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मोहन भागवत बोले- भारत में मुस्लिम आबादी बढ़ रही, मंदिरों को लेकर कही ये बात

विजयादशमी पर RSS के सरसंघचालक भागवत के भाषण की खास बातें जानिए.

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दशहरे की सुबह कार्यकर्ताओं को संबोधित करते मोहन भागवत. (फोटो- @RSSorg Twitter)
15 अक्तूबर 2021 (Updated: 15 अक्तूबर 2021, 06:44 IST)
Updated: 15 अक्तूबर 2021 06:44 IST
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने शुक्रवार, 15 अक्टूबर को विजयादशमी के मौक़े नागपुर स्थित आरएसएस मुख्यालय में कार्यकर्ताओं संबोधित किया. इस मौके पर भागवत ने बढ़ती जनसंख्या, ड्रग्स, OTT और मोबाइल कंटेंट पर नियंत्रण सहित कई बातें कहीं. उनकी कही ख़ास-ख़ास बातें जानते हैं. # भागवत ने कहा कि समाज का मन जातिगत विषमताओं की भावनाओं से जर्जर है. देश के बौद्धिक वातावरण में इस खाई को पाटकर परस्पर आत्मीयता और संवाद को बनाने वाले स्वर कम हैं, बिगाड़ करने वाले अधिक हैं. # कोरोना के ख़िलाफ बड़े स्तर पर वैक्सीनेशन हो रहा है. कोरोना के चलते समाज के क्रियाकलापों को बंद रखने की न तो शासन की मनःस्थिति है, न ही समाज की. # बिटकॉइन जैसा अनियंत्रित चलन देशों की अर्थव्यवस्था के लिए एक चुनौती बन गया है. ओटीटी पर कुछ भी प्रदर्शित होगा और कोई भी उसे देखेगे, ऐसी स्थिति है. अभी ऑनलाइन शिक्षा चल पड़ी है. बालकों का मोबाइल देखना भी नियम बन गया है. देश के विरोधी तत्व इन साधनों का क्या उपयोग करना चाहते हैं, वो सब जानते हैं. # अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बनना ऐसी घटना थी, जो अप्रत्याशित तो नहीं थी, लेकिन अनुमान से पहले सामने आ खड़ी हुई. उसके साथ चीन, पाकिस्तान का अपवित्र गठबंधन बन गया है. तालिबान कभी शांति, कभी कश्मीर की बात करता है. हम आश्वस्त होकर नहीं रह सकते. # देश में हिंदू मंदिरों का भी बड़ा प्रश्न है. दक्षिण भारत में अधिकतर मंदिर वहां की सरकारों के अधीन हैं. शेष भारत में कुछ सरकार के पास, कुछ पारिवारिक निजी स्वामित्व में और कुछ न्यास की व्यवस्था में हैं. मंदिरों के सुयोग्य व्यवस्थापन, संचालन की व्यवस्था ज़रूरी है. हिन्दू मन्दिरों का संचालन हिन्दू भक्तों के ही हाथों में रहे. हिन्दू मन्दिरों की सम्पत्ति का विनियोग भगवान की पूजा और हिन्दू समाज की सेवा और कल्याण के लिए ही हो, यह भी उचित व आवश्यक है. # देश की जनसंख्या चिंता बढ़ाने वाली बात है. विविध संप्रदायों की जनसंख्या वृद्धि दर में भारी अंतर, विदेशी घुसपैठ, मतांतरण के कारण जनसंख्या में बढ़ रहा असंतुलन देश की एकता, अखंडता, सांस्कृतिक पहचान के लिए ख़तरा है. # 2015 में रांची में अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक में एक प्रस्ताव दिया गया था. इसमें लिखा था कि 1951 से 2011 के बीच देश की जनसंख्या में भारत में उत्पन्न मतपंथों के अनुयायियों का अनुपात 88 फीसदी से घटकर 83.8 फीसदी रह गया. वहीं मुस्लिम जनसंख्या का अनुपात 9.8 फीसदी से बढ़कर 14.23 फीसदी हो गया. (ये बात मोहन भागवत ने बोली नहीं, लेकिन RSS ने लिखित में जो भाषण उपलब्ध कराया, उसमें मौजूद है.) # जनसंख्या नीति होनी चाहिए. हमें लगता है कि इस बारे में एक बार फिर विचार करना चाहिए. अभी भारत युवाओं का देश है. 30 साल के बाद ये सब बूढ़े बनेंगे, तब इन्हें खिलाने के लिए भी हाथ लगेंगे और उसके लिए काम करने वाले कितने लगेंगे, इन दोनों बातों पर विचार करना होगा. अगर हम इतना बढ़ेंगे तो पर्यावरण कितना झेल पाएगा. 50 साल आगे तक विचार करके रणनीति बनानी चाहिए. जैसे जनसंख्या एक समस्या बन सकती है, वैसे ही जनसंख्या का असंतुलन भी समस्या बनती है. # देश में तरह-तरह के नशीले पदार्थों की आदतें बढ़ रही हैं. उसके व्यापार से आने वाला पैसा किसके हाथों में जाता है, हम सबको पता है. देश विरोधी कार्यों में उसका उपयोग होता है. सीमापार के देश उसको प्रोत्साहन देते हैं. वहीं भागवत के नशे के व्यापार से आने वाले पैसे के बयान पर शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा कि अगर वो (भागवत) कुछ कह रहे हैं तो इसकी अहमियत होगी. लेकिन सवाल ये है कि अगर नशे के व्यापार से आने वाला पैसा देश के ख़िलाफ़ इस्तेमाल हो रहा है तो देश को चला कौन रहा है? राउत ने कहा कि प्रधानमंत्री तो कहते थे कि नोटबंदी के बाद ड्रग माफिया और आतंकियों को जाने वाला पैसा रुक जाएगा.

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