मणिपुर में लंबे समय से हिंसा जारी है. इस बीच 1 अगस्त को राहत भरी खबर सामने आई कि मैतेई और हमार समुदायों के प्रतिनिधियों ने मणिपुर के हिंसा प्रभावित जिरीबाम जिले में शांति बहाली के लिए हर संभव प्रयास करने पर सहमति व्यक्त की है. लेकिन इस शांति समझौते के अगले दिन ही आगजनी की घटना सामने आई है.
शांति वार्ता के अगले दिन ही मणिपुर में हिंसा, जिरीबाम में मैतेई परिवार का घर जलाया
Manipur: मैतेई और कुकी समूह ने जिले के लिए शांति समझौते पर सहमति दर्ज की, अगले ही दिन हिंसा भड़की.

इंडियन एक्सप्रेस की सुकृता बरुआ की रिपोर्ट के मुताबिक, शुक्रवार 2 अगस्त की रात आगजनी की घटना में एक मैतेई परिवार का घर जला दिया गया. यह घटना जिरीबाम जिले के लालपानी में हुई, जो बंगाली बहुल इलाका है. ये इलाका सेजांग नामक कुकी गांव के करीब है.
इस घटना पर जिरीबाम के एसपी एम. प्रदीप सिंह ने बताया,
“हमने घटनास्थल पर CRPF के साथ पुलिस की एक संयुक्त टीम भेजी है. वहां कुछ उकसावे की कार्रवाई हुई लेकिन हमने स्थिति को नियंत्रित कर लिया है. हम इस बात पर विचार करने के लिए बैठक कर रहे हैं कि ऐसी घटनाओं को दोबारा होने से कैसे रोका जाए.”
रिपोर्ट के मुताबिक, गुरुवार 1 अगस्त को मैतेई और हमार हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले जिरीबाम के नौ सिविल सोसाइटी संगठनों के नेताओं के साथ ही थाडौ, पैतेई और मिज़ो प्रतिनिधियों ने कछार में एक बैठक की. हमार, थाडौ, पैतेई और मिज़ो समुदाय सभी ज़ो समूह के अंतर्गत आते हैं, जो वर्तमान में मणिपुर में मैतेई समूह के साथ संघर्ष में हैं.
इस बैठक को CRPF ग्रुप सेंटर में जिला कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक, जिरीबाम के DIG, CRPF और 39 असम राइफल्स और 87 बटालियन CRPF के कमांडेंट द्वारा संचालित किया गया था. बैठक में सभी प्रतिनिधि तीन प्रमुख प्रस्तावों पर सहमत हुए.
- दोनों पक्ष सामान्य स्थिति लाने और गोलीबारी और आगजनी की घटनाओं को रोकने के लिए पूर्ण प्रयास करेंगे.
- जिले में सक्रिय सुरक्षा बलों के साथ सहयोग करेंगे.
- नियंत्रित और समन्वित आंदोलन करेंगे.
रिपोर्ट के मुताबिक, जिरीबाम के दोनों पक्षों के प्रतिनिधियों के बीच यह इस साल हुई दूसरी ऐसी बैठक थी. पहली बैठक जिरीबाम में 1 जुलाई को हुई थी. एसपी प्रदीप सिंह के मुताबिक, बैठक के अगले दिन ही हुई आगजनी की घटना को शांति समझौतों के विरोध के तौर पर देखा जा रहा है. उन्होंने कहा,
“एक वर्ग है जो नहीं चाहता कि शांति आए. आगे का रास्ता चुनौतीपूर्ण है, हम रुकेंगे नहीं, हम इस दिशा में काम करते रहेंगे.”
1 अगस्त को हुई शांति बैठक के एक दिन बाद, केंद्रीय हमार इनपुई जो हमार जनजाति का शीर्ष निकाय है, ने शांति पहल में भाग लेने के लिए जिरीबाम इकाई में अपने प्रतिनिधियों की आलोचना की थी. हमार इनपुई, हमार छात्र संघ और हमार नेशनल यूनियन जैसे निकायों की जिरीबाम स्थित इकाइयों के सदस्य शांति पहल से संबंधित इन बैठकों में भाग ले रहे हैं. एक बयान में, हमार इनपुई ने जिरीबाम इकाइयों की पहल को "अमान्य और शून्य" घोषित किया और जिरीबाम जिले में इकाइयों को भंग कर दिया. बयान में कहा गया,
“हमार इनपुई आने वाले समय में मणिपुर से ज़ोहनाथलाक लोगों को पूरी तरह से अलग करने के लिए सामूहिक हितों और आंदोलन को एकजुट करने और मजबूत करने के अपने रुख पर दृढ़ है. हम कभी भी उस विभाजनकारी मंडली के भागीदार नहीं बनेंगे जो झूठी शांति की बात करता है. यह उस महान उद्देश्य को विभाजित करने में विफल है जिसके लिए हम सामूहिक रूप से लड़ रहे हैं. हमार इनपुई मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के विभाजनकारी सांप्रदायिक खेल के खिलाफ दृढ़ हैं.''
बता दें, जिरीबाम मिश्रित आबादी वाला एक छोटा सा जिला है. यहां सबसे बड़े जातीय समूह बंगाली मुस्लिम और हिंदू हैं. इसके बाद मैतेई आते हैं. जिरीबाम में कुकी-ज़ोस, नागा, मैतेई पंगल और चाय जनजातियां भी शामिल हैं. राज्य के अन्य हिस्सों में हुई हिंसा के बावजूद, जिरीबाम में इस साल 6 जून तक अपेक्षाकृत शांति बानी रही.
हाल के तनाव के कारण, जिरीबाम शहर और उसके आसपास रहने वाले हमार और कुकी कछार की ओर चले गए हैं. जबकि बोरोबेकरा उपखंड में हमार-बहुसंख्यक पहाड़ियों के करीब रहने वाले मैतेई परिवार जिरीबाम में राहत शिविरों में आ गए हैं. जिरीबाम में हमार समूह के एक नेता ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि कछार में विस्थापित और रहने वाले उनके लोगों की समस्याओं के कारण उन्हें शांति वार्ता में भाग लेने की जरूरत पड़ी. उन्होंने कहा,
“हम यहां कछार में दो महीने से अधिक समय से हैं. हम आर्थिक रूप से खराब स्थिति में हैं. बच्चे अपने स्कूल जाना चाहते हैं, लोग अपना व्यवसाय फिर से शुरू करना चाहते हैं. हमें कोई रास्ता निकालना होगा और इसे बातचीत की मेज पर सुलझाना होगा. लेकिन अभी भी ऐसे समूह हैं जो चर्चा में शामिल नहीं हुए हैं, इसलिए इसकी गारंटी नहीं है कि आगे कोई हिंसा नहीं होगी.''
जिरीबाम के हमार नेता ने ये भी कहा कि उन्हें डर है कि कुकी-ज़ो समूहों और राज्य और केंद्र सरकारों के बीच अंतिम समझौते की स्थिति में उन्हें छोड़ दिया जाएगा. उन्होंने कहा,
“हम पहाड़ों में नहीं रहते हैं. हम जिरीबाम में आदिवासियों के लिए कुछ रियायतें चाहते हैं ताकि जिले के भीतर हमारी स्थिति बेहतर हो सके, लेकिन हमें डर है कि प्रशासन हमें पीछे छोड़ सकता है.”
रिपोर्ट के मुताबिक, जिरीबाम जिला न केवल जनसांख्यिकीय रूप से बल्कि भौगोलिक रूप से भी अलग है. मणिपुर राज्य की संरचना एक केंद्रीय मैतेई-बहुल घाटी के रूप में की गई है, जो सभी दिशाओं में पहाड़ियों से घिरी हुई है, जो विभिन्न कुकी-ज़ो, नागा और अन्य जनजातियों का घर हैं. जिरीबाम इस भूगोल के बाहर एक मैदानी क्षेत्र है जो राज्य के सबसे पश्चिमी छोर पर स्थित है, जो नागा बहुल तामेंगलोंग जिले और हमार बहुसंख्यक फ़िरज़ॉल जिले की पहाड़ियों के पार असम की बराक घाटी से सटा हुआ है.
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