विकास दिव्यकीर्ति पर कोर्ट भड़का, विवाद की वजह ये वीडियो है
कोर्ट ने कहा Vikas Divyakirti ने ‘दुर्भावनापूर्ण मंशा’ से न्यायपालिका के खिलाफ ‘अपमानजनक और व्यंग्यात्मक भाषा’ का इस्तेमाल किया.

Drishti IAS कोचिंग के संस्थापक विकास दिव्यकीर्ति (Vikas Divyakirti) अपने एक वीडियो को लेकर चर्चा में हैं. इस वीडियो के सामने आने के बाद विकास दिव्यकीर्ति के खिलाफ शिकायत की गई है. इस पर राजस्थान की एक अदालत ने कहा है कि वीडियो में विकास दिव्यकीर्ति ने ‘जानबूझकर लोकप्रियता पाने के इरादे से’ न्यायपालिका के खिलाफ ‘गलत भाषा’ का इस्तेमाल किया है.
LiveLaw की रिपोर्ट के मुताबिक कोर्ट ने कहा ‘प्रथम दृष्टया’ इस बात के मजबूत साक्ष्य मिलते हैं कि दिव्यकीर्ति ने ‘दुर्भावनापूर्ण मंशा’ से न्यायपालिका के खिलाफ ‘अपमानजनक और व्यंग्यात्मक भाषा’ का इस्तेमाल किया. मामले को आपराधिक रजिस्टर में दर्ज करने का निर्देश देते हुए अदालत ने दिव्यकीर्ति को अगली सुनवाई की तारीख पर कोर्ट में मौजूद होने का आदेश दिया है.
शिकायत भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 की धाराओं 353(2) (सार्वजनिक उपद्रव), 356(2), (3) (मानहानि) और IT एक्ट की धारा 66A(b) के तहत दर्ज की गई थी. अजमेर के अतिरिक्त सिविल न्यायाधीश और न्यायिक मजिस्ट्रेट मनमोहन चंदेल ने 8 जुलाई के अपने आदेश में कहा,
किस वीडियो को लेकर हुआ विवाद?“न्यायपालिका का उपहास उड़ाया गया है, जिससे हर उस व्यक्ति की गरिमा, निष्पक्षता और प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है जो न्यायपालिका से जुड़ा है, और न्यायपालिका की छवि व विश्वसनीयता को ठेस पहुंची है. शिकायतकर्ता कमलेश मंडोलिया द्वारा दायर शिकायत को आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है. मामले को आपराधिक रजिस्टर में BNS की धारा 356 (1) (2), (3) (4) लगाकर दर्ज किया जाना चाहिए. चूंकि आरोपी पक्ष ने पहले ही मामले की सुनवाई में भाग लिया है, इसलिए आरोपी को अगली सुनवाई में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना चाहिए.”
जिस वीडियो को लेकर विकास दिव्यकीर्ति को अदालत जाना पड़ेगा उसका टाइटल है – ‘IAS vs Judge कौन ज्यादा ताकतवर है Best Guidance by Vikas Divyakirti sir hindi motivation’. हमने जब यूट्यूब पर इस टाइटल को खोजा तो हमें अलग-अलग चैनल्स पर कई वीडियो मिले.
शिकायतकर्ता ने कहा कि उसे इस वीडियो से ‘अपमानित और अपशब्दों से ठेस’ पहुंची है, जो सार्वजनिक रूप से प्रसारित किया गया. शिकायतकर्ता ने यह दावा किया कि वीडियो में जो टिप्पणियां थीं, वे IAS अधिकारियों और जजों के लिए अपमानजनक थीं और न्यायपालिका को नीचा दिखाने वाली थीं.
शिकायतकर्ता ने कहा कि यह वीडियो न केवल कानून के पेशेवरों की भावनाओं को आहत करता है बल्कि जनता के न्यायपालिका पर विश्वास को भी कमजोर करता है.
वहीं, दिव्यकीर्ति की ओर से कहा गया कि उनका उस यूट्यूब चैनल से कोई संबंध नहीं है, जिस पर यह वीडियो अपलोड किया गया. उनका कहना था कि यह वीडियो किसी थर्ड पार्टी ने उनकी अनुमति के बिना एडिट कर वीडियो पब्लिश किया है. शो कॉज़ नोटिस पर दिव्यकीर्ति की तरफ से कहा गया है,
“मैं स्पष्ट रूप से कहता हूं कि मेरा उस यूट्यूब चैनल से कोई संबंध नहीं है, जिसने विवादित वीडियो अपलोड किया है. यह वीडियो न तो दृष्टि IAS द्वारा प्रकाशित किया गया था और न ही मेरी ओर से किसी ने इसकी अनुमति दी थी. ऐसा लगता है कि यह वीडियो बिना मेरी जानकारी और सहमति के किसी थर्ड पार्टी द्वारा बनाया और अपलोड किया गया है.”
दृष्टि IAS के संस्थापक ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता को धारा 356 BNS के तहत 'पीड़ित व्यक्ति' नहीं माना जा सकता. शिकायत खारिज की जानी चाहिए क्योंकि शिकायतकर्ता का न तो व्यक्तिगत रूप से वीडियो में उल्लेख किया गया है और न ही किसी ऐसे समुदाय को निशाना बनाया गया है जिससे वह स्पष्ट रूप से संबंधित हो.
वीडियो में दिव्यकीर्ति जो बातें कहते सुनाई दे रहे हैं उसके पर भी उन्होंने सफाई दी है. उन्होंने कहा कि वीडियो में किसी विशेष व्यक्ति या किसी विशेष समूह का नाम नहीं लिया गया है बल्कि यह प्रशासन पर एक सामान्य टिप्पणी थी.
दिव्यकीर्ति द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तर्क पर अदालत ने कहा कि यह अधिकार सुरक्षित है, लेकिन इसमें कुछ सीमाएं भी हैं. कोर्ट ने कहा,
“इस अधिकार की आड़ में कोई व्यक्ति न्यायपालिका या न्यायाधीशों का अपमान नहीं कर सकता. और न ही किसी को ऐसे वीडियो बनाकर या प्रसारित करके न्यायालयों/जजों की निष्पक्षता और गरिमा पर हमला करने की अनुमति दी जा सकती है. सर्वोच्च न्यायालय ने अरुंधति रॉय मामले में 6 मार्च, 2002 और प्रशांत भूषण मामले में 2020 में स्पष्ट किया है. इसलिए, आरोपी पक्ष का यह तर्क भी अस्वीकार और खारिज किया जाता है."
अदालत ने मौजूद ‘सबूतों’ के आधार पर कहा कि प्रथम दृष्टया साक्ष्य दिखाते हैं कि वीडियो में प्रयोग की गई भाषा न्यायपालिका के प्रति अपमानजनक, आपत्तिजनक और नीचा दिखाने वाली थी, जिससे न्यायिक संस्थानों की गरिमा का उल्लंघन हुआ. कोर्ट ने कहा कि अगर आरोपी पक्ष (विकास दिव्यकीर्ति) की कोई दुर्भावना या बुरी मंशा नहीं भी थी, तब भी अदालत ने उसे अपनी बात रखने का मौका दिया तो माफी मांगी जा सकती थी या अफसोस जताया जा सकता था. लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया.
कोर्ट ने यह भी कहा कि अब तक रिकॉर्ड पर ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे पता चले कि आरोपी ने वीडियो अपलोड करने वाले को कोई नोटिस भेजा हो. उन्होंने वीडियो के अपलोड पर कोई कड़ी या सामान्य आपत्ति दर्ज कराई हो. आरोपी पक्ष ने अपनी लिखित सफाई में भी ऐसा कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया. इसके अलावा थर्ड पार्टी वाले तर्क पर अदालत ने कहा,
“ कोई भी व्यक्ति, खासकर जब वह किसी संस्था का निदेशक या शिक्षक होते हुए कोई भाषण देता है, तो उसे इस बात की जानकारी होती है कि उसका भाषण रिकॉर्ड किया जा रहा है. और यह रिकॉर्डिंग केवल संस्था/निदेशक की अनुमति से होती है, जिसे बाद में बेचा भी जाता है. ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि वीडियो में भाषण देने वाले व्यक्ति को यह पता नहीं था कि उसका दिया गया भाषण सार्वजनिक नहीं होगा. हमारे सामने मौजूद मामले में भी, ये सारी बातें शायद आरोपी विकास दिव्यकीर्ति की जानकारी में थीं. इसलिए, इस आधार पर की गई आपत्ति को भी अस्वीकार और खारिज किया जाता है.”
इस मामले की अगली सुनवाई 22 जुलाई को होगी.
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