गुजरात दंगों से जुड़े गुलबर्ग सोसाइटी केस में फैसला आ गया है. 14 साल बाद. इसके मुताबिक 24 लोगों ने इस कांड को अंजाम दिया था. इसमें 11 लोगों ने कत्ल जैसा खूंखार जुर्म किया. जबकि 13 ने आगजनी जैसे क्राइम किए. इन 13 आरोपियों में विश्व हिंदू परिषद के नेता अतुल बैद्य भी गुनहगार पाए गए हैं.
पुलिस ने इसके अलावा जिन 36 और लोगों को आरोपी बनाया था. कोर्ट के मुताबिक वे मासूम हैं, उनके खिलाफ मामला नहीं ठहरता. इनमें बीजेपी के मौजूदा कॉरपोरेटर बिपिन पटेल भी हैं. कोर्ट से बाहर लाए जाने के बाद कुछ आरोपियों ने ‘भारत माता की जय’ और ‘जय श्री राम’ के नारे लगाए.
दोषियों के नाम
1. कैलाश लालचंद धोबी
2. योगेंद्र सिंह उर्फ लालू मोहनसिंह शेखावत
3. जयेश कुमार उर्फ गब्बर मदनलाल जिगर
4. कृष्ण कुमार उर्फ कृष्णा मुन्ना लाल
5. जयेश रामजी परमार
6. राजू उफॅ मामो कानीयो
7. नारण सीताराम टांक
8. लाखणसिंह उर्फ लाखीयो
9. भरत उफॅ भरत तैली बालोदीया
10. भरत लक्ष्मणसिंह गोडा
11. दिलीप प्रभुदाश शर्मा
12. बाबुभाइ मनजीभाइ पटणी
13. मांगीलाल धुपचंद जैन
14. दिलीप उफॅ काणु चतुरभाइ
15. संदिप उफॅ सोनुं
16. मुकेश पुखराज सांखला
17. अंबेस कांतिलाल जीगर
18. प्रकाश उफॅ कली खेंगारजी पढीयार
19. मनिष प्रभुलाल जैन
20. धर्मेश प्रहलादभाइ शुक्ल
21. कपिल देवनारायण उर्फ मुन्नाभाई मिश्रा
22. अतुल इंद्रवधन वैध
23. बाबूभाई हस्तीमल राठौड़
24. सुरेंद्र सिंह उर्फ वकील दिग्विजय सिंह चौहान
जानें गुलबर्ग का पूरा मामला, जहां पूर्व सांसद समेत 69 लोगों को जिंदा जला दिया गया था.
14 साल पहले गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में आग लगी. 58 लोगों की मौत हो गई. ट्रेन के उस डिब्बे में अयोध्या से लौट रहे कई कारसेवक थे. उसके बाद प्रदेश में कई जगहों पर मुस्लिम विरोधी दंगे भड़के उठे थे. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक इसमें 1044 लोगों की मौत हो गई थी, लेकिन कई सूत्र 2 हजार से ज्यादा मौतों का दावा करते हैं.
जिन जगहों पर दंगों का सबसे वीभत्स रूप दिखा, उनमें से एक थी नॉर्थ अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसाइटी. गुलबर्ग सोसाइटी केस में गुरुवार को फैसला आया है. जानिए इस केस में किस दिन, क्या हुआ था.
1
गोधराकांड के एक दिन बाद. तारीख, 28 फरवरी, 2002. अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसाइटी को 20 हजार से ज्यादा लोगों ने घेर लिया. 29 बंगलों और 10 फ्लैट की इस सोसाइटी में एक पारसी और बाकी मुस्लिम परिवार रहते थे. कांग्रेस सांसद रह चुके सांसद एहसान जाफरी भी यहीं रहते थे.
2
हिंसक भीड़ ने सोसाइटी पर हमला किया. घरों से निकाल-निकाल के लोगों को मार डाला. ज्यादातर लोगों को घरों में आग लगाकर जिंदा जला दिया. 39 लाशें बरामद हुईं और बाकी को गुमशुदा बताया गया. लेकिन सात साल बाद तक उनकी कोई खबर नहीं मिली, तो उन्हें भी मरा हुआ मान लिया गया. अब मौत का आंकड़ा 69 है. मरने वालों में एहसान जाफरी भी थे.
3
8 जून, 2006 को एहसान जाफरी की बेवा जाकिया जाफरी ने पुलिस को फरियाद दी, जिसमें उन्होंने इस हत्याकांड के लिए उस वक्त के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी, कई मंत्रियों और पुलिस अधिकारियों को जिम्मेदार बताया. पुलिस ने ये फरियाद लेने से मना कर दिया.
4
7 नवंबर 2007 को गुजरात हाईकोर्ट ने भी इस फरियाद को FIR मानकर जांच करवाने से मना कर दिया.
5
26 मार्च 2008 को सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों के 10 बड़े केसों की जांच के लिए आरके राघवन की अध्यक्षता में एक SIT बनाई. इनमें गुलबर्ग का मामला भी था.
6
मार्च 2009 में ज़किया की फरियाद की जांच का जिम्मा भी सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी को सौंपा.
7
सितंबर 2009 को ट्रायल कोर्ट में गुलबर्ग हत्याकांड की सुनवाई शुरू हुई.
8
27 मार्च 2010 को जकिया की फरियाद के संबंध में SIT ने नरेंद्र मोदी को समन किया. कई घंटे तक यह पूछताछ चली.
9
14 मई 2010 को एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पेश कर दी.
10
जुलाई 2011 में एमिकस क्यूरी राजू रामचंद्रन ने इस रिपोर्ट पर अपना नोट सुप्रीम के सामने रख दिया.
11
11 सितंबर 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर फैसला ट्रायल कोर्ट पर छोड दिया.
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8 फरवरी 2012 को एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट की कोर्ट में पेश की.
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10 अप्रैल 2012 को मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने SIT की रिपोर्ट के आधार पर माना कि मोदी और दूसरे 62 लोगों के खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं.
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इस केस में 66 आरोपी हैं. जिसमें प्रमुख आरोपी बीजेपी के असारवा के काउंसलर बिपिन पटेल भी हैं.
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मामले के 4 आरोपियों की ट्रायल के दौरान ही मौत हो चुकी है.
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आरोपियों में से 9 अब भी जेल में हैं जबकि बाकी आरोपी ज़मानत पर बाहर हैं.
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केस में 338 से ज्यादा गवाहों की गवाही हुई है. सितंबर 2015 में केस का ट्रायल खत्म हो गया. 8 महीने पहले फैसला सुरक्षित रख लिया गया.
देखें राकेश शर्मा की डॉक्युमेंट्री ‘फाइनल सॉल्यूशन’ का एक हिस्सा