‘जो शिलालेख बनता उसको
अख़बार बना कर क्या पाया!’
यदि आज हो रहे कवि सम्मेलन में कुमार विश्वास से कोई नई रचना पढ़ने के लिए कहा जाता तो यकीनन वो यही कविता पढ़ते. लेकिन वो ये कविता नहीं पढ़ेंगे. ‘क्यूं नहीं पढ़ेंगे?’ ये बताते हैं. लेकिन इससे पहले आपको ये बता दें कि ये किस कवि सम्मेलन की बात कर रहे हैं हम.
पार्ट वन – तू मुझसे दूर है कैसे, मैं तुझसे दूर हूं कैसे
तो बात शुरू होती है 1950 से. टू बी स्पेसिफिक 26 जनवरी 1950 से. भारत देश में गणतंत्र लागू हुआ. अपार हर्ष का विषय था ये. और हर्ष जहां होता है वहां उत्सव होता है. होने को इसका उल्टा भी सत्य है. लेकिन इस बार तो हर्ष के चलते ही उत्सव था. देश के कोने कोने में था. और उस उत्सव में हुए ढेरों सांस्कृतिक, साहित्यिक और मनोरंजक कार्यक्रम. सिलसिला चल पड़ा. चलना ही था. इतने बड़े देश का इतना बड़ा दिन जो था. तो इसी क्रम में हिंदी अकादमी करने लगी कवि सम्मेलन. बहुत बड़ा कवि सम्मेलन. राष्ट्रीय कवि सम्मेलन. यानी देश के बड़े-बड़े कवि आते शरीक होने के लिए दिल्ली, और अपनी बढ़िया-बढ़िया कविताएं पढ़ते. इसी राष्ट्रीय कवि सम्मलेन में इस बार यानि 2018 में बुलाए इक्कीस कवि.
लेकिन, ‘कोई दीवाना कहता है’ फेम कुमार विश्वास मिस हो गए. (अब इतने भोले तो हम लोग हैं नहीं, जो ये मान लें कि वो मिस हो गए. हुआ दरअसल ये, कि उन्हें जानबूझ कर ड्रॉप कर दिया गया.)
तो इस तरह हमें स्टार्ट में पूछे गए सवाल का उत्तर मिल जाता है कि – ‘क्यूं आज हो रहे कवि सम्मलेन में कुमार विश्वास अपने राज्य-सभा सांसद शिलालेख के बदले अख़बार बन जाने के दुःख को राष्ट्रीय मंच पर नहीं दोहरा पाएंगे.’
कहते हैं कि हर सवाल का उत्तर अपने में एक दूसरा सवाल होता है. इसी तर्ज़ पर हमें पहले सवाल का उत्तर तो मिला लेकिन दूसरा सवाल उभर गया – ‘हिंदी अकादमी ने कुमार विश्वास को ड्रॉप क्यूं किया?’
तो इसकी भी एक लंबी कहानी है…
दरअसल हिंदी अकादमी आता है दिल्ली सरकार के अंतर्गत, और दिल्ली में सरकार है आप की. (अब मैं वो PJ नहीं मारूंगा कि आप की नहीं ‘आप’ की, AAP की, ‘आम आदमी पार्टी’ की, ठीक है मास्टर जी?).
तो दिल्ली में सरकार है ‘आप’ की. मुख्यमंत्री हैं – अरविंद केजरीवाल. और अरविंद केजरीवाल और कुमार विश्वास के बीच है लव-हेट वाला रिलेशनशिप स्टेट्स.
मतलब, पहले लव था, अब हेट है. पहले इनके किस्से ‘शिलालेख’ में इन्ग्रेव होते अब ‘अख़बार’ में छप रहे हैं. तो जब रिलेशन हैं ‘कौव्वा बिरयानी’ वाले तो मु. रफ़ी वाली मधुर आवाज़ें कहां से आएंगी महाराज?
पार्ट टू – ‘भ्रमर’ कोई ‘कुमुदनी’ पे
अब हम ये ‘क्यूं’ वाले विशियस सर्कल (कु-चक्र) में फंस रहे हैं. ‘क्यूं’कि सवाल ये उठ रहा है कि ये लव-हेट वाला रिलेशन है क्यूं? पहले एक लंबी कहानी सुनाई थी अब सुन लो एक दुःखभरी कहानी:
कॉमन मिशन के चलते आप दोनों हुए जय-वीरू टाइप दोस्त. और इस बार फ़िल्म का नाम शोले नहीं – लोकपाल बिल था. ठाकुर थे अन्ना हजारे.
ज़्यादा मेटाफर हो रहे हैं न? कोई नहीं. सरल भाषा में अनुवाद करता हूं: कुछ वर्ष पहले देश भर में एक आंदोलन चला. बहुत बड़ा आंदोलन. राष्ट्रीय आंदोलन. यानी देश के बड़े-बड़े नेता आते शरीक होने के लिए दिल्ली और अपने बढ़िया-बढ़िया भाषण पढ़ते. (कुछ पढ़ा-पढ़ा सा लग रहा न ये कंटेंट?)
बहरहाल, इसमें देश के बड़े-बड़े नेता ही नहीं आए बल्कि कई जो आए वो बड़े-बड़े नेता हो गए और होते चले गए.
यानी दिल्ली हो गई थी ‘कुमुदनी’ और उदीयमान नेता ‘भ्रमर’ हुआ चाहते थे.
इन्हीं में से एक, आई मीन दो थे हमारी शोले के हीरो – केजरीवाल और कुमार विश्वास. दोस्ती हुई. पार्टी हुई. न न वो वाली पार्टी नहीं यार. पार्टी ‘फॉर्म’ हुई. दिल्ली में चुनाव हुए, मुख्यमंत्री बने केजरीवाल, विधानसभा भंग हुई, फिर चुनाव हुए और फिर मुख्यमंत्री बने केजरीवाल. कुमार विश्वास इस पूरे दौरान मिनी-आडवानी बने रहे. अब राज्यसभा के सांसद चुने जाने थे, कुमार को विश्वास था कि तीन में से एक वो भी होंगे. मगर डोर केजरीवाल के हाथ में थी. सपना सलोना था, खत्म तो होना था – हुआ!
बस फिर क्या, ‘शोले’ थियेटर से हटी और ‘सौदागर’ लगी. एक तरफ दिलीप कुमार दूसरी तरफ राज कुमार!
विश्वस्त सूत्र बता रहे हैं कि ‘सौदागर’ भी ज़ल्द ही उतरने वाली है, और ‘गुप्ता’ आई मीन ‘गुप्त’ लगने वाली है.
पार्ट थ्री – तुम यहां थे, मैं तो तुम्हें…
अब कहानी हो जाती है यहीं पर समाप्त, मगर सवाल अब भी बना रहता है. सवाल न हुआ, सूरज बडजात्या का ‘प्रेम’ हो गया!
खैर, सवाल अब भी ये बना है कि – ‘केजरीवाल ने कुमार विश्वास को पैसों के मामले में चोट तो अब पहुंचाई है’ का क्या मतलब हुआ?
इसका उत्तर तो किस रखना चाहिए. किस बोले तो ‘कीप इट सिंपल और शॉर्ट’. राष्ट्रीय कवि सम्मलेन में बुलाए जाते तो फ्री में तो आते नहीं. कुछ ‘पुष्पम-पत्रम’ साथ-साथ आता. मगर ये हो न सका.
…मगर ये हो न सका, और अब तो ये आलम है कि आप यहां दर्शकों में हैं हम तो आपको गेस्ट अतिथि में ढूंढ रहे थे!
केजरीवाल-विश्वास मुद्दे पर विस्तारपूर्वक जानने के लिए ये लिंक पढ़ें:
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तो इस तरह बहुत पहले ही तय हो गया था कि केजरीवाल सुशील गुप्ता को चुनेंगे!
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Video देखें:
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