भारत में क्रिकेट सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि जुनून है. इंडियन क्रिकेट टीम का दुनिया भर में जो दबदबा है, वह किसी परिचय का मोहताज नहीं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस पूरी व्यवस्था को चलाने वाली संस्था BCCI सरकारी है या प्राइवेट? ये वो सवाल है जो शायद हर भारतीय के मन में कभी न कभी जरूर उठा होगा. दिलचस्प बात ये है कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) न तो सरकारी है और न ही ये सरकार से कोई पैसा ही लेता है. यह पूरी तरह से एक स्वायत्त (Autonomous) और निजी (Private) संस्था है, जो अपने फैसले खुद लेती है और किसी बाहरी दखल को कभी स्वीकार नहीं करती.
BCCI हो जाएगा सरकारी? मोदी सरकार बिल ही ऐसा लाई है
संसद के मॉनसून सत्र में केंद्र सरकार स्पोर्ट्स गवर्नेंस बिल लाने की तैयारी में है. बीसीसीआई को भी इस बिल के दायरे में लाया जाएगा. क्या है इस बिल में और बीसीसीआई पर इसका क्या असर पड़ेगा?
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लेकिन अब यह तस्वीर बदलने वाली है. केंद्र सरकार एक नया बिल लाने की तैयारी में है, जो BCCI की ‘स्वायत्तता’ पर थोड़ा असर डाल सकता है. अब तक BCCI जिस तरह सरकार से अलग और आजाद था, आगे शायद एकदम वैसा न रह पाए.
केंद्र सरकार जो विधेयक लेकर आ रही है, वह ‘स्पोर्ट्स गवर्नेंस बिल’ है.
और BCCI को भी इस बिल के दायरे में लाया जा रहा है. मतलब ये कि अब BCCI को खेल मंत्रालय के नियमों के अधीन काम करना पड़ेगा. इस मुद्दे पर बहुत बार चर्चा हुई है. बहुत बार कोशिश भी की गई लेकिन BCCI ने अपनी स्वायत्तता पर किसी भी तरह के ‘अंकुश’ को हर बार विफल कर दिया.
हालांकि, इस बार काम थोड़ा ‘मजबूती’ से होने वाला है. ‘राष्ट्रीय खेल प्रशासन बिल’ या ‘National Sports Governance Bill’ संसद में पास हो गया तो बीसीसीआई में बहुत सी चीजें बदल जाएंगी.
Sports Governance Bill में है क्या?भारत में तमाम खेलों के तमाम संघ बने हैं, जो अपने खेल और खिलाड़ियों का प्रबंधन और प्रशासन देखते हैं. उनके भीतर चुनाव होते हैं. वित्तीय व्यवस्था होती है, जिसको लेकर कभी-कभी विवाद भी होते हैं. चुनाव में या 'रुपये-पैसे' में अनियमितता होती है तो कोर्ट-कचहरी के चक्कर भी लगते हैं. भारत में अदालतों के पास जितना काम पेंडिंग है, उतना शायद ही किसी के पास हो.
इसका नतीजा ये होता है कि विवादित फैसलों में ‘लेट-लतीफी’ होती है. इससे खिलाड़ियों का भविष्य प्रभावित होता है. खिलाड़ी प्रभावित होते हैं तो खेल प्रभावित होता है. खेल प्रभावित होता है तो भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा भी प्रभावित होती ही है. ऐसे में खेल संघों में पारदर्शिता लाने, खिलाड़ियों को केंद्र में रखकर व्यवस्था बनाने और अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब के खेलों के विकास का लक्ष्य लेकर केंद्र सरकार ने ये बिल ड्राफ्ट किया है, जिसे 'खेल शासन बिल' कहा जा रहा है.

बिल में कई तरह की बातें हैं. जो सबसे पहली और जरूरी बात है, वो है ‘राष्ट्रीय खेल बोर्ड’ का गठन. यह पूरे देश में एक बोर्ड होगा, जो हर तरह के खेल संघों पर नजर रखेगा. बोर्ड में नियुक्तियां सरकार करेगी और इसके पास व्यापक अधिकार होंगे. शिकायतों या चुनावी-वित्तीय अनियमितताओं पर बोर्ड के पास किसी भी खेल संघ की मान्यता रद्द करने की ताकत होगी. इन संघों में BCCI भी शामिल होगा.
बिल के मुताबिक, बोर्ड का एक अध्यक्ष होगा, जिसकी नियुक्ति एक स्पेशल सरकारी समिति की सिफारिशों के आधार पर की जाएगी. इस समिति में अध्यक्ष खेल सचिव या कैबिनेट सचिव होंगे. इसके अलावा भारतीय खेल प्राधिकरण के डीजी, दो खेल प्रशासक और द्रोणाचार्य या खेल रत्न या अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित एक प्रतिष्ठित खिलाड़ी भी इस बोर्ड का सदस्य होगा.
बिल की खासियत ये है कि पहली बार खेल से संबंधित नीतियों को बनाने में खिलाड़ी भी हिस्सा लेंगे. राष्ट्रीय खेल संघ हो या ओलंपिक संघ. हर संगठन में एथलीट आयोग बनाया जाएगा. यह वो मंच होगा, जिसके जरिए खिलाड़ी सीधे तौर पर खेल नीतियों के बनने में हिस्सा ले पाएंगे.
बृजभूषण सिंह और पहलवानों वाला कुश्ती फेडरेशन का विवाद आपको याद ही होगा. इससे काफी पहले हॉकी इंडिया में भी संगठन के स्तर पर विवाद देखा गया था. ये सब ऐसे विवाद हैं, जो कोर्ट जाते हैं तो अदालतों की व्यस्त कार्यवाहियों में फंस जाते हैं. खिलाड़ियों के लिए ये समय बहुत मायने रखता है. कई बार विवादों का निपटारा होते-होते प्लेयर का करियर ही ‘निपटने’ के कगार पर आ जाता है.

अदालतों पर बोझ कम करने के लिए इस बिल में खेल वाले मुकदमों को अलग कर दिया गया है. इन मामलों के निपटारे के लिए राष्ट्रीय खेल न्यायाधिकरण (National Sports tribunal) का गठन किया जाएगा. खेल से संबंधित सभी विवादों का निपटारा यहीं होगा. अगर किसी को इसके फैसले से दिक्कत होगी तो वह सिर्फ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकेगा.
बिल में राष्ट्रीय खेल संवर्धन संगठन (NSPO) के गठन का भी प्रस्ताव है, जिसका काम जनता में खेल भावना को बढ़ावा देना है. इसके अलावा खिलाड़ियों की मदद करना और खेल व्यवस्था को सुधारना भी इस संगठन की जिम्मेदारी होगी. ये काम प्राइवेट और गैर-सरकारी संस्थाएं भी कर सकेंगी.
बिल में डोपिंग को लेकर भी कड़े प्रावधान शामिल किए गए हैं. गलती करने वालों को कठोर सजा मिलेगी. इसके लिए सभी खेल संगठनों को एक आचार संहिता बनाना जरूरी होगा, जो अंतरराष्ट्रीय नियमों और भारत के कानून के अनुसार हो.
बिल में सबसे अहम प्रस्ताव ‘सूचना का अधिकार’ (RTI) को लेकर है. इसके तहत खेल से जुड़ी सारी संस्थाएं सूचना के अधिकार (RTI) के अंडर आ जाएंगी. मतलब आम जनता ये जान सकेगी कि खेल संगठनों का पैसा और फैसले कैसे लिए जा रहे हैं. BCCI भी इसके दायरे में होगा.
खेल संगठनों की कमेटियों में कम से कम 30% महिलाओं का होना अब जरूरी होगा.
खेल संघों के चुनाव स्वतंत्र पैनल की निगरानी में कराए जाएंगे, जिसमें चुनाव का अच्छा अनुभव रखने वाले लोग शामिल होंगे. इससे चुनाव पारदर्शी और निष्पक्ष रहेंगे.
सबसे जरूरी बात. केवल मान्यता प्राप्त खेल संगठन ही ‘तिरंगे’ या ‘भारत’ जैसे नामों का इस्तेमाल कर सकेंगे. अगर कोई गैर-मान्यता प्राप्त संस्था ऐसा करता है तो उस पर जुर्माना या जेल या दोनों हो सकता. एक साल की सजा और 10 लाख के जुर्माने का प्रावधान है, लेकिन इसे बढ़ाया भी जा सकता है.

BCCI भारत के 45 मान्यता प्राप्त खेल संघों में शामिल नहीं है.
लेकिन अगर वह इंटरनेशनल क्रिकेट में 'भारत' के नाम और तिरंगे का इस्तेमाल करना चाहता है तो ये बिल आने के बाद इसे राष्ट्रीय खेल बोर्ड से मान्यता लेनी पड़ेगी. इसका मतलब होगा कि उसे बोर्ड के नियम भी मानने पड़ेंगे. नियम न मानने की हालत में खेल बोर्ड के पास BCCI को भी निलंबित करने का अधिकार भी होगा.
BCCI बिल के दायरे में आएगा तो क्या बदलेगा?सबसे पहले तो ये क्लियर कर दें कि इस बिल के जरिए सरकार BCCI को अपने नियंत्रण में नहीं ले रही है.
बिल के आने के बाद भी BCCI की स्वायत्तता बरकरार रहेगी यानी वह सरकारी नियंत्रण से मुक्त रहेगा लेकिन,
राष्ट्रीय खेल बोर्ड इसके चुनावी या वित्तीय अनियमितताओं की निगरानी का काम करेगा.
इसके विवाद खेल न्यायाधिकरण में सुलझाए जाएंगे.
RTI के दायरे में आने के बाद आम आदमी की BCCI से संबंधित जानकारियों तक पहुंच बढ़ जाएगी.
बिल के पास होने के बाद BCCI में सिर्फ इतने ही बदलाव नजर आएंगे.

BCCI के ‘राष्ट्रीय खेल बोर्ड’ के अधीन आने के बाद भारतीय क्रिकेट टीम के खिलाड़ियों की फीस पर कोई असर पड़ने की संभावना नहीं है. फीस तय करने का काम BCCI का है जो अलग-अलग फॉर्मेट के खिलाड़ियों को अपने तरीके से मैच फीस देती है. बिल के ड्राफ्ट में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिसमें BCCI के इस अधिकार पर सरकारी नियंत्रण की बात हो.
हां, बिल आने के बाद जब BCCI के प्रशासनिक हिस्से में सरकारी हस्तक्षेप बढ़ेगा तब हो सकता है कि इससे टीम सेलेक्शन प्रभावित हो. ऐसा होने पर टीम की परफॉर्मेन्स पर असर पड़ने से भी शायद इनकार नहीं किया जा सकता.
BCCI पर 'कंट्रोल' की पहले भी कोशिशें हुई हैंBCCI का इतिहास आजादी से भी पहले का है. 10 दिसंबर 1928 को BCCI (Board of Control for Cricket in India) की स्थापना की गई थी, जिसके पहले अध्यक्ष RE ग्रांट गोवन बने थे. वहीं एंथनी डी मेलो को इसका पहला सचिव बनाया गया. आजादी के बाद से अब तक BCCI ने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट टूर्नामेंट कराए हैं.
दुनिया के सबसे मशहूर स्पोर्ट्स टूर्नामेंट में शामिल इंडियन प्रीमीयर लीग (IPL) भी BCCI का आयोजन है. साल 2013 में IPL में स्पॉट फिक्सिंग का मामला सामने आया था. तब भी BCCI पर सरकारी कंट्रोल की बातें कही गई थीं. इसी दौरान, फिक्सिंग केस को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस लोढ़ा की अध्यक्षता में एक समिति बनाई थी, जिसने क्रिकेट बोर्ड में कई बड़े बदलावों की सिफारिश की थी.

समिति ने अपनी सिफारिश में BCCI के अधिकारियों का कार्यकाल फिक्स करने, अधिकारियों की उम्र पर 70 साल की सीमा लगाने और बोर्ड में किसी भी मंत्री के शामिल होने पर रोक लगाने का सुझाव दिया था. हालांकि, BCCI ने कोर्ट की सिफारिशें मानने से इनकार कर दिया था.
अप्रैल 2018 में भारतीय कानून आयोग ने भी नरेंद्र मोदी सरकार को सुझाव दिया था कि BCCI को RTI के दायरे में लाया जाए. अपनी रिपोर्ट 'लीगल फ्रेमवर्क: BCCI वाइस-ए-वाइस RTI एक्ट' में आयोग ने कहा था कि BCCI को हमेशा एक निजी संगठन समझा गया लेकिन वह वास्तव में एक राष्ट्रीय खेल संघ है. ऐसे में जब अन्य खेल संघ RTI के दायरे में आते हैं तो BCCI को छूट क्यों दी गई है?
बिल पर क्या बोल रही BCCI?
बीसीसीआई के उपाध्यक्ष राजीव शुक्ला ने बिल पर ज्यादा बोलने से मना करते हुए सिर्फ इतना कहा है कि वह इसकी स्टडी करेंगे. उसके बाद ही अपने विचार व्यक्त करेंगे.
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