कल तक भारत-पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता कराने का दम भरने वाले अमेरिका के सुर बदलने लगे हैं. अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रूबियो अपने उस बयान से किनारा करते दिखे हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत-पाकिस्तान के विवादों के समाधान के लिए निष्पक्ष जगह पर बातचीत की जा सकती है. न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स ने खबर छापी है कि मार्को रूबियो ने यूनाटेड किंगडम और जर्मनी से वैश्विक मुद्दों पर चर्चा की. इस दौरान उन्होंने भारत-पाकिस्तान तनाव पर भी बात भी.
भारत-पाकिस्तान को 'न्यूट्रल साइट' पर लाने की बात की थी, अब मार्को रूबियो के सुर बदले
10 मई को अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने भारत-पाकिस्तान के बीच सीज़फायर का दावा करने के साथ यह भी कह दिया कि दोनों देश मध्यस्थता के लिए राज़ी हो गए हैं.

खबर के मुताबिक रूबियो और UK के विदेश मंत्री डेविड लैमी ने भारत-पाकिस्तान पर चर्चा के दौरान दोनों देशों से संघर्ष विराम बनाए रखने और बातचीत जारी रखने की अपील की है. इस दौरान रूबियो ने लैमी से यह भी कहा, “अमेरिका ने भारत और पाकिस्तान के बीच सीधी बातचीत का समर्थन किया तथा संबंध सुधारने के लिए निरंतर कोशिश करने की वकालत की है.”
यानी रॉयटर्स की माने तो अमेरिका ने UK से कहा कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान को आपसी बातचीत में विवाद सुलझाने के लिए प्रोत्साहित किया. लेकिन मार्को रूबियो ने दो दिन पहले अपने बयान में कुछ अलग ही दावा कर दिया था.
10 मई को भारत और पााकिस्तान ने कुछ ही मिनटों के अंतराल पर इस बात की घोषणा की थी कि दोनों देश सीज़फायर के लिए सहमत हो गए हैं. लेकिन इससे पहले कि भारत या पाकिस्तान इस बात का एलान करते, अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया साइट ट्रुथ पर सीज़फायर का दावा कर दिया. और कुछ ही मिनट बाद विदेश मंत्री रूबियो ने X पर एक पोस्ट लिखी और इस बात का दावा कर दिया कि उन्होंने और अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वैंस ने भारत और पाकिस्तान से घंटों बात कर सीज़फायर पर सहमति बनवा दी.
मगर इससे भी बड़ा दावा रूबियो ने यह कर दिया कि भारत और पााकिस्तान आपस में बात करने के बजाए मध्यस्ता के जरिए बात करने को राज़ी हो गए हैं. उन्होंने लिखा-
मैं यह बताते हुए खुश हूं कि भारत और पाकिस्तान की सरकारों ने तुरंत संघर्ष विराम करने और न्यूट्रल साइट पर सभी मुद्दों पर बातचीत शुरू करने पर सहमति जताई है.
यहां रूबियो ने जो 'न्यूट्रल साइट' का शब्द का इस्तेमाल किया है, उस पर काफी विवाद पहले ही हो चुका है.
दरअसल, बांग्लादेश बनने के बाद 2 जुलाई 1972 को भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता हुआ. इस समझौते का सबसे अहम बिंदु था- भारत और पाकिस्तान कश्मीर समेत हर विवाद आपसी बातचीत से ही सुलझाएंगे. किसी तीसरी पार्टी की मध्यस्थता का सहारा नहीं लिया जाएगा.
और रूबियो ने 10 मई को अपनी पोस्ट में 'न्यूट्रल साइट' का चालाकी से इस्तेमाल कर शिमला समझौते पर ही सवाल उठा दिए थे. इसके अलावा यह भी सवाल उठा कि भारत सरकार भी क्या मध्यस्थता के लिए राज़ी हो गई है.
अब रॉयटर्स की खबर ने रूबियो के इन दावों का खुद ही खंडन कर दिया.
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