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बांधने की कोशिश की तो मर जाएगी भाषा : अविनाश दास

अविनाश ने पहले भी कल्पना का समर्थन करते हुए कहा था कि उनके साथ अछूत-सा बर्ताव हो रहा है.

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फोटो - thelallantop
निर्देशों के पीछे खड़ा कोरस बहुत नीरस होता है. वैविध्य के बीच से समाज अपने हिस्से का फूल चुन लेता है.
कल्पना का दावा है कि उन्हें स्त्री होने की वजह से निशाने पर लिया जा रहा है.
कल्पना का दावा है कि उन्हें स्त्री होने की वजह से निशाने पर लिया जा रहा है.

हर भाषा में बहुजन और अभिजात की अभिव्यक्ति के बीच संघर्ष बहुत प्राचीन है. मैं अक्सर मीरा का उदाहरण देता हूं. स्त्री के लिए ओट की हिमायत करने वाले समाज को मीरा ने निशाना बनाते हुए कहा, "लोकलाज कुल कानि जगत की दई बहाय जस पानी". महंथों को गुस्सा आया और उन्होंने कहा कि मीरा पागल हो गई है, बौरा गई है. मीरा भी कहां हथियार डालने वाली थी. उसने कहा, "अपने घर का परदा कर लो मैं अबला बौरानी". आज भाषा को मीरा की तरह परदे में रहने की वकालत करने वाले सूरमा नए ज़माने के भाषाई महंथ हैं. ये भाषा का स्तर गिराएंगे, उसे सीमाओं में बांधेंगे और अंतत: दम तोड़ देने पर मजबूर कर देंगे.
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मेरी मातृभाषा मैथिली है. मैंने अपने पिता या मां या बहनों से कभी हिंदी में बात नहीं की. मेरी पत्नी की मातृभाषा भोजपुरी है और वह भी अपने बहन-भाइयों से भोजपुरी में ही बात करती हैं. हम दोनों अपनी-अपनी मातृभाषाओं से प्रेम करते हुए एक छत के नीचे प्रीतिपूर्वक निबाह रहे हैं. भाषा के घूंघट में चेहरा छिपा कर भाषा पर हमले का मसला नहीं, मसला विचार का है. इसलिए जो लोग यह मुनादी कर रहे हैं कि चूंकि मेरी मातृभाषा मैथिली है, इसलिए मैं भोजपुरी संगीत को कथित तौर पर डीग्रेड करने वाली कल्पना को डिफेंड कर रहा हूं. उन्हें यह समझना चाहिए कि सवाल कल्पना बनाम संस्कृति का नहीं बल्कि संस्कृति की उदार समझ बनाम संस्कृति की संकीर्ण समझ का है. मैथिली में कांचीनाथ झा किरण, राजकमल चौधरी, ललित, जीवकांत, सोमदेव, कुणाल, अग्निपुष्प, तारानंद वियोगी जैसे कई और लेखकों ने समझ की इसी ज़मीन पर महंथों से शास्त्रार्थ किया और अपनी कीर्ति-पताकाएं फहरायीं.
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गंगा मुक्ति आंदोलन के दौरान एक नारा बड़ा लोकप्रिय हुआ था, गंगा को अविरल बहने दो. भाषा के लिए भी यह हमेशा प्रासंगिक रहने वाला नारा है - भाषा को अविरल बहने दो. बांधने की कोशिश की जाएगी, तो वह ऐसे ही मर जाएगी, जैसे नदियां मर रही हैं. मेरे लिए फिलहाल यह भाषा-प्रसंग समाप्त!


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