विप्लव गान
कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जाए. एक हिलोर इधर से आ, एक हिलोर उधर से आए. प्राणों के लाले पड़ जाएं, त्राहि-त्राहि रव नभ में छाए. नाश और सत्यानाशों का, धुंआधार जग में छा जाए. बरसे आग, जलद जल जाएं, भस्मसात भूधर हो जाएं. पाप-पुण्य सद्सद भावों की, धूल उड़ उठे दाएं-बाएं. नभ का वक्षस्थल फट जाए- तारे टूक-टूक हो जाएं कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जाए। माता की छाती का अमृत- मय पय काल-कूट हो जाए, आंखों का पानी सूखे, वे शोणित की घूंटें हो जाएं, एक ओर कायरता कांपे, गतानुगति विगलित हो जाए. अंधे मूढ़ विचारों की वह, अचल शिला विचलित हो जाए. और दूसरी ओर कंपा देने, वाला गर्जन उठ धाए. अंतरिक्ष में एक उसी नाशक, तर्जन की ध्वनि मंडराए. कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जाए. नियम और उपनियमों के ये- बंधन टूक-टूक हो जाएं. विश्वंभर की पोषक वीणा, के सब तार मूक हो जाएं. शांति-दंड टूटे उस महा- रुद्र का सिंहासन थर्राए उसकी श्वासोच्छ्वास-दाहिका, विश्व के प्रांगण में घहराए, नाश! नाश!! हा महानाश!!! की प्रलयंकारी आंख खुल जाए, कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जाए. सावधान! मेरी वीणा में, चिनगारियां आन बैठी हैं. टूटी हैं मिजराबें, अंगुलियां, दोनों मेरी ऐंठी हैं. कंठ रुका है महानाश का, मारक गीत रुद्ध होता है. आग लगेगी क्षण में, हृत्तल, में अब क्षुब्ध युद्ध होता है. झाड़ और झंखाड़ दग्ध हैं - इस ज्वलंत गायन के स्वर से. रुद्ध गीत की क्रुद्ध तान है, निकली मेरे अंतरतर से! कण-कण में है व्याप्त वही स्वर, रोम-रोम गाता है वह ध्वनि. वही तान गाती रहती है, कालकूट फणि की चिंतामणि. जीवन-ज्योति लुप्त है - अहा! सुप्त है संरक्षण की घड़ियाँ. लटक रही हैं प्रतिपल में इस, नाशक संभक्षण की लड़ियाँ. चकनाचूर करो जग को, गूंजे ब्रह्मांड नाश के स्वर से. रुद्ध गीत की क्रुद्ध तान है, निकली मेरे अंतरतर से! दिल को मसल-मसल मैं मेंहदी, रचता आया हूं यह देखो. एक-एक अंगुल परिचालन, में नाशक तांडव को देखो! विश्वमूर्ति! हट जाओ!! मेरा भीम प्रहार सहे न सहेगा. टुकड़े-टुकड़े हो जाओगी, नाशमात्र अवशेष रहेगा. आज देख आया हूं - जीवन के सब राज़ समझ आया हूं. भ्रू-विलास में महानाश के, पोषक सूत्र परख आया हूं. जीवन गीत भूला दो - कंठ, मिला दो मृत्यु गीत के स्वर से. रुद्ध गीत की क्रुद्ध तान है, निकली मेरे अंतरतर से!कुछ और कविताएं यहां पढ़िए: