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आजादी से पहले का ये राजा BJP को त्रिपुरा में पहली बार जीत दिला सकता है

बीजेपी के लिए तुरुप का पत्ता साबित हो रहे इस शख्स की वजह से वामपंथी सरकार बुरी तरह से घिरी हुई है.

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सात दशक बाद भी बीर बिक्रम किशोर त्रिपुरा के आदिवासियों में बहुत लोकप्रिय हैं

20 अगस्त, 2017. सुबह के 10 बजकर 46 मिनट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ट्वीट आता है. इस ट्वीट में नरेंद्र मोदी त्रिपुरा के राजा 'बीर विक्रम किशोर देव बर्मन माणिक्य बहादुर' को याद करते हुए कहते हैं कि त्रिपुरा के विकास में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा. इसके कुछ सेकंड पहले किए गए ट्वीट में नरेंद्र मोदी ने इस बात पर खुशी जाहिर की थी कि त्रिपुरा के लोगों ने बीर विक्रम जयंती को बड़े उत्साह के साथ मनाया. मोदी के ये ट्वीट बीर विक्रम के 109वें जन्मदिन के ठीक एक दिन बाद आया था.


महाराजा बीर बिक्रम के जन्मदिन पर नरेंद्र मोदी के ट्वीट
महाराजा बीर बिक्रम के जन्मदिन पर नरेंद्र मोदी के ट्वीट

8 जनवरी, 2018 को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह त्रिपुरा में थे. उन्होंने आदिवासी बाहुल्य वाले इलाके अम्बासा में रैली करके 2018 के विधान सभा चुनाव के प्रचार अभियान की शुरुआत की. त्रिपुरा के मुख्यमंत्री की आलोचना करने के अलावा अमित शाह ने इस रैली में एक बहुत मार्के की बात कही. उन्होंने सवाल उठाया कि अगरतला हवाई अड्डे का नाम बीर विक्रम किशोर के नाम पर क्यों नहीं रखा जा सकता. अमित शाह जिस मंच पर बोल रहे थे, उस पर भी दीनदयाल उपाध्याय और श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बगल में राजा बीर विक्रम की तस्वीर लगी हुई थी.

त्रिपुरा में बीजेपी के इंचार्ज सुनील देबधर कई मौकों यह कहते हुए पाए गए हैं कि त्रिपुरा बीजेपी ने हाईकमान के पास बीर विक्रम सिंह को भारत रत्न देने का प्रस्ताव भेज दिया है. बीजेपी इस साल राज्य स्तर पर बीर विक्रम का जन्मदिन मना चुकी है. आखिर एक राजा बीजेपी के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों हो गया है?


त्रिपुरा में रैली के दौरान श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बगल में महाराजा बीर बिक्रम की तस्वीर (फोटो क्रेडिट: नव भारत टाइम्स)
त्रिपुरा में रैली के दौरान श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बगल में महाराजा बीर बिक्रम की तस्वीर (फोटो क्रेडिट: नव भारत टाइम्स)

इस साल त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. बंगाल के गिरने के बाद भारत में वामपंथी राजनीति के दो मजबूत गढ़ बचे हैं. पहला केरल और दूसरा त्रिपुरा. त्रिपुरा में पिछले 24 साल से वामपंथी सरकार है. बीजेपी वामपंथ के दोनों बचे हुए गढ़ों में अपने लिए जमीन तलाश रही है.

कौन हैं बीर विक्रम किशोर

राजा बीर विक्रम किशोर देव बर्मन माणिक्य बहादुर आजादी से पहले त्रिपुरा के राजा हुआ करते थे. माणिक्य राज परिवार से आने वाले बीर विक्रम की पैदाइश 19 अगस्त, 1908 की है. उनका राजवंश सन 1280 से त्रिपुरा में राज कर रही है. उस समय रत्ना माणिक्य ने त्रिपुरा में इस राजवंश की स्थापना की थी. बीर विक्रम इस राजपरिवार की 185वीं पीढ़ी के नुमाइंदे थे. वो 1923 से मई 1947 तक त्रिपुरा के राजा रहे.


बीर बिक्रम किशोर (बाएं) और रविंद्र नाथ टैगोर के साथ उनके दादा राधा किशोर माणिक्य.
बीर बिक्रम किशोर (बाएं) और रविंद्र नाथ टैगोर के साथ उनके दादा राधा किशोर माणिक्य.

बीर विक्रम को आधुनिक त्रिपुरा की नींव रखने वाला शख्स कहा जा सकता है. उन्होंने त्रिपुरा में कई सारे शिक्षण संस्थान खोले. महाराजा बीर विक्रम कॉलेज, उमाकांत अकादमी, बोधजंग बॉयज हाई स्कूल, महारानी तुलसीबती गर्ल्स हाई स्कूल आज भी सूबे के सबसे बेहतरीन शिक्षण संस्थानों में से एक है. बीर विक्रम की रखी नींव की वजह से त्रिपुरा देश के सबसे ज्यादा शिक्षित राज्यों में एक है. 2011 की जन गणना में त्रिपुरा की साक्षरता दर 94 फीसदी दर्ज की गई है. बीर विक्रम और उनके दादा राधा किशोर माणिक्य आज भी त्रिपुरा के आदिवासियों में बहुत लोकप्रिय हैं. आदिवासी आज भी अपने राजा को लेकर बहुत भावुक हैं.

बीजेपी के लिए तुरुप का पत्ता

2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की त्रिपुरा में हैसियत ना के बराबर थी. कहने को पार्टी ने 60 विधानसभाओं में से 50 पर अपने प्रत्याशी उतारे थे लेकिन इनमें से 49 उम्मीदवार अपनी जमानत तक ना बचा पाए. सूबे की 20 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित है. बीजेपी महाराजा बीर विक्रम के जरिए इन्हीं 20 सीटों पर फोकस किए हुए है.

लेफ्ट के लिए चुनौती

त्रिपुरा में 1978 के साल में पहली बार वामपंथी सरकार बनी थी. उस समय सीपीएम के नृपेन चक्रवर्ती सूबे के मुख्यमंत्री बने थे. त्रिपुरा में वामपंथी राजनीति को खड़ा करने में नृपेन की भूमिका बहुत अहम रही थी. नृपेन ढाका में पैदा हुए थे और आजादी से वामपंथी आंदोलन से जुड़ गए थे. आजदी के बाद उन्हें त्रिपुरा में कम्युनिस्ट पार्टी का संगठन खड़ा करने के लिए भेजा गया. त्रिपुरा आने के बाद नृपेन ने आदिवासी इलाकों को फोकस किया और वहां पर अपनी पकड़ को मजबूत बनाना शुरू किया.

त्रिपुरा में सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा है नस्ली पहचान का. आजादी के बाद बड़े पैमाने पर बंगाली लोग त्रिपुरा में आकर रहने लगे. हालांकि यह सिलसिला आजादी के पहले शुरू हो चुका था लेकिन आजादी के बाद इसमें बहुत तेजी आ गई. नतीजा यह हुआ कि कुछ ही सालों में यहां त्रिपुरा के आदिवासी अपनी ही जमीन पर अल्पसंख्यक हो गए. फिलहाल त्रिपुरा में आदिवासी समुदाय कुल जनसंख्या का 30 फीसदी है.


त्रिपुरा में वामपंथी राजनीति को खड़ा करने वाले नृपेन चक्रवर्ती
त्रिपुरा में वामपंथी राजनीति को खड़ा करने वाले नृपेन चक्रवर्ती

नृपेन चक्रवर्ती की विरासत की वजह से सीपीएम को आदिवासी इलाकों में नस्ली पहचान के मुद्दे के बावजूद बहुत परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता. कहते हैं त्रिपुरा चुनाव के नतीजों में सीपीएम की गिनती 21 से शुरू होती है. यह मानकर चला जाता है कि 20 आदिवासी बाहुल्य वाली सीटें सीपीएम के खाते में ही जाने वाली हैं. पिछले चुनाव में कुल 20 आदिवासी सीटों में से 19 सीट सीपीएम की झोली में से गई थी.

अपनी विचारधारा के हिसाब से सीपीएम राजशाही के खिलाफ मुखर रही है. मुख्यमंत्री माणिक सरकार और सरकार के दूसरे नेता भी त्रिपुरा के भूतपूर्व राजाओं के बारे में आलोचनात्मक टिप्पणी करते हुए पाए गए हैं. बीजेपी इस फिराक में है कि सीपीएम के इस रवैये को उसी के खिलाफ इस्तेमाल करके आदिवासी बेल्ट में अपनी पकड़ बना ले. बीर विक्रम किशोर के प्रति उमड़ी श्रद्धा की असल वजह यही है.




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