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ग्राउंड रिपोर्ट ईडरः जहां के लोग एक पहाड़ बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं

इस एक मुद्दे पर यहां के सारे लोग एक नज़र आते हैं.

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साबरकांठा में पड़ने वाले ईडर के ईडरिया गढ़ को अवैध खनन से खतरा है. (फोटो- अमितेश सिन्हा / दी लल्लनटॉप )

ईडरियो गढ़ जीत्या रे आनंद भयो आनंद भयो

ईडर का गढ़ जीत लिया, अब मैं खुश हूं.
ईडर साबरकांठा की एक तहसील और एक विधानसभा सीट है. ईडर के गढ़ में ऐसा क्या है, जिसे जीत लेने पर आनंद के होने का गाना चल पड़ा?
ईडर केवल एक तरफ से थोड़ा सा खुला है. बाकी तरफ से पहाड़ से घिरा. जिस तरफ से खुला है, उधर दो दरवाजे थे. बाकी तरफ पहाड़ के होने की वजह से किले पर जीत आसान नहीं थी. इसी वजह से यहां किसी मुश्किल काम को ईडर का गढ़ जीतने की उपमा दी गई. फेमिनिज़म की दृष्टि से इस पर आपत्ति हो सकती है लेकिन यहां ये शादियों में भी गाया जाता है.
थोड़ा पहाड़ चढ़ने पर किला आता है. कोई रोक-टोक नहीं. कोई देख-भाल नहीं. दीवारों पर नाम और नामों के बीच प्रेम प्रदर्शन करने वाली आकृतियां.
किले की दीवारों पर खुरच कर कई सारी आकृतियां गढ़ दी गई हैं (फोटोः अमितेश सिन्हा / दी लल्लनटॉप)
किले की दीवारों पर खुरच कर कई सारी आकृतियां गढ़ दी गई हैं (फोटोः अमितेश सिन्हा / दी लल्लनटॉप)

यहां से ठीक ऊपर ऊंचे पहाड़ पर एक और किले जैसा कुछ दिखता है. ये रूठी रानी का महल है. यहां के लोग बताते हैं कि यहां के एक राजा की एक रानी ने कहा कि वो अंबाजी में होने वाली आरती देखने के बाद ही खाना खाएंगी. अंबाजी यहां से 70 किलोमीटर दूर. तो उनका इंतजाम उस ऊंचे पहाड़ पर किया गया. कुछ लोगों के मुताबिक आरती के बाद अंबाजी में मशाल जलती और यहां भी मशाल जलती. दोनों तरफ के लोग जलती मशाल देखकर मैसेज सेंड/रिसीव का टिक लगता और फिर रानी खातीं. कुछ लोग कहानी को थोड़ा रियल बनाते हैं. उनके मुताबिक हर 10-15 किलोमीटर पर ऐसा इंतजाम था और मशाल जलती देखकर अपनी मशाल जलाकर आगे दिखाई जाती.
थोड़ा पहाड़ चढ़ने पर किला आता है. कोई रोक-टोक नहीं. कोई देख-भाल नहीं. दीवारों पर नाम और नामों के बीच प्रेम प्रदर्शन करने वाली आकृतियां.
किले के अलावा ईडर के पहाड़ों में पुराने मंदिर, जैन मंदिर और दरगाह जैसी दसियों चीजें हैं. (फोटोः अमितेश सिन्हा / दी लल्लनटॉप)
किले के अलावा ईडर के पहाड़ों में पुराने मंदिर, जैन मंदिर और दरगाह जैसी दसियों चीजें हैं. (फोटोः अमितेश सिन्हा / दी लल्लनटॉप)

लेकिन यहां के लोग कहते हैं कि कुछ साल बाद हो सकता है कि यहां पहाड़ के नाम पर कुछ न बचे.
क्यों?
माइनिंग
किस चीज की माइनिंग?
ग्रेनाइट की. यहां के पहाड़ों में ग्रेनाइट भरा पड़ा है.
अवैध माइनिंग?
राजा के वारिसों ने सब लीज़ पर दे दिया है, लेकिन माइनिंग की परमिशन तो लोकल शासन-प्रशासन देता है.
माइनिंग से दिक्कत क्या है?
वीडियो देखें- गुजरात में माइनिंग से कभी भी खत्म हो जाएगी ये ऐतिहासिक विरासत

ये इस जगह की ऐतिहासिक विरासत है. किले के अलावा इन्हीं पहाड़ों में पुराने मंदिर, जैन मंदिर और दरगाह जैसी दसियों चीजें हैं. ईडर में तमाम लोग इस माइनिंग के खिलाफ एक साथ खड़े दिखते हैं. जबकि बाकी मुद्दों पर बातचीत में वो बंटे दिखते हैं. मसलन भाजपा ने कितना काम कराया जैसे सवालों पर कुछ के जवाब आते हैं कि बहुत काम कराया है, तो कुछ लोग कहते हैं कि कुछ काम नहीं कराया है, ईडर के भीतर सड़कें बहुत खराब हैं, 1-1 घंटे का जाम लग जाता है.
ऐसा नहीं है कि ये सीट कोई राजनीतिक उपेक्षा झेल रही हो. यहां से रमनलाल वोरा विधायक हैं. रमनलाल विधानसभा अध्यक्ष भी हैं. वो भाजपा का दलित चेहरा कहे जाते हैं. लेकिन इस बार उन्हें सुरेंद्रनगर की दसाडा सीट से लड़ाया जा रहा है. कहा जा सकता है कि दसाडा से कांग्रेस के दलित चेहरे नौशाद सोलंकी के खिलाफ उन्हें उतारा जा रहा है. लेकिन यहां के कई लोग मानते हैं कि माइनिंग कर रहे लोगों से उनके ताल्लुकात की वजह से उन्हें यहां से हटाया गया है. वो 1995 से यहां से लगातार जीत रहे थे. ये भी बताया गया कि 1995 से लगातार जीतने के बावजूद उन्हें यहां का नहीं माना जाता है, उनका यहां घर भी नहीं हैं.
ईडर में अभी तक भाजपा और कांग्रेस में से किसी ने अपने कैंडीडेट का ऐलान नहीं किया है. लोग कहते हैं कि रिजल्ट काफी कुछ कैंडीडेट के ऐलान के बाद तय होगा.
चुनाव के नतीजे आने के बाद कोई न कोई पार्टी जरूर गाएगी, लेकिन ईडर का गढ़ बचाने वाले कब तक गा पाएंगे...

ईडरियो गढ़ जीत्या रे आनंद भयो आनंद भयो




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