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अहमद पटेल के जीतने की पूरी कहानी, जिसमें अमित शाह को मुंह की खानी पड़ी

ये हार अमित शाह ज़िंदगी भर याद रखने वाले हैं. आज अहमद पटेल का बर्थडे है.

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राज्यसभा चुनावों में कैंडिडेट अमूमन निर्विरोध चुने जाते हैं. सारा गणित पहले से सेट होता है. माने ये एक डल चुनाव होता है. इसलिए जब 9 अगस्त के दूसरे घंटे में गांधीनगर और दिल्ली के कांग्रेस दफ्तर के बाहर पटाखे चले, 'कांग्रेस-कांग्रेस' का नारा लगा, तो वो एक राज्यसभा सीट जीतने भर की खुशी नहीं थी. वो उस राहत का इज़हार थी जो उन्हें 2 हफ्तों से चल रही खींचतान के बाद मिली थी. अहमद पटेल आखिर राज्यसभा चुनाव जीत गए थे. आधे वोट से.
क्विक रिकैप
इस आधे वोट से जीत की भूमिका तभी लिख दी गई थी जब 2012 में गुजरात विधानसभा चुनाव हुए थे. भाजपा जीती 116 सीटें, कांग्रेस 57, एनसीपी दो, जद (यू) एक और निर्दलीय एक. 182 सीटों वाली गुजरात विधानसभा के विधायक राज्यसभा के लिए तीन सांसद चुनते हैं. एक सांसद भेजने के लिए कम से कम 47 पहली वरीयता के वोट चाहिए होते हैं. तो विधानसभा का नंबर गेम यही कहता था कि गुजरात से कांग्रेस और भाजपा पिछली बार जितने ही सांसद भेज पाएंगे.
अगस्त 2011 में गुजरात से भाजपा ने दिलीप शिवशंकरभाई पंड्या और स्मृति ईरानी राज्यसभा गए थे, कांग्रेस से गए अहमद पटेल.
 
अमित शाह की एंट्री और भाजपा का पॉलिटिकल मैनेजमेंट
 
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2011 से 2017 के बीच बहुत कुछ बदल गया. तय हुआ कि अमित शाह राज्यसभा जाएंगे और वो भी गुजरात से. प्रधानमंत्री मोदी के सबसे विश्वस्त सिपहसलार की राज्यसभा में एंट्री ग्रैंड से कम कुछ नहीं हो सकती थी. राज्यसभा चुनाव वो मौका थे जब भाजपा दिखाती कि वो गुजरात में क्लीन स्वीप कर देने वाली पार्टी है. तो भाजपा ने अपनी पूरी ताकत गुजरात की तीसरी सीट जीतने में झोंक दी. और इसी बात ने इस चुनाव को अमित शाह बनाम अहमद पटेल बना दिया.
भाजपा की महत्तवाकांक्षा को बल इस बात से मिला कि उसके पास दो सांसदों को चुनने के बाद भी 22 अतिरिक्त वोट बचे थे. ये आंकड़ा 47 से काफी पीछे है, लेकिन सदनों के अंदर आगे-पीछे के खेल को ही फ्लोर मैनेजमेंट कहते हैं. भाजपा अहमद पटेला का विकेट इसी तरह गिरा सकती थी. भाजपा का पॉलिटिकल मैनेजमेंट सबने देख भी लिया जब गुजरात से 11 कांग्रेस विधायकों ने राष्ट्रपति चुनाव में क्रॉसवोटिंग कर दी. ये कांग्रस का किला दरकने की आहट थी, लेकिन कांग्रेस आलाकमान की नींद असल में 21 जुलाई को टूटी जब 17 साल से कांग्रेस में रहे शंकर सिंह वाघेला ने कांग्रेस छोड़ दी. वाघेला के साथ दो और कांग्रेस विधायकों ने पार्टी छोड़ दी. 48 घंटों में 3 और कांग्रेस विधायक भाजपा की तरफ हो गए.
इस सब ने गुजरात विधानसभा का कॉम्पोज़िशन भी बदला और भाजपा को ये उम्मीद दी कि वो एक तीसरा सांसद चुनवा सकती है क्योंकि 176 विधायकों की विधानसभा में अब एक राज्यसभा सीट के लिए 45 वोट ही चाहिए थे. विधानसभा में चीफ व्हिप रहे बलवंत सिंह राजपूत ने अहमद पटेल के खिलाफ पर्चा भर दिया.
तो कांग्रेस ने अपने 44 विश्वासपात्र विधायकों को बेंगलुरू के एक रिज़ॉर्ट में बंद कर दिया. ये सभी एक रात पहले वापस गुजरात लाए गए और आणंद के एक होटल में कूच दिए गए. हर एमएलए पर नज़र रखने के लिए दो यूथ कांग्रेस कार्यकर्ताओं की ड्यूटी लगाई गई. एक कांग्रेसी एमएलए राजेंद्र परमार 'दवा लेने' के लिए कुछ देर गायब हुए तो गुजरात कांग्रेस की सांसें चढ़ गई थीं.
 
कांग्रेस विधायकों की अहमदाबाद वापसी पर उन्हें लेने अहमद पटेल खुद एयरपोर्ट गए थे. (फोटोःपीटीआई)
कांग्रेस विधायकों की अहमदाबाद वापसी पर उन्हें लेने अहमद पटेल खुद एयरपोर्ट गए थे. (फोटोःपीटीआई)


लेकिन बाड़ेबंदी के बावजूद कांग्रेस में 'अंतरआत्मा' की आवाज़ बंद नहीं हुई
8 अगस्त को ये 44 विधायक कड़ी सुरक्षा के बीच गांधीनगर में गुजरात विधानसभा लाए गए. वोटिंग शुरू होने के एक घंटे के अंदर ही शंकर सिंह वाघेला ने मीडिया से कह दिया कि जब अहमद भाई जीत ही नहीं रहे हैं, तो उन्हें वोट देने से क्या मतलब. लेकिन इस बयान के लिए कांग्रेस तैयार थी. कांग्रेस को भरोसा था कि उनका गणित अब भी काम करेगा. उसके बचे हुए 44 विधायक और एनसीपी-जदयू के तीन में से कोई भी एक. इस तरह राज्यसभा जाने के लिए 45 पहली वरीयता के वो वोट मिल जाने थे.
लेकिन फिर जैसे-जैसे वक्त बीता, कांग्रेस का गणित गड़बड़ाने लगा. साफ हो गया कि 44 में से एक कांग्रेस विधायक (करम सिंह मकवाड़ा) की 'अंतर आत्मा' जाग गई और उन्होंने अपना वोट भाजपा कैंडिडेट बलवंत सिंह राजपूत को दे दिया. एनसीपी के कंधल जडेजा ने भी कह दिया कि पार्टी व्हिप को एक तरफ रख कर वोट भाजपा को देकर आए हैं. अब बात यहां आकर अटक गई कि दूसरे एनसीपी विधायक जयंत पटेल और जनता दल (युनाइटेड) के विधायक छोटू वसावा का वोट कांग्रेस को पड़ेगा कि नहीं.
शंकर सिंह वाघेला (बाएं) कांग्रेस से पांच विधायक तोड़ कर भाजपा में ले गए

शंकर सिंह वाघेला (बाएं) कांग्रेस से पांच विधायक तोड़ कर भाजपा में ले गए थे

 
तो टीवी पर दो खाने बना कर बहस की जाने लगी. कोई बार-बार ग्राफिक्स बदलने का टेंशन नहीं चाहता था. स्टूडियो में बैठे विशेषज्ञों से एक सवाल अहमद पटेल की जीत के मायने बताने के लिए पूछा जाता तो अगले ही सवाल पर ये पूछ लिया जाता कि हार गए तो क्या हो जाएगा.
 
एक शिकायत ने सब बदल दिया
शाम पांच बजे वोटिंग बंद हुई. कैमरा गांधीनगर पर ही अटका रहा. लेकिन फिर घड़ी में साढ़े पांच बजे. न्यूज़ स्टूडियो को गांधीनगर की जगह नई दिल्ली से फीड मिलने लगा. मालूम चला कि कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला चुनाव आयोग के दफ्तर पहुंचे. उन्होंने मांग की कि उनकी ही पार्टी के दो विधायकों भोला भाई गोहिल और राघव भाई पटेल के वोट निरस्त कर दिए जाएं. ये खबर ब्रेक होते ही सब समझ गए कि मकवाड़ा अकेले नहीं थे, जिन्होंने क्रॉस वोटिंग की थी. इसने पटेल के हार जाने को एक असल संभावना बना दिया. लेकिन कांग्रेस के पास एक आखिरी हथियार अब भी बचा था.
 
रणदीप सिंह सुरजेवाला
रणदीप सिंह सुरजेवाला


 
राज्यसभा चुनाव में ओपन बैलेट सिस्टम के तहत अपना बैलेट सिर्फ पार्टी के अधिकृत एजेंट को दिखा सकता है. सुरजेवाला ने दावा किया कि कांग्रेस विधायक राघवजी पटेल और भोला गोहिल ने अपना बैलेट कांग्रेस के अधिकृत एजेंट शक्ति सिंह गोहिल के अलावा अमित शाह और स्मृति ईरानी को भी दिखाए थे. इस आधार पर इनके वोट निरस्त हो जाने चाहिए थे.
 
फिर शुरू हुई भरोसा जताने की होड़
कांग्रेस अब भाजपा वाला दांव ही चल रही थी - विधानसभा का कॉम्पोज़िशन बदलने की कवायद चल रही थी. इसकी भनक लगते ही सात बजे के करीब भाजपा के रविशंकर प्रसाद भाजपा का पक्ष चुनाव आयोग के सामने रखने भेज दिया. रविशंकर प्रसाद ने दावा किया कि जिन दो विधायकों की बात हो रही है, उन्होंने अमित शाह या स्मृति ईरानी को बैलेट नहीं दिखाया. रविशंकर प्रसाद सुप्रीम कोर्ट के नामचीन वकील हैं. वो चुनाव आयोग में क्या बो कर आए होंगे, इस सोच में कांग्रेस ने 7.40 पर एक बार फिर चुनाव आयोग अपनी टीम भेजी. सुरजेवाला के अलावा पी चिदंबरम, गुलाम नबी आज़ाद और अशोक गहलोत भी पहुंचे.
 
New Delhi: Congress leaders P Chidambaram, Ashok Gehlot, Ghulam Nabi Azad, Mukul Wasnik and Anand Sharma coming out of the Election Commission of India, in New Delhi on Tuesday. A delegation of senior Congress leaders met the election commission over RS polls in Gujarat. PTI Photo by Kamal Kishore (PTI8_8_2017_000150B)
कांग्रेस के अशोक गहलोत, गुलाम नबी आज़ाद और रणदीप सिंह सुरजेवाला, मुकुल वासनिक, आनंद शर्मा और पी चिदंबरम चुनाव आयोग के साथ बैठक के बाद बाहर आते हुए. (फोटोःपीटीआई)


 
सब टीवी पर लाइव चल रहा था. कांग्रेस की बड़ी टीम चुनाव आयोग पहुंची तो भाजपा ने और बड़ी टीम बनाकर 8.15 पर चुनाव आयोग भेजी. अलग-अलग किश्तों में कुल मिलाकर पीयूष गोयल, अरुण जेटली और निर्मला सीतारमण समेत आधा दर्जन कैबिनेट मंत्री चुनाव आयोग पहुंचे. ये लोग बाहर निकलने को थे, उतने में कांग्रेस का 'प्रतिनिधि मंडल' एक बार फिर चुनाव आयोग पहुंच चुका था. वक्त हो रहा था रात के 9.15.
अंदर क्या होता था, उस बारे में कांग्रेस और भाजपा दोनों के प्रतिनिधि मंडल एक ही बात कहते. 'हमने अपना पक्ष रखा है, हमें चुनाव आयोग पर पूरा भरोसा है'. दोनों पार्टियां चुनाव आयोग पर ज़्यादा से ज़्यादा भरोसा जताने की होड़ में थीं.
कांग्रेस की सवा नौ वाली ट्रेन चुनाव आयोग से चलती, उस से पहले ही 9.25 पर भाजपा की ट्रेन आउटर पर आकर खड़ी हो गई. रविशंकर प्रसाद इस बार भी आए थे. मीडिया ने सवाल किया तो उन्होंने कहा कि कांग्रेस तिबारा आएगी तो हम भी तिबारा आएंगे. वो न आएं तो हम भी नहीं आएंगे. इसके बाद भाजपा ने तीसरी बार अपनी दलीलें चुनाव आयोग के सामने रखीं. 
 
New Delhi: Union ministers Ravishanker Prasad, Piyush Goyal, Mukhtar Abbas Naqvi and other BJP leaders coming out of the Election Commission of India, in New Delhi on Tuesday. A BJP delegation comprising of many central ministers met the election commission over RS polls in Gujarat. PTI Photo by Kamal Kishore (PTI8_8_2017_000141B)
भाजपा के रविशंकर प्रसाद, मुख्तार अब्बास नक्वी और पीयूष गोयल चुनाव आयोग के साथ बैठक के बाद बाहर आते हुए. (फोटोःपीटीआई)


 
अब तक साफ हो चुका था कि दोनों पार्टियों की प्रमुख दलीलें क्या थीं
कांग्रेस का दावा था कि दोनों विधायकों का बैलेट अधिकृत एजेंट के अलावा किसी और को दिखाना उसी कानून का उल्लंघन था जो एनडीए सरकार ने 2003 में बनाया था. कांग्रेस दावा कर रही थी कि इसका वीडियो उपलब्ध है. कांग्रेस ने मिसाल दी कि 11 जून 2016 को जब हरियाणा विधानसभा में राज्यसभा चुनाव हुए थे तो रणदीप सिंह सुरजेवाला का वोट भाजपा की शिकायत पर ठीक इसीलिए कैंसल हो गया था कि उन्होंने वोट देने के बाद बैलेट पेपर किरण चौधरी को दिखा दिया था. किरण चौधरी कांग्रेस की ही थीं लेकिन कांग्रेस कैंडिडेट आर के आनंद की अधिकृत एजेंट नहीं थीं. अधिकृत एजेंट थे बी के हरिप्रसाद. इस चुनाव में 12 कांग्रेसी विधायकों का वोट गलत पेन के इसतेमाल की वजह से कैंसल हो गया था. सुरजेवाला का वोट बीजेपी ने कैंसल करवा दिया था. नतीजे में सुभाष चंद्रा जीत गए थे.
भाजपा की दलील थी कि कांग्रेस ने विरोध दर्ज ही इसलिए कराया है कि उसे अपनी जीत पर भरोसा नहीं. तो कांग्रेस की मांग का तुक नहीं बनता क्योंकि वोट पहले ही पड़ चुके हैं.
मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम ज़ैदी (सांकेतिक फोटा; पीटीआई)
मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम ज़ैदी (सांकेतिक फोटो; पीटीआई)


फिर एक मीटिंग चुनाव आयोग ने खुद की
रात 9.40 पर चुनाव आयोग की एक मीटिंग हुई. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चुनाव आयोग की राय में ऐसी किसी स्थिती से निपटने के लिए लिखित नियम नहीं था. इसलिए संविधान में दी हुई शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए आयोग ने अपने विवेक से काम लेना तय किया.
रात पौने ग्यारह पर ये तय किया गया कि रिटर्निंग ऑफिसर से वीडियो मंगा कर देखा जाए. करीब पौन घंटे तक चली माथापच्ची के बाद आयोग ने ये तय पाया कि भोला भाई गोहिल और राघव पटेल के वोट निरस्त करने के लिए पर्याप्त कारण मौजूद हैं. भाजपा के विरोध को खारिज कर दिया गया.
अब विधानसभा में कुल 174 वोट ही रह गए और जीत के लिए ज़रूरी आंकड़ा 43.50 पहली वरीयता के वोट पर आ गया.
 
नलिन कोटाड़िया
नलिन कोटाड़िया


 
पटेल के लिए एक वोट खुद भाजपा की तरफ से आया
ये अहमद पटेल के लिए राहत की बात थी लेकिन अब भी उनका गणित पूरी तरह फिट नहीं बैठ रहा था. एकाध वोट की गुंजाइश बची रह जाने का अंदेशा था. और ये एक वोट सबसे अप्रत्यशित जगह से आया - एक भाजपा विधायक नलिन कोटाड़िया की ओर से. कोटाड़िया ने रात 12.30 पर फेसबुक पर एक वीडियो अपलोड कर के कहा कि उन्होंने भाजपा के खिलाफ वोट डाला है.

 
इसके बाद जाकर पटेल निश्चिंत हुए
रात एक बजे के बाद भी गिनती शुरू न होने पर कांग्रेस नेता अर्जुन मोधवाड़िया ने इल्ज़ाम लगाया कि भाजपा गिनती होने ही नहीं दे रही. लेकिन कोटाड़िया के फेसबुक पोस्ट के बाद कांग्रेस का गणित पटरी पर लौट आया था. उनके पास 41 पहली वरीयता के वोट अपने थे. एक कोटाड़िया का, एक एनसीपी के जयंत पटेल का, और एक छोटू वसावा का. कुल 44. रात 1.20 पर अहमद पटेल ने एक ट्वीट किया - सत्यमेव जयते.
    इसके तीन मिनट बाद अहमद पटेल ने अपनी जीत का इज़हार किया.


अहमद पटेल की छवी बड़बोले नेता की कभी नहीं रही. उनका आत्मविश्वास बता रहा था कि उन्हें बस औपचारिक घोषणा का ही इंतज़ार है. दूसरी तरफ भाजपा भी वोटों की गिनती से आगे का सोचने लगी थी. गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने कह भी दिया कि भाजपा कानून (अदालत) का सहारा लेगी. माने भाजपा इस स्वीकारोक्ति की ओर बढ़ रही थी कि वो तीसरी सीट हार रही है.
 
बाएं से- अमित शाह और विजय रुपाणी
बाएं से- अमित शाह और विजय रुपाणी


इसके बाद वही सब हुआ जिसका ज़िक्र इस कहानी की शुरूआत में किया गया था. कांग्रेस ने जश्नन मनाना शुरू कर दिया. आधिकारिक घोषणा रात तीन बजे के आसपास हुई. तब तक इस जश्न को डेढ़ घंटा बीत गया था. ये जश्न उस राहत का इज़हार था जो देश को आज़ादी दिलाने का दावा करने वाली पार्टी को फिलवक्त देश की सबसे ताकतवर पार्टी से टकराकर, हारते-हारते जीत जाने पर मिली थी. और जीत में इससे अच्छा क्यो हो सकता था कि उनके पॉलिटिकल मैनेजर नंबर वन की साख भाजपा के पॉलिटिकल मैनेजर की साख की कीमत पर बचा ली गई.
गिनती पर पाया गया कि अहमद पटेल को 44 वोट मिले थे. ज़रूरी 43.50 से आधा वोट ज़्यादा.
भाजपा के एक विधायक के बागी होने से ये कहने की गुंजाइश पैदा हो गई है कि शाम साढ़े पांच बजे के बाद से शुरू हुआ पॉलिटिकल ड्रामे का पटाक्षेप इत्तेफाकन कांग्रेस के पक्ष में हुआ. लेकिन इस साल के अंत में होने वाले चुनावों के लिए पार्टी को जो ऊर्जा इस इत्तेफाक से मिली है, उसे पार्टी हर कीमत पर भुना कर रहेगी. रही बात अमित शाह की, तो उनके लिए यही कहा जा सकता है, बेटर लक नेक्स्ट टाइम.
चुनाव आयोग द्वारा नियुक्त रिटर्निंग ऑफिसर नतीजों की आधिकारिक घोषणा करते हुए
चुनाव आयोग द्वारा नियुक्त रिटर्निंग ऑफिसर नतीजों की आधिकारिक घोषणा करते हुए




 


 
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