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मणिपुर शांत नहीं, अब मिजोरम ने क्या ऐसा फैसला लिया, जो विवाद बढ़ा देगा!

म्यांमार से आ रहे शरणार्थियों पर केंद्र सरकार और मिजोरम सरकार आमने सामने आ गए हैं?

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मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथंगा (फोटो- PTI)

मिजोरम सरकार (Mizoram government) ने एक बड़ा फैसला लेते हुए म्यांमार से आने वाले शरणार्थियों का बायोमेट्रिक डेटा लेने से मना कर दिया है. राज्य सरकार के इस फैसले से विवाद बढ़ सकता है, क्योंकि ये साफ-साफ केंद्र सरकार के आदेश का उल्लंघन है. जहां एक तरफ मिजोरम ने डेटा इकट्ठा करने से साफ मना कर दिया, वहीं मणिपुर (Manipur) सरकार ने भी इसके लिए समय बढ़ाने की मांग की है.

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इस साल अप्रैल में केंद्र ने मणिपुर और मिजोरम को म्यांमार के "अवैध शरणार्थियों" के बायोग्राफिक और बायोमेट्रिक डेटा को इकट्ठा करने का निर्देश दिया था. फिर जून में सरकार ने एक और आदेश जारी किया कि दोनों राज्य सितंबर 2023 के अंत तक इस टास्क को पूरा करें. दोनों राज्य म्यांमार के साथ बॉर्डर साझा करते हैं.

30 हजार से ज्यादा शरणार्थी

म्यांमार के चिन लोगों और मिजोरम के मिजो समुदाय के लोगों के बीच नस्लीय रिश्ते हैं. म्यांमार में तख्तापलट के बाद बड़ी संख्या में शरणार्थी मिजोरम पहुंचे हैं. समाचार एजेंसी PTI की एक रिपोर्ट बताती है कि फरवरी 2021 में म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद 30 हजार से ज्यादा म्यांमारी नागरिक मिजोरम में शरण ले चुके हैं.

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शरणार्थियों के आने पर मिजोरम और केंद्र सरकार के बीच मतभेद रहे हैं. 10 मार्च 2021 को गृह मंत्रालय ने मिजोरम के साथ मणिपुर, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश में तैनात असम राइफल्स को एक चिट्ठी लिखी थी. कहा गया था कि म्यांमार से आने वाले "गैरकानूनी" लोगों पर नजर रखी जाए, उनकी पहचान की जाए और उन्हें वापस भेज दिया जाए. बाद में केंद्र ने मिजोरम से कई बार कहा कि वे शरणार्थियों को रोके क्योंकि राज्य सरकारें किसी "विदेशी" को "शरणार्थी" का दर्जा नहीं दे सकतीं.

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हालांकि मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथंगा ने इस आदेश का विरोध किया था. उनका कहना था कि वह म्यांमार से आने वाले शरणार्थियों से मुंह नहीं फेर सकते. क्योंकि उनके प्रदेश के मिजो समुदाय का म्यांमार के चिन समुदाय के साथ जातीय रिश्ता है. इसके बाद भी जोरमथंगा ने कई मौकों पर कहा कि वो शरणार्थियों को वापस भेजने के पक्ष में नहीं हैं.

अब मिजोरम सरकार ने क्या कहा?

अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अब मिजोरम सरकार का कहना है कि उन्होंने "मानवीय आधार" पर बायोमेट्रिक डेटा इकट्ठा नहीं करने का फैसला लिया है. मिजोरम के सूचना और जन संपर्क मंत्री लालरुअतकिमा ने बताया कि अब तक किसी शरणार्थी का डेटा नहीं लिया गया है. मंत्री ने अखबार को बताया, 

"केंद्र सरकार डेटा लेने के बाद शरणार्थियों को बाहर निकाल देगी. म्यांमार से जो लोग आए हैं, वे हमारे रिश्तेदार हैं. जब ब्रिटिश काल में सीमाएं खींची गईं तो हमारे कुछ भाई-बहन दूसरी तरफ चले गए थे. ये मिजो लोगों की स्थिति है. जब सैन्य तख्तापलट हुआ तो वे यहां शरण लेने आए."

मिजोरम में म्यांमार के शरणार्थी (फोटो- रॉयटर्स)

मिजोरम में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव भी होने हैं. मंत्री का मानना है कि इस मुद्दे को चुनाव को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है. लालरुअतकिमा ने अखबार से कहा कि ये एक राजनीतिक मुद्दा है. और वे चुनाव पूरा होने तक इस मुद्दे पर कोई कदम नहीं उठाएंगे. मिजोरम में म्यांमार और बांग्लादेश से आए शरणार्थियों की संख्या 60 हजार के आसपास है.

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राज्य में मिजो नेशनल फ्रंट पार्टी (MNF) की सरकार है. MNF केंद्र में NDA का सहयोगी दल है. हालांकि राज्य में बीजेपी सहयोगी नहीं है.

म्यांमार के संगठनों पर हिंसा भड़काने का आरोप

मिजोरम सरकार ने ये घोषणा तब की है कि जब पिछले हफ्ते ही राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने दावा किया था कि मणिपुर में हिंसा भड़काने के पीछे म्यांमार के कुछ प्रतिबंधित आतंकी संगठनों का हाथ है. NIA का कहना था कि म्यांमार के ये संगठन मणिपुर में सुरक्षा बलों और विरोधी जातीय समूहों के सदस्यों पर हमला करने के लिए कार्यकर्ताओं की भर्ती कर रहे हैं.

NIA की प्रेस रिलीज (फोटो- X/NIA)

NIA ने जानकारी दी कि ये संगठन अशांति का फायदा उठाकर ओवर ग्राउंड वर्कर्स (OGW), कैडर और सहानुभूति रखने वालों की भर्ती कर रहे हैं. ये लोग सुरक्षा बलों पर हमले के लिए और सरकारी संस्थानों से हथियार लूटने में उनकी मदद कर रहे हैं.

3 मई को मणिपुर में शुरू हुई हिंसा के बाद कुकी समुदाय के भी साढ़े 12 हजार लोगों ने मिजोरम में शरण ली है. मिजो समुदाय के लोगों का भी कुकी समुदाय के साथ नस्लीय संबंध है. 

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वीडियो: तारीख: मिजोरम के राज्य बनने के पीछे के खूनी संघर्ष की कहानी

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