देश भर में CAA कानून को अमल में लाने के लिए अधिसूचना जारी कर दी गई है. इस बीच पश्चिम बंगाल (West Bengal) और केरल (Kerala) जैसे राज्यों ने कहा है कि उनके यहां CAA लागू नहीं किया जाएगा. लेकिन क्या राज्यों के पास इतना अधिकार है कि वो इस कानून को लागू करने से इनकार कर सकें? संविधान में लिखे नियमों के मुताबिक, क्या CAA से इनकार करना संभव है? अगर कोई राज्य ऐसा करता है तो किस तरह की दिक्कतें आ सकती हैं?
क्या राज्य CAA कानून लागू करने से इनकार कर सकते हैं? एक्सपर्ट की राय जान लीजिए
Indian Citizenship पर फैसला लेने का अधिकार किसके पास है? अगर किसी को CAA से दिक्कत हो तो वो क्या कर सकते हैं?

भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में तीन तरह की लिस्ट की बात की गई है. आर्टिकल 246 के इन लिस्ट्स में राज्य और केंद्र के बीच शक्तियों का बंटवारा हुआ. माने राज्य और केंद्र किस तरह के मामलों में हस्तक्षेप कर सकते हैं, इसकी सूची बना दी गई है.
- यूनियन लिस्ट (संघ सूची)- इसमें बताया गया है कि केंद्र सरकार किन मामलों में फैसला ले सकती है.
- स्टेट लिस्ट (राज्य सूची)- इसमें ऐसे मामले हैं जिन पर राज्य को निर्णय लेने का अधिकार है.
- कॉन्करेंट लिस्ट (समवर्ती सूची)- इन मामलों में राज्य और केंद्र दोनों के पास साझा शक्ती होती है. माने दोनों को मिलकर काम करना होता है.
यूनियन लिस्ट में कुल 97 विषय हैं. इन्हीं में से एक है- नागरिकता, प्राकृतिकीकरण और एलियंस. स्पष्ट है कि नागरिकता पर फैसला लेने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है. ऐसे में अगर कोई राज्य CAA को लागू करने से इनकार करता है तो क्या होगा?
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इंडिया टुडे से जुड़ीं कनु सारदा की रिपोर्ट के मुताबिक, लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य ने बताया कि राज्यों के पास संसद से पारित कानून को लागू करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं होगा. उन्होंने कहा कि अगर किसी राज्य को लगता है कि उनके नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है तो वो सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं.
वहीं सुप्रीम कोर्ट में CAA के खिलाफ एक बैच में 220 याचिकाएं लंबित हैं. इनमें केरल की इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML), तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा, कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) नेता असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi), कांग्रेस नेता देबब्रत सैकिया, गैर सरकारी संगठन रिहाई मंच और सिटीजन्स अगेंस्ट हेट, असम एडवोकेट्स एसोसिएशन और कुछ कानून के छात्रों की याचिकाएं शामिल हैं.
CAA को चुनौती देने वाली केरल राज्य की एक अलग याचिका भी लंबे समय से लंबित है.
सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी दुबे ने इंडिया टुडे को बताया कि उन विषयों का स्पष्ट बंटवारा किया गया है जिन पर केंद्र सरकार निर्णय ले सकती है और इन मामलों में केंद्र सरकार के द्वारा पारित किए गए कानूनों को रद्द करने की शक्ति राज्यों के पास नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील केवी धनंजय ने भी इंडिया टुडे को बताया कि सभी राज्य संसद द्वारा बनाए गए कानूनों से बंधे हैं.
हालांकि, CAA के मुताबिक असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के उन आदिवासी इलाकों में CAA लागू नहीं होगा, जिन्हें संविधान की छठवीं अनूसूची के तहत संरक्षित किया गया है.
राज्यों ने CAA पर क्या कहा?11 मार्च की शाम को देश में CAA की अधिसूचना जारी की गई. इसके बाद केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने कहा,
"सरकार (केरल सरकार) ने बार-बार कहा है कि राज्य में CAA लागू नहीं किया जाएगा, जो मुस्लिम अल्पसंख्यकों को दोयम दर्जे का नागरिक साबित करता है. सांप्रदायिक रूप से इस विभाजनकारी कानून के खिलाफ पूरा केरल एकजुट होगा.’’
उन्होंने कहा कि CAA देश को परेशान करने वाला कानून है और इसे लोकसभा चुनाव के ठीक पहले लाया गया है.
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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी कहा कि बंगाल में CAA की अनुमति नहीं दी जाएगी. उन्होंने कहा,
“ये भाजपा का काम है. मुझे CAA पसंद नहीं क्योंकि इससे मुस्लिमों को निकाल दिया जैसे उन लोगों का हिंदुस्तान में कोई योगदान ही नहीं है.”
CAA से पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दी जाएगी. 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई लोगों को भारत की नागरिकता दी जाएगी.
वीडियो: भारत में CAA लागू होने पर विदेशी मीडिया क्या-क्या बातें लिख रही है?