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राइटर होकर भी क्यूं वर्जीनिया अपना सुसाइड नोट ठीक से नहीं लिख पाईं?

पढ़िए आज ही के दिन पैदा हुईं वर्जीनिया वुल्फ का सुसाइड नोट और उनके रोचक जीवन के बारे में और भी बहुत कुछ.

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28 मार्च 1941 के दिन उस लड़की ने नदी में छलांग लगा के आत्महत्या कर ली. लेकिन आत्महत्या करने से पहले उसने सुसाईड नोट लिखा. अपने पति के लिए. जिसमें उसने लिखा कि ‘मैं ये (सुसाइड नोट) भी ठीक से नहीं लिख पा रही हूं'. आइए पढ़ते हैं कि और क्या लिखा था उसने अपने पति के लिए लिखे अपने सुसाइड नोट में:
प्रिय, मुझे लगता है कि मैं फिर से पागल हो रही हूं. मुझे नहीं लगता कि हम उस भयावह दौर से फिर से गुज़र पाएंगे. और मैं इस बार स्वस्थ नहीं हो पाऊंगी. मैं तरह-तरह की आवाज़ें सुनने लगी हूं. और मैं किसी चीज़ पर ध्यान नहीं लगा पा रही हूं. इस स्थिति में जो भी सबसे बेहतर विकल्प हो सकता था मैं वही चुन रही हूं. तुमने मुझे वो सब खुशियां दी हैं जो संभव थीं. तुम हर तरह से वो सब कुछ करते थे जो तुम कर सकते थे. मुझे नहीं लगता कि इस भयानक बीमारी के ख़त्म होने से पहले दो लोग ख़ुशी-ख़ुशी रह सकते हैं. मैं अब और नहीं लड़ सकती. मुझे पता है कि मैं तुम्हारी जिंदगी खराब कर रही हूं. देखो मैं ये भी ढंग से नहीं लिख पा रही हूं. मैं पढ़ नहीं पा रही हूं. अपनी ज़िंदगी की सारी खुशियों का श्रेय मैं तुमको देती हूं. तुम मेरे साथ हमेशा धैर्य रखते हो और अविश्वसनीय रूप से अच्छे हो. मैं यह कहना चाहती हूं कि सब लोग इसे जानते हैं कि अगर किसी ने मुझे बचाया होता, तो वो तुम ही होते. मुझसे सब कुछ छूटता चला गया एक तुम्हारी अच्छाइयों को छोड़. मैं अब तुम्हारी ज़िंदगी और खराब नहीं कर सकती. मुझे नहीं लगता कि दो लोग हमारे बराबर खुश रह सकते थे. वर्जीनिया वुल्फ
दरअसल वर्जीनिया के पिता एक यहूदी थे और उस दौर में, जब वर्जीनिया ने आत्महत्या की, यहूदियों के ऊपर घनघोर अत्याचार हो रहे थे. हिटलर और उसकी नाज़ी सेना कर रही थी. लाखों यहूदियों को ‘छद्म-राष्ट्रवाद’ के चलते मारा जा रहा था. वर्जीनिया, जो पहले से ही डिप्रेशन में थी, इस सबको नहीं झेल पाई और अपनी ज़िंदगी को ख़त्म कर दिया. लेकिन 25 जनवरी 1882 को जन्मीं वुल्फ अपनी मौत से पहले पूरी दुनिया, और खास तौर पर स्त्रियों को ‘अ रूम ऑफ़ वंस ऑन’ (खुद का एक कमरा) जैसी किताब का तोहफ़ा दे गई. ‘अ रूम...’ के अलावा भी उन्होंने कई निबंध, उपन्यास और कहानी संग्रह लिखे. जैसे – ऑर्लैंडो, मिसेज़ डेलोवे, टू दी लाईटहाउस आदि. उनके लेखों और विचारों के चलते, जो समय के साथ-साथ और फैलते और स्वीकृत होते गए, आज के दौर में स्त्री विमर्श की बात वर्जीनिया के बिना वैसे ही अधूरी है जैसे बाबा साहब के बिना दलित विमर्श की. आइए पढ़ते हैं कुछ बढ़िया कोट्स, वर्जिनिया के:
# कोई अच्छी तरह से नहीं सोच सकता, अच्छी तरह से प्रेम नहीं कर सकता, अच्छी तरह सो नहीं सकता, यदि उसने अच्छी तरह से खाया नहीं हो.  # आप जीवन को नज़रअंदाज करके शांति नहीं प्राप्त कर सकते.  # जो कुछ भी टुकड़े आपके रास्ते में आएं उन्हें ही व्यवस्थित करें.  # इतिहास के अधिकांश हिस्से में ‘अज्ञात’ दरअसल एक महिला थी.  # यदि एक महिला को उपन्यास लिखना है तो उसके पास पैसा और खुद का एक कमरा होना चाहिए.  # एक महिला होने के नाते मेरा कोई देश नहीं है. एक महिला होने के नाते पूरी दुनिया ही मेरा देश है.  # बाहर से कोई दरवाज़ा बंद कर दे तो ये कितनी अप्रिय स्थिति है, लेकिन उससे भी अप्रिय, मुझे लगता है, वो स्थिति है जब दरवाज़ा अंदर से बंद हो.   # कुछ लोग पुजारियों के पास जाते हैं, दूसरे कविता के पास; मैं अपने दोस्तों के पास.  # अगर आप अपने बारे में सच्चाई नहीं बताते हैं तो आप इसे(सच्चाई को) औरों के बारे में भी नहीं बता सकते हैं.
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