उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के बाराबंकी (Barabanki) जिले का निजामपुर गांव. यहां करीब 30 घर हैं. सभी दलित समुदाय के हैं. तालीम की लौ यहां जरा मद्धिम आती है. और अंधेरा काफी घना है. कुछ दिन पहले तक गांव में एक भी शख्स 10वीं पास नहीं था. लेकिन इस अंधेरे के खिलाफ मशाल जलाई है, 15 साल के रामसेवक उर्फ रामकेवल ने. उन्होंने यूपी बोर्ड से 10वीं की परीक्षा पास कर ली है.
आजादी के बाद पहली बार इस गांव के एक लड़के ने पास की दसवीं की परीक्षा
Uttar Pradesh के Barabanki जिले के निजामपुर गांव के Ramsevak अपने गांव के पहले शख्स बने हैं, जिन्होंने दसवीं की परीक्षा पास की है. पढ़ाई के दौरान लोग रामसेवक का मजाक उड़ाते थे, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और सबको गलत साबित कर दिया.

दसवीं पास करने का ये सफर रामसेवक के लिए आसान नहीं रहा है. वो परिवार के सबसे बड़े बेटे हैं. इसलिए उनके कंधे पर परिवार चलाने की जिम्मेदारी भी थी. साथ ही खुद के पढ़ाई का खर्च निकालने का जिम्मा भी. लेकिन उनके युवा कंधे इन जिम्मेदारियों के बोझ तले झुके नहीं. रामसेवक बताते हैं,
शादियों के सीजन में मैं रात में सिर पर लाइट उठाता था. इसके बदले 200-300 रुपये मिल जाते. जब शादियां नहीं होती थी तब दूसरी जगह मजदूरी कर लेता था. इससे जो पैसा मिलता. उससे कॉपी-किताब खरीदता और फीस भरता था. 10वीं में हमने 2100 रुपये की फीस जमा की थी.
दैनिक भास्कर से बातचीत में रामसेवक ने बताया, शादियों में लाइट उठाने के बाद देर रात लौटकर वो घर के छप्पर के नीचे बैठकर पढ़ाई करते थे. पढ़ाई के दौरान रामसेवक को ताने भी खूब सुनने को मिलते. उन्होंने बताया,
हम पढ़ाई करते तो लोग कहते कि पढ़ कर क्या करोगे? हाईस्कूल पास नहीं कर पाओगे. तब मैं उनसे कहता कि मैं पास होकर दिखाऊंगा.
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गांव में पहली बार दसवीं पास करने पर रामसेवक को बाराबंकी के डीएम शशांक त्रिपाठी ने मिलने के लिए बुलाया. लेकिन उनके पास न ढंग के कपड़े थे. और नहीं जूते. राजकीय इंटर कॉलेज के टीचर्स ने रामसेवक को कपड़े और जूते गिफ्ट किया. यह पहला मौका था, जब रामसेवक ने जूता पहना. पैर की फैली हुई अंगुलियों में बड़ी मशक्कत के बाद जूता फिट आया. और वो डीएम के पास मिलने पहुंचे. डीएम शशांक त्रिपाठी ने रामसेवक को सम्मानित किया. और उनकी आगे की पढ़ाई की फीस माफ कर दी.
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