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सलीम दुर्रानी, ऑन डिमांड सिक्स मारने वाला क्रिकेटर जो अफ़ग़ानिस्तान से आया था

वो खिलाड़ी जिसके पैदा होते ही पिता ने क्रिकेटर बनने का ऐलान कर दिया था

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उनकी दरियादिली की वजह से लोग उनको 'शहजादा सलीम' कहकर बुलाते थे.
सलीम अज़ीज़ दुर्रानी. नाम सुनते ही एक घंटी बजती है. एक खूब चर्चित बात की याद. दर्शकों की डिमांड पर छक्के लगाने वाला क्रिकेटर. लेकिन सलीम दुर्रानी के हिस्से की शोहरत यहीं खत्म नहीं हो जाती. 
नीली आंखों वाला वो क्रिकेटर सबका चहेता था. अफ़गानिस्तान में पैदा होकर इंडिया के लिए खेलने वाला इकलौता क्रिकेटर. खुशमिजाज इंसान. समय के बहाव के साथ बहने वाला. 13 सालों के इंटरनेशनल करियर में 29 टेस्ट खेले. 1202 रन बनाए. 75 विकेट लिए. वो इससे कहीं ज्यादा खेल सकते थे, लेकिन अच्छे खेल के बावजूद उन्हें बार-बार टीम से ड्रॉप किया गया. 1973 में मुंबई टेस्ट की पहली पारी में 73 जबकि दूसरी पारी में 37 रन बनाए. वो इससे आगे खेलने की काबिलियत रखते थे. लेकिन उन्हें इसके बाद कभी टीम में चुना नहीं गया.
11 दिसंबर 2019 को सलीम दुर्रानी का जन्मदिन होता है. एक नजर उनके जीवन के कुछ किस्सों पर-
काबुल टू जामनगर
दुर्रानी बताते हैं कि उनका जन्म खुले आसमान के नीचे हुआ था. काबुल से खैबर जाने के दौरान उनकी मां के पेट में दर्द शुरू हुआ था. तब सलीम पैदा हुए. जब वो 3 साल के थे, उनका परिवार सौराष्ट्र के जामनगर में आकर बस गया. इसके बाद सलीम दुर्रानी कभी वापस अफ़गानिस्तान नहीं जा पाए.
Saleem Durani
अफ़ग़ानिस्तान टीम के पहले टेस्ट मैच के दौरान सलीम दुर्रानी. (फोटो: ट्विटर)

जब अफ़गानिस्तान की क्रिकेट टीम बेंगलुरु के एम. चिन्नास्वामी स्टेडियम में अपना पहला टेस्ट मैच खेलने उतरी, सलीम दुर्रानी वहां मौजूद थे. बड़ी गर्मजोशी से उन्होंने अफ़गान टीम से मुलाकात की. थोड़े जरूरी टिप्स बांटे. बीसीसीआई ने उनके लिए स्पेशल इन्विटेशन भेजा था. अफ़गानिस्तान की क्रिकेट टीम आज जिस आक्रामक क्रिकेट के दम पर दुनिया भर में धूम मचा रही है, सलीम दुर्रानी ने उसकी झलक दशकों पहले दिखा दी थी.
पैदा होते ही क्रिकेटर बनने का ऐलान
रिचर्ड हेलर और पीटर ओबोर्न की लिखी किताब ‘व्हाइट ऑन ग्रीन - ए पोर्ट्रेट ऑफ़ पाकिस्तान क्रिकेट’ में एक दिलचस्प किस्से का ज़िक्र है,
जब सलीम दुर्रानी का जन्म हुआ तो पिता अब्दुल अज़ीज़ दुर्रानी ने बच्चे की आंखों के सामने से क्रिकेट की एक नई गेंद घुमाई. और खूब धूम-धड़ाके से ऐलान किया कि वो एक टेस्ट क्रिकेटर के पिता बन गए हैं.
भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के दौरान अब्दुल अज़ीज़ दुर्रानी कराची चले गए. जाते-जाते उनकी एक कीमती चीज छूट गई. उनका बेटा सलीम. 13 साल का बालक. जिसे वो टेस्ट क्रिकेटर बनने के लिए तैयार कर रहे थे. उनके रिश्तेदारों ने सलीम की क्रिकेट की तालीम पर असर नहीं पड़ने दिया. सलीम ने भी उनका सपना जीना जारी रखा. क्रिकेट सीखा, खूब सीखा और इंडिया के लिए खेले.
Haneef Mohammad
हनीफ़ मोहम्मद, जिनके नाम पाकिस्तान की तरफ से एक पारी में सबसे ज्यादा रन बनाने का रिकॉर्ड है.

अब्दुल अज़ीज़ पाकिस्तान जाते हुए क्रिकेट वाला नुस्खा साथ लेकर गए थे. पाकिस्तान में दर्जनों होनहार क्रिकेटर तैयार किए. सबसे खास नाम था - हनीफ़ मोहम्मद. अब्दुल अज़ीज़ पाकिस्तान में मास्टर अज़ीज़ के नाम से मशहूर हुए. बेटे सलीम से उनकी मुलाकात 14 साल बाद हुई. 1961-62 में इंग्लैंड के खिलाफ कलकत्ता टेस्ट के दौरान. वही उन दोनों की आखिरी मुलाकात साबित हुई.

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47 सालों बाद मिला अर्जुन अवॉर्ड
1961 में अर्जुन अवॉर्ड की शुरुआत हुई. स्पोर्ट्स में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को बढ़ावा देने के इरादे से. क्रिकेट के खेल में पहला अर्जुन अवॉर्ड सलीम दुर्रानी को मिला. 26 जनवरी 1962 को ये अवॉर्ड दिया जाना था. सलीम दुर्रानी उस वक्त वेस्टइंडीज के दौरे पर थे.
वो उस वक्त ये अवॉर्ड ले नहीं पाए. भूले भी ऐसा कि 47 बरस बीत गए. 2009 में खेल मंत्रालय को याद आई. तब जाकर एक फ़ंक्शन आयोजित कर दुर्रानी को अर्जुन अवॉर्ड दिया गया. इस बीच में जाने कितने क्रिकेटरों को अर्जुन अवॉर्ड मिल गया, दुर्रानी को लंबा इंतज़ार करना पड़ा.
नो दुर्रानी, नो टेस्ट
स्टेडियम के जिस कोने से छक्के की डिमांड की जाती, दुर्रानी उस तरफ गेंद उछाल देते थे. कई इंटरव्यूज में उनसे ये सवाल पूछा गया -
दुर्रानी साहब, ऐसा कैसे कर लेते थे आप?
उनका जवाब रहता -
डिमांड पर चौके और छक्के लगाना कोई बड़ी बात नहीं है. बस आपको मेहनत करनी होती है. और इसकी शुरुआत बचपन से ही हो जाती है. मेरे पिता खुद एक क्रिकेटर थे. इसका मुझे फ़ायदा मिला.
दुर्रानी के दीवानों की कभी कमी नहीं रही. उस दौर में उनके बिना इंडियन टीम की कल्पना नहीं की जा सकती थी. 1973 में कानपुर में एक टेस्ट खेला जा रहा था. उस मैच के लिए सलीम दुर्रानी को टीम में शामिल नहीं किया गया था. दर्शक इतने गुस्से में थे कि अलग-अलग किस्म के प्लेकार्ड लेकर पहुंचे थे. एक कार्ड पर लिखा था- नो दुर्रानी, नो टेस्ट.
अंकल सलीम
सुनील गावस्कर तब उतने फेमस नहीं हुए थे. वो एक रणजी मैच खेलकर मद्रास लौट रहे थे. ट्रेन का सफ़र था. उनके साथ थे सलीम दुर्रानी. गावस्कर के पास अपना बिस्तर नहीं था. सलीम दुर्रानी ने टीटी से कहकर एक एक्सट्रा कंबल-तकिया मंगवा दिया. गावस्कर फिर भी ठंड से कांप रहे थे. सलीम दुर्रानी ने अपना कंबल ये कहकर दे दिया कि अभी उन्हें सोने में देर है. सुबह जब गावस्कर की नींद खुली तो देखा सलीम दुर्रानी ठिठुरते हुए सोए हुए हैं. उस दिन से सुनील गावस्कर उनको अंकल सलीम के नाम से बुलाने लगे.
Sunil Gavaskar
सुनील गावस्कर ने अपनी किताब 'सनी डेज' में उनसे जुड़े कई किस्सों का ज़िक्र किया है.

1970-1971 में इंडियन टीम वेस्टइंडीज के दौरे पर गई. पोर्ट ऑफ़ स्पेन. दूसरे टेस्ट की दूसरी पारी. सलीम दुर्रानी ने क्लाइव लॉयड और गैरी सोबर्स को दो लगातार गेंदों पर आउट किया. मैच का पासा पलट गया. सोबर्स को आउट करने के बाद दुर्रानी एक मिनट तक उछलते ही रहे. सुनील गावस्कर ने उनको रोका -
अंकल, ऐसे ही कूदते रहोगे या मैच आगे बढ़ने दोगे?
इंडिया ने वो मैच जीता. सीरीज 1-0 के अंतर से अपने नाम की थी. वेस्टइंडीज की अजेय मानी जाने वाली टीम को उसके घर में मात देना ऐतिहासिक था.
दुर्रानी जब क्रिकेट से रिटायर हुए तो उन्हें बाबूराम इशारा की फिल्म ‘चरित्र’ में काम करने का ऑफ़र आया. परवीन बॉबी के साथ. इस फ़िल्म में काम करने के लिए उन्हें 18 हजार रुपये मिले थे. उनके दोस्तों ने पार्टी की फ़रमाइश की. दुर्रानी ने कहा,
हमारे पास पैसे ही नहीं हैं. जो थे, वो हमने परवीन बॉबी पर लुटा दिए.
Charitra Movie
बाबूराम इशारा की फ़िल्म 'चरित्र'.

दुर्रानी ऐसे ही हैं. मस्त मलंग. ये बात उनके करियर में भी झलकती है. आंकड़े भले ही इस बात की गवाही नहीं देते, लेकिन उनके साथ खेलने वाले और उनको खेलते देखने वाले एक बात पर सहमत हैं कि उनसे शानदार एंटरटेनर ढूंढ़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.


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