुअल आता है और बोला जाता है - "साल था 1985. मां मरी तो बेटा पीएम बन गया. पीएम बनके बोफोर्स घोटाला किया. अपुन सोचा जब देश में पीएम का ईमान नहीं है, तो अपुन सीधे रास्ते चल के क्या करेगा!" ये सीरीज है फिक्शन, लेकिन नॉन-फिक्शन वाले दायरे में जाकर किसी व्यक्ति के बारे में निर्णायक टिप्पणी कर रही है, क्या ऐसा हो तो कोई दिक्कत नहीं है? आज़ादी है. कहना चाहिए. कह दिया उसने. वो विचार है. फिक्शनल कैरेक्टर के जरिए. वो (गणेश एकनाथ गायतोंडे) अपने आप को जस्टिफाई कर रहा है कि मैं जो बना वो इसलिए बना. कोई जरूरी थोड़े ना है कि वो सच बोल रहा है. वो बहाना भी तो बना सकता है. एक सोचने का नजरिया ये भी तो हो सकता है. है तो वो दो टके का गुंडा. है ना! अगर वो कुछ कह रहा है तो झूठ भी बोल रहा हो सकता है.
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शुरुआत हुई है. अब वेब सीरीज बहुत आएंगी. उसमें पोलिटिकल कॉन्टेंट काफी होगा. कोई ऐसी हद जिसे राइटर-डायरेक्टर या मेकर्स न पार करें? नहीं, ऐसा कुछ नहीं होना चाहिए. सिवा इसके कि अगर आप हिंसा भड़का रहे हैं. वहां रोक होनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों के निर्णय के बाद होनी चाहिए. जो इस लायक हैं कि निर्णय ले सकें कि ये जो काम है वो कहीं हिंसा को प्रोत्साहित करेगा? उतना तो प्रतिबद्ध होना पड़ेगा. बाकी मुझे नहीं लगता कि आप कोशिश भी करोगे तो कर (रोक) पाओगे. ये तो माध्यम ही ऐसा है. अब तो खुल गया सिम सिम. अब आगे क्या होगा मानव जात (human race) ही जाने. क्योंकि ये हमारे दिमाग की इजाद है. और हम क्या-क्या इजाद करते रहेंगे पता नहीं. ये जो फ्रीडम आपको मिली है, आप उसका कैसे इस्तेमाल करें ये आप पर है.
"अब कौन किस पर रोकथाम कर सकता है मुझे पता नहीं. मैं तो नहीं मानूंगा कि होनी चाहिए. इस एक जगह लिमिट करूंगा कि जहां आपने हिंसा करने को बढ़ावा दिया तो मैं अदालत का साथ दूंगा कि उस पर रोक लगाओ. इसके अलावा कुछ नहीं."
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आपकी नज़र में वो कौन सी फिल्में रही हैं जिनमें इतनी सीधी, इतनी तीव्रता से राजनेताओं की आलोचना की गई है? 'जेएफके' (1991) में ऑलिवर स्टोन (डायरेक्टर) बोलता है. हमारे यहां भी आएं तो जैसे इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई और उसके बाद क्या हुआ ये दिखाना भी तीव्रता है. सिर्फ अपशब्द इस्तेमाल करना ही तो तीव्रता नहीं होती मेरे ख़याल से. आज के नौजवानों के बीच होती होगी शायद लेकिन 'हज़ारों (ख्वाहिशें ऐसी)' में भी तो सीधा-सीधा आरोप है ना. उसके साथ जो एक्शन आपको दिखाई देते हैं. उसमें जो गीता (चित्रांगदा) का रेप है पुलिस स्टेशन में इमरजेंसी के दौरान. और किसने इमरजेंसी लगाई. क्या हो रहा है पार्टी में. वो सब दिखाया है काफी. पुलिसवाले किस हद तक जा सकते हैं. विक्रम मल्होत्रा (शाइनी) का क्या हाल होता है. ये सब इमरजेंसी में ही होता है न? काफी कुछ है. वो सीधी पोलिटिकल फिल्म है. मुझे तो ऐसा लगता है कि 'हजारों..' अकेली पोलिटिकल फिल्म है इंडिया की, हिंदी सिनेमा में. बाकी कोई गैंगस्टर फिल्म में पोलिटिकल कॉमेंट है, ये सब जरूर है. ये मेरा विचार हो सकता है, लेकिन मुझे नहीं दिखी कोई दूसरी पोलिटिकल फिल्म. कोई फैमिली ड्रामा है तो उसमें कुछ है, वगैरह.
"सेक्रेड गेम्स में मुझे अच्छा लगा. मुझे अनुराग और विक्रम मोटवाने, इन लोगों का काम वैसे भी बहुत अच्छा लगता है. मैं तो 'पांच' (2001, अनुराग की पहली फिल्म, अब तक अप्रदर्शित) से बोल रहा हूं अनुराग कश्यप कमाल है. मैं प्रोड्यूस करने वाला था उसकी पहली फिल्म."
अभी 'सेक्रेड गेम्स' के तीन सीज़न और आने बाकी हैं. ये भी एक सवाल है कि अगर आप इतने उग्र कॉन्ग्रेस के लिए हैं तो 2002 के दंगों पर भी आप उतना सीधा बोल पाते हैं या नहीं? ये देखते हुए कि कौन सी सरकार अभी है और क्या माहौल है. वही देखना पड़ेगा. आपने दरवाजा खोल दिया उधर का, तो क्या हुआ 2002 में वो भी कहो. अगर वो (राजीव गांधी) चोर था तो मोदी क्या है वो भी कहो. लेकिन इन लोगों पर (राइटर-डायरेक्टर) अभी तक तो हम आरोप लगा नहीं सकते कि वो सीधा नहीं बोलते. वरुण (ग्रोवर) तो बोलता है 'ऐसी तैसी डैमोक्रेसी' में और बाकी दूसरे मंचों पर. या नहीं बोलता? इसीलिए उनकी विश्वसनीयता भी है. देखिए, कोई भी कुछ भी बोलता है तो बोल सकता है लेकिन अपने काम से आप एक विश्वसनीयता भी तो बनाते हैं. मामला इंट्रेस्टिंग है.
ये लड़के हिम्मत वाले हैं ये अच्छी बात है यार. ये जो ग्रुप है अनुराग, विक्रम, वरुण का, ये बड़े जरूरी लोग हैं हिंदुस्तान में, मुझे ऐसा लगता है. आप उनसे अग्री करें, न करें लेकिन (वो) एक हिम्मत तो दिखाते हैं. हिम्मत सिर्फ पोलिटिकल ही नहीं, बाकी काम में भी चीजों में भी स्ट्रेच करते हैं चीजों को थोड़ा खींचते हैं. हमने तो देखा नहीं 'सेक्रेड गेम्स' जैसा कुछ पहले कभी हिंदुस्तान में. एक रोचक विस्तार है, सीमाओं का. हर आदमी के बस के बात भी नहीं है, और ट्राई भी नहीं करना चाहिए उनको.
"देखिए वो कहानीकार भी तो हैं. उसमें (सेक्रेड गेम्स) बाकी सारी चीजें भी तो हैं जो होनी चाहिए. सिर्फ बात नहीं कह रहे हैं, वो स्टोरीटेलर भी हैं. उनमें कमाल की काबिलियत भी है कहानी सुनाने की. उस टैलेंट के अंतर्गत वो करते भी हैं. तो बात होती है न. मुझे तो लगता है इंट्रेस्टिंग है बहुत."
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बाकी देशों में बड़े से बड़े व्यक्तित्वों पर निर्मम होकर बोला जाता है. जैसे ब्रिटेन है, जहां सबसे सम्माननीय क्वीन हैं और उस देश में कोई माध्यम नहीं है जहां क्वीन की मज़ाक न उड़ाई गई हो. आप 'पीकी ब्लाइंडर्स' जैसा शो देखिए तो उसमें विंस्टन चर्चिल (ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे, महानतम ब्रिटिश इंसान कहलाए) पर आरोप है. बहुत बड़ा. आप देखिए. और बीबीसी ने ही बनाया है मेरे ख़याल, अब नेटफ्लिक्स पर है वो शो. चर्चिल पर बहुत बड़ा आरोप है. असल में पीछे से अगर उस सीरीज में कोई मास्टर विलेन है तो वो चर्चिल है. उन्होंने उसको भी पकड़ा है.
विश्व के ज़रूरी विचारक कहते हैं कि बड़े फिगर्स की तो और ज्यादा आलोचना होनी चाहिए, खुलकर होनी चाहिए. खुल के होनी चाहिए. और जरूरी नहीं है यही हो, दूसरी तरफ से भी बात हो. हम लोग ये क्यों बोलते हैं कि अरे उन्होंने क्यों बोला! अरे, उनको भी तो हक है बोलने का भाई. ये उदार फासीवाद (liberal fascism) भी अलग है कि लेफ्ट वाले ही बोल सकते हैं, राइट वाले नहीं बोल सकते. उनको भी बोलने का हक है, आपको भी बोलने का हक है. जैसे मैंने 'हजारों..' में कई आरोप लगाएं हैं, बग़ैर ज़ोर-ज़ोर से बोले. तो कोई उधर से भी बोले तो उसमें क्या बुराई है. 'हज़ारों..' में सिर्फ कॉन्ग्रेस पर आरोप नहीं है, उस गठबंधन पर भी है जो बन रहा था कि Hindu communalists, fascists, comrades will form a party together और वो लोग पैसा लेते हैं मेन फिक्सर से.
एक सीन है बाकायदा 'हज़ारों..' में. वो बोलता है कि "जब क्रांति आ जाए तो हम क्रांतिकारियों को मत भूलिएगा." वो (विक्रम मल्होत्रा, शाइनी का किरदार) चैक देते हुए बोलता है ये. अब मैं अगर कुछ ऐसा बोलूं तो ये नहीं कर सकता न कि मुझे कोई जवाब न दे.
'हज़ारों..' के एक दृश्य में संजय गांधी पर बेस्ड किरदार गलत काम करते हुए. दूसरे में पोलिटिकल फिक्सर जो समाजवादी विचारधारा वाले व्यक्ति को चंदा दे रहा है.
'हज़ारों..' में संजय गांधी पर बेस्ड किरदार करप्शन करते हुए. दूसरे सीन में पोलिटिकल फिक्सर जो समाजवादी विचारधारा वाले नेता को चंदा दे रहा है.
"विवाद खड़ा हो, डिस्कशन हो, वो इंट्रेस्टिंग है. इसलिए 'सेक्रेड गेम्स' में अच्छा है. मुझे अच्छा लगा अगर उन्होंने हिस्ट्री को एक फिक्शनल नैरेटिव में जोड़ा और उसके संदर्भ में देखा क्या हो रहा है."
राजीव गांधी वाले मामले पर कॉन्ग्रेस ने जवाब दिया है कि 'भारत एक लोकतंत्र है जहां अभिव्यक्ति की आज़ादी है लेकिन जो आप ('सेक्रेड गेम्स' में) बोल रहे हो वो झूठ है, साजिश है. हां, वही. उन्हें भी बोलने का हक है अपने पक्ष में. उसमें क्या है. भई कोई तो डिफेंड करेगा न, अगर मैं किसी पर आरोप लगाऊंगा तो. बस वहीं तक कि 'सेक्रेड गेम्स' पर कोई प्रतिबंध न लगाया जाए, न उसे रोका जाए. आप बोलो जितना बोलना है. सवाल खड़े करो. यही तो बात है. और अनुराग ने इससे पहले भी तो किया है जो पिछली फिल्म उसने बनाई थी 'मुक्काबाज'. उसमें दिखाया था न कि मांस (बीफ) डाल देते हैं (दलित कोच श्रवण सिंह के घर) और गलत आरोप लगाते हैं और फिर पीटते हैं आकर लोग. वो भी तो था सीन. एकतरफा तो नहीं बोलता वो. कश्यप में बड़ी हिम्मत है मुझे तो ऐसा लगता है. वो बड़ा इंट्रेस्टिंग बंदा है हिंदुस्तानी संदर्भ में. ये मैं साल 2000 से बोल रहा हूं. एक जमाने में मैं उसको इंस्पायर करता था, ये बहुत बार बोल चुका हूं कि आजकल वो मुझे इंस्पायर करता है.
आप 'हज़ारों..' को वेब सीरीज में लाने का सोचते हैं? उससे अलग एक दूसरी तरह की (सीरीज) इमरजेंसी पर लिखने की बात हो रही है. 'हज़ारों..' का सीक्वल बनाऊंगा, फिल्म के तौर पर. सीरीज नहीं. 'हज़ारों..' को फिल्म ही रहने दो. उसमें कई बाध्यताएं होती हैं दर्शकों को बांधकर रखने की और उस तरह (हज़ारों..) के दूसरे डॉक्यूमेंट हैं नहीं हिंदुस्तान में.
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