और उन्होंने इसका 'स्वीपिंग कॉमेंट' के रूप में एक उत्तर भी दिया. बहरहाल चलिए पता लगाते हैं कोका-कोला के बनने की पूरी कहानी.
साल 1865. अमेरिका में गृह युद्ध का माहौल था. जॉन पेंबरटन नाम का एक लेफ्टिनेंट कर्नल अमेरिका के इस गृह युद्ध के दौरान बुरी तरह घायल हो गया.
लड़ाई में लगी चोटों और जलन से दर्द से उसका उठाना, बैठना, सोना तक मुहाल था. दर्द से राहत पाने के लिए पेंबरटन ड्रग की शरण में चला गया. अफीम खाने लगा और फ़ौज की नौकरी छोड़कर कोलंबस, जॉर्जिया में बस गया.

जॉन पेंबरटन
दर्द छूटा तो ड्रग्स की लत ने गिरफ्त में ले लिया. जब उसे लगा कि ‘आसमान से गिरा खजूर पर अटका’ वाली स्थिति हो गई है तो अफीम का विकल्प ढूंढने में जुट गया. ऐसा विकल्प जो नशीला, ज़हरीला और जानलेवा न हो.
और हां, बंदा हवा में हाथ-पैर नहीं मार रहा था. उसने आर्मी जॉइन करने से पहले फार्मेसी का कोर्स किया था. इसलिए अपना इलाज खोजने के दौरान ही उसने फिर से फार्मेसी को ही जीविकोपार्जन बनाने की भी ठानी. लेकिन उसका कोई भी प्रॉडक्ट, कोई भी दवाई नहीं चली और न ही अफीम का ही कोई विकल्प मिला.
थक-हार कर 1870 में उसने बड़े शहर में भाग्य आजमाने की सोची. वो एटलांटा चला गया. सिविल वॉर खत्म हो चुका था. लंबे युद्ध के बाद शांति थी तो लोगों ने फिर से पैसे और नाम के पीछे दौड़ना शुरू कर दिया. पेंबरटन के नए शहर एटलांटा में भी नया इंडस्ट्रियल रिवोल्यूशन आ चुका था.
लेकिन ये सारा विकास, सारे अच्छे दिन, सारा फील गुड फैक्टर भी इस असफल फार्मेसिस्ट और भुला दिए जा चुके लेफ्टिनेंट कर्नल के किसी काम न आया. बेदर्द थी ज़िंदगी, बेदर्द है.

फ्रैंक मेसन रॉबिनसन
तब पेंबरटन को एक और अमेरिकन मिला - फ्रैंक मेसन रॉबिनसन. मिलकर एक कंपनी बनाई – पेंबरटन केमिकल कंपनी. दोनों पार्टनर हुए और साथ में दो और भी जुड़े. एक था डेविड, रॉबिनसन का दोस्त और दूसरा था एड, पेंबरटन का दोस्त. कंपनी में हो गए कुल चार लोग.
पेंबरटन कंपनी का आरएंडडी डिपार्टमेंट देखता, मने प्रयोग वगैरह करता. रॉबिनसन अकाउंट और मार्केटिंग देखने लगा, मने पेंबरटन के प्रयोगों को बेचने का जिम्मा.
पेंबरटन ने रॉबिनसन को अपने उस ‘पेय’ का आइडिया भी दिया जो ड्रग का विकल्प हो सकता था, और जिसपे वो सालों से काम कर रहा था लेकिन कोई सफ़लता हाथ नहीं लगी थी.
इधर इन्हें अपने दवाइयों के बिज़नस में भी कोई सफलता हाथ नहीं लग रही थी. इसलिए अंततः दवाई के बिज़नस को छोड़कर उन्होंने ‘सर्विस सेक्टर’ में हाथ आजमाने की सोची. ‘सोडा फाउंटेन’ खोलने की सोची. ये ‘सोडा फाउंटेन’ एक कॉफ़ी शॉप सरीखा होता था जहां लोग केवल सोडा पीने ही नहीं, बल्कि बातचीत और सोशल होने के लिए भी जाते. सोडा फाउंटेन में कई तरह के सोडा फ्लेवर मिलते थे जैसे नींबू फ्लेवर, (जिसे राहुल गांधी की तरह कहने वाले शिकंजी भी कह सकते हैं) स्ट्रॉबेरी, जिंजर, चॉकलेट आदि. लेकिन इस सारे फ्लेवर्स में से कोका कोला कहीं नहीं था. क्यूंकि अगर वो होता, तो ये पूरी कहानी न होती.

जैकब फार्मेसी
बहरहाल, उस वक्त औरतें बार वगैरह में नहीं जाती थीं या उन्हें नहीं जाने दिया जाता था. इसलिए ये ‘सोडा फाउंटेन’ उनके लिए एक एस्केप रूट सरीखा बना. 1885 में एटलांटा ने अपने सारे बार बंद करने की ठान ली. ये सोने पे सुहागा की बात हो गई.
पेंबरटन को लगा कि कोई नया ही टेस्ट विकसित किया जाए, जो पिछले सारे फ्लेवर्स से अलग और बढ़िया हो. वो जॉर्जिया में अपने घर के बेसमेंट में प्रयोग करने में लग गया. महीनों तक चले प्रयोग में से जो भी निष्कर्ष निकल रहे होते वो ‘जेकब फार्मेसी’ के सोडा फाउंटेन में भेज देता था. ताकि वहां आने वाले ग्राहक इसके स्वाद की समीक्षा कर सकें. 8 मई, 1886 को उसे लगा कि उसने सही फॉर्मूला खोज लिया है.
पेंबरटन ने किसी नए तरीके के या नए फ्लेवर के कोला की खोज नहीं की थी, पेंबरटन ने कोला की खोज की थी. क्यूंकि उससे पहले कोला जैसी कोई चीज़, कोई पेय नहीं था.
प्रॉडक्ट बन चुका था. मार्केट तैयार था. ब्रैंडिंग करना और पैसे कमाना बाकी था. यानी अब रॉबिनसन की बारी थी. उसने प्रॉडक्ट का नाम कोका कोला (Coca Cola) रखने की ठानी. Coca इसलिए कि इसमें कोका प्लांट के पत्ते प्रयुक्त होते थे, और Kola इसलिए क्यूंकि इसमें Kola Nuts (एक तरह का बादाम) प्रयुक्त होते थे. Kola को Cola में बदल दिया गया जिससे एक अनुप्रास, एक गेयता उत्पन्न होती. फॉन्ट भी रॉबिनसन ने चुने. क्यूंकि वो एक बुककीपर था तो उसे उस वक्त की फॉर्मल और एलीगेंट लेखनी का ज्ञान और उसकी प्रैक्टिस थी. इस लेखनी को स्पेनसेरियन स्क्रिप्ट कहा जाता था. टाइपराइटर के अविष्कार और उसके घर-घर तक फैलने से पहले यही अमेरिका का आधिकारिक फॉन्ट था.

कोका कोला का पहला विज्ञापन
रॉबिनसन ने मई 29 को इस पेय का विज्ञापन भी एटलांटा कांस्टीट्यूशन नाम अख़बार में दिया. ये कोका कोला का पहला विज्ञापन था.
इस पेय को तब बोतलों में बंद करके या कैन में नहीं बेचा जाता था. क्यूंकि तब ऐसी पैकिंग की कोई व्यवस्था ही नहीं थी. एटलांटा के ‘सोडा फाउंटेन्स’ में इसे हर एक ग्राहक के लिए तुरंत तैयार किया जाता था. कोला सिरप में पहले बर्फ मिलाई जाती फिर सोडा और उसे हिलाकर ग्राहकों को एक कॉकटेल की तरह सर्व किया जाता.
पहले साल ये नई ड्रिंक घाटे का सौदा रही. लगभग 26 डॉलर का नुकसान हुआ. उधर पेंबरटन को युद्ध में मिले ज़ख्म और घाव फिर उभरने लगे थे. उसे पेट का इन्फेक्शन हो गया. और यूं 16 अगस्त, 1888 में वो चल बसा. मतलब ‘कोका कोला’ का इन्वेंटर चल बसा, जबकि अभी कोका-कोला की सफलता बहुत दूर थी.
अपने जीते जी पेंबरटन ने एक 21 साल के जॉब एप्लिकेंट को ठुकराया था. नाम था – आसा ग्रिग्स कैंडलर. आसा, पेंबरटन के ड्रग स्टोर में जॉब करना चाहता था लेकिन पेंबरटन के पास कोई वेकेंसी नहीं थी. लेकिन एक तरफ जहां पेंबरटन अपने पूरे जीवन में सफलता के लिए जूझता रहा, वहीं आसा धीरे-धीरे बुलंदियों की सीढ़ियां चढ़ता रहा. पेंबरटन की मौत और आसा के अमीर हो चुकने के बाद रॉबिनसन और आसा की बिज़नस मीट हुई.

आसा ग्रिग्स कैंडलर
रॉबिनसन चाहता था कि धनवान आसा कोका कोला का पेटेंट खरीद लें. लेकिन आसा इसे क्यूं ही खरीदता? एक तो कोक रॉबिनसन के लिए भी घाटे का सौदा थी और दूसरा आसा के पास वेंडिंग मशीन और सारे आवश्यक इक्विपमेंट नहीं थे, जो कोका कोला बनाने के लिए ज़रूरी थे.
लेकिन ये सब बदल गया जब एक दिन आसा ने संयोग से कोका-कोला को टेस्ट कर लिया. बस इसके बाद कोला को आसा ग्रिग्स कैंडलर ने खरीद लिया. 1892 में ‘दी कोका कोला कंपनी’ खोली. और इसके बाद ओके के बाद सबसे ज़्यादा बोले जाने वाले शब्द - कोका कोला, पानी के बाद सबसे ज़्यादा पिए जाने वाले ड्रिंक - कोका कोला की सफलता की कहानी शुरू हुई, जो आज तक बदस्तूर जारी है.
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