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क्या शाजापुर में ईद के दिन हुआ फसाद कांग्रेस में आपसी लड़ाई का नतीजा था?

मध्यप्रदेश में चुनाव आने को हैं और शहर में ईद के दिन पसरा डर अपने पीछे ये चर्चा छोड़ गया है.

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शाजापुर में महाराणा प्रताप की शौर्य यात्रा तकरीबन 25 साल से निकाली जा रही है. लेकिन कभी माहौल उस तरह नहीं बिगड़ा जैसे 16 जून को हुआ. (फोटोः मनोज पुरोहित)
15 तारीख की शाम को मैं एक ट्रेन में था. जबलपुर से दिल्ली के सफर पर. कटनी से एक परिवार ट्रेन में चढ़ा. उसमें एक नानी थीं, एक मम्मी और दो बच्चे. बाकी सब ठीक था, लेकिन उम्रदराज़ नानी के लिए लोअर बर्थ नहीं थी. मेरे पास थी. सो मैंने कह दिया कि मैं नानी की बर्थ पर लेट जाऊंगा. वो मेरी लोअर बर्थ पर लेट जाएं.
दिल्ली का रहने वाला वो परिवार मूलतः बिहार से था. एक रिश्तेदार से मिलने आया था, जो कटनी में रहते थे. साथ ही मैहर, जबलपुर वगैरह घूमने. अपनी तमाम खूबसूरत जगहों के बावजूद मध्यप्रदेश, राजस्थान या हिमाचल की तरह पर्यटन के लिए मशहूर राज्य नहीं है. फिर भी, वो बाहर से आए थे तो मैंने सौजन्यवश पूछ ही लिया - कैसा लगा आपको हमारा स्टेट?
बहुत शांति है यहां. इतना सुकून हमने कम जगह देखा है. बसने लायक जगह है.
उन्होंने ये कटनी के बारे में कहा था. कटनी कोई हिल स्टेशन नहीं है. लेकिन वहां इतना सुकून है कि जिसका ज़िक्र बाहर से आना वाला व्यक्ति पूछने पर कर देता है. मध्यप्रदेश के कमोबेश सभी गांव-कस्बे-शहर शांत ही रहते हैं. रात-बेरात निकलने में डर नहीं है. चोरी-चपाटी जैसी घटनाएं छोड़ दें तो कम चीज़ें ऐसी होती हैं जिनके लिए 'अपराध' शब्द का इस्तेमाल हो. 'सांप्रदायिक तनाव' जैसी चीज़ें तो और कम ही. यही मैंने उस परिवार से भी कहा. 16 तारीख की सुबह ट्रेन दिल्ली पहुंची और हम अपने-अपने रास्ते निकल गए.
मेरे दिल्ली पहुंचने के 8 घंटे के अंदर मैं गलत साबित हो गया. मध्यप्रदेश के शाजापुर से खबर आ गई कि ईद के दिन निकले एक 'शौर्य यात्रा' के दौरान 'दो पक्षों' में पथराव हुआ, आगज़नी हुई और प्रशासन को भीड़ को काबू करने के लिए आंसू गैस के गोले दागने पड़े और आखिर में धारा 144 लगा देनी पड़ी.
तकरीबन आधे घंटे तक हुई पत्थरबाज़ी के बाद शहर का नज़ारा ऐसा था. (फोटोःमनोज पुरोहित)
तकरीबन आधे घंटे तक हुई पत्थरबाज़ी के बाद शहर का नज़ारा ऐसा था. (फोटोःमनोज पुरोहित)

इसे एक अपवाद कहकर खारिज किया जा सकता था. लेकिन मध्यप्रदेश में साल के आखिर में चुनाव हैं और इसीलिए 'दो पक्षों' के बीच हुई किसी भी घटना को हल्के में लेना सच से मुंह मोड़ने जैसा है. इसीलिए हमने स्थानीय पत्रकारों से बात करके शाजापुर में हुई घटना के पीछे का सच जानने की कोशिश की. जो कुछ हमें सुनने को मिला, वो हमारे अंदाज़े से ज़्यादा हटकर नहीं था. लेकिन कई बातें ऐसी थीं जिन्होंने हमारी सोच को सिर के बल पलट दिया.
आखिर क्या हुआ था 16 जून को?
16 जून को ईद थी. माने 'एक पक्ष' का सबसे पवित्र त्योहार. लाज़मी तौर पर समाज के लोग त्योहार वाले मूड में थे. और 16 जून को ही थी महाराणा प्रताप जयंती. इस दिन 'दूसरे पक्ष' शाजापुर के क्षत्रिय समाज के लोगों ने एक जुलूस निकालने की तैयारी कर रखी थी. कोई नादान भी इस संयोग में निहित बवाल लायक सामग्री को नहीं नकार सकता. क्योंकि हमारे यहां त्योहारों का तेरा-मेरा बहुत पहले हो चुका है. हम आगे बढ़ें उससे पहले इस संयोग के बारे में एक और बात करना ज़रूरी है. आप गूगल करेंगे तो महाराणा प्रताप का जन्मदिन मिलेगा 9 मई का. इस साल 9 मई को बजरंग दल के लोगों ने दिल्ली में अकबर रोड पर लगे एक साइन-बोर्ड पर ‘राणा प्रताप रोड़’ लिखा एक बैनर चिपका कर महाराणा की जयंती मना भी ली थी ( काम का ट्रिविया ये कि इसी सड़क पर एक दफ्तर है जिससे कांग्रेस देशभर में अपना काम चलाती है). इस रोज़ समाचार चैनल-वेबसाइट्स ने दिन का कीवर्ड पकड़कर महाराणा प्रताप पर लिस्टिकल भी कर दिए थे.
16 जून को शाजापुर में दो त्योहार मनाए गए. ईद और महाराणा प्रताप जयंती. तस्वीर में शाजापुर के विधायक अरुण भीमावद वहां के एक चौराहे पर महाराणा की मूर्ति पर माला डालते नज़र आ रहे हैं. (फोटोःफेसबुक)
16 जून को शाजापुर में दो त्योहार मनाए गए. ईद और महाराणा प्रताप जयंती. तस्वीर में शाजापुर के विधायक अरुण भीमावद वहां के एक चौराहे पर महाराणा की मूर्ति पर माला डालते नज़र आ रहे हैं. (फोटोःफेसबुक)

तो फिर सवाल उठता है कि शाजापुर में क्षत्रिय समाज (राजपूत) ईद के दिन महाराणा प्रताप जयंती का जुलूस क्यों निकालना चाहता था? इसका जवाब इस बात में है कि महाराणा प्रताप की जयंती पंचांग के हिसाब से ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया को होती है. ये तिथि इस साल 16 जून को पड़ रही थी.
खैर, अब शाजापुर में हुई घटना पर लौटते हैं. राजपूत समाज ने पंचांग वाली तिथि पर महाराणा प्रताप की शौर्य यात्रा निकाली. शहर में जगह-जगह इस यात्रा के स्वागत के लिए मंच भी बनाए गए थे. हिंदी पट्टी में महाराणा प्रताप को नए सिरे से स्थापित किया जा रहा है. लेकिन शाजापुर के लिए ये शौर्य यात्रा नई बात नहीं थी. यात्रा तकरीबन 25 साल से निकाली जा रही थी. फिर भी ईद - महाराणा जयंती वाले संयोग को देखते हुए यात्रा के रास्ते में पुलिस तैनात की गई थी. यात्रा सुबह तकरीबन 11 बजे महाराणा प्रताप छात्रावास से शुरू हुई. पूरे शहर से होते हुए जब यात्रा नई सड़क इलाके में पहुंची, तो यात्रा के साथ चल रहे शाजापुर थाना इंचार्ज आलोक परिहार का ध्यान एक डीजे से आ रही आवाज़ पर गया. वो बताते हैं,
''डीजे नई सड़क से लगे मनिहारवाड़ी इलाके में बज रहा था. ये एक मुस्लिम बहुल इलाका है. डीजे के पास जमा कुछ लड़के नारेबाज़ी भी कर रहे थे. किसी की धार्मिक भावना आहत न हो, इसलिए मैंने डीजे बंद करवा दिया. इसके बाद मैं आगे बढ़ गया. मेरे जाने के बाद लड़कों ने डीजे फिर चालू कर दिया.''
पुलिस ने गाना दोबारा बंद कराया लेकिन यात्रा पूरी तरह से गुज़रती उससे पहले ही गाना फिर शुरू हो गया - तीसरी बार. साथ में नारेबाज़ी भी. पुलिस हरकत में आती, इससे पहले ही पथराव शुरू हो गया. स्थानीय सूत्रों के मुताबिक पहला पत्थर मनिहारवाड़ी की तरफ से ही चला था. इसके बाद यात्रा में अफरा-तफरी मच गई और लोग अपनी गाड़ियां छोड़कर भागे. इन्हीं गाड़ियों को फिर आग लगा दी गई. जब पथराव कुछ देर बाद भी चलता रहा तो पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े और हल्का लाठी चार्ज भी किया. पहला पत्थर चलने के तकरीबन 25 मिनट तक लगातार पत्थर चले. इसके बाद स्थिति काबू में आ गई लेकिन शहर में डर पसर गया और पूरा बाज़ार बंद हो गया.
भीड़ बेकाबू हो गई तो पुलिस ने हल्का बल प्रयोग भी किया था.
भीड़ बेकाबू हो गई तो पुलिस ने हल्का बल प्रयोग भी किया था.

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक मनिहारवाड़ी में पहले भी दो बार पथराव हो चुका है. इस कारण दो बार शहर में कर्फ्यू भी लगा. पहली बार 22 मई, 1981 को एक जुलूस के दौरान इसी गली से पथराव शुरू हुआ जो बड़े दंगे में तब्दील हो गया था. इसके बाद 14 अप्रैल, 2004 को अतिक्रमण हटाने के दौरान यहां बवाल हुआ और पूरे शाजापुर में कर्फ्यू लगाना पड़ा था.
स्थानीय राजनीति है इस बलवे के पीछे?
हाल में इस तरह की ज़्यादातर घटनाओं में यही सामने आया है कि मुस्लिम आबादी के पास से हिंदू दक्षिणपंथी संगठन धार्मिक जुलूस निकलते हैं और उनमें भड़काऊ डीजे बजता है और उसके बाद माहौल खराब हो जाता है. लेकिन शाजापुर में मामला इससे अलग नज़र आ रहा है और इसके पीछे संभावित वजह है स्थानीय राजनीति.
बात ये है कि शाजापुर से हालिया विधायक हैं भाजपा के अरुण भीमावद. थावरचंद गहलोत के खास माने जाने वाले भीमावद के बारे में राय ये है कि इन्होंने काम तो किया है लेकिन इनका चुनावी मैनेजमेंट उतना चुस्त नहीं है. पिछला चुनाव भी ये तकरीबन 2,000 वोट की मार्जिन से ही जीते थे. इसलिए इस बार कांग्रेस को वापसी की एक संभावना नज़र आने लगी है. और इसी के चलते कांग्रेस में कमलनाथ धड़े से आने वाले दो नेताओं में वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो गई है.
शाजापुर में मनिहारवाड़ी में ही दो बार पहले भी बलवे की घटना हो चुकी है.
शाजापुर में मनिहारवाड़ी में ही दो बार पहले भी बलवे की घटना हो चुकी है.

इस लड़ाई में एक तरफ हैं कांग्रेस के गूजर समाज से आने वाले हुकुम सिंह कराड़ा. ये 20 साल शाजापुर के विधायक रहे हैं. 2 बार मंत्री भी रहे हैं. लेकिन पिछला चुनाव भीमावद से हार गए थे. इस बार इनका टिकट कटने की बातें चल रही हैं. और इन बातों के पीछे है राजपूत समाज से आने वाले कांग्रेस नेता रामवीरसिंह सिकरवार का बढ़ता कद. सिकरवार टिकट के प्रबल दावेदार हैं.
कुछ स्थानीय पत्रकारों का मानना है कि इस फसाद के पीछे कराड़ा हो सकते हैं. इस थ्योरी का एक आधार ये है कि सिकरवार क्षत्रिय सभा के मध्यप्रदेश प्रमुख हैं. ये शौर्य यात्रा में भी थे. अब जब मुसलमान और राजपूतों के बीच पत्थर चल गए हैं तो उनके हाथ बंध गए हैं. वो राजपूतों की तरफ से बोलते हैं तो मुसलमान नाराज़ हो जाएंगे जो पारंपरिक रूप से कांग्रेस को वोट डालते आए हैं. अगर वो मुसलमानों की तरफ से बोलते हैं तो अपने समाज का गुस्सा मोल ले लेंगे. यानी फसाद का फायदा किसी को भी हो, नुकसान सिकरवार को ही होगा.
हुकुम सिंह कराड़ा और रामवीरसिंह सिकरवार. दोनों कमलनाथ खेमे के हैं, लेकिन टिकट तो एक को ही मिलना है. (फोटोः मनोज पुरोहित)
हुकुम सिंह कराड़ा और रामवीरसिंह सिकरवार. दोनों कमलनाथ खेमे के हैं, लेकिन टिकट तो एक को ही मिलना है. (फोटोः मनोज पुरोहित)

फसाद सुनियोजित समझे जाने के पीछे एक कारण और बताया जा रहा है. वो ये कि ईद का त्योहार देखते हुए मनिहारवाड़ी में 15 तारीख को ही नगर पालिका ने सफाई करवाई थी. कचरे के साथ मलबा वगैरह भी उठा लिया गया था. लेकिन 16 जून को जब पत्थर चले तो आधे घंटे तक पत्थरों की कोई कमी नहीं हुई. इससे ये शक पैदा हुआ कि पत्थर 15 की रात को जमा तो नहीं किए गए थे.
इस बारे में जांच अधिकारी थाना इंचार्ज आलोक परिहार ने ये कहा कि उन्हें फिलहाल अपनी जांच में राजनीतिक साजिश जैसी कोई बात नज़र नहीं आई है. ये भी फिलहाल जांच का विषय ही है कि फसाद सुनियोजित था कि नहीं.
मध्यप्रदेश के आने वाले चुनाव और उनसे जुड़ी राजनीति एक तरफ रख दें तब भी इस बात का अपना वज़न है कि महाराणा प्रताप से जुड़ा इतिहास दोबारा लिखने की होड़ चल रही है. इसीलिए दो-दो जयंतियां (और दो-दो बलिदान दिवस?) मनाकर एक खास तरह के नैरेटिव को देश पर थोपा जा रहा है. इसके पीछे हिंदू दक्षिणपंथ का नाम लिया जाता रहा है. लेकिन शाजापुर में जो हुआ है, और उसके जो कारण चर्चा में हैं, वो परेशान करने वाले हैं. क्योंकि अगर अपना हित साधने के लिए सभी इस खेल में शामिल हो जाएंगे तो बरबादी के जिस रास्ते पर हम बढ़ रहे हैं, वो हम जल्दी तय कर डालेंगे.

इस खबर के लिए कुछ तस्वीरें और जानकारी हमें आजतक - इंडिया टुडे से जुड़े पत्रकार मनोज पुरोहित से मिली हैं.




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