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किश्त नहीं दी, एजेंट ने गाड़ी उठाई, अब कोर्ट में क्या हुआ जो बैंकों की टेंशन बढ़ाने वाला है?

जज ने बैंकों को दे दी बड़ी चेतावनी...जुर्माना भी लगाया.

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जज ने एजेंट के जरिए गाड़ी जब्त करने को अवैध बताया है (फोटो सोर्स- PTI)

“लोन पर गाड़ी ली है. किश्त नहीं जमा करोगे तो गाड़ी उठा लेंगे.”

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लोन पर गाड़ी लेने वाले लोगों को ये स्टेटमेंट फ़ोन पर कॉल करके बोला जाता है. कब? तब जब लोन पर कार, मोटरसाइकल वगैरह खरीदने वाले लोग किसी वजह से समय पर गाड़ी के लोन की किश्तें नहीं जमा कर पाते. और कई बार तो सच में गाड़ी उठा ली जाती है. और ऐसा करते हैं लोन देने वाली बैंकों या फाइनेंस कंपनियों के एजेंट. लेकिन पटना हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले (Patna Highcourt Verdict) में इस एजेंट रिकवरी सिस्टम पर बैंकों और फाइनेंस कंपनियों को खूब फटकारा है. जुर्माना भी लगाया है. कोर्ट का कहना है कि- 

''एजेंटों के जरिए किसी की गाड़ी जब्त कर लेना या छीन लेना अवैध है और जीवन जीने के उसके मौलिक अधिकार का उल्लंघन है''

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कोर्ट ने फैसले में क्या कहा?

इंडिया टुडे से जुड़े रोहित कुमार सिंह की खबर के मुताबिक, पटना हाईकोर्ट के जज राजीव रंजन प्रसाद ने पांच रिट याचिकाओं की सुनवाई करते हुए ये फैसला दिया है. ये पांचों याचिकाएं गाड़ी का लोन चुकता न करने पर एजेंटों के जरिए जबरन गाड़ी जब्त कर लेने के खिलाफ दायर की गई थीं. बीती 19 मई 2023 को इन याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए जज ने कहा कि रिकवरी एजेंट के जरिए कस्टमर की गाड़ियां जब्त कर लेना गैरकानूनी है और और जीवन जीने के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. जस्टिस प्रसाद ने कहा कि अगर लोन लेने वाले किसी कस्टमर ने लोन की किश्तें नहीं जमा की हैं तो बैंकें और कर्ज देने वाली फाइनेंस कंपनियां गाड़ी जब्त नहीं कर सकते. उन्होंने पुलिस को ऐसे रिकवरी एजेंटों के खिलाफ FIR दर्ज कर कानूनी कार्रवाई करने के भी निर्देश दिए हैं. साथ ही ऐसा करवाने वाली बैंकों और फाइनेंस कंपनियों पर 50 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है.

एक बात और, क्या इस फैसले का मतलब है कि अब कभी भी कोई बैंक, लोन की किश्त टाइम से न जमा करने पर लोन वाली गाड़ी या प्रॉपर्टी पर कब्जा नहीं कर सकती?

बैंक प्रॉपर्टी पर कब्ज़ा कर सकती हैं?

बैंकों और फाइनेंस कंपनियों को प्रतिभूतिकरण के प्रावधानों के तहत मोर्टगेज की गई प्रॉपर्टी (कर्ज पर ली गई प्रॉपर्टी) के कर्ज की वसूली का अधिकार है. और ऐसा करने के लिए बैकें या फाइनेंस कंपनियां प्रॉपर्टी पर कब्जा कर दिए गए लोन की भरपाई कर सकती हैं.

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दैनिक भास्कर अख़बार में अरविन्द उज्जवल की एक खबर के मुताबिक, पटना हाईकोर्ट के जस्टिस प्रसाद ने अपने फैसले में कहा कि बैकों और दूसरे वित्तीय संस्थानों को अगर बंधक बनाई गई गाड़ियों को नीलाम करना है तो उन्हें साल 2002 में संसद से पारित ‘सरफेसी अधिनियम’ को फॉलो करना होगा.

इस अधिनियम के तहत बैंकों और दूसरे वित्तीय संस्थानों को अपने बैड डेब्ट यानी चुकता न किए गए कर्ज की वसूली के लिए कर्ज पर चल रही प्रॉपर्टी को नीलाम करने का अधिकार दिया गया था. कृषि भूमि के अलावा बाकी सभी तरह की संपत्तियां इस क़ानून के तहत बैंकें नीलाम कर सकती हैं, इसके लिए उन्हें कोर्ट के हस्तक्षेप की भी जरूरत नहीं होती. हालांकि सरफेसी अधिनियम के तहत कार्रवाई करने की एक विस्तृत प्रक्रिया है.

जस्टिस प्रसाद ने ये भी आदेश दिया कि जिनकी गाड़ियां जब्त की गई हैं, उनसे कर्ज की 30 फीसद राशि लेकर उन्हें गाड़ी वापस लौटाई जाए. और बाकी 70 फीसद कर्ज की राशि बराबर किश्तों में ली जाए. जिनकी गाड़ी नीलाम हो चुकी है उन्हें गाड़ियों के बीमे की रकम के बराबर पैसा दिया जाए.

तो इस फैसले से इतना साफ़ है कि एजेंट द्वारा गाड़ी कब्जा कर लेना, छीन लेना अवैध है. हालांकि नियमों के तहत बैंकें या वित्तीय संस्थान कर्ज न अदा करने पर प्रॉपर्टी की नीलामी की प्रक्रिया अपना सकते हैं.

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