दिल्ली की दहलीज़ पर किसानों और पुलिस के बीच गतिरोध जारी है. क़रीब एक साल लंबे चले आंदोलन के लगभग दो साल बाद फिर से किसान राजधानी की ओर अग्रसर हैं. नरेंद्र मोदी सरकार पर ये आरोप लगाते हुए कि उन्होंने पिछले आंदोलन के वक़्त जो वादे किए थे, वो पूरे नहीं किए. प्रशासन की कीलों, बैरिकेडिंग और आंसू गैस वाली तैयारी भले ही वैसी ही हो, लेकिन नेतृत्व और मांग के लिहाज़ से इस आंदोलन और पिछले आंदोलन में फ़र्क़ है. नए प्रदर्शन के नेता कौन हैं? पिछले आंदोलन वाले नेता - राकेश टिकैत, गुरनाम सिंह चढूनी और बलबीर सिंह राजेवाल - कहां है? सब जानते हैं.
पिछली बार वाले किसान आंदोलन के नेता अब कहां हैं, क्या कर रहे हैं?
राकेश टिकैत, गुरनाम सिंह चढूनी और बलबीर सिंह राजेवाल... कहां है अब ये सारे लोग?

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नए आंदोलन के नए नेता कौन हैं?पहला सवाल - क्या पिछले आंदोलन के नेता अभी भी ऐक्टिव हैं? नहीं. भारत के 500 छोटे-बड़े ज़्यादा किसान संघों की सबसे बड़ी बॉडी संयुक्त किसान मोर्चा - जिसने कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आंदोलन का नेतृत्व किया था - वो चल रहे विरोध प्रदर्शन में शामिल नहीं है. हालांकि, SKM ने 16 फ़रवरी को ग्रामीण भारत बंद का एक अलग आह्वान किया है. साथ ही मोर्चे ने सोमवार, 12 फ़रवरी को एक बयान जारी किया कि 'चलो दिल्ली' में भाग ले रहे किसानों का कोई दमन नहीं होना चाहिए.
जुलाई, 2022 में मुख्य संगठन SKM के नेतृत्व के साथ मतभेद के बाद एक गुट टूट कर अलग हो गया था. उन्होंने, संयुक्त किसान मोर्चा (ग़ैर-राजनीतिक) नाम से अलग गुट बनाया. इसके को-ऑर्डिनेटर जगजीत सिंह डल्लेवाल हैं, जो पंजाब के भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) सिधुपुर फ़ार्म यूनियन के अध्यक्ष थे.
मौजूदा विरोध में दूसरा बड़ा संगठन है, किसान-मज़दूर मोर्चा (KMM). इसका गठन पंजाब के यूनियन किसान मजदूर संघर्ष समिति (KMSC) के संयोजक सरवन सिंह पंधेर ने किया था. 2020-21 के विरोध प्रदर्शन में KMSC शामिल नहीं हुआ था, और उन्होंने दिल्ली सीमा पर कुंडली में एक अलग मंच स्थापित किया था. आंदोलन उठने के बाद KMSC ने अपने संगठन का विस्तार करना शुरू कर दिया और फिर KMM के गठन की घोषणा की, जिसमें पूरे भारत से 100 से ज़्यादा यूनियनें शामिल थीं.
तो फिर पुराने नेता कहां हैं?राकेश टिकैत: किसान आंदोलन में जो नाम सबसे ज़्यादा उभरा, वो था राकेश टिकैत. किसानों के बड़े नेता और भारतीय किसान यूनियन (BKU) के राष्ट्रीय प्रवक्ता. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर के सिसौली क़स्बे के हैं. प्रमुख किसान नेता और बीकेयू के सह-संस्थापक महेंद्र सिंह टिकैत के बेटे हैं.
किसान आंदोलन उठने के बाद भी ख़बरों में रहे. कभी पहलवानों के हवाले, कभी बयानों के. 'चलो दिल्ली' के नए आह्वान के बीच टिकैत की ग़ैर-मौजूदगी ने ध्यान खींचा. अभी हाल में गुरुवार, 8 फ़रवरी को ही राकेश टिकैत दिखे थे. ग्रेटर नोएडा में उनके मोर्चे के सदस्यों ने लोकल प्रशासन के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया था, तब. लेकिन इस बार वो नहीं हैं. अभी तक.
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हालांकि, एक प्रेस कॉन्फरेंस में BKU के महासचिव हरिंदर सिंह लाखोवाल ने कहा कि वो दिल्ली मार्च के फ़ैसले का समर्थन नहीं करते. लेकिन साथ ही चेतावनी भी दी कि अगर किसानों पर दमन हुआ, तो सभी किसान संगठन एकजुट होकर समर्थन देने के लिए सड़कों पर उतरेंगे.
राकेश टिकैत का भी बयान आया. उन्होंने कहा,
“हमने 16 फ़रवरी को 'भारत बंद' का आह्वान किया है. कई किसान समूह इसका हिस्सा हैं. किसानों को भी उस दिन अपने खेतों में नहीं जाना चाहिए और हड़ताल करनी चाहिए. इससे पहले भी किसान 'अमावस्या' के दिन खेतों में काम नहीं करते थे. 16 फरवरी को भी 'अमावस्या' है.”
बलराम सिंह राजेवाल: 80 साल बलबीर सिंह को किसान आंदोलन का थिंक टैंक कहा जाता था. आंदोलन का संविधान उन्होंने ही लिखा था. वो भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक नेताओं में से एक थे. पंजाब के खन्ना ज़िले के राजेवाल गांव से हैं. उनके संगठन का प्रभाव क्षेत्र लुधियाना के आसपास का मध्य पंजाब है.
राजेवाल पहले से शिरोमणि अकाली दल, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी जैसे राजनीतिक दलों के क़रीबी माने जाते रहे हैं, लेकिन उन्होंने कभी कोई आधिकारिक पद नहीं स्वीकारा. किसान आंदोलन के दौरान भी वो किसी भी राजनीतिक भागीदारी के ख़िलाफ़ थे.
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जब मोदी सरकार ने कृषि क़ानून वापस लेने की बात कही, तब पंजाब की 22 किसान यूनियन्स ने SKM से नाता तोड़ लिया और 2022 पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ने का इरादा ज़ाहिर किया. नई पार्टी बनी, 'संयुक्त समाज मोर्चा' और किसान मोर्चे ने ख़ुद को इस पार्टी से अलग कर लिया. बलबीर सिंह राजेवाल को नई पार्टी का मुख्यमंत्री चेहरा बनाया गया. संयुक्त संघर्ष पार्टी, नवां पंजाब पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (यूनाइटेड), अपना पंजाब पार्टी, भारतीय आर्थिक पार्टी जैसी पार्टियां या तो संयुक्त समाज मोर्चा में शामिल हो गईं या उन्हें समर्थन दिया.
मगर चुनाव नतीजे आए, तो मामला सिफ़र. संयुक्त समाज मोर्चा अपनी लड़ी सभी सीटों पर हार गई. मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया कि बलबीर सिंह राजेवाल की ज़मानत ज़ब्त हो गई. उन्हें मात्र 3.5% वोट मिले. यहां तक कि उस चुनाव में नोटा को उनकी पूरी पार्टी से 35 गुना ज़्यादा वोट मिले. और तो और, वो डिस-क्रेडिट भी हो गए.
गुरनाम सिंह चढूनी: 74 वर्षीय चढूनी हरियाणा के कुरुक्षेत्र ज़िले से हैं. राज्य के बड़े किसान नेता के तौर पर गिने जाते हैं. राजनीति में भी असर रहा है, क्योंकि परिवार राजनीति में सक्रिय है. उनकी पत्नी बलविंदर कौर भी काफ़ी सक्रिय रही हैं. उन्होंने 2014 में कुरुक्षेत्र से आम आदमी पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा था. हार गई थीं, मगर उन्हें तब भी 79 हज़ार वोट मिले थे.
गुरनाम ख़ुद भी चुनाव लड़ चुके हैं. हरियाणा राज्य के लाडवा (विधानसभा क्षेत्र) से विधानसभा चुनाव लड़ा था. ज़मानत तक न बचा पाए थे. आम आदमी पार्टी ने साल 2019 में उन्हें लोकसभा चुनाव के लिए टिकट दिया था, लेकिन वो ये चुनाव भी हार गए थे.
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कृषि क़ानून वापस लिए जाने के बाद उन्होंने भी - दिसंबर, 2021 में - अपनी पार्टी बनाई. संयुक्त संघर्ष पार्टी. पहले ख़बर आई थी कि वो 2022 के पंजाब विधानसभा में राज्य की सभी 117 सीटों पर लड़ेंगे, मगर फिर उन्होंने राजेवाल की पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया था. नतीजा भी राजेवाल सा रहा.
हालिया प्रदर्शन को लेकर उन्होंने बयान जारी किया है. जब हरियाणा के शंभू बॉर्डर पर किसानों और पुलिस के बीच भिड़त हुई और पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे, तो उन्होंने सरकार से संयम बरतने की अपील की. कहा,
"हमारा सरकार से कहना है कि सरकार सयंम बरते. किसानों पर ज़्यादती न करें. ये कोई विदेशी किसान नहीं हैं और न ही वहां कोई सीमा है, जहां पुलिस ऐसा व्यवहार कर रही है."
पिछले विरोध प्रदर्शनों में से कई प्रमुख नेताओं ने कहा है कि वो इस बार दूर रहेंगे. किसान यूनियन्स में फूट, गुटबाज़ी आम बात है. अकेले पंजाब में दर्जनों छोटे-बड़े किसान संगठन हैं. अगर इस नए मोर्चे को समर्थन मिलता है और किसानों के लिए एक भावनात्मक मुद्दा बनता है, तो अन्य किसान संघ पीछे नहीं रहेंगे. इसलिए जो किसान नेता दूर रहे हैं, वो कितना दूर रहते हैं, ये देखने वाली बात होगी.