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UPCA में परिवारवाद को लेकर किसने लगाए राजीव शुक्ला पर गंभीर आरोप?

हाईकोर्ट पहुंच गए हैं एपेक्स काउंसिल के मेंबर्स.

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राजीव शुक्ला. फोटो: PTI
उत्तर प्रदेश क्रिकेट असोसिएशन (UPCA) में परिवारवाद और यारी-दोस्ती में पद बांटने के आरोप सामने आए हैं. इस मामले में UPCA एपेक्स काउंसिल के सदस्यों ने UPCA के वरिष्ठ पदाधिकारियों पर आरोप लगाए हैं. आरोप हैं कि UPCA के वरिष्ठ अधिकारी राजीव शुक्ला के भाई, पूर्व ऑफिस असिस्टेंट अकरम सैफी के परिजन, पूर्व निदेशक के बेटे समेत कई और अन्य रसूख़दार लोगों को UPCA की आजीवन सदस्यता दी गई है. 13 से 15 फरवरी के बीच UPCA के उच्च पदों के लिए होने वाले चुनावों के लिए वोटिंग लिस्ट में इन आजीवन सदस्यों के नाम सामने आए. जिसके बाद एपेक्स काउंसिल के 19 में से सात सदस्यों ने इस पर आपत्ति जताई. उन्होंने इसे लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका भी दायर की है. इस पूरे मामले को समझने के लिए दी लल्लनटॉप ने UPCA एपेक्स काउंसिल के सदस्य राकेश मिश्रा से बात की. राकेश ने इस मामले में गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि UPCA के संविधान में चैप्टर 10 को गलत तरीक से जोड़ा गया है. जिसकी मदद से लोढ़ा समिति की सिफारिशों की अवमानना हो रही है. और असोसिएशन से जुड़े तमाम कार्यों में उच्च अधिकारियों का हस्तक्षेप है. राकेश मिश्रा ने बताया,
'यूपी क्रिकेट असोसिएशन में लोढ़ा समिति और सुप्रीम कोर्ट की सिफारिशों की अवमानना हो रही है. सुप्रीम कोर्ट मे लोढ़ा समिति की सिफारिशों पर हर स्टेट की असोसिएशन को संविधान बनाने के लिए कहा था. लेकिन UPCA में ऐसा हो नहीं रहा है.'
उन्होंने बताया कि UPCA के संविधान में चैप्टर 10 को जोड़कर भी सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवमानना हो रही है. बता दें कि इस चैप्टर के जरिए असोसिएशन के डायरेक्टर्स को हस्तक्षेप के अधिकार मिलते हैं. उन्होंने कहा,
'UPCA ने सुप्रीम कोर्ट में ये भी कहा है कि सारा काम एपेक्स बॉडी करा रही है, लेकिन ऐसा नहीं है. UPCA के वरिष्ठ अधिकारियों ने ऐसा ना करके असोसिएशन के संविधान में चैप्टर 10 को जोड़ा है. जो कि असोसिएशन को चलाने के लिए डायरेक्टर्स को अलग से अधिकार देता है.'
हालांकि इस मामले में UPCA का कहना है कि असोसिएशन के कार्य में डायरेक्टर्स का किसी भी तरह से कोई रोल नहीं है. UPCA बोर्ड का संचालन एपेक्स काउंसिल ही कर रही है. UPCA के दावों पर राकेश मिश्रा ने कहा,
'ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. वर्तमान में जो AGM हुई, उसके एजेंडे तक डायरेक्टर्स ने ही फाइनल किए. सभी डेट्स डायरेक्टर्स ही तय कर रहे हैं.'
राकेश ने इस मामले में और भी गंभीर आरोप लगाए. उन्होंने कहा,
'ये सभी चीज़ें मेरे संज्ञान में 2018 के बाद आईं कि 2018 में लाइफ मेंबर बनाए गए. लेकिन जब भी लाइफ मेंबर बनाए जाते हैं तो उसे AGM के एजेंडे में शामिल किया जाता है. लेकिन 2018, 2019, 2017 किसी भी AGM में लाइफ मेंबर बनाने से जुड़ी चीज़ें नहीं हैं. ये सभी मेंबर्स कब बने. इस बारे में किसी को भी जानकारी नहीं दी गई.'
राकेश ने इस मामले में यूपी बोर्ड के डायरेक्टर्स, अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाए. उन्होंने कहा,
'जो मेंबर्स बने हैं उनमें कुछ डायरेक्टर्स के, कुछ अधिकारियों के करीबी और रिश्तेदार हैं. जो भी मेंबर बनाए गए उसके बाद कुल लाइफटाइम मेंबर 50 हो गए हैं और कॉर्पोरेट मेंबर्स की संख्या पांच है. जबकि इन सभी को मेंबर बनाने से पहले ना तो AGM को कोई जानकारी दी गई और ना ही कोई अप्रूवल लिया गया. ऐसे में इनमें कोई भी मेंबर लीगल नहीं है.'
एपेक्स काउंसिल के सदस्य राकेश ने आगे बताया,
'UPCA में संबद्ध कुल 40 डिस्ट्रिक्ट हैं. जबकि यूपी में कुल 76 डिस्ट्रिक्ट हैं. 76 में से बाकी सभी 35 डिस्ट्रिक्ट को आज तक एफिलिएशन नहीं दिया गया है. उन 35 की जगह पर अधिकारियों ने अपने परिवार के और अपने निजी लोगों को इसकी मेंबरशिप दे दी. करीबियों को मेंबर बनाने का नुकसान ये भी हुआ है कि आज डिस्ट्रिक्ट मेंबर कम जबकि लाइफ मेंबर ज़्यादा हो गए हैं.'
राकेश मिश्रा के दामाद का नाम भी नए आजीवन सदस्यों की सूची में शामिल है. इस पर राकेश ने कहा,
'मेरी बेटी की शादी नवंबर 2020 में हुई, UPCA का कहना है कि हमने लाइफमेंबर 2018 में बनाए हैं. उसकी शादी 2020 में हुई. जबकि मेरे दामाद का तो ये भी कहना है कि उन्हें आजतक ये बताया ही नहीं गया कि वो लाइफ मेंबर हैं या नहीं.'
इंडियन एक्सप्रेस में छपी रिपोर्ट के मुताबिक करीब तीन साल तक BCCI का संचालन करने वाली COA (Committee of Administrators) ने सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर पर स्टेटस रिपोर्ट फाइल करते हुए कहा था कि UPCA के पिछले चुनाव निष्पक्ष तरीके से नहीं हुए थे. इसके मुताबिक UPCA में अपना कंट्रोल रखने और चुनाव के नतीजे अपने अनुसार करने के लिए 76 के बजाय 37 जिलों को ही वोटिंग राइट दिया गया था. हितों के टकराव के इस मामले के मुख्य आरोप BCCI वाइस-प्रेसिडेंट और UPCA के वरिष्ठ पदाधिकारी राजीव शुक्ला पर हैं. शुक्ला पहली बार 2005 में UPCA सचिव और निदेशक बने थे. बाद में UPCA ने जब जस्टिस आरएम लोढ़ा समिति के सुधारों के आधार पर अपने संविधान को अपडेट किया था. तब शुक्ला के साथ दो अन्य लोगों को 'गैर-सेवानिवृत्त निदेशक' के तौर नामित किया गया था. हालांकि उन्होंने दिसंबर 2021 में इस पद को छोड़ दिया था.

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