The Lallantop

बिहार में चुनाव लड़ने का ढिंढोरा पीटने के पीछे चिराग की प्लानिंग क्या है?

Chirag Paswan के चुनाव लड़ने को लेकर राजनीतिक विश्लेषकों की राय बंटी हुई है. एक खेमा मानता है कि चिराग प्रेशर पॉलिटिक्स का सहारा ले रहे हैं. वहीं दूसरा खेमे का मानना है कि इस बार वो शाहाबाद से चुनावी रण में उतर सकते हैं.

Advertisement
post-main-image
चिराग पासवान ने विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की है. (इंडिया टुडे)

बिहार चुनाव मोड में है और सारी पार्टियां एक्शन में. नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के ‘हनुमान’ के विधानसभा चुनाव लड़ने की खबर राजनीतिक गलियारों में जेर-ए-बहस है. पहले उनकी पार्टी के नेता इसकी मांग कर रहे थे. अब चिराग पासवान (Chirag Paswan) खुद भी इसके संकेत देने लगे हैं. सवाल है आखिर अब तक केंद्र की राजनीति कर रहे चिराग को बिहार की याद क्यों आई? और इससे एनडीए के घटक दलों की बेचैनी क्यों बढ़ गई है.

Advertisement
चुनाव लड़ेंगे चिराग पासवान!

चिराग पासवान की पार्टी लोजपा (रामविलास) के नेता लगातार उनके विधानसभा चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं. उनके जीजा और जमुई से सांसद अरुण भारती ने 2 जुलाई को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट के जरिए इसके बारे में इशारा किया. भारती ने लिखा,

 चिराग शाहाबाद की किसी सीट से चुनाव लड़ सकते हैं. और जल्द ही इस मसले पर राष्ट्रीय कार्य समिति की बैठक बुलाई जा सकती है. 

Advertisement

इससे पहले भारती ने एक पोस्ट लिख कर चिराग से बिहार में बड़ी भूमिका निभाने की अपील की थी. साथ ही ये भी इशारा किया था कि चिराग किसी सामान्य सीट से लड़ेंगे. चिराग के पार्टी के नेता तो मांग कर ही रहे थे. लेकिन चिराग ने पहली बार 8 जून को आरा की रैली में चुनाव लड़ने का इशारा दिया. उन्होंने कहा कि वो विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते है. हालांकि आखिरी फैसला उन्होंने पार्टी के ऊपर (जिसकी कमान उनके पास है) छोड़ दिया.

चिराग पासवान के चुनाव लड़ने को लेकर राजनीतिक विश्लेषकों की राय बंटी हुई है. एक खेमा मानता है कि चिराग प्रेशर पॉलिटिक्स का सहारा ले रहे हैं. वहीं दूसरा खेमा सोचता है कि इस बार वो शाहाबाद से चुनावी रण में उतर सकते हैं.

शाहाबाद को ही क्यों चुना?

चिराग पासवान दो बार जमुई से सांसद रहे हैं. फिलहाल, अपने पिता के कार्यक्षेत्र हाजीपुर का प्रतिनिधित्व करते हैं और उनका घर खगड़िया जिले में हैं. फिर सवाल उठता है कि आखिर शाहाबाद की सीट क्यों. इसको जानने के लिए आपको इस इलाके का सामाजिक राजनीतिक डायनेमिक्स समझना होगा.  

Advertisement

शाहाबाद सहजानंद सरस्वती के किसान आंदोलन, त्रिवेणी संघ (यादव, कोइरी और कुर्मी) और नक्सल आंदोलन से प्रभावित रहा है. यहां रणवीर सेना और नक्सली संगठनों के टकराव की भी जमीन रही है. इस क्षेत्र में ठीक-ठाक दलित आबादी है. और उन पर माले का प्रभाव रहा है. साथ ही उत्तर प्रदेश से लगे होने के चलते बसपा भी यहां प्रभावी रहती है. पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में यहां एनडीए की हालत पतली रही है.

लोकसभा चुनाव में इस क्षेत्र की चारों सीट (आरा, काराकाट, बक्सर और सासाराम) में एनडीए को हार का सामना करना पड़ा. वहीं 2020 विधानसभा चुनाव में इलाके की 22 सीटों मे से 19 सीट महागठबंधन के खाते में गया. दो बीजेपी जीती थी. और एक BSP. BSP विधायक जमां खान अब जेडीयू के साथ हैं. वरिष्ठ पत्रकार मनोज मुकुल का मानना है,

 चिराग पासवान के इस इलाके से लड़ने से दलित वोट एनडीए की ओर आकर्षित हो सकते हैं. क्योंकि चिराग अभी बिहार में सबसे बड़े दलित फेस हैं. और  उनके सामान्य सीट से लड़ने से दलित वोटर्स में एक अच्छा मैसेज जाएगा.

वहीं दूसरी तरफ 2020 विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान की पार्टी ने जेडीयू को सबसे ज्यादा डैमेज शाहाबाद इलाके में ही किया था. इस इलाके में उन्होंने जदयू को 11 सीटों का नुकसान कराया था. जदयू इस इलाके में एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. ब्रह्मपुर, नोखा और दिनारा विधानसभा सीट पर तो लोजपा के उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे थे. ऐसे में चिराग पासवान का ये दांव एनडीए पर दबाव बनाने की भी रणनीति है ताकि वो अपने लिए ज्यादा से ज्यादा सीटें बारगेन कर सकें.

चुनाव लड़ने के दावे हवा हवाई?

वहीं राजनीतिक विश्लेषकों का एक दूसरा खेमा भी है. इसका मानना है कि चिराग पासवान की ये कवायद विशुद्ध प्रोजेक्शन का मामला है. अगर उनको चुनाव लड़ना होगा तो पार्टी कैसे रोक सकती है. क्योंकि उनसे अलग लोजपा (रामविलास) का कोई अस्तित्व नहीं है. वरिष्ठ पत्रकार अरविंद शर्मा ने बताया,

 चिराग पासवान चुनाव नहीं लड़ने जा रहे हैं. वो बस अपने लिए एक माहौल बनाना चाहते हैं. ताकि एनडीए और बिहार में अपनी स्थिति मजबूत कर सकें. चुनाव आते आते वो पार्टी के फैसले का हवाला देकर चुनाव से किनारा कर लेंगे.

अरविंद शर्मा का मानना है कि चिराग पासवान के चुनाव लड़ने में काफी जोखिम है. अगर वो चुनाव हार जाते हैं तो उन पर केंद्र में मंत्री पद छोड़ने का नैतिक दबाव बनेगा. और फिर नरेंद्र मोदी के लिए भी अपने हनुमान को मंत्रिमंडल में बनाए रखना मुश्किल हो जाएगा.

चिराग पासवान को लेकर इन दावों पर सी वोटर के सर्वे में भी मुहर लगती है. अप्रैल 2025 में चिराग को 5.8 फीसदी लोगों ने सीएम पद के लिए अपनी पसंद बताई थी. तब तक उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ने का शिगुफा नहीं छोड़ा था. लेकिन जून के तीसरे हफ्ते में होने वाले सर्वे में उनका ग्राफ बढ़कर 9.6 फीसदी हो गया.

अपने चेहरे को स्थापित करने की कवायद 

पिछले चार दशकों से बिहार की राजनीति में स्थापित सबसे बड़े चेहरे अब ढलान पर हैं. या फिर दुनिया से उनकी रुखसती हो चुकी है. लालू यादव ने अपने पार्टी की कमान तेजस्वी यादव को सौंप दिया है. और तेजस्वी ने खुद को विपक्ष के चेहरे के तौर पर स्थापित कर लिया है. नीतीश कुमार की स्थिति भी बहुत बेहतर नहीं है. उनके स्वास्थ्य को लेकर भी कई तरह के कयास हैं. 

बीजेपी अब सम्राट चौधरी पर दांव लगाती दिख रही है. हालांकि उनका भविष्य पूरी तरह से पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व पर निर्भर करता है. अगर नेतृत्व प्रोजेक्ट करता है तो सम्राट बीजेपी बिहार का चेहरा हो सकते हैं. वहीं एक नया मोर्चा बनाकर प्रशांत किशोर भी ताल ठोंक रहे हैं. अब चिराग पासवान की चुनौती इनके बरअक्स खुद को स्थापित करने की है. और ये तभी होगा जब वो राज्य की राजनीति में सक्रिय होंगे. और ज्यादा से ज्यादा सीटों पर चुनाव लडेंगे.

एनडीए में असहजता क्यों?

चिराग पासवान ने जबसे चुनाव लड़ने का एलान किया है. सबसे ज्यादा परेशानी में हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा चीफ जीतन राम मांझी नजर आए हैं. वो लगातार चिराग पासवान पर हमलावर हैं. मनोज मुकुल के मुताबिक जीतन राम मांझी चिराग पर हमला कर खुद को नीतीश कुमार और जदयू के करीब दिखाना चाहते हैं. साथ ही उनकी लड़ाई राज्य के 19 फीसदी दलित वोटों के रहनुमाई को लेकर भी है. क्योंकि उनकी भी हसरत खुद को सबसे बड़े दलित फेस के तौर पर प्रोजेक्ट करने की है.

जदयू के साथ नीम-नीम शहद-शहद

साल 2020 में चिराग पासवान एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़े थे. लेकिन उन्होंने कुछ सीटों को छोड़कर बीजेपी के खिलाफ कैंडिडेट नहीं दिया था. लेकिन जदयू के खिलाफ सभी सीटों पर अपने कैंडिडेट दिए. इस चुनाव में जदयू तीसरे नंबर की पार्टी बन गई थी. उसको महज 43 सीटें मिली थी. 

द क्विंट की रिपोर्ट के मुताबिक लोजपा ने कम से कम 33 सीटों पर जदयू को सीधे डैमेज किया. इन 33 सीटों पर लोजपा ने जदयू की हार के मार्जिन से ज्यादा वोट हासिल किए. इस चुनाव में चिराग की पार्टी सिर्फ एक विधानसभा सीट जीती थी. मटिहानी. बाद में मटिहानी विधायक राजकुमार सिंह जदयू में शामिल हो गए थे. 

हालांकि अब लोजपा ने जदयू के साथ अपने रिश्ते सामान्य बनाए हैं. हाल में नीतीश सरकार ने लोजपा के महासचिव और चिराग के जीजा मृणाल पासवान को अनुसूचित जाति आयोग का अध्यक्ष बनाया है. अरविंद शर्मा का मानना है,

 रामविलास पासवान को भले ही मौसम वैज्ञानिक बताया जाता हो लेकिन चिराग उनसे भी शार्प पॉलिटिक्स करते हैं वो रिश्तों को सामान्य करना जानते हैं. शायद यही कारण है कि मुख्यमंत्री की वैकेंसी खाली न होने का दम भरने वाले जदयू नेता चिराग पर हमले से बच रहे हैं.

बीजेपी की क्या भूमिका रहेगी

चिराग पासवान पर बीजेपी की शह पर राजनीति करने के आरोप लगते रहे हैं. वो खुद भी अपने आप को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान बताते रहे हैं. लेकिन 30 मई को विक्रमगंज की रैली में प्रधानमंत्री और चिराग के बीच उस तरह की गर्मजोशी नहीं दिखी. उनके बजाय पीएम उपेंद्र कुशवाहा को ज्यादा तरजीह देते दिखे. चिराग के चुनाव लड़ने के फैसले पर भी बीजेपी की नपीतुली प्रतिक्रिया रही है.

हालांकि एक मौके पर डिप्टी सीएम विजय सिन्हा ने इशारों इशारों में उन पर निशाना भी साधा था. अरविंद शर्मा का मानना है कि चिराग पासवान के चुनाव लड़ने से बीजेपी को कोई फायदा नहीं होने जा रहा. उलटे उनको नुकसान होने की संभावना है, क्योंकि इससे जदयू के कोर वोटर्स में ये मैसेज जाएगा कि बीजेपी फिर से नीतीश कुमार को डैमेज करना चाहती है.

चिराग पासवान चुनाव लड़ेंगे या नहीं लड़ेंगे ये तो आने वाले दिनों में तय हो जाएगा. लेकिन एक बात तो तय है कि उन्होंने बिहार का राजनीतिक तापमान जरूर बढ़ा दिया है. और पोल सर्वे में उनकी बढ़ती लोकप्रियता इस बात की तस्दीक कर रहे हैं.

वीडियो: चिराग पासवान ने NDA नेताओं पर परिवारवाद का आरोप लगाते हुए क्या कहा?

Advertisement