पश्चिम बंगाल में अगले महीने विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. कांग्रेस ने बीते मंगलवार 75 सीटों की लिस्ट जारी कर दी. जिन पर अपने कंडीडेट उतारेगी. मजे की बात ये कि चुनाव वो लेफ्ट पार्टीज से हाथ मिला कर लड़ेगी. कांग्रेस के टॉप सोर्सेज से पता चला है कि तकरीबन 80 सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशी होंगे. बाकी की 214 सीटें छोड़ रखी हैं. लेफ्ट और बाकी पार्टियों के लिए. अभी उम्मीदवारों के नाम का ऐलान नहीं हुआ है. सोमवार को लेफ्ट फ्रंट ने 116 नामों की लिस्ट जारी की. बाकी भी आती ही होगी.
दो दुश्मनों का है पॉलिटिक्स में मिलन
पता है खास क्या है इस गठबंधन में? रामराज्य जइसी फीलिंग है. शेर बकरी एक्कै घाट का पानी पिएं टाइप. देखो पार्टियों की जो विचारधारा होती है वही उनका खाद पानी है. अगर विचारधारा की दीवार गिरा कर दो पार्टियां हाथ मिला लें तो शेर बकरी एक घाट के हुए न. मान लो जैसे पांच दस साल बाद बीजेपी कांग्रेस से गठबंधन करके सरकार बना ले.
पहली बार कब हुआ टकराव
1957 में पहली बार कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) की सरकार बनी थी केरल में. चीफ मिनिस्टर की कुर्सी पर बैठे ईलमकुलम मनक्कल शंकरन नंबूदरीबाद. 1959 में जवाहर लाल नेहरू के कंट्रोल वाली केंद्र सरकार ने केरल सरकार को डिसमिस कर दिया. नेहरू की बिटिया इंदिरा गांधी ने पापा को बहुत समझाया. कि आप एक जनता द्वारा चुनी गई पार्टी को धकिया कर कुर्सी से उतार रहे हो. फिर से सोच लो. लेकिन सरकार गिरी. राष्ट्रपति शासन लग गया. फिलहाल पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की सरकार है. ये पार्टी 1997 में ममता बनर्जी ने बनाई थी. कांग्रेस से अलग होकर. अब हाल ये है कि कांग्रेस को तृणमूल और CPI(M) दोनों का साथ चाहिए. ऐसा हम नहीं कांग्रेस की सीनियर लीडर कहते हैं. अधीर चौधरी कांग्रेस के स्टेट प्रेसीडेंट हैं. पश्चिम बंगाल से. कहते हैं "ये गठबंधन मजबूरी है. हमारे कार्यकर्ता गठबंधन चाहते हैं. हमने लेफ्ट पार्टीज से बात करके 75 सीटों का ऐलान किया है. सारा काम सर्वसम्मति से हो रहा है."