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क्या चिप्स और चॉकलेट में गाय और सूअर की चर्बी होती है?

जानिए आप बाज़ार से खरीद के जो कुछ भी खा रहे हैं उसमें आखिर क्या-क्या पड़ा हुआ है?

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दर्पण
7 सितंबर 2018 (Updated: 6 सितंबर 2018, 03:29 AM IST)
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शहद में गुड़ के मेल का डर है, घी के अंदर तेल का डर है तम्बाकू में खाद का खतरा, पेंट में झूठी घात का खतरा मक्खन में चर्बी की मिलावट, केसर में कागज़ की खिलावट मिर्ची में ईंटों की घिसाई, आटे में पत्थर की पिसाई व्हिस्की अंदर टिंचर घुलता, रबड़ी बीच बलोटिन तुलता क्या जाने किस चीज़ में क्या हो, गरम मसाला लीद भरा हो खाली की गारंटी दूंगा, भरे हुए की क्या गारंटी?




1968 में आई फ़िल्म ‘नील-कमल’ के लिए जब साहिर लुधियानवी ने ये गीत लिखा था तब उन्हें भी नहीं पता होगा कि ठीक आधे दशक पहले बाद भी ये बात उतनी ही मौज़ू रहेगी. हर दीवाली होली में खोए में होने वाली मिलावट की ‘ब्रेकिंग न्यूज़’ से लेकर मैगी के लिए साल भर तक तरसते बेरोज़गार बैचुलर्स तक के पीछे एक ही बात है – भरे हुए की क्या गारंटी?
हम हर दिन कम से कम एक पड़ताल करते ही हैं, और आप लोगों को बताते हैं कि क्या चीज़ सच है और क्या चीज़ झूठ. अमूमन चीज़ें झूठ ही निकलती हैं. लेकिन इन पड़तालों को करते और पढ़ते एक और बात जानी है. वो ये कि – धुंआ उठा है अगर तो आग तो लगी होगी.
मतलब कि हर झूठी खबर, हर झूठी बात के पीछे कहीं न कहीं कोई सच्चाई, कोई मोटिव, कोई दूसरी सच्चाई ज़रूर होती है. तो जब हमें अबकी बार मिलावट के मसले पर मसाला मिला तो उस मसाले में मिलावट ढूंढने के बदले, उसकी पड़ताल के बदले, सच्चाई को एक्सप्लोर और एक्सप्लेन करने की सोची. तो आइए पहले पढ़ते हैं वो मैसेज क्या है जो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. इन्फेक्ट हमने ऐसे कई मैसेजेस कंपाइल किए हैं जिनमें ‘मिलावट’ की बातें की गई हैं.
पहले तो फोटोज़ देखें –
Viral - 1



 
Viral - 2



 
Viral - 3



 
Viral - 4



 
Viral - 5



 
Viral - 6



 
Viral - 7



अब एक व्हाट्सऐप मैसेज, जिसमें हमने टाइपो सुधार के इसे पढ़ने लायक कर दिया है –
ब्रेकिंग न्यूज़ –
पॉइंट 1 – क्या मीडिया ने कभी ये बताया कि नेस्ले कंपनी खुद मानती है कि वे अपनी चॉकलेट ‘किट-कैट’ में बछड़े के मांस का रस मिलाती है.
पॉइंट 2 – क्या मीडिया ने कभी ये बताया कि मद्रास हाई-कोर्ट में फ़ेयर एंड लवली कंपनी पर जब केस किया गया था तब कंपनी ने खुद माना था - हम क्रीम में सूअर की चर्बी का तेल मिलाते हैं.
पॉइंट 3 – क्या मीडिया ने कभी आपको ये बताया कि विक्स नाम की दवा यूरोप के कितने देशो में बैन है? वहां इसे जहर घोषित किया गया है पर भारत मे सारा दिन टीवी पर इसका विज्ञापन आता है.
पॉइंट 4 – मीडिया ने कभी बताया कि लाइफबॉय न बाथ सोप है न टॉयलेट सॉप? ये जानवरों को नहलाने वाला कैबोलिक सॉप है. यूरोप मे लाइफबॉय से कुत्ते नहाते हैं और भारत में 90 करोड़ लोग इससे रगड़-रगड़ कर नहाते हैं.
पॉइंट 5 – मीडिया ने कभी बताया कि ये कोक, पेप्सी सच मे टॉयलेट क्लीनर है. और ये साबित हो गया है कि इसमें 21 तरह के अलग अलग जहर हैं. और तो और संसद की कैंटीन में कोक, पेप्सी बेचना बैन है. पर पूरे देश मे बिक रही है.
पॉइंट 6 – मीडिया ने कभी बताया कि ये हेल्थ टॉनिक बेचने वाली विदेशी कंपनिया बूस्ट, कॉम्प्लान, हॉर्लिक्स, मॉल्टोवा, प्रोटीनक्स इन सबका डेल्ही के ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट (जहां भारत की सबसे बड़ी लैब है) में टेस्ट किया गया, और पता लगा कि ये सिर्फ मूंगफली की खली से बनते हैं. मतलब मूंगफली का तेल निकालने के बाद जो उसका वेस्ट बचता है, जिसे गांव में जानवर खाते हैं, उससे ये लोग हेल्थ टॉनिक बनाते हैं.
पॉइंट 7 – मीडिया ने कभी बताया कि अमिताभ बच्चन का जब आपरेशन हुआ था और 10 घंटे चला था तब डाक्टर ने उसकी बड़ी आंत काटकर निकाली थी. और डाक्टर ने कहा था कि ये कोक, पेप्सी पीने के कारण सड़ी है. अगले ही दिन से अमिताभ बच्चन ने इसका विज्ञापन करना बंद कर दिया था और तबसे ये आदमी कोक, पेप्सी का विज्ञापन नहीं करता.
पॉइंट 8 – मीडिया अगर ईमानदार है, तो सबका सच एकसाथ दिखाए!!
पॉइंट 9 – आजकल बहुत से लोग हैं जिन्हें ‘पित्ज़ा’ खाने में बड़ा मज़ा आता है. चलिए पिज़्ज़ा पर एक नज़र डालें. पित्ज़ा बेचनेवाली कंपनियां – पित्ज़ा हट, डोमिनोज़, केएफसी, मैक डॉनाल्ड्स, पित्ज़ा कॉर्नर, पापा जॉन्स पित्ज़ा, कैलिफॉर्निया पित्ज़ा, साल्स पित्ज़ा – ये सब कंपनियां अमेरिका की हैं. आप चाहें तो विकिपीडिया करके देख सकते हैं.
नोट - पित्ज़ा मे टेस्ट लाने के लिए ‘E-631 flavor Enhancer’ नाम का तत्व मिलाया जाता है वो सुअर के मांस से बनता है. आप चाहो तो गूगल पे देख लो.
पॉइंट 10 – सावधान मित्रों अगर खाने पीने की चीजों के पैकेटों पर निम्न कोड लिखे हैं तो उसमें ये चीजें मिली हुई हैं -
E 322 - गाय का मांस E 422 - एल्कोहोल तत्व E 442 - एल्कोहोल तत्व और कैमिकल E 471 - गाय का मांस और एल्कोहोल तत्व E 476 - एल्कोहोल तत्व E 481 - गाय और सूअर के मांस के संघटक E 627 - घातक कैमिकल E 472 - गाय + सुअर + बकरी के मिक्स मांस के संघटक E 631 - सूअर की चर्बी का तेल
नोट - ये सभी कोड आपको ज़्यादातर विदेशी कंपनी जैसे - चिप्स, बिस्कुट, च्यूइंगम, टॉफी, कुरकुरे ओर मैगी आदि में दिखेंगे.
ध्यान दें - ये अफवाह नहीं बिल्कुल सच है, अगर यकीन नहीं हो तो गूगल पर सर्च कर लो. मैगी के पैक पे इंग्रिडेंट में देखें, फ्लेवर E-635 लिखा मिलेगा.
आप चाहें तो गूगल पर देख सकते हैं इन सब नम्बर्स को –
E100, E110, E120, E140, E141, E153, E210, E213, E214, E216, E234, E252, E270, E280, E325, E326, E327, E334, E335, E336, E337, E422, E430, E431, E432, E433, E434, E435, E436, E440, E470, E471, E472, E473, E474, E475, E476, E477, E478, E481, E482, E483, E491, E492, E493, E494, E495, E542, E570, E572, E631, E635, E904.
अब आगे बढ़ें उससे पहले अमूल का 07 सितंबर, 2018 के अख़बारों में आया विज्ञापन भी पढ़ते चलें -
अमूल
(पढ़ने के लिए क्लिक करके बड़ा करें)





तो बात है क्या?

# खाने में मिलावट के प्रति लोगों की चिंता दो कारणों के चलते होती है –
# 1) उन मिलावटी चीज़ों का स्वास्थ्य पर क्या फ़र्क पड़ता है?
# 2) उन मिलावटी चीज़ों से धार्मिकता पर क्या फ़र्क पड़ता है? क्या कुफ्र है क्या पाक, क्या अधर्म है क्या खाने से धर्म भ्रष्ट हो जाएगा?
# दुनिया की हर चीज़, हर प्राकृतिक-अप्राकृतिक चीज़, हर मिलावटी-शुद्ध चीज़ स्वास्थ्य पर कुछ न कुछ बुरा प्रभाव डालती ही हैं. बहुत थोड़ा ही सही मगर डालती हैं. और हम सब ये बात जानते हैं लेकिन फिर भी हम उन्हें खाते पीते हैं. क्यूंकि या तो नुकसान बहुत कम होते हैं, या फायदे बहुत ज़्यादा. या तो नुकसान बहुत बाद में धीरे-धीरे इकट्ठा होंगे या फिर हमें उस चीज़ की आदत हो चुकी है जो हम खा, पी रहे हैं.
केवल खाने पीने में ही क्यूं अपनी दैनिक आदतों में भी हम आज का फायदा देखते हैं बाद का नहीं वरना हम पेड़ न काटते, एसी न चलाते...
ड्रग्स तो बैन है फिर भी लोग उसे लेते हैं, आदत के चलते. डिस्प्रिन बैन है, फिर भी मिलती है, लोग लेते हैं. उसके फायदा v/s नुकसान के तुलनात्मक अध्ययन में फायदे के पलड़े के भारी के चलते.
यानी दिक्कत ये नहीं कि किस चीज़ में क्या मिला है? दिक्कत केवल और केवल इतनी है कि हमें पता होना चाहिए, कंपनियों को हमें ‘वेल इन्फॉर्मड’ रखना चाहिए कि वो किस चीज़ में क्या मिला रहे हैं. और ये ग्राहक के विवेक पर निर्भर होना चाहिए कि वो उसे ले या न ले, खाए-पिए या न खाए-पिए.
यानी हर वो चीज़ जो प्रोडक्ट में है उसकी जानकारी प्रोडक्ट के पैकेट में होनी ही चाहिए, उसके ज्ञात साइड इफेक्ट्स के साथ. ये ग्राहक का काम नहीं होना चाहिए कि वो जागरूक रहे, ये प्रोडक्ट का काम होना चाहिए कि अगर कोई विवादास्पद चीज़ प्रोडक्ट में मिलाई जा रही है तो उसके बारे में ग्राहकों को खरीदने से पहले पता रहे. कम से कम सच्ची कोशिश तो होनी ही चाहिए.
टर्म्स एंड कंडिशन के फॉन्ट छोटे होना और चेतावनी का फ़ास्ट फॉरवर्ड होना शायद सबसे बड़ी अनैतिकता है न कि किसी प्रोडक्ट में क्या मिला है ये.
हां कुछ चीज़ें जो सरकार या कानून द्वारा बैन हैं वो तो बैन रहनी ही चाहिए. एंड इट गोज़ विदाउट सेइंग.
# अमेरिका की किसी चीज़ को, चाइना की किसी चीज़ को केवल इसलिए नहीं नकारा जा सकता क्यूंकि वो अमेरिकन या चाइनीज़ है. क्यूंकि अंततः हम 1991 में ही उदारीकरण को गले लगा लेने वाले, ग्लोबलाइजेशन के दौर में जीने वाले क्रमशः देश और काल हैं.
अब आइए इन सब पॉइंट्स के बाद केवल उन चीज़ों की पड़ताल करते हैं जिनके सच-झूठ होने से हमें एक आम नागरिक के रूप में वाकई फ़र्क पड़ता है.


# ई–नंबर –

जिस ई-नंबर्स की बात इन वायरल पोस्टस में की जा रही है उसका पहला ही अक्षर ‘ई’, यूरोप(Europe) का एब्रिविएशन है. यानी ई-नंबर यूरोप की देन है.
यूरोप में इस्तेमाल किया जाने वाला ये ई-नंबर कई और देशों में भी मान्य है, और बचे हुए देशों में से भी कई देशों में मान्य होने की कगार पर है. कारण ये है कि ये खाने की चीज़ों और उसमें मिलाई जाने वाले चीज़ों का बड़े अच्छे से वर्गीकरण करता है. ई-नंबर बहुत ढेर सारे हैं और इनकी कुल 9 मुख्य कैटेगरीज़ हैं. ये कैटेगरीज़ उन केमिकल्स की हैं जो विभिन्न कारणों के चलते या अपनी कुछ विशिष्टता के चलते किसी खाद्य पदार्थ में मिलाए जाते हैं. और इन्हीं विशिष्टता के आधार पर इनका कैटेगराईजेशन किया जाता है.
# 1) रंग –
Color

खाने की चीज़ों में कौन से रंग मिलाए गए हैं उनके बारे में बताने वाले ई-नंबर्स 100 से शुरू होकर 199 पर ख़त्म होते हैं. यदि आपको किसी प्रोडक्ट की पैकिंग में E101 लिखा दिखे तो समझिएगा कि उसमें पीला रंग मिला हुआ है. क्यूंकि –
E100 से E109 तक के नंबर पीले रंग को प्रदर्शित करते हैं. E110 से E119 तक के नंबर नारंगी रंग को प्रदर्शित करते हैं. E120 से E129 तक के नंबर लाल रंग को प्रदर्शित करते हैं. E130 से E139 तक के नंबर नीले और बैंगनी रंग को प्रदर्शित करते हैं. E140 से E149 तक के नंबर हरे रंग को प्रदर्शित करते हैं. E150 से E159 तक के नंबर भूरे और काले रंग को प्रदर्शित करते हैं. E160 से E199 तक के नंबर सुनहरे और अन्य रंग को प्रदर्शित करते हैं.
# 2) प्रीज़र्वेटिव्स या संरक्षक –
पीनट बटर बिना प्रिज़र्वेटिव के चल ही नहीं सकता.
पीनट बटर बिना प्रिज़र्वेटिव के चल ही नहीं सकता.

मतलब वो पदार्थ जिनसे वो प्रोडक्ट ज़्यादा लंबे समय तक सुरक्षित रहता है, जिसमें ये मिलाए गए हैं. यदि आपको किसी प्रोडक्ट की पैकिंग में E200 से E299 तक का कोई नंबर दिखे तो समझिएगा कि उसमें संरक्षक मिले हुए हैं.
# 3) एंटीऑक्सीडेंट्स और एसिडिटी रेग्यूलेटर्स –
सिट्रिक एसिड एक एसिडिटी रेग्यूलेटर के रूप में प्रयुक्त होता आया है. (फोटो: deospa.com.ng)
सिट्रिक एसिड एक एसिडिटी रेग्यूलेटर के रूप में प्रयुक्त होता आया है. (फोटो: deospa.com.ng)

मतलब ये भी एक तरह के संरक्षक ही हैं साथ ही समय के साथ-साथ किसी प्रोडक्ट की अम्लता या एसिडिटी को बढ़ने से भी रोकते हैं. ऐसा कोई भी प्रोडक्ट जिसमें आपको E300 से E399 तक का कोई भी नंबर मिले तो जानिए कि उसमें एंटीऑक्सीडेंट्स या/और एसिडिटी रेग्यूलेटर्स मिलाया गया है.
# 4) थिकनर, स्टेबलाइज़र और इमल्सीफ़ायर –
इमल्सन (फोटो: icanteachmychild)
इमल्सन (फोटो: icanteachmychild)

यदि दो लिक्विड को आपस में मिलाने पर वो नहीं घुलते तो जो बनता है उसे घोल नहीं इमल्सन कहते हैं. जैसे पानी और दूध आपस में मिल जाता है तो वे इमल्सन नहीं बनाते, लेकिन पानी और तेल आपस में नहीं मिलते इसलिए इमल्सन बनाता है. अब दो घुलने वाले लिक्विड से इमल्सन बनाने के लिए जिन एजेंट्स का यूज़ किया जाता है वे इमल्सीफ़ायर कहलाते हैं.
स्टेबलाइज़र भी एक तरह का संरक्षक ही है बस अंतर इतना है कि ‘स्टेबलाइज़र’ प्रोडक्ट के स्ट्रक्चर या उसकी संरचना को संरक्षित रखता है. जैसे जैली वाली टॉफीयां वो जो हार्ट शेप में आती हैं. वो इसी स्टेबलाइज़र के चलते देर तक हार्ट शेप में रह पाती हैं.
बाकी बचा थिकनर. उसका हिंदी अनुवाद ही काफी है – मोटा करने वाला. तो किसी लिक्विड को मोटा करने के लिए इसी थिकनर का यूज़ किया जाता है.
E400 से E499 तक के नंबर इन्हीं थिकनर, स्टेबलाइज़र और इमल्सीफ़ायर के लिए आरक्षित हैं.
# 5) पीएच रेग्यूलेटर्स और एंटी-केकिंग एजेंट्स –
एंटी केकिंग एजेंट (फ़ोटो: indiamart.com)
एंटी केकिंग एजेंट (फ़ोटो: indiamart.com)

एंटी-केकिंग एजेंट्स मने वो ‘एजेंट्स’ जिनसे प्रोडक्ट की लोई या प्रोडक्ट में गांठ नहीं बनती. और पीएच रेग्यूलेटर्स को ऐसा समझ लीजिए कि ये एसिडिटी रेग्यूलेटर्स का ही कज़न है. क्यूंकि कोई अगर हाईस्कूल की केमिस्ट्री तक का भी ज्ञान रखता है तो उसे पता है कि पीएच और एसिडिटी दोनों ही का आपस में मोदी-शाह का रिश्ता है. (मोदी-शाह का रिश्ते जानने के लिए आपको हाईस्कूल पास होना भी ज़रूरी नहीं.)
और ये सारे ई-नंबर्स में E500 से E599 तक में आते हैं.
# 6) स्वाद बढ़ाने वाले एजेंट्स –
अजीनोमोट (फोटो: indiamart.com)
अजीनोमोट (फोटो: indiamart.com)

E600 से E699 तक की कैटेगरी वाले सारे पदार्थ स्वाद बढ़ाने वाले एजेंट्स हैं.
# 7) एंटीबायोटिक्स -
ये खूबसूरत सी दिखने वाली शै कोई खाने की चीज़ नहीं बैक्टीरिया है. इससे बचने के लिए ही एंटीबायोटिक्स मिलाए जाते हैं.
ये खूबसूरत सी दिखने वाली शै कोई खाने की चीज़ नहीं बैक्टीरिया है. इससे बचने के लिए ही एंटीबायोटिक्स मिलाए जाते हैं.

E700 से E799 तक की कैटेगरी वाले सारे पदार्थ एंटीबायोटिक्स हैं. मतलब ये बैक्टीरिया से आपके खाद्य पदार्थ को बचाते हैं.
# 8) ग्लेज़िंग एजेंट्स और स्वीटनर्स –
Sweetner

फाइनल प्रोडक्ट की फिनिशिंग का उसकी बिक्री में बहुत बड़ा हाथ होता है. फिनिशिंग मने उसकी चमक, उसका चिकनापन, उसमें किनारों के बदले कर्व्स का होना. और ये सब काम होता है ग्लेज़िंग एजेंट्स का. दूसरी तरफ स्वीटनर्स प्रोडक्ट्स के मीठेपन को निर्धारित करते हैं. और ये सारे आते हैं E900 से E999 तक की रेंज में.
# 9) अन्य –
वो सारे एजेंट्स जो ऊपर की किसी भी कैटेगरी में नहीं आते हैं, या नहीं आ सकते वे सारे इस (अन्य) में आते हैं, और ये E1100– E1599 से प्रदर्शित किए जाते हैं.


आपने ऊपर गौर किया होगा कि कोई भी वर्गीकरण ऐसा नहीं है कि पता चल सके कौन सा इंग्रिडेंट स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और कौन सा खाने से धर्म भ्रष्ट होता है. यानी ये नहीं बताया गया है कि ये इंग्रिडेंट या केमिकल्स आखिर किस चीज़ से बने हैं. तो ये जानने के लिए कि किस ई-नंबर से खतरा है हमें हर हर ई-नंबर को अलग-अलग जानना होगा. लेकिन ये नंबर हैं भी इतने ढेर सारे हैं (ये भी आपको ऊपर देख के पता लग ही गया होगा) कि हर एक के बारे में बात करेंगे तो एक मोटी किताब बन जाएगी और साथ ही ये बोरिंग होगा. महा बोरिंग. इसलिए हम केवल उन नंबर्स की बात करते हैं जिनके बारे में व्हाट्सऐप में बात की गई है.


# E 631 –

लेट अस एक्सेप्ट, इस एक ई नंबर की असलियत जानने के लिए हमारे पसीने छूट गए. लेकिन हमने उसके बाद कंसोलिडेटेड जानकारी इकट्ठा की और संक्षेप में कहें तो
E 631 के बारे में व्हाट्सऐप मैसेज में किया गया दावा काफी हद तक सही है, लेकिन पूरा नहीं.
Lays

नंबर देखकर ही आपको पता चल जाएगा कि ये एक स्वाद बढ़ाने वाला यानी फ्लेवर इनहांचर एजेंट है. केमिस्ट्री जानने वाले इसे डाईसोडियम इनोसाइनेट के नाम से भी जानते हैं. आप मैगी के पैक में नंबर नहीं भी तो डाईसोडियम इनोसाइनेट लिखा हुआ होगा. एक ही बात है. ये तीन तरीके से बनाया जाता है - सूअर के मीट से. सारडाईन मछली से और शराब के बाई प्रोडक्ट के रूप में.
और भारत में तो इसे लेकर हंगामा अब हो रहा है लेकिन पाकिस्तान में ये अज़ाब आकर जा चुका है. ‘लेज़’ की पैकिंग में जब E 631 लिखा देखा गया तो लेज़ को कहना पड़ा कि ये कसावा (एक प्रकार की झाड़ी)  से बनाया है. इसे थाईलैंड से इंपोर्ट किया गया है और इसे सन्हा एसोसिएशन (साउथ अफ्रीकन नेशनल हलाला अथॉरिटी) द्वारा प्रमाणित किया गया है.
मने लेज़ के हिसाब से ये एक चौथी चीज़ – कसावा से भी निकलता है.
कसावा
कसावा

अब बात वही आ जाती है कि प्रोडक्ट कितनी पारदर्शिता से अपने उपभोक्ताओं को E631 या फिर किसी भी अन्य एजेंट, केमिकल आदि के बारे में बताता है.


# हरी-भूरी बिंदियां -

इसी क्रम में आपको भारत का एक कानून भी बता देते हैं, जो इतना फेमस और कॉमन है कि इसके बारे में शायद आपको पहले से ही पता होगा. भारत में किसी प्रोडक्ट की पैकिंग को ध्यान से देखें कहीं न कहीं पर आपको हरे रंग के स्क्वायर में एक हरा डॉट या भूरे रंग के स्क्वायर में भूरा डॉट दिखेगा.
हरा डॉट मतलब की इसके सारे प्रोडक्ट और एंड-प्रोडक्ट 100% शाकाहारी है. और भूरा डॉट मतलब कि एंड-प्रोडक्ट में कुछ न कुछ मांसाहार के तत्व मौज़ूद हैं. बस इस डॉट को देखिए अगर आपको हर डॉट दिखता है तो आपको गौ-मांस से लेकर हलाला तक की किसी बात की चिंता करने की ज़रूरत नहीं.
Green Brown Dots

लेकिन फिर से वही ज़रूरी सूचना कि प्रोडक्ट ये डॉट्स लगाने में ही अगर बेईमानी कर दे तो कुछ नहीं किया जा सकता.


ऊपर के सारे पॉइंट्स से हमें पता चलता है कि एक ई-नंबर आवश्यक रूप से शाकाहार हो या आवश्यक रूप से मांसाहार ये नहीं बताया जा सकता. केवल ई-नंबर से तो नहीं ही बताया जस सकता. लेकिन फिर भी हम वो ई-नंबर्स की लिस्ट दे रहे हैं जिनके या जिनमें ‘मांसाहार’ होने की ‘संभावनाएं’ हैं. लेकिन इनमें से अधिकतर प्रोडक्ट्स अन्य तरीकों से भी बनाए जा सकते हैं. इसलिए जो प्रोडक्ट आप खा रहे हैं वो वेज है या नहीं इसका ई-नंबर से केवल ‘अनुमान भर’ लगाया जा सकता है. आपको इन नंबर के होने या न होने के बावज़ूद हरे या भूरे डॉट और पैक में बनी हुई इंग्रिडेंट्स की लिस्ट ज़रूर देखें –
E104, E120, E153, E160, E161, E171, E252, E270,E304, E322, E325, E327, E415, E422, E 430, E431, E432, E433, E434, E435, E436, E441, E442, E445, E470, E471, E472, E473, E474, E475, E476, E477, E479, E481, E482, E483, E491, E492, E493, E494, E495, E542, E570, E585, E631, E635, E640, E920, E966, E1000, E1105, E1518.
इनमें से जो लाल रंग के ई-नंबर्स हैं उनके नॉन-वेज होने की संभावना सबसे अधिक है. लेकिन सबसे इंपोर्टेंट बात ये है कि केवल E120 और E542 ऐसे दो नंबर हैं, जो निश्चित तौर पर नॉन-वेज हैं.
कोका कोला
कोका कोला

चलिए अब व्हाट्सऐप मैसेज को सच्चाई जानने के लिए हमारे पास सारे टूल्स हैं. लेकिन हम केवल भारत में बिकने वाले प्रोडक्ट्स की बात करेंगे. क्यूंकि कई प्रोडक्ट्स, जैसे नेस्ले के किट-कैट और मैगी, कोक पेप्सी पूरी दुनियां में खाए-पिए जाते हैं और हर देश में उनके लिए अलग अलग नियम हैं.


# पॉइंट 1 – झूठ. किट-कैट में हरे रंग का डॉट है, इसलिए वो शाकाहारी है.
Kit Kat



# पॉइंट 2 – झूठ. ठीक उतना ही झूठ जितना फ़ेयर एंड लवली का गोरा करने का दावा.
Fair And Lovely

एक कथन - फ़ेयर एंड लवली हिंदुस्तान यूनीलीवर का प्रोडक्ट है.
नहीं, ये कथन इस चीज़ का सबूत नहीं कि वो बेईमानी कर ही नहीं सकता. लेकिन ये इस बात का सबूत तो है ही देश की सबसे बड़ी कोंग्लोमोरेट कंपनी ऐसा कुछ करे और फिर स्वीकारे और किसी को कानों कां खबर न हो, ऐसा संभव नहीं. लेकिन फिर भी हमने रिसर्च की और मद्रास/चेन्नई हाई-कोर्ट और फ़ेयर एंड लवली का एक केस मिला जिसके अनुसार अब फ़ेयर एंड लवली के फ़ॉर्मूले को कोई भी यूज़ कर सकता है क्यूंकि उसका पेटेंट खत्म हो गया है.


# पॉइंट 3 – इसमें दवा का मतलब ‘विक्स एक्शन 500’ है या ‘विक्स वैपोरब’ ये स्पेसिफाई नहीं किया है. ‘विक्स वैपोरब’ को तो ‘प्लेसिबो’ से ज़्यादा कुछ मानते ही नहीं.
पढ़ें: प्लेसीबो-इफ़ेक्ट, जिसके चलते डॉक्टर्स मरीज़ों को टॉफी देते हैं और मरीज़ स्वस्थ हो जाते हैं
वैज्ञानिक और जहां तक बैन की बात है, आपको बता दें कि मेंथोल और कपूर के प्रोडक्ट्स छोटे बच्चों (2 वर्ष से कम) के लिए तो वैसे भी अवॉयड किया जाना चाहिए क्यूंकि बच्चों की सांस वाली नली पतली होती है. और इसके बारे में तो विक्स के कवर में भी चेतावनी लिखी होती है. कपूर के चलते ये ज़हरीला भी होता है. लेकिन अगर ज़्यादा मात्रा में खा लिया जाए.
Vicks

हां ये कुछ देशों में बैन भी है लेकिन क्यूं. इसके उत्तर को ढूंढते हुए एक जगह बड़ी अच्छी टिप्पणी पढ़ने को मिली –
ये बैन है क्यूंकि इंसान आलसी है और वो ‘वार्निंग’ को पढ़ने की ज़हमत नहीं उठाना चाहता. और इसका फल बेचारी कंपनी को भुगतना पड़ता है.
(होने को किसी भी कंपनी को ‘बेचारी’ कहना अतिश्योक्ति होगा, पर फिर भी.)
और अगर विक्स एक्शन 500 की बात करें तो वो तो भारत में ही एक बार बैन हो गई थी, लेकिन फिर बैन वापस लिया गया. और ऐसा उसके साथ-साथ 344 और दवाइयों के साथ हुआ. जिनमें डी-कोल्ड टोटल, कोरेक्स वगैरह शामिल थे.
Vicks Action 500

इनको बैन करने का रीज़न ये था कि इनके और अधिक ‘सुरक्षित’ विकल्प मार्केट में उपलब्ध थे.
अब देखिए दवाइयों के बारे में दो तीन चीज़ें गौर करने लायक हैं – पहली कि शायद ही कोई दवाई हो जिसके साइड इफेक्ट्स न हों. क्या हम डॉक्टर से बिना पूछे या उसके प्रिस्किप्शन के बिना दवा लेने में खुद ही गलती नहीं कर रहे. दूसरी कि हर दवाई के बारे में यहां पर एस्क्प्लेन करने चलेंगे तो आप और हम डॉक्टर न भी सही फार्मेसिस्ट तो बन ही जाएंगे. इसलिए वंस फॉर ऑल – मान के चलिए कि हर दवाई बैन है, इल्लीगल है, उसका कोई न कोई साइड इफ़ेक्ट है. बस इसके बाद आप तभी दवाई यूज़ करें जब ‘दर्द हद से गुज़र जाए.’ वो भी डॉक्टर से परामर्श के बाद.


# पॉइंट 4 – दरअसल लाइफबॉय कैबोलिक नहीं कार्बोलिक सोप है. है नहीं था. क्यूंकि ये कार्बोलिक एसिड से बनता था. कार्बोलिक एसिड मतलब फिनोल. कार्बोलिक-एसिड एंटी सेप्टिक है और आज से सैकड़ों साल पहले डॉक्टर्स इसे ही यूज़ करते थे. और हां, अब ये कार्बोलिक एसिड से बनता भी नहीं.
Lifebuoy

बाकी वही बात – हर चीज़ के फायदे नुकसान हैं, और ये भी तो अंततः केमिकल है. या तो साबुन यूज़ ही करें और कर रहे हैं तो लाइफबॉय या किसी भी और ब्रांड में कोई ज़्यादा फायदा या नुकसान नहीं होना.


# पॉइंट 5 एवं 7 – यार ये सबको पता है कि कोक और पेप्सी कोई अमृत या कोई आब-ए-जमजम तो है नहीं. न ही इसमें रियल फ्रूट जूस है. और रही बात इसे टॉयलेट क्लीनर की तरह यूज़ करने की तो बताइए कि आप किस चीज़ से सबसे ज़्यादा टॉयलेट क्लीन करते हैं? पानी से न?
Coke Pepsi

मतलब ये कि हर चीज़ का कोई न कोई और उपयोग भी होता है, माचिस से कान भी खुजाये जा सकते हैं मगर माचिस का निर्माण कान खुजाने के लिए नहीं हुआ. लोग वाइन से मसाज करते हैं और बियर से सर धोते हैं.
और अगर ‘टॉयलेट क्लीनर’ के साथ तुलना करके आप इसे बहुत-बहुत खरतनाक सिद्ध करना चाहते हैं तो, ऐसा करने की ज़रूरत नहीं, क्यूंकि हर चीज़ की तरह ये भी कमोबेश खतरनाक है ही. कुछ चीज़ों से ज़्यादा तो कुछ चीज़ों से कम. और जब इसका कोई फायदा नहीं तो आप अपनी लाइफ में इसे बैन कर सकते हैं. ये इक्कीस केमिकल और अमिताभ की आंत वाली बातें कोरी बकवास हैं. बच्चन ने पेप्सी का एड करना तब छोड़ा जब उनसे एक स्कूल की लड़की ने पूछा कि – आप इसका एड क्यूं करते हो, जबकि मेरी टीचर तो कहती है कि ये ज़हर है.
अब ये बात तो एक्टर अमिताभ ने खुद बताई है, हो सकता है कि सच्चाई इससे और भी ज़्यादा ‘माइल्ड’ हो.
लोग सिगरेट, शराब भी पीते हैं और लोग केवल उबले खाने भी खाते हैं. अपनी जिंदगी और हेल्थ के निर्णय खुद लेने के लिए आप आज़ाद हैं.
अमिताभ बच्चन का पेप्सी वाला एड
अमिताभ बच्चन का पेप्सी वाला एड

वैसे, दुनिया में पानी के बाद सबसे ज़्यादा पिया जाने वाला ड्रिंक कोका कोला है.


# पॉइंट 6 – एफएसएसएआई मतलब फ़ूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्डस ऑफ़ इंडिया. ये खाद्य सामग्रियों के लिए वही है जो बैंकों के लिए आरबीआई, इंश्योरेंस कंपनियों के लिए आईआरडीए. तो अगर भारत में कोई खाने पीने का प्रोडक्ट खरीदना है तो इनका अप्रूवल लेना ज़रूरी है. इसलिए आप किसी भी खाद्य प्रोडक्ट की पैकिंग में, उसके कवर में एफएसएसएआई का लोगो और उसके द्वारा दिया जाने वाला लाइसेंस नंबर ज़रूर देखेंगे. तो एफएसएसएआई के अनुसार अगर आपने भारत में खाने पीने का सामान बेचना है तो नीचे लिखी चीज़ें उसके कवर में/पैकिंग में होना ज़रूरी है -
  • प्रोडक्ट का नाम
  • प्रोडक्ट बनाने में यूज़ हुई सामग्री की सूची
  • पोषण संबंधी जानकारी
  • शाकाहारी या मांसाहारी की घोषणा (वही हरी, भूरी बिंदी)
  • खाद्य योजक (वही जिन्हें ई-नंबर भी कहा जा सकता है)
  • निर्माता का नाम और पता
  • शुद्ध मात्रा
  • बैच संख्या
  • विनिर्माण/पैकिंग की तारीख
  • एक्सपाइरी डेट
  • किस देश से आयात हुआ है (यदि आयातित खाद्य पदार्थ है तो)
  • उपयोग के लिए निर्देश
FSSAI

तो इन सबके बाद आपके घर में बूस्ट, कॉम्प्लान, हॉर्लिक्स, मॉल्टोवा, प्रोटीनक्स या फिर बॉनवीटा जो कोई भी प्रोडक्ट हो उसके कवर में देखिए, और आप खुद ही इस पॉइंट की पड़ताल कर सकते हैं.
बाई दी वे किस इंस्टिट्यूट का नाम ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट होता है भला? ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ क्या?
और इसके बाद इस पूरे व्हाट्सऐप मैसेज में जो भी दावे किए गए हैं उन सब की कलई हमने पहले ही खोल दी है.


तो चलिए अब चलते हैं फ़ोटोज़ की ओर.
ज़रा फ़ोटोज़ पे नज़र दौड़ाइए. इनमें से कुछ फोटोशॉप्ड हैं जिनके बारे में आप देखकर ही समझ गए होंगे. लेकिन फिर भी मान के चलते हैं कि सारी ही फ़ोटोज़ रियल हैं, फिर भी आप इन्हें एक-एक कर देखें और बताएं कि किसका क्या मतलब है? ये आपका होमवर्क ठहरा.
तीन औज़ार हैं अब आपके पास – ई-नंबर्स, हरे-भूरे डॉट और एफएसएसएआई. बाकी विवेक और फायदे नुकसान का तराजू तो है ही.


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