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जितने पुरस्कार उन्हें मिले वो एक रिकॉर्ड है, फिर भी वो कहीं अधिक की हकदार थीं

राजस्थानी मांड गायिका श्रीमती मांगी देवी आर्य जी को 'रेडियो जुबानी' वाले महेंद्र मोदी की श्रद्धांजलि

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फोटो - thelallantop
महेंद्र मोदी
महेंद्र मोदी

बीकानेर में पैदा हुए महेंद्र मोदी मुंबई में रहते हैं. रेडियो में 40 साल से ज्यादा का एक्सपीरियेंस है. विविध भारती मुंबई में लंबे वक्त तक सहायक केंद्र निदेशक रहे. वे ‘दी लल्लनटॉप’ में ‘रेडियो जुबानी’ नाम की सीरीज़ लिखते हैं. ‘रेडियो जुबानी’ में महेंद्र मोदी के लिखे रेडियो से जुड़े किस्से लल्लनटॉप के पाठकों को पढ़ाए जाते हैं. आज उन्हीं महेंद्र मोदी जी की राजस्थान की अंतिम मांड गायिका श्रीमती मांगी देवी आर्य को दी गई एक श्रद्धांजलि आपको यहां पढ़वा रहे हैं. श्रीमती मांगी देवी का 23 नवंबर को निधन हो गया. 



राजस्थानी मांड गायकी को अंतिम विदाई

यूं तो लोक संगीत वो संगीत होता है जो जन जन के ह्रदय में बसा होता है और जो कभी इस दुनिया से विदा नहीं होता बल्कि परम्परा के अनुसार तो जैसे जैसे समय बीतता है, उसे और समृद्ध होते जाना चाहिए लेकिन ये परम्पराएं भी शायद कभी न कभी टूटती ही हैं. संगीत की ये परम्परा भी पिछले कुछ समय से टूट रही है.

कहां हैं वो अच्छे और बुरे हर मौके पर गाये जाने वाले गीत जो हमारे जीवन के आवश्यक अंग हुआ करते थे?

आज की पीढ़ी के जीवन से वो पूरी तरह लुप्त हो चुके हैं.

एक समय था जब राजा महाराजा इस लोक संगीत का पोषण करने के लिए अपने दरबार में अच्छे अच्छे कलाकारों को सम्मानपूर्वक जगह दिया करते थे. राजाओं का समय गुज़रा तो आकाशवाणी जैसी संस्थाओं ने संगीत के कलाकारों को समाज के सामने प्रस्तुत करना शुरू किया और हर तरह से संगीत खासकर लोक संगीत को टेप्स पर रिकॉर्ड कर उसकी सुरक्षा करने का कार्य किया ताकि ये लोकसंगीत आने वाली पीढ़ियों तक पहुंच सके और आने वाली पीढ़ियों को अपनी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का ज्ञान हो सके लेकिन पिछले कुछ वर्षों से आकाशवाणी में ऊंची कुर्सियों पर आ बैठे क्लर्क छाप अफ़सर जिन्हें न तो अपनी संस्कृति से कोई लेना देना था और न ही इस धरोहर को सुरक्षित रखने के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी का कोई अहसास. नतीजा ये हुआ कि आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों पर धड़ल्ले से टेप्स इरेज़ होने लगे और लोक संगीत लुप्त होने लग गया.


राजस्थान के लोक संगीत में मांड गायकी का अपना एक अलग स्थान रहा है. "केसरिया बालम आओ नी पधारो म्हारे देस" कानों में पड़ते ही रूखी से रूखी प्रकृति के इंसान के रोंगटे खड़े हो जाते हैं.

यक़ीनन अल्लाह जिलाई बाई और गवरी देवी मांड की ऊंचे दर्जे की कलाकार थीं लेकिन स्वयं उच्च कोटि की कलाकार होने के साथ साथ राजस्थान के लोकसंगीत को युवा पीढी को सिखाने में जिस कलाकार ने बहुत बड़ा योगदान दिया, उनका नाम है श्रीमती माँगी देवी आर्य.


Ex President
भूतपूर्व राष्ट्रपति के साथ श्रीमती मांगी देवी आर्य

मुझे सौभाग्य से आकाशवाणी में आने के वक़्त से ही उनके अत्यंत निकट रहने का, उन्हें रिकॉर्ड करने का अवसर समय समय पर मिलता रहा क्योंकि उनके सुपुत्र श्री मानिक आर्य मेरे मित्रों में से रहे हैं, इस कारण उनका हमेशा मुझपर मातृत्व स्नेह और आशीर्वाद रहा.

मैं शुरू से उन्हें मम्मी जी ही पुकारता था और मुझे "मेरा बेटूड़ा मेरा बेटूड़ा" कहते उनका मुंह सूखता था. उन्होंने अपने पिताजी से संगीत की शिक्षा ग्रहण की और संगीत के मैदान में उतर पडीं. पति श्री राम नारायण जी भी संगीत के बहुत अच्छे जानकार थे. संगीत के क्षेत्र में आगे बढ़ने में उन्हें अपने पतिदेव का भी पूरा सहयोग मिला और दिनों दिन उनकी गायकी निखरती चली गयी. उनके गायन में जो सबसे ख़ास बात थी वो थी उनके स्वर का मिठास.


वो कहा करती थीं, "खाली सुर सही लगाना ही अच्छा गाना नहीं होता." अगर सुर सही लग रहे हों लेकिन गायन में कर्कशता हो तो उस गाने को आप अच्छा गाना कैसे कहेंगे? उनके गाने में एक अलग तरह की नरमी और मिठास थे, जो सुनने वालों के कानों में मिसरी सी घोलते थे और यही उन्होंने अपने शिष्य शिष्याओं को सिखाया.

सन 1997 में देश के स्वतन्त्रता दिवस की स्वर्ण जयन्ती का आयोजन किया गया था. आकाशवाणी ने दिल्ली के मावलंकर हाल में एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया जिसमे देश के कुछ चुनिन्दा केन्द्रों को कुछ चुनिन्दा कार्यक्रम प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया. उस समय मैं आकाशवाणी उदयपुर में पोस्टेड था. सौभाग्य से आकाशवाणी उदयपुर को भी लोकसंगीत और नाटक प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रण मिला. लोकसंगीत के लिए विशेष रूप से श्रीमती माँगी देवी के लिए महानिदेशालय ने आग्रह किया था. मैं नाटक और संगीत के कलाकारों की टीम लेकर दिल्ली गया. श्रीमती माँगी देवी के लोकगीतों को सुनकर राजस्थानी न समझ सकने वाले श्रोता भी उनके सुरों के मिठास से झूम उठे. वो चार दिन का दौरा हम सबके लिए एक यादगार दौरा बन गया क्योंकि सभी कलाकारों के साथ माँगी देवी जी जैसी कलाकार मौजूद थीं.

कुछ वर्ष पूर्व मैंने दूरदर्शन के लिए उनका एक लंबा इंटरव्यू किया. उस दौरान फिर से मुझे उनके साथ तीन चार दिन रहने का अवसर मिला. उन्होंने अपने संघर्ष के दिनों को याद किया तो बहुत संकोच के साथ अपनी सफलताओं का भी ज़िक्र किया. लोक संगीत के क्षेत्र में जितने पुरस्कार और सम्मान उन्हें मिले वो एक रिकॉर्ड है और सच्चाई ये है कि वो उन सब पुरस्कारों से भी कहीं अधिक की हकदार थीं. राजस्थान संगीत नाटक अकादमी से लेकर केन्द्रीय संगीत नाटक अकादमी तक के सर्वोच्च पुरस्कारों से उन्हें सम्मानित किया गया.महामहिम राष्ट्रपति वेंकटरमण से लेकर महामहिम राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल ने उनकी भूरि भूरि प्रशंसा की ये पूरे राजस्थान के लिए गौरव का विषय है.


श्रीमती माँगी देवी आर्य ने कल इस दुनिया को अलविदा कह दिया. राजस्थानी लोकसंगीत के एक पूरे युग का अवसान हो गया. हालांकि उनकी वो मधुर आवाज़ अभी भी मेरे और मेरे जैसे उनके कितने ही प्रशंसकों के कानों में गूँज रही है........ किन्तु सच्चाई को कैसे नकारेंगे हम ? आज वो हमारे बीच नहीं हैं......... राजस्थानी लोकसंगीत ने अपना आख़िरी हीरा भी आज गँवा दिया.

2014 में मैं उदयपुर गया तो मैंने उनसे कहा, "मम्मी जी आपके कुछ फोटो खींचने हैं मुझे."


लोकसंगीत के क्षेत्र में जितने पुरस्कार और सम्मान उन्हें मिले वो एक रिकॉर्ड है.
लोकसंगीत के क्षेत्र में जितने पुरस्कार और सम्मान उन्हें मिले वो एक रिकॉर्ड है.

वो तुरंत तैयार हो गयीं और मैंने उनके बहुत से फोटो खींचे. मेरी श्रद्धांजलि के रूप में मैं उनके कुछ फोटो यहाँ लगा रहा हूँ, इन शब्दों के साथ......" जाइए मम्मी जी जाइए .......बहुत थक गईं हैं आप जीवन संघर्षों से......अब विश्राम कीजिये. ईश्वर आपकी आत्मा को शान्ति दे. हम हमेशा आपको आपके गाने को मिस करेंगे.यों तो लोग अब भी गाते रहेंगे लेकिन आप राजस्थानी लोकसंगीत की अंतिम ध्वजवाहक थीं........आपके बाद राजस्थानी लोकसंगीत की सरिता पूरी तरह सूख गयी है, उसमे अब कुछ भी नहीं बचा."




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