कोरोना महामारी के दौरान चर्चा में आई DOLO दवा फिर से खबरों में है. लेकिन इस बार वजह पहले से बिल्कुल उलट है. DOLO टैबलेट्स बनाने वाली फार्मा कंपनी माइक्रो लैब्स (Micro Labs) पर आरोप लगा है कि उसने DOLO 650mg दवा लिखने के लिए डॉक्टरों को 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा के गिफ्ट दिए थे. इधर कंपनी ने इन आरोपों से इनकार किया. कंपनी का कहना है कि कोविड के चरम होने पर उसने 350 करोड़ रुपये का बिजनेस किया, ऐसे में हजार करोड़ रुपये खर्च करना तो असंभव था.
क्या है डोलो 650 का मामला, जिसकी कंपनी पर हजार करोड़ की घूस देने का आरोप लगा है?
इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने कंपनी के 36 ठिकानों पर छापा मारा था. कंपनी पर दवा की बिक्री बढ़ाने के लिए डॉक्टरों को घूस देने का आरोप लगा है.

माइक्रो लैब्स के ऊपर ये आरोप किसी और ने नहीं, बल्कि केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) ने लगाए हैं. इसी को आधार बनाकर फेडरेशन ऑफ मेडिकल एंड सेल्स रिप्रजेंटेटिव्ज एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FMSRAI) ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की. जिसमें उन्होंने मांग की है कि कंपनी के खिलाफ कार्रवाई की जाए और आगे से ऐसी कोई अनियमितता न होने पाए, इसलिए केंद्र सरकार को उपयुक्त निर्देश दिए जाएं.
कोर्ट ने भी इस मामले में चिंता जाहिर की है और पीठ की अगुवाई कर रहे जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने यहां तक कहा,
'आप जो कह रहे हैं वो काफी चिंताजनक है. जब मैं कोरोना संक्रमित था तो मुझे भी यही लेने के लिए कहा गया था. यह एक गंभीर मामला है.'
अब इस मामले की अगली सुनवाई 29 सितंबर को होगी. कोर्ट ने कहा है कि इस बीच केंद्र सरकार अपना पक्ष पेश करें और इसके साथ ही याचिकाकर्ता को भी जवाब देने के लिए कहा गया है. आईए, देखते हैं कि ये पूरा मामला क्या है.
क्या है DOLO 650 mgबैंगलोर की एक कंपनी है माइक्रो लैब्स . यही DOLO नाम की दवा बनाती है, जिसमें 500 mg और 650 mg पैरासीटामोल होता है. ये दवा बुखार और दर्द में ली जाती है. ये बुखार और दर्द को कम करने में मदद करती है.
ये दवा तमाम काउंटर्स पर आसानी से उपलब्ध होती है. DOLO के अलावा कई अन्य कंपनियों के भी पैरासीटामोल टैबलेट्स मिलते हैं. लेकिन कोरोना महामारी के दौरान इसे बुखार और दर्द की 'बेहद कारगर' दवा बताया जाने लगा. नतीजन, अन्य ब्रॉन्ड्स के मुकाबले डोलो-650 की बिक्री में बहुत तेजी से बढ़ी.
अब राष्ट्रीय स्तर के ट्रेड यूनियन FMSRAI ने आरोप लगाया है कि क्योंकि माइक्रो लैब्स ने डॉक्टरों को गिफ्ट के रूप में रिश्वत दी थी, इसलिए डोलो टैबलेट्स की इतनी ज्यादा बिक्री हुई.
दरअसल, पिछले महीने 6 जुलाई को इनकम टैक्स के अधिकारियों ने माइक्रो लैब्स से जुड़े नौ राज्यों के 36 ठिकानों पर छापेमारी की थी. इसके अलावा राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने इनकम टैक्स के अधिकारियों से उन डॉक्टरों की जानकारी मांगी है, जिन्होंने कथित तौर पर डोलो 650 लिखने के लिए कंपनी से रिश्वत ली थी. एनएमसी ने कहा है कि ऐसे डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.
याचिका में क्या कहा गया?FMSRAI ने कहा कि 500 एमजी तक डोलो की जो दवा होती है, उसे रेगुलेट किया जाता है. लेकिन 500 एमजी से अधिक वाली दवा का दाम मैन्यूफैक्चरर अपने हिसाब से तय करता है. संस्था ने आरोप लगाया कि इसलिए डॉक्टरों को रिश्वत दी गई थी कि वे डोलो की 650 एमजी वाली दावा लिखें ताकि कंपनी को ज्यादा मुनाफा हो.
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में दायर इस याचिका में सिर्फ डोलो बनाने वाली कंपनी पर ही निशाना नहीं साधा गया है. इसमें कहा गया है कि तमाम फार्मास्यूटिकल कंपनियां अपनी दवाओं की बिक्री बढ़ाने के लिए डॉक्टरों को रिश्वत दे रही हैं. उन्होंने कहा कि इससे आम लोगों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है और यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीने के अधिकार का खुला उल्लंघन है.
संगठन ने मांग की है कि केंद्र सरकार यूनिफॉर्म कोड ऑफ फार्मास्यूटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिसेस (कोड) को कानूनी आधार देते हुए उसे उचित तरह से लागू करे, ताकि ऐसे मामलों की मॉनिटरिंग की जा सके, सिस्टम में पारदर्शिता और जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराया जा सके.
अभी क्या हैं नियम?इस समय देश में भारतीय चिकित्सा परिषद (व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता) नियम, 2002 लागू है, जिसमें यह प्रावधान किया गया है कि डॉक्टर्स फार्मास्यूटिकल कंपनियों से गिफ्ट और मनोरंजन के सामान, यात्रा सुविधाएं, आवाभगत, नकद इत्यादि नहीं ले सकते हैं.
लेकिन ये नियम सिर्फ डॉक्टरों पर ही लागू होते हैं, दवा कंपनियों पर नहीं. यही वजह है कि जब इस तरह के मामले सामने आते हैं, तो डॉक्टरों पर कई बार कार्रवाई हो जाती है, उनके लाइसेंस वगैरह कैंसिल कर दिए जाते हैं लेकिन फार्मा कंपनियां बच निकलती हैं.
वहीं, अगर दवाओं के मूल्य की बात करें तो यह ड्रग्स (प्राइस कंट्रोल) ऑर्डर के तहत निर्धारित की जाती है. हालांकि यह कुछ जरूरी दवाओं तक ही सीमित है. पिछले महीने नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी ने आदेश जारी कर एक पैरासीटामोल टैबलेट की कीमत 2.88 रुपये तय की है.
इस तरह 500 एमजी वाले पैरासीटामोल टैबलेट को प्राइस कंट्रोल के अंतर्गत लाया गया है, लेकिन 650 एमजी अब भी इससे बाहर है. इसके कारण फार्मा कंपनियां अपने हिसाब से इसका मूल्य तय करती हैं.
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