पवन करण हमारे समय के जाने-माने रचनाकार हैं. कवि हैं. सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक भी. इनकी कविताएं अपनी विविधता के लिए जानी जाती हैं. ज़िंदगी के हर पहलू को, उसके तमाम रंगों को उनकी कविताओं में देखा जा सकता है. समाज, राजनीति, साहित्य के लिए जागरुक और चिंतित लेखक के नज़रिए को सामने लाती हैं ये कविताएं. पवन के पांच कविता संग्रह प्रकाशित हैं. कविता संग्रह 'स्त्री मेरे भीतर' के मलयालम, मराठी, उड़िया, पंजाबी, उर्दू और बांग्ला भाषाओं में अनुवाद भी हुए हैं. इसके पंजाबी अनुवाद को साहित्य अकादमी सम्मान से नवाज़ा जा चुका है. इनकी नई कविताएं आईं हैं जिसे वाणी प्रकाशन ने छापा है. कविता संग्रह का नाम है- कल की थकान. यहां पढ़िए इस नए संग्रह से कुछ ताज़ी कविताएं-
प्रतीक्षा से उपजी थकान को प्रेम ने बांहों में भर लिया है
पढ़िए पवन करण के नए कविता संग्रह 'कल की थकान' से कुछ कविताएं

उसका उदास हाथ अपने हाथों में ले लो
उसकी हताश चाल में मिला दो अपनी चाल
उसके दिमाग़ से उस फन्दे को खोल दो
जिसे वह भीतर-ही-भीतर बुन रहा है
उस रास्ते में हाथ जोड़कर खड़े हो जाओ
जो उसे रेल की पटरियों तक लेकर जाता है
घड़ी के कांटे से भी तेज़ गाति से
मौत की तरफ़ भाग रहा है किसान इन दिनों
वो तब तक नहीं रुकेगा जब तक
हम अपनी परोसी हुई थाली में
उसे पकड़कर खाने के लिए नहीं बिठा लेंगे
अरे देखो, आधी रात घर से
वह चुपचाप कहां जा रहा है?
इतिहास
इतिहास के शरीर से
पुराने उतारकर
उसे पहनाये जा रहे हैं
नये कपड़े
उसकी आंखों पर
चढ़ाया जा रहा है
चश्मा नया
उसके सफ़ेद बालों पर
किया जा रहा है
ख़िज़ाब
उसके हाथ से छीनकर
दूर फेंक दी गयी है
उसकी लाठी
आगे बढ़ने के लिए
उसके हाथों में
अब त्रिशूल है
सब बदला जा रहा है
सब बदले की ओर जा रहा है.
थकान
थकान मेरे पैरों में घिसट रही है
मेरी ज़ुबान में लड़खड़ा रही है
मेरी पलकों में हो रही है बोझिल
जीत में मिली थकान को
ख़ुशी लपककर चाट चुकी है
प्रतीक्षा से उपजी थकान को
प्रेम ने बांहों में भर लिया है
इतिहास में सुस्ताती थकान
विवादास्पद बना दी गयी है
चलना शुरू करने जितनी नहीं
रोना शुरू करने जितनी पुरानी
कल की थकान मेरे कल में उतर रही है.
चाहत
किसी और ने नहीं अपने धर्म को यह अधिकार
मैंने ही दिया है कि वह जब चाहे
सूखी लकड़ी की तरह झोंक दे मुझे आग में
अपनी तलवार से किसी पशु की
गरदन की तरह काट दे वह मेरा भी गला
और मेरा ख़ून बहा दे नालियों में
उस पिंजरे में जाकर मैं ख़ुद ही बैठा हूं
जिससे बाहर निकलकर उड़ने की सोचना
अपने आपसे घृणा करना है
अपनी क़ीमत पर अपने धर्म को
अपना मालिक बनाकर मैं बहुत ख़ुश हूं
मैं अपने मालिक को दुनिया के
सब मालिकों में सबसे ऊपर देखना चाहता हूं
मैं चाहता हूं कि मेरे मालिक के पास
मेरी तरह अपनी ज़िन्दगी से खेलने का अधिकार
सौंप देने वालों की संख्या भी सबसे ज़्यादा हो.
पुस्तक का नाम : कल की थकान लेखक : पवन करण प्रकाशक : वाणी प्रकाशन ऑनलाइन उपलब्धता : वाणी प्रकाशन मूल्य: 195 (पेपर बैक)
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‘दबा रहूंगा किसी रजिस्टर में, अपने स्थायी पते के अक्षरों के नीचे’
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