जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) ने 21 जुलाई को देर शाम स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए उपराष्ट्रपति पद छोड़ दिया. तबसे कयासों का बाजार गर्म है. सवाल उठ रहे हैं कि 21 जुलाई की शाम 6-7 बजे तक जगदीप धनखड़ एकदम एक्टिव थे. मगर अचानक तीन घंटे में क्या हुआ कि इस्तीफा देना पड़ा? लेकिन अब जो खबरें छनकर आ रही हैं, उसके मुताबिक उनका इस्तीफा अप्रत्याशित तो था, लेकिन ‘अचानक’ नहीं. इसमें कई कड़ियां जुड़ने लगी हैं.
'अचानक राष्ट्रपति भवन में धनखड़ की एंट्री से हड़कंप', उससे पहले एक मीटिंग ने इस्तीफे की कहानी लिख दी
PM Narendra Modi अक्सर अपने गर्मजोशी भरे विदाई संदेश के लिए जाने जाते हैं. चाहे नेता सत्ता पक्ष से जुड़ा हो या विपक्ष का. लेकिन Jagdeep Dhankhar से जुड़े पोस्ट में ये गर्मजोशी गायब दिखती है. उनके इस संदेश ने भी उपराष्ट्रपति और सरकार के बीच सबकुछ ठीक नहीं होने की अटकलों को हवा दे दी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 जुलाई को जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद छोड़ने पर अपनी बात रखी. इसके अलावा इस मसले पर जगदीप धनखड़ या फिर सरकार की ओर से कोई बयान नहीं आया. लेकिन धनखड़ के इस्तीफे को जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने से जोड़ कर देखा जा रहा है.
महाभियोग पर विपक्ष का नोटिस स्वीकार करने से सरकार नाराजविपक्ष पिछले दो सप्ताह से जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग लाने के अभियान में जुटा था. 20 जुलाई को इस कोशिश में तेजी आई, ताकि महाभियोग नोटिस लाने के लिए जरूरी 50 के आंकड़े को जुटाया जा सके. वहीं दूसरी तरफ सत्तापक्ष लोकसभा में सर्वसम्मति से जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग लाने की तैयारी में था.
22 जुलाई को मानसून सत्र के पहले दिन लोकसभा में सत्तापक्ष की ओर से चलाए गए अभियान को 145 सांसदों का समर्थन हासिल हुआ. इसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के सांसदों ने हस्ताक्षर शामिल थे. दूसरी तरफ विपक्ष ने राज्यसभा में 63 सांसदों का समर्थन जुटा लिया. इसमें सत्तापक्ष के किसी सांसद का हस्ताक्षर नहीं था. क्योंकि विपक्ष भ्रष्टाचार विरोधी इस मुद्दे पर सरकार को नैतिक बढ़त हासिल करने से रोकना चाहता था.
दोपहर के करीब 1 बजे धनखड़ ने राज्यसभा में होने वाली चर्चा का समय और स्वरूप तय करने के लिए बिजनेस एडवाइजरी कमेटी की बैठक बुलाई. इसमें पक्ष और विपक्ष के सांसदों समेत सदन के नेता जेपी नड्डा, संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू और संसदीय कार्य राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने भी शिरकत की.
ये बैठक बेनतीजा रही. विपक्ष ने सरकार के सुझावों पर फैसला लेने के लिए और समय मांगा. इसके बाद धनखड़ ने कहा कि शाम साढ़े चार बजे BAC की एक और बैठक होगी. इसके बाद दोपहर के दो बजे बजे कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद जयराम रमेश और नासिर हुसैन ने जगदीप धनखड़ के कार्यालय में जाकर मुलाकात की. और उनको 63 सांसदों के हस्ताक्षर वाला प्रस्ताव उनके निजी सचिव को सौंपा. अब तक बीजेपी को इसकी भनक भी नहीं थी.
शाम को लगभग 4 बजे राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने महाभियोग प्रस्ताव पर 63 विपक्षी सांसदों से नोटिस प्राप्त होने की घोषणा की. उन्होंने उस प्रक्रिया का जिक्र किया जब किसी जस्टिस के महाभियोग प्रस्ताव पर दोनों सदनों में नोटिस दिए जाते हैं. फिर उन्होंने कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल से ये पुष्टि करने के लिए भी कहा कि क्या निचले सदन (लोकसभा) में नोटिस दिया गया है. फिर उन्होंने लोकसभा और राज्यसभा की एक संयुक्त समिति के गठन और नियमों के अनुसार आगे की कार्रवाई की बात कही.
इस समय तक लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सदन को जस्टिस वर्मा के नोटिस के बारे में सूचित नहीं किया था. बीजेपी से जुड़े सूत्रों ने बताया कि धनखड़ का ये कदम अप्रत्याशित और चौंकाने वाला था. उन्होंने इस मसले पर सरकार के नोटिस का भी इंतजार नहीं किया.
दरअसल केंद्र सरकार इस प्रस्ताव को पहले लोकसभा में पारित कराना चाहती थी. इसे सरकार की सफलता के तौर पर प्रचारित किया जाता. और न्यायपालिका को एक स्पष्ट संदेश जाता. लेकिन जगदीप धनखड़ ने उनकी योजना पर पानी फेर दिया.
यही नहीं उन्होंने जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ विपक्ष के महाभियोग प्रस्ताव का भी जिक्र किया. धनखड़ ने कहा कि उन्होंने नोटिस की जांच की है, इस पर किसी विपक्षी सांसद ने दो बार सिग्नेचर कर दिया है. उन्होंने बताया कि बाकी सभी सिग्नेचर्स को प्रमाणित करने की प्रक्रिया चल रही है. जैसे ही यह पूरा हो जाएगा, वो सदन को इसकी सूचना देंगे.
जगदीप धनखड़ के इस कदम के बाद ही कथित तौर पर एनडीए के सांसदों के हस्ताक्षर जुटाने की हड़बड़ी शुरू हो गई. हालांकि ये सिग्नेचर कोरे कागज पर लिए गए. जिससे इसके असल उद्देश्य के बारे में पता नहीं चल पाया.
इसके आधे घंटे बाद 4.30 बजे BAC की बैठक शुरू हुई. लेकिन इस बैठक में सरकार की ओर से कोई नहीं आया. सदन के नेता जेपी नड्डा, संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू और संसदीय कार्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल तीनों इस बैठक से गायब रहे. सूत्रों के मुताबिक जगदीप धनखड़ के नोटिस स्वीकार करने से नाराज बीजेपी ने फैसला किया कि ये तीनों नेता बैठक में शामिल नहीं होंगे.
हालांकि अगले दिन 22 जुलाई को जेपी नड्डा ने सदन में सफाई दिया कि उन्होंने पहले ही उपराष्ट्रपति सचिवालय को इसकी सूचना दे दी थी. कांग्रेस ने उपराष्ट्रपति के इस अपमान को अचानक से उनका इस्तीफा देने के पीछे एक कारण बताया.
पिछले हफ्ते विपक्ष के एक नेता को आपबीती सुनाईपिछले हफ्ते राज्यसभा में विपक्ष के एक सीनियर नेता ने जगदीप धनखड़ से मुलाकात की. इस मुलाकात में उन्होंने अपने काम के दबाव के बारे में खुलकर बात की. धनखड़ ने इस बात का भी जिक्र किया कि सत्ताधारी दल की मांगों को पूरा करने के लिए उन्होंने अपनी 'सीमा से बाहर' जाकर काम किया.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, एक घंटे तक चली इस बैठक में धनखड़ ने सरकार द्वारा अपने साथ किए गए व्यवहार की चर्चा की. उन्होंने बताया कि इस साल अप्रैल में उन्हें अमेरिकी राष्ट्रपति जेडी वेंस से मिलने की अनुमति नहीं दी गई. धनखड़ ने विपक्ष के नेता से इसको लेकर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा,
वह (जेडी वेंस) अमेरिका के उपराष्ट्रपति हैं. मैं भारत का उपराष्ट्रपति हूं. फिर भी मुझे उनसे मिलने नहीं दिया गया.
20 जुलाई को एक पूर्व मुख्यमंत्री से मुलाकात के दौरान भी धनखड़ ने अपनी भड़ास निकाली. एक अधिकारी के मुताबिक, सरकार से अपने समीकरण समझाने के लिए उन्होंने वाइट हाउस में राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और वोलोदिमीर जेलेंस्की की मुलाकात का जिक्र किया. इस मामले से जुड़े लोगों का मानना है कि धनखड़ और सरकार के बीच आई दूरी का कारण न्यायपालिका के खिलाफ दिए गए उनके तीखे बयान हो सकते हैं.
जगदीप धनखड़ के दो करीबी सांसदों की माने तो पिछले साल विपक्ष के लाए अविश्वास प्रस्ताव के बाद से ही उनके और सरकार के बीच दूरी बढ़ने लगी थी. क्योंकि अविश्वास प्रस्ताव पेश किए जाने के बाद बीजेपी या एनडीए का कोई भी नेता खुलकर उनके समर्थन में नहीं आया. वे भारत के पहले उपराष्ट्रपति हैं, जिन्हें अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा.
बिना अपॉइंटमेंट के राष्ट्रपति भवन पहुंच गएअपने इस्तीफे की घोषणा कर जगदीप धनखड़ ने राजनीतिक हलकों को चौंका दिया. 21 जुलाई की रात नौ बजे वो बिना किसी पूर्व सूचना के अचानक राष्ट्रपति भवन पहुंच गए. उनको राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात करनी थी. उनके अचानक पहुंचने की घटना ने राष्ट्रपति भवन के अधिकारियों को चिंता में डाल दिया.
अमूमन राष्ट्रपति से मिलने का एक प्रोटोकॉल होता है. इसके लिए पहले से अपॉइंटमेंट लेना होता है. लेकिन बिना किसी अपॉइंटमेंट के रात 9 बजे धनखड़ के राष्ट्रपति भवन आने से अफरा-तफरी की स्थिति हो गई. राष्ट्रपति के ADC ने तुरंत सैन्य सचिव को धनखड़ के आने की सूचना दी. और फिर आनन-फानन में राष्ट्रपति से उनकी मीटिंग तय कराई गई. राष्ट्रपति मुर्मू से मुलाकात कर धनखड़ ने अपना इस्तीफा सौंप दिया. और रात 9 बजकर 25 मिनट पर इसकी जानकारी सार्वजनिक की गई.
प्रधानमंत्री के ‘संदेश’ से मिला इस्तीफे को लेकर इशाराजगदीप धनखड़ ने 21 जुलाई को 9.25 मिनट पर उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दिया. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से इस पर पहली प्रतिक्रिया अगले दिन दोपहर 12 बजकर 13 मिनट पर आई. यानी उपराष्ट्रपति के इस्तीफे की जानकारी सार्वजनिक किए जाने के 15 घंटे 18 मिनट बाद. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट कर उनके इस्तीफे पर अपनी चुप्पी तोड़ी. बेहद संक्षिप्त बयान में प्रधानमंत्री ने लिखा,
श्री जगदीप धनखड़ जी को भारत के उपराष्ट्रपति सहित विभिन्न पदों पर देश की सेवा करने के कई अवसर मिले हैं. उनके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करता हूं.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर अपने गर्मजोशी भरे विदाई संदेश के लिए जाने जाते हैं. चाहे नेता सत्ता पक्ष से जुड़ा हो या विपक्ष का. लेकिन धनखड़ से जुड़े पोस्ट में ये गर्मजोशी गायब दिखती है. उनके इस संदेश ने भी उपराष्ट्रपति और सरकार के बीच सबकुछ ठीक नहीं होने की अटकलों को हवा दे दी. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो पिछले काफी वक्त से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के बीच आमने-सामने की बैठक भी नहीं हुई थी.
वीडियो: जगदीप धनखड़ का इस्तीफे के बाद PM मोदी का रिएक्शन भी आ गया