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हाई कोर्ट ने लगाई स्पेशल जज को फटकार, जुमे की नमाज़ पढ़ने गए वकील को ही बदल दिया था

Allahabad High Court ने ये माना है कि विशेष जज ने इस्लामिक प्रथाओं पर ऐसी टिप्पणियां की हैं, जो judicial misconduct के दायरे में आती हैं.

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मामले पर अगली सुनवाई 19 अप्रैल को होगी. (सांकेतिक तस्वीर)

इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) ने एक वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी को फटकार लगाई है, कि उन्होंने मुस्लिम समुदाय के वकीलों के साथ भेदभाव किया है. मुसलमानों की प्रथाओं (Islamic practices) पर ऐसी टिप्पणियां की हैं, जो न्यायिक कदाचार (judicial misconduct) के दायरे में आती हैं.

क्या है मामला?

उत्तर प्रदेश के आतंकवाद विरोधी दस्ते (ATS) ने दो मौलवियों - मोहम्मद उमर गौतम और मुफ़्ती काज़ी जहांगीर आलम कासमी - और अन्य लोगों के ख़िलाफ़ जबरन धर्मांतरण के आरोप लगाए. हाई कोर्ट की डिवीज़न बेंच ने 16 दिसंबर, 2022 को आदेश दिया था कि ट्रायल की कार्यवाही जल्द पूरी की जाए. उच्च न्यायालय ने कहा कि इस मामले में ट्रायल प्रयास करके एक साल में पूरा किया जाए. मामला गया विशेष जज विवेकानंद शरण त्रिपाठी (Special Judge Vivekananda Sharan Tripathi) की कोर्ट में. उन्होंने हाईकोर्ट के आदेशानुसार हर दिन सुनवाई शुरू कर दी.

19 जनवरी, 2024 को शुक्रवार था. आरोपियों के वकील जुमे की नमाज़ अदा करने चले गए. जिन अभियुक्तों के वकील मुस्लिम थे, अगले ही दिन कोर्ट ने उनके लिए एमीकस क्यूरी (amicus curiae) यानी न्यायमित्र नियुक्त कर दिया. ताकि अगर वो न मौजूद हों, तो न्यायमित्र केस के विचारण (Trail) में सहयोग करेगा.

एक अभियुक्त मोहम्मद इदरीस ने हाई कोर्ट में विशेष जज के फ़ैसलों को चुनौती दी. CrPC की धारा-482 के तहत याचिका दायर की. बीते, 5 मार्च को याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस शमीम अहमद ने विशेष जज के आदेशों पर रोक लगा दी. फिर 11 मार्च को विशेष जज त्रिपाठी ने एमिकस क्यूरी की नियुक्ति वाले वाले अपने आदेश पर रोक लगा दी. मगर केवल एक मामले में. बाक़ी अभियुक्तों को एमिकस क्यूरी देने का आदेश बरक़रार रखा.

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सोमवार, 15 अप्रैल को जब हाई कोर्ट में फिर सुनवाई हुई, तो जस्टिस शमीम अहमद ने विशेष जज पर सख़्त टिप्पणियां कीं. कहा कि उन्होंने हाई कोर्ट के (5 मार्च वाले) आदेश को ठीक से समझा नहीं. और, विशेष जज ने न्यायमित्र देने का जो आदेश दिया है, वो संविधान के अनुच्छेद-15 के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. ये धार्मिक विभेद की श्रेणी में आता है. ऐसा आदेशों की वजह से कुछ अभियुक्त अपनी पसंद के वकीलों से वंचित रह जाते हैं.

कोर्ट ने माना है कि विषेश जज का आदेश कदाचरण की श्रेणी में आता है और इसीलिए विशेष जज को हाई कोर्ट में पेश होने के आदेश दिए. वो आए और उन्होंने बिना शर्त माफ़ी मांगी. कोर्ट ने उनसे 18 अप्रैल तक व्यक्तिगत हलफनामा भी मांगा है.

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