मुंबई में रहने वाली एक महिला कोरोना वायरस से संक्रमित हुई थी. इलाज के बाद जब दोबारा टेस्ट किए गए, तो रिपोर्ट निगेटिव आई . लेकिन संक्रमण से ठीक होने के बावजूद महिला का गर्भपात हो गया. ऐसा कहा जा रहा है कि कोरोना का इन्फेक्शन महिला से होते हुए उसके भ्रूण तक पहुंच गया था, और उसके लिए खतरा बन गया. यह इसलिए भी अहम है क्योंकि पूरी दुनिया में गर्भ में भ्रूण तक कोरोना का असर पहुंचने के बारे में बेहद कम जानकारी मिल सकी है.
क्या है पूरा मामला?
‘इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट के मुताबिक, महिला जो पेशे से एक अस्पताल की सिक्योरिटी गार्ड थी, तीसरी बार प्रेगनेंट हुई थी. जब उसकी प्रेग्नेंसी को दो महीने हुए, तब वो कोरोना पॉज़िटिव पाई गई. हालांकि उसमें कोरोना के कोई लक्षण नहीं थे. पांच हफ्ते बाद जब उसकी प्रेग्नेंसी का 13वां हफ्ता चल रहा था, उसका स्वैब टेस्ट कोरोना निगेटिव आया. प्रेग्नेंसी के 13वें हफ्ते के बाद वो रुटीन अल्ट्रासाउंड के लिए गई, तब उसका भ्रूण मृत पाया गया.
ESIS यानी एम्प्लाइज स्टेट इंश्योरेंस स्कीम अस्पताल को मामले के कोरोना से लिंक होने का संदेह हुआ. आगे की जांच के लिए NIRRH को कॉन्टैक्ट किया गया. NIRRH यानी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रिसर्च इन रिप्रोडक्टिव हेल्थ. अस्पताल की एथिक्स कमिटी ने महिला पर टेस्ट करने की परमिशन दे दी.
NIRRH की रिपोर्ट 22 अगस्त को MedRxiv में छपी. MedRxiv एक इंटरनेट साइट है, जिसमें हेल्थ साइंस से जुड़ी हुई रिपोर्ट्स छपती हैं. NIRRH की रिपोर्ट में कहा गया,
“ये ऐसी पहली स्टडी है, जिसमें टिशूज में कोरोना वायरस के इन्फेक्शन के ठोस सबूत मिले. इस मामले में गले की लार के सैंपल लेकर कोरोना जांच की गई. उसकी रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद भी एक टिशू में इसका इन्फेक्शन देखा गया. इस स्टडी में ये भी सामने आया है कि गर्भधारण के पहले तीन महीने के दौरान वायरस का वर्टिकल ट्रांसमिशन देखा गया. वर्टिकल ट्रांसमिशन यानी मां से बच्चे, यानी भ्रूण को संक्रमण. और संभवत: इसकी वजह से भ्रूण खराब हो गया.”
हालांकि रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि गर्भावस्था की पहली तिमाही के दौरान कोरोना वायरस के वर्टिकल इन्फेक्शन के बारे में ठोस सबूत पाने के लिए और स्टडी करने की ज़रूरत है.
NIRRH के डॉक्टर्स को भी सुनिए
NIRRH के प्लेसेंटा बायोलॉजिस्ट हैं डॉक्टर दीपक मोदी. ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने बताया,
“हमने सबसे पहले कोविड-19 की जांच के लिए महिला के नासोफैरिंजियल (नाक के अंदरूनी हिस्से में मौजूद एक जगह) का टेस्ट किया, जो निगेटिव आया था. फिर हमने प्लेसेंटा और अंबिलिकल फ्लूइड (गर्भनाल) और भ्रूण की झिल्ली की जांच की. हम ये देखकर हैरान हो गए कि संक्रमण के पांच हफ्ते बाद भी प्लेसेंटा में कोरोना वायरस अपना संख्या बढ़ा रहा था.”
डॉक्टर राहुल गजभिये, NIRRH में वैज्ञानिक हैं. उन्होंने बताया कि वे लोग महाराष्ट्र में कोरोना वायरस संक्रमित हुई प्रेगनेंट महिलाओं का ब्यौरा दर्ज कर रहे हैं. ज्यादातर ब्यौरे उन महिलाओं के दर्ज हुए हैं, जिनकी डिलीवरी होने वाली थी या हो चुकी थी. करीब एक हज़ार से ज्यादा महिलाओं की जानकारी हम दर्ज कर चुके हैं. डॉक्टर राहुल कहते हैं,
“कोरोना संक्रमित प्रेगनेंट महिलाओं में से ज्यादातर कोई लक्षण नहीं दिखे. हम उनके संक्रमित होने के बारे में तभी जान पाए, जब वो डिलीवरी के लिए आईं और उनका टेस्ट हुआ. संभवत: यही वजह है कि हम कोविड-19 की वजह से प्रेग्नेंसी के पहले तीन महीने के अंदर होने वाले गर्भपात को मिस कर रहे हैं, क्योंकि पहले और दूसरे महीने में उनके कोई कोरोना टेस्ट नहीं हो रहे.”
स्टडी में प्रेग्नेंट महिलाओं की शुरुआती जांच करने की ज़रूरत पर जोर दिया गया है, ताकि इस तरह के गर्भपात से बचा जा सके.
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