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कामिनी रॉय: भारत की पहली ऑनर्स ग्रेजुएट महिला, जिन्हें गूगल ने डूडल बनाकर याद किया

महिलाओं को वोटिंग का अधिकार दिलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

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कामिनी रॉय ने महिलाओं को मतदान का अधिकार दिलाने के लिए एक लंबा आंदोलन चलाया (स्क्रीनशॉट- Google)
12 अक्टूबर 2019. गूगल ने एक डूडल बनाया है. डूडल में क्या है? हाथ में किताब लिए एक महिला. जिनके पीछे ढेर सारी महिलाएं खड़ी हैं. तस्वीर में दिख रही महिला का नाम है कामिनी रॉय. आज उनका 155वां जन्मदिन है. इसीलिए गूगल ने डूडल बनाकर उन्हें याद किया है. कामिनी बंगाल की कवियत्री थीं, अध्यापक भी और समाजसेविका भी. वो भी उस समय में जब महिलाओं के लिए पढ़ाई-लिखाई दूरी की कौड़ी थी. उस समय कामिनी ग्रेजुएट ऑनर्स की डिग्री हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला थीं. उन्होंने महिलाओं के मतदान के अधिकारों के लिए भी लड़ाई लड़ी. कामिनी रॉय का जन्म अविभाजित बंगाल के बेकरगंज जिले में 12 अक्टूबर 1864 को हुआ था. अब ये इलाका बांग्लादेश में पड़ता है. पिता चंडी चरण सेन न्यायाधीश थे. जबकि उनके भाई निशीथ चंद्र सेन, कलकत्ता हाईकोर्ट में बैरिस्टर थे. आगे चलकर वे कलकत्ता के मेयर भी बने. कामिनी ने कोलकाता यूनिवर्सिटी के बेथन कॉलेज से संस्कृत ऑनर्स से 1886 में ग्रेजुएशन पूरा किया. इसके बाद कामिनी उसी विश्वविद्यालय में पढ़ाने लगीं. कॉलेज में उनकी मुलाकात अबला बोस से हुई थी. अबला महिलाओं की शिक्षा और विधवाओं के लिए काम करती थीं. अबला से प्रेरित होकर कामिनी रॉय ने भी अपना जीवन महिलाओं के लिए समर्पित करने का फैसला किया. लेखन के अलावा कामिनी समाजसेवा और आजादी की लड़ाई में भी सक्रिय रहीं. बंगाल लेजिस्लेटिव काउंसिल में महिलाओं को भी वोट देने का अधिकार दिलाने के लिए कामिनी ने लंबा संघर्ष किया. उन्हीं के प्रयासों का नतीजा था कि 1926 में महिलाओं को पहली बार वोट डालने का अधिकार मिला. कामिनी रविंद्रनाथ टैगोर से काफी प्रभावित थीं. 1930 में वे बांग्ला साहित्य सम्मेलन की अध्यक्ष बनीं. जबकि 1932-33 में बंगीय साहित्य परिषद की उपाध्यक्ष रहीं. कलकत्ता यूनिवर्सिटी ने उन्हें जगतारिणी स्वर्ण पदक से भी सम्मानित किया था. 27 सितंबर 1933 को हजारीबाग में उनकी मृत्यु हो गई.
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