क्रिकेट. बड़ा ही मज़ेदार खेल है. इस गेम में कई बढ़िया खिलाड़ी आते हैं, गेम के हर फॉर्मेट में हमें अपना फ़ैन बनाते है और चले जाते हैं. इसी लिस्ट में आज के समय मे टिम डेविड का नाम शामिल होता है. टिम वैसे तो ऑस्ट्रेलियन मूल के हैं, लेकिन हाल तक सिंगापुर से क्रिकेट खेलते थे. और अब वो अपने ऑस्ट्रेलिया डेब्यू के लिए तैयार हैं.
दो देशों के लिए खेला क्रिकेटर, प्रधानमंत्री ने जिससे हाथ मिलाने से मना कर दिया
एलन बॉर्डर के दोस्त केप्ला वेसल्स की कहानी.

ऐसा ही कुछ हमने साल 2019 के वनडे वर्ल्ड कप के समय में भी देखा था, जब इंग्लैंड ने अपने नियमों में बदलाव कर जोफ्रा आर्चर को इंग्लैंड की टीम में शामिल कर लिया था. और ये सारी तो अब की बातें है, असल में पहले भी ऐसा हुआ करता था, जब एक खिलाड़ी दो देशों को रिप्रेसेंट कर देता था.
हालांकि उस समय भी उनको एक देश के लिए खेलना छोड़ना पड़ता था. और ऐसी लिस्ट में आपको इफ्तिखार अली खान पटौदी, गुल मोहम्मद, अब्दुल हाफिज़ कारदार, आमिर इलाही और केप्ला वेसल्स (Kepler Wessels) का. और आज हम इन्हीं वेसल्स का क़िस्सा सुनाएंगे. कि कैसे ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने दूसरे देश का होने के चलते इनसे हाथ मिलाने से मना कर दिया था.
केप्ला साउथ अफ्रीका के ब्लूमफॉनटेन में पैदा हुए थे. क्रिकेट के अलावा वो बाकी गेम्स में भी अच्छे थे. जब वो 18 साल के थे, उस दौरान नेशनल सर्विस में उन्होंने बॉक्सिंग करनी शुरू की. और बाद में 1980–90 के दशक में इसका इस्तेमाल खुद को वेस्टइंडीज़ के दौरे पर तैयार करने के लिए किया.
क्रिकेट डॉट कॉम डॉट एयू के अनुसार बॉक्सिंग पर उनका कहना था,
‘बॉक्सिंग ने मेरी मदद की क्योंकि मैं जानता था कि शारीरिक रूप से मैं मार खाने से डरता नहीं था. मेरा माइंड सेट था कि मैं आउट होने से बेहतर मार खा लूंगा.’
ख़ैर, बॉक्सिंग से इतर क्रिकेट पर वापस आते है. इस बीच केप्ला ने साउथ अफ्रीका के लिए खेला, इंग्लैंड में खेला और वर्ल्ड क्रिकेट सीरीज़ में भी खूब क्रिकेट खेला. लेकिन उसके बाद वो मजदूर के तौर पर काम करने के लिए ऑस्ट्रेलिया के सिडनी में चले गए. हालांकि यहां आकर भी केप्ला ने क्रिकेट खेलना नहीं छोड़ा था.

केप्ला वहां की क्लब क्रिकेट का हिस्सा रहे. वीकेंड पर वो वहां जाकर खेला करते थे. लेकिन इस खेलने में एक समस्या थी. यहां लोग केप्ला को बहुत स्लेज करते थे. ऑस्ट्रेलिया उनके लिए नई दुनिया जैसा था, वहां के लोगों की आदतें, उनका ह्यूमर केप्ला से बिल्कुल उलट. ऐसे में उन्होंने खुद को अल्टीमेटम दे दिया. केप्ला ने खुद से कहा,
‘मेरे पास सिर्फ एक चॉइस थी- मुझे इसके ख़िलाफ खड़ा होना है.’
धीमे धीमे केप्ला ने इसके लिए काम भी किया. और अपनी जगह क्वीन्सलैंड की टीम में बना ली. अब केप्ला पुराने वाले केप्ला नहीं रहे, जो सिर्फ सुनकर आ जाएं. अब वो इन ऑस्ट्रेलियन ज़ोक्स को समझते भी थे और बराबर जवाब भी देते थे. क्वीन्सलैंड के ही दिनों में एलन बॉर्डर केप्ला के खास दोस्त भी बन गए थे.
इस बारे में बॉर्डर बताते हैं,
‘अफ्रीकन की बड़ी सीरियस साइड होती है. वो बहुत मजबूत होते हैं, बहुत इज्ज़त करते हैं और शांत स्वभाव के होते है. मुझे लगता है केप्ला के लिए ऑस्ट्रेलिया आना सांस्कृतिक झटके जैसा भी था. उसको समझने में टाइम लगा कि हमारी बेअदबी, ह्यूमर कैसे काम करता है.
अगर पहले कोई उसको परेशान करता था. तो शुरू में वह इसे व्यक्तिगत रूप से लेता था, इसके बारे में थोड़ा उत्तेजित हो जाता था. बाद में उनको एहसास हुआ कि हम ऐसे ही हैं.’
केप्ला ऑस्ट्रेलिया और उसके कल्चर को समझ चुके थे. कुछ हद तक ऑस्ट्रेलिया के हिसाब से खुद को ढाल भी चुके थे. लेकिन मैदान के बाहर के ऑस्ट्रेलियन्स और वहां के प्रधानमंत्री तक अभी भी केप्ला को बाहरी खिलाड़ी ही समझते थे. और ये बात एक घटना से और पुष्ट होती है. 80 के दशक में एक सीरीज़ के बाद उस समय के ऑस्ट्रेलियन प्राइम मिनिस्टर मैल्कम फ्रेज़र (Malcolm Fraser) ने खिलाड़ियों के लिए कॉकटेल पार्टी रखी थी.

इस पार्टी में फ्रेज़र ने सभी खिलाड़ियों से हाथ मिलाया था. लेकिन जब केप्ला का नंबर आया, तो वो मुड़ गए. यहां पर बता दें, जिस सीरीज़ जीत की पार्टी हो रही थी उसमें केप्ला ने 386 रन बनाए थे. इस पर केप्ला ने एक रेडियो शो में भी बात की थी. रिपोर्टर को क्रिकेट के सवालों तक रोकते हुए उन्होंने कहा था,
‘मैं इससे बहुत नाराज़ हुआ था. मैं यह समझ सकता था, लेकिन यह बहुत असुविधाजनक था.’
प्राइम मिनिस्टर के अलावा, उनके देश के लोग भी उनको ऐसा ही समझते थे. ऑस्ट्रेलिया की बैगी ग्रीन पहनने के बाद भी उनको घुसपैठिया समझा जाता था. उससे भी ज्यादा, उनकी निष्ठा पर सवाल खड़े किए जाते थे. इस पर उन्होंने कहा था,
‘जब मैं ऑस्ट्रेलिया के लिए खेला करता था, मैं सिर्फ जीतना चाहता था. मैं ऑस्ट्रेलिया के लिए खेलने पर गर्व महसूस करता था.’
हालांकि बाद में अपने साथ हो रहे व्यवहार से तंग आकर केप्ला ने ऑस्ट्रेलिया छोड़कर जाने का फैसला कर लिया. इस फैसले के कारण उनकी बॉर्डर से बहस भी हुई थी. हालांकि बाद में उन्हें इसका पछतावा भी हुआ. इस पर केप्ला ने कहा था,
‘वो फैसला हमेशा मेरे साथ रहा है, ये ऐसा है जिसका मुझे बहुत अफसोस है. यह हमेशा मेरे दिमाग में एक दुविधा है जो कि अभी भी अनसुलझी है.’
ऑस्ट्रेलिया से ख़फ़ा होकर केप्ला वापस साउथ अफ्रीका लौट गए. और जब उनकी टीम 22 साल के ICC बैन के बाद वापस लौटी तो उनको इसका कप्तान बनाया गया. केप्ला ने साल 1982 से 1985 तक ऑस्ट्रेलिया के लिए क्रिकेट खेला. उसके बाद साल 1991 से 1994 तक वो साउथ अफ्रीका के लिए खेले.
इसके साथ ही वह दो देशों के लिए इंटरनेशनल लेवल पर वनडे क्रिकेट खेलने वाले पहले प्लेयर भी बने. आज हमने आपको ये सारी बातें उनके जन्मदिन पर बताई हैं. 14 सितंबर 1957 को पैदा हुए केप्ला आज 65 साल के हो गए.
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