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फिल्म रिव्यू: पल पल दिल के पास

सनी देओल ने तो जैसे-तैसे अपना काम कर दिया है लेकिन करण को काफी मेहनत करनी पड़ेगी.

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करण देओल और सहर बांबा स्टारर इस फिल्म को सनी देओल ने डायरेक्ट किया है.
बतौर डायरेक्टर सनी देओल अपने करियर की तीसरी फिल्म 'पल पल दिल के पास' लेकर आए हैं. इसी फिल्म से वो अपने बड़े बेटे करण देओल को लॉन्च करने जा रहे हैं. 20 सितंबर को दो और फिल्मों के साथ 'पल पल दिल के पास' रिलीज़ हो चुकी है. और हमने देख ली है और नीचे इस फिल्म के बारे में आराम से बात करते हैं.
फिल्म की कहानी
दिल्ली में सहर सेठी नाम की एक मशहूर वी- लॉगर है. वीडियो ब्लॉग्स वगैरह बनाती है. उसके घर एक फंक्शन हो रहा है, जहां फैमिली के सारे लोग इकट्ठा होने वाले हैं. इससे बचने के लिए वो एक ट्रेकिंग ट्रिप पर मनाली निकल जाती है. उसके वहां जाने का मकसद है, एक महंगे ट्रेकिंग क्लब का पर्दाफाश करना. जो लड़का ये क्लब चलाता है उसका नाम है करण सहगल. करण सहर को ट्रेकिंग करवाता है. और दोनों में ठीक-ठाक बनने लगती है. दूसरी तरफ दिल्ली में सहर का एक बॉयफ्रेंड है विरेन, उस रिलेशनशिप से दोनों ने एक महीने का ब्रेक लिया है. (ब्रेक अप नहीं). लेकिन सहर मनाली से लौटते ही उससे ब्रेक अप कर लेती है. विरेन दिखाता है कि उसे सहर के फैसले से कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन उसके पीठ पीछे तरह-तरह के हथकंडे आज़मा कर वो उसे वापस पाना चाहता है. इधर करण और सहर रिलेशनशिप में आ जाते हैं. ये देखकर विरेन की हरकतें और तेज हो जाती हैं. इसी बीच एक एक्सीडेंट होता है और मामला पूरी तरह से हाथ से बाहर हो जाता है. फिल्म की मोटा-मोटी कहानी यही है.
लड़के का चेहरा देखिए, मासूमियत किलो के भाव टपक रही है.
लड़के का चेहरा देखिए, मासूमियत किलो के भाव टपक रही है.


करण का लॉन्च, सहर की उड़ान
फिल्म में दोनों एक्टर्स के किरदारों का नाम भी वही है, जो रियल लाइफ में है. बस उनका सरनेम चेंज कर दिया गया है. ये फिल्म करण देओल को लॉन्च करने के लिए बनाई गई है. लेकिन इस फिल्म का हासिल सहर बांबा की परफॉरमेंस है. वो पूरी फिल्म में कॉन्फिडेंट दिखती हैं. हालांकि कॉमेडी सीन्स में उनका हाथ थोड़ा फिसलता है. भले ही उनके हिस्से बचकाना चीज़ें आई हों लेकिन ओवरऑल सहर ने अपने लिए बढ़िया माहौल बना लिया है. दूसरी ओर हैं करण देओल है. उनका चेहरा ही इतना इनोसेंट है कि वो कत्ल भी कर दें, तो आप न मानें. इसलिए उनकी एक्टिंग इमानदार लगती है. इस फिल्म की सबसे बड़ी दिक्कत करण देओल की डायलॉग डिलीवरी है. वो हर बात स्लो मोशन में कहते हैं. और उसमें वो फील भी नहीं होता. तिस पर जब वो बात करते हैं, तो उनकी आंखें सामने वाले की आंख में नहीं होती. न ही वो खुलकर कैमरे की ओर देखते हैं. लेकिन एक्शन सीन्स में वो ठीक लगते हैं. नए कलाकारों में विरेन का रोल करने वाले आकाश आहूजा सबसे ज़्यादा इंप्रेस करते हैं. लेकिन उनका कैरेक्टर मसाले के लिए है. अगर वो न हों, तो देओल खानदान के चिराग को एक्शन करने का मौका कैसे मिलेगा.
सहर बांबा की शक्ल तनुश्री दत्ता से काफी ज़्यादा मिलती-जुलती है.
सहर बांबा की शक्ल तनुश्री दत्ता से काफी ज़्यादा मिलती-जुलती है. लेकिन सहर ने फिल्म में ये बताया है कि उन्हें काम आता है.


फिल्म की अच्छी बातें
सिनेमटोग्रफी- फिल्म का सबसे खूबसूरत हिस्सा. अपने वॉन्डरलस्ट के चक्कर में सनी देओल ने पूरी पिक्चर ही उन लोकेशंस पर शूट की है, जहां आज कल हर दूसरा बंदा जाना चाहता है. हिमाचल प्रदेश. वैसे तो हिमाचल कई फिल्मों में दिखाया गया है लेकिन जिस तरह से इस फिल्म में दिखा है, वो कुछ नया लगता है. बर्डआई व्यू, वाइड एंगल्स, मतलब काफी सुंदर. फिल्म की सिनेमटोग्रफी रगुल धरूमन ने की है.
ऊपर इसी तरह के ढ़ेर सारे सीन्स की बात हो रही थी.
ऊपर इसी तरह के ढ़ेर सारे खूबसूरत सीन्स की बात हो रही थी.


बाकी डिपार्टमेंट
डायलॉग्स- बोलचाल की भाषा में हैं. सुनते वक्त ऐसा नहीं लगता कि सारी दुनिया का बोझ हमारे कानों ने उठाया हुआ है. क्लाइमैक्स वाले पार्ट्स में जब इन किरदारों के माता पिता आते हैं, तब लगता है कि कुछ सीनियर लोग बात कर रहे हैं.
म्यूज़िक- वैसे तो फिल्म के नैरेटिव में बार-बार पांव अड़ा देता है. लेकिन आप अगर उन गानों को फिल्म से बाहर सुनेंगे, तो वो मीठे लगते हैं. खासकर फिल्म का टाइटल ट्रैक. इसे 'बेख्याली' फेम सचेत-परंपरा की जोड़ी ने बनाया है.
फिल्म की बुरी बातें
इसकी लंबाई, जो कि ढाई घंटे है. इसका पहला एक घंटा सिर्फ पहाड़ों में निकलता है. और तब तक फिल्म की कहानी बिलकुल रुकी हुई रहती है. इन्हीं चक्करों में फिल्म क्रिस्प होने से कोसों दूर रह जाती है. सहर बांबा का किरदार इस अंतहीन लिस्ट में अगली बुरी चीज़ है. वो एक ट्रेकिंग पैकेज का रिव्यू करने बतौर प्रोफेशनल गई हैं. लेकिन उन्हें फिल्म में हर दूसरी चीज़ से डरते और चिल्लाते ही दिखाया गया. ये काफी बचकाना और बेवकूफाना लगता है. आपको फिल्म देखते वक्त समझ आता है कि सनी देओल और साफ-सुथरी रोमैंटिक फिल्म बनाना चाहते थे, ताकि अपने बड़े बेट को सेफ तरीके से लॉन्च कर सकें. उन्होंने तो जैसे-तैसे अपना पार्ट प्ले कर दिया है लेकिन करण को और मेहनत करनी पड़ेगी.
जो लड़की एक ट्रेकिंग पैकेज का रिव्यू करने आई है, वो माउंटेनीयर हीरो की पीठ पर चिपक कर ट्रेकिंग करती है. और ऊंचाई की वजह से बीमार भी हो जाती है.
जो लड़की एक ट्रेकिंग पैकेज का रिव्यू करने आई है, वो माउंटेनीयर हीरो की पीठ पर चिपककर ट्रेकिंग करती है. और ऊंचाई की वजह से बीमार भी हो जाती है.


ओवरऑल
'पल दिल के पास' एक औसत फिल्म है. हालांकि इसने साल की बेस्ट फिल्म होने का दावा भी नहीं किया था. तमाम कोशिशों को बावजूद ये सिर्फ (ट्रेकिंग वाले सीन्स में) करण और सहर को ही बांधकर रख पाती है, दर्शकों को नहीं. अगर इस फिल्म को सनी देओल के बेटे के लिए देखने चाहते हैं, तो एक बार सोच लीजिए. अगर आपका फैसला हां में है, तो उस हिमाचल प्रदेश से प्रेम में पड़ने के लिए तैयार हो जाइए, जिसकी खूबसूरती को देखना हमारे आने वाली जनरेशन को नसीब नहीं होने वाला.


वीडियो देखें: फिल्म रिव्यू- पल पल दिल के पास