CRPF जवान राकेश्वर सिंह मनहास को नक्सलियों ने गुरुवार को रिहा कर दिया. बीती 3 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के बीजापुर में हुए नक्सली हमले के दौरान नक्सलियों ने उन्हें अगवा कर लिया था. इसके छह दिन बाद राकेश्वर सिंह को सैकड़ों ग्रामीणों की मौजूदगी में कुछ अन्य लोगों के साथ छोड़ दिया गया. खबर सामने आने के बाद CRPF जवान के परिवार सहित पूरे देश में खुशी की लहर दौड़ गई.
लेकिन इस खुशी के लिए केवल सरकार जिम्मेदार नहीं है. उसके अलावा भी अन्य लोग हैं, जिन्होंने जवान की रिहाई के लिए भरसक प्रयास किए. इनमें कुछ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता भी शामिल रहे. CRPF के आईजी ने एक पत्र जारी कर इन लोगों का आभार जताया है.
पत्रकार बने मध्यस्थ
राकेश्वर सिंह मनहास के सुरक्षित CRPF कैंप पहुंचने के बाद बस्तर रेंज के आईजी पी सुंदरराज ने कहा,
‘पद्मश्री विजेता गांधीवादी धर्मपाल सैनी, आदिवासी नेता तेलम बोरैया के अलावा पत्रकार गणेश मिश्रा और मुकेश चंद्राकर का बहुत-बहुत शुक्रिया, जिन्होंने CRPF जवान को रिहा कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.’
बीजापुर में हुई जबर्दस्त मुठभेड़ में सुरक्षा बलों के 22 जवान शहीद हो गए थे और दर्जनों घायल हो गए थे. उसी बीच राकेश्वर सिंह के लापता होने की खबर आई थी. तबसे ही सरकार उनकी रिहाई के लिए प्रयास कर रही थी. उसने नक्सलियों और उसके बीच मध्यस्थता के लिए दो सदस्यीय टीम भी बनाई. इसमें पद्मश्री से सम्मानित गांधीवादी धर्मपाल सैनी और गोंडवाना समाज के अध्यक्ष तेलम बोरैया को शामिल किया गया. ये लोग लगातार राकेश्वर सिंह की रिहाई के लिए माओवादियों से बातचीत कर रहे थे. लेकिन कुछ और लोग भी थे, जिन्होंने CRPF को छुड़ाने में बड़ी भूमिका निभाई.
लोकल अखबारों की रिपोर्टों से पता चलता है कि सरकार के प्रयासों से अलग कई पत्रकार लगातार इस मामले को लेकर माओवादियों के संपर्क में बने हुए थे. वे ना सिर्फ राकेश्वर सिंह की जानकारी जुटा रहे थे, बल्कि उनकी रिहाई के बारे में भी पता कर रहे थे. इन पत्रकारों में गणेश मिश्रा, मुकेश चंद्राकर, श्री राजा राठौर और श्री शंकर प्रमुख थे. इनके अलावा भी कुछ पत्रकार थे जो माओवादियों और CRPF के बीच लगातार संवाद का पुल बने हुए थे. मीडिया रिपोर्टों में इन पत्रकारों की कुल संख्या 7 बताई जा रही है.
इन्हीं में से एक पत्रकार मुकेश चंद्राकर ने न्यूज 18 चैनल को बताया कि वह और दूसरे पत्रकार लगातार माओवादियों से जवान को आजाद करने की बात कर रहे थे. मुकेश ने बताया,
‘बुधवार को माओवादियों ने हमें बुलाया और हमें जगरगोंडा के जंगलों में आने को कहा. यह वही जगह है जहां पर पिछले हफ्ते CRPF और माओवादियों में मुठबेड़ हुई थी. मध्यथता करने वाले दूसरे लोगों के साथ कुछ जर्नलिस्ट वहां पहुंचे. यह गुरुवार का दिन था. उसके बाद सबको 15 किलोमीटर जंगल के भीतर ले जाया गया.’
Five of the seven journalists who had gone 2 retrieve the missing jawan in #Chhattisgarh‘s Bijapur. These braveheart men went voluntarily and attended a gathering of thousands of villagers and more than 40 armed cadres. Kudos to them. They deserve all thanks one can muster pic.twitter.com/5LbKUubTVy
— Gargi Verma (@GarfieldVerma) April 8, 2021
इसके बाद पामेड़ एरिया कमेटी के सेक्रेटरी मनीला ने जन अदालत बुलाई. इस अदालत में 20 गांव के लोग हिस्सा लेते हैं. माओवादी फैसले सुनाने के लिए इस तरह की जन अदालतें लगाते हैं. वे वहां मौजूद लोगों से ही पूछते हैं कि क्या किया जाए. फिर कहे मुताबिक सजा देते हैं. जब माओवादियों ने 20 गांव की जन अदालत के सामने जवान राकेश्वर सिंह को पेश किया तो अदालत ने एक मत से यह फैसला दिया कि उन्हें छोड़ दिया जाए.
इसके बाद वो तस्वीरें सामने आई, जिनका पूरा देश इंतजार कर रहा था. इनमें राकेश्वर सिंह कुछ लोगों के साथ बाइक पर दिखाई दिए. कुछ ही देर बाद उन्हें CRPF के अन्य जवानों के साथ देखा गया. वहां धर्मपाल सैनी और अन्य लोगों के साथ राकेश्वर सिंह की तस्वीरें सोशल मीडिया पर तेजी से फैलीं. इस बीच, बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक सुंदरराज पी ने बताया कि CRPF के फील्ड अस्पताल में राकेश्वर को सामान्य उपचार दिया जा रहा है.
वीडियो – बीजापुर नक्सली हमले में अगवा हुए CRPF जवान राकेश्वर सिंह नक्सलियों के कब्ज़े से रिहा