दुश्मनी जम के करो लेकिन ये गुंजाइश रहे, जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिंदा न हों.इसके जवाब में नरेंद्र मोदी ने अगले दिन एक और शे'र पढ़ा:
जी बहुत चाहता है सच बोलें, क्या करें हौसला नहीं होता.दोनों ही शे'र बशीर बद्र के हैं. मगर हम बशीर सा'ब भी बात आज क्यूं कर रहे हैं? उनका तो बड्डे बीते भी एक डेढ़ हफ्ता हो चुका. हम बशीर बद्र की बात केवल इसलिए कर रहे हैं - ताकि सनद रहे! कल-परसों में ईटीवी मध्य प्रदेश के फेसबुक पेज में उनका एक वीडियो शेयर किया गया था. उसे इंटरव्यू इसलिए नहीं कहा जा सकता क्यूंकि बशीर बद्र की हालत ऐसी नहीं थी कि वो किसी सवाल का जवाब दे पाते. आसपास के लोग बार बार उनके शे'र को आधा पढ़-पढ़ के छोड़ रहे थे, ताकि शे'र पूरा करने के बहाने ही सही बशीर सा'ब की याद्दाश्त वापस आए:
'कहां दिन गुज़ारा....' [पॉज]बद्र उस शे'र को अपनी लड़खड़ाती आवाज़ में पूरा करने की कोशिश करते हैं....
'... कहां रात... की!'उनकी शरीक-ए-हयात, राहत उनको मफ़लर ओढ़ाती हैं. मीडिया से आए लोग उनके शे'रों को पढ़ते हैं. और इस दौरान बशीर नीम-बेहोशी में चले जाते हैं. न पूरी तरह जागे, न पूरी तरह सोए.... बशीर के चाहने वालों ने उन्हें नहीं भुलाया है. अब भी वो संसद से लेकर मीडिया तक में धूम मचा रहे हैं. एक शायर के लिए क्या इतना काफी है? हम नहीं जानते. हम सच में नहीं जानते. बस इतना जानते हैं कि हमें बशीर बड़े अजीज़ हैं. उनके शे'र, उनकी ग़ज़लें, उनकी नज़्म अजीज़ हैं. आइए उनके कुछ शे'रों का लुत्फ़ लें - ताकि सनद रहे!
















दी लल्लनटॉप के तहखाने का माल:
हर दशक में एक कल्ट फिल्म बनाने वाले डायरेक्टर का लल्लनटॉप इंटरव्यू