# गीत चतुर्वेदी

गीत चतुर्वेदी
हिंदी के वर्तमान कवियों में गीत चतुर्वेदी का स्थान शिखर पर है. एक अच्छे कवि और एक अच्छे इंसान का, बौद्धिकता और मासूमियत का, पत्रकार और समीक्षक का इससे अच्छा कॉम्बो आस पास आसानी से देखने को नहीं मिलता. 27 नवम्बर 1977 को जन्मे गीत अभी केवल चालीस वर्ष के ही हुए हैं और लोर्का, नेरूदा, यानिस रित्सोस, एडम ज़गायेव्स्की, दुन्या मिखाईल आदि की कविताओं के अनुवाद कर चुके हैं; पहल, तद्भव, उद्भावना कवितांक, वागर्थ, साक्षात्कार, पल-प्रतिपल, वसुधा, समकालीन भारतीय साहित्य, कथादेश, अन्यथा आदि पत्रिकाओं में आपकी कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं और आपके ‘आलाप में गिरह’ और ‘न्यूनतम मैं’ नामक काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. इतना ही नहीं गीत की कहानियां पहल, नया ज्ञानोदय, तद्भव, प्रगतिशील वसुधा आदि से प्रकाशित हो चुकी हैं. गीत चतुर्वेदी की पुस्तक ‘पिंक स्लिप डैडी’ उनकी तीन लंबी कहानियों; गोमूत्र, सिमसिम और पिंक स्लिप डैडी; का संकलन है. ‘मदर इंडिया’ कविता के लिए वर्ष 2007 का भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार पा चुके गीत जी की कविताएं परम्परागत माध्यमों के आलावा फेसबुक, ब्लॉग आदि में भी काफी सराही जाती हैं. फेसबुक में तो उनकी फैन-फ़ॉलोइंग बकायद उनकी कविताओं या कविताओं के कुछ चंक्स लेकर वन लाइनर, बैनर बनाते रहते हैं. देश विदेश के बड़े साहित्यिक कार्यक्रमों, उत्सवों और आयोजनों के दौरान लोगों को उनकी टिप्पणी का इंतज़ार रहता है. अभी हाल ही के नोबल साहित्य पुरस्कार के बाद की गई उनकी लंबी टिप्पणी न केवल सोशल मिडिया में सराही गई बल्कि कई अखबरों के संपादकीय में भी उस बौद्धिक टिप्पणी को जगह मिली, और ऐसा हर बार ही होता आया है. सत्रह भाषाओं में उनकी कविताओं का अनुवाद हो चुका है और एक प्रमुख अंग्रेजी समाचार पत्र द्वारा उन्हें देश के दस सर्वश्रेष्ठ लेखकों में से एक कहा गया है. वर्तमान में उनके फैन उनके नॉवल ‘रानीखेत एक्सप्रेस’ का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं.
आज एक कविता रोज़ में पढ़वा रहे हैं गीत द्वारा अनुदित एक मज़दूर, एक कवि - सबीर हका की कविताएं. कविताओं के पूर्व सबीर हका जी के और उनकी कविताओं में विषय में निम्न टीप भी गीत चतुर्वेदी ने ही लिखी है.
सबीर हका की कविताएं तडि़त-प्रहार की तरह हैं. सबीर का जन्म 1986 में ईरान के करमानशाह में हुआ. अब वह तेहरान में रहते हैं और इमारतों में निर्माण-कार्य के दौरान मज़दूरी करते हैं. उनके दो कविता-संग्रह प्रकाशित हैं और ईरान श्रमिक कविता स्पर्धा में प्रथम पुरस्कार पा चुके हैं. लेकिन कविता से पेट नहीं भरता. पैसे कमाने के लिए ईंट-रोड़ा ढोना पड़ता है. एक इंटरव्यू में सबीर ने कहा था, ''मैं थका हुआ हूं. बेहद थका हुआ. मैं पैदा होने से पहले से ही थका हुआ हूं. मेरी मां मुझे अपने गर्भ में पालते हुए मज़दूरी करती थी, मैं तब से ही एक मज़दूर हूं. मैं अपनी मां की थकान महसूस कर सकता हूं. उसकी थकान अब भी मेरे जिस्म में है.'' सबीर बताते हैं कि तेहरान में उनके पास सोने की जगह नहीं और कई-कई रातें वह सड़क पर भटकते हुए गुज़ार देते हैं. इसी कारण पिछले बारह साल से उन्हें इतनी तसल्ली नहीं मिल पाई है कि वह अपने उपन्यास को पूरा कर सकें. ईरान में सेसरशिप लागू है. कवियों-लेखकों के शब्द, सरकार सेंसर कर देती है, डिलीट कर देती है. तब वे आधे वाक्य बनकर रह जाते हैं. इन कविताओं में जिन शब्दों को कोष्ठक में दिया गया है, मूल फ़ारसी में ईरानी सरकार ने उन शब्दों को सेंसर कर दिया था. सबीर की कविताओं पर दुनिया की नज़र अभी-अभी गई है. उनकी कविताओं को कविता की विख्यात पत्रिका 'मॉडर्न पोएट्री इन ट्रांसलेशन' (Modern Poetry in Translation - MPT) ने अपने जनवरी 2015 के अंक में स्थान दिया है. ये सारी कविताएं वहीं से ली गई हैं. ये अनुवाद, फ़ारसी से अंग्रेज़ी में नसरीन परवाज़ (Nasrin Parvaz) और ह्यूबर्ट मूर (Hubert Moore) द्वारा किए गए अनुवादों पर आधारित हैं. ये हिंदी अनुवाद हाल ही में विश्व कविता की हिंदी पत्रिका 'सदानीरा' के ताज़ा अंक में प्रकाशित हुए हैं. मैं इन पत्रिकाओं तथा अंग्रेज़ी अनुवादकों का आभार प्रकट करता हूं.# सबीर हका
# (ईश्वर)(ईश्वर) भी एक मज़दूर है ज़रूर वह वेल्डरों का भी वेल्डर होगा. शाम की रोशनी में उसकी आंखें अंगारों जैसी लाल होती हैं, रात उसकी क़मीज़ पर छेद ही छेद होते हैं.
# बंदूक़अगर उन्होंने बंदूक़ का आविष्कार न किया होता तो कितने लोग, दूर से ही, मारे जाने से बच जाते. कई सारी चीज़ें आसान हो जातीं. उन्हें मज़दूरों की ताक़त का अहसास दिलाना भी कहीं ज़्यादा आसान होता.
# मृत्यु का ख़ौफ़ताउम्र मैंने इस बात पर भरोसा किया कि झूठ बोलना ग़लत होता है ग़लत होता है किसी को परेशान करना
ताउम्र मैं इस बात को स्वीकार किया कि मौत भी जि़ंदगी का एक हिस्सा है
इसके बाद भी मुझे मृत्यु से डर लगता है डर लगता है दूसरी दुनिया में भी मजदूर बने रहने से.
# मेरे पिताअगर अपने पिता के बारे में कुछ कहने की हिम्मत करूं तो मेरी बात का भरोसा करना, उनके जीवन ने उन्हें बहुत कम आनंद दिया
वह शख़्स अपने परिवार के लिए समर्पित था परिवार की कमियों को छिपाने के लिए उसने अपना जीवन कठोर और ख़ुरदुरा बना लिया
और अब अपनी कविताएं छपवाते हुए मुझे सिर्फ़ एक बात का संकोच होता है कि मेरे पिता पढ़ नहीं सकते.
# आस्थामेरे पिता मज़दूर थे आस्था से भरे हुए इंसान जब भी वह नमाज़ पढ़ते थे (अल्लाह) उनके हाथों को देख शर्मिंदा हो जाता था.
# मृत्युमेरी मां ने कहा उसने मृत्यु को देख रखा है उसके बड़ी-बड़ी घनी मूंछें हैं और उसकी क़द-काठी, जैसे कोई बौराया हुआ इंसान.
उस रात से मां की मासूमियत को मैं शक से देखने लगा हूं.
# राजनीतिबड़े-बड़े बदलाव भी कितनी आसानी से कर दिए जाते हैं. हाथ-काम करने वाले मज़दूरों को राजनीतिक कार्यकर्ताओं में बदल देना भी कितना आसान रहा, है न! क्रेनें इस बदलाव को उठाती हैं और सूली तक पहुंचाती हैं.
# दोस्तीमैं (ईश्वर) का दोस्त नहीं हूं इसका सिर्फ़ एक ही कारण है जिसकी जड़ें बहुत पुराने अतीत में हैं : जब छह लोगों का हमारा परिवार एक तंग कमरे में रहता था
और (ईश्वर) के पास बहुत बड़ा मकान था जिसमें वह अकेले ही रहता था.
# सरहदेंजैसे कफ़न ढंक देता है लाश को बर्फ़ भी बहुत सारी चीज़ों को ढंक लेती है. ढंक लेती है इमारतों के कंकाल को पेड़ों को, क़ब्रों को सफ़ेद बना देती है
और सिर्फ़ बर्फ़ ही है जो सरहदों को भी सफ़ेद कर सकती है.
# घरमैं पूरी दुनिया के लिए कह सकता हूं यह शब्द दुनिया के हर देश के लिए कह सकता हूं मैं आसमान को भी कह सकता हूं इस ब्रह्मांड की हरेक चीज़ को भी. लेकिन तेहरान के इस बिना खिड़की वाले किराए के कमरे को नहीं कह सकता, मैं इसे घर नहीं कह सकता.
# सरकारकुछ अरसा हुआ पुलिस मुझे तलाश रही है मैंने किसी की हत्या नहीं की मैंने सरकार के खि़लाफ़ कोई लेख भी नहीं लिखा
सिर्फ़ तुम जानती हो, मेरी प्रियतमा कि जनता के लिए कितना त्रासद होगा अगर सरकार महज़ इस कारण मुझसे डरने लगे कि मैं एक मज़दूर हूं अगर मैं क्रांतिकारी या बाग़ी होता तब क्या करते वे?
फिर भी उस लड़के के लिए यह दुनिया कोई बहुत ज़्यादा बदली नहीं है जो स्कूल की सारी किताबों के पहले पन्ने पर अपनी तस्वीर छपी देखना चाहता था.
# इकलौता डरजब मैं मरूंगा अपने साथ अपनी सारी प्रिय किताबों को ले जाऊंगा अपनी क़ब्र को भर दूंगा उन लोगों की तस्वीरों से जिनसे मैंने प्यार किया. मेर नये घर में कोई जगह नहीं होगी भविष्य के प्रति डर के लिए.
मैं लेटा रहूंगा. मैं सिगरेट सुलगाऊंगा और रोऊंगा उन तमाम औरतों को याद कर जिन्हें मैं गले लगाना चाहता था.
इन सारी प्रसन्नताओं के बीच भी एक डर बचा रहता है : कि एक रोज़, भोरे-भोर, कोई कंधा झिंझोड़कर जगाएगा मुझे और बोलेगा - 'अबे उठ जा सबीर, काम पे चलना है.'
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