RBI ने रेपो रेट को 6.25 प्रतिशत से घटाकर 6 प्रतिशत कर दिया है. 0.25 प्रतिशत की कमी की है. बुधवार, 09 अप्रैल को RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा ने इस बात की जानकारी दी. इससे पहले फरवरी में भी RBI ने रेपो रेट में 0.25 परसेंट कटौती की थी. तब पांच साल बाद रेपो रेट में कमी की गयी थी. यानी आज लगातार दूसरी बार रेपो रेट में कमी की गई है. ऐसे में सवाल उठता है कि सेंट्रल बैंक ने ऐसा क्यों किया है? आज इसी सवाल का जवाब जानेंगे.
RBI ने पांच साल बाद लगातार दो बार रेपो रेट क्यों घटाई है?
RBI ने फरवरी 2025 में भी रेपो रेट में 0.25 परसेंट कटौती की थी. तब पांच साल बाद रेपो रेट में ये कमी की गयी थी. यानी आज लगातार दूसरी बार रेपो रेट में कमी की गई है. ऐसे में सवाल उठता है कि सेंट्रल बैंक ने ऐसा क्यों किया है?

ये जानने से पहले, आपको को बता दें कि RBI जिस ब्याज दर पर बैंकों को लोन देता है उसे रेपो रेट कहते हैं. रेपो रेट कम होने से बैंक को कम ब्याज पर लोन मिलेगा. बैंकों को लोन सस्ता मिलता है, तो वो इसका फायदा ग्राहकों को देते हैं. यानी, उनके लिए बैंक भी अपनी ब्याज दरें घटा देते हैं.
महंगाई का रेपो रेट से नाताजब महंगाई बहुत ज्यादा होती है, तो सेंट्रल बैंक रेपो रेट बढ़ाकर इकोनॉमी में मनी फ्लो को कम करने की कोशिश करता है. रेपो रेट ज्यादा होगा तो बैंकों को सेंट्रल बैंक से मिलने वाला कर्ज महंगा होगा. बदले में बैंक अपने ग्राहकों के लिए लोन महंगा कर देते हैं. इससे इकोनॉमी में मनी फ्लो कम होता है. मनी फ्लो कम होता है तो डिमांड में कमी आती है और महंगाई घट जाती है.
इसी तरह जब महंगाई दर में कमी आती है तो RBI को रेपो रेट में कमी करने का मौका मिल जाता है. RBI का अनुमान है कि करेंट फाइनेंशियल ईयर में एवरेज रिटेल महंगाई 4.8 परसेंट रहेगी. अगले की शुरुआत में ये और नीचे यानी चौथी तिमाही में 4.4 परसेंट तक नीचे आ सकती है. यानी कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स यानी रिटेल महंगाई दर कम है, तो RBI को रेपो रेट कम करने का मौका मिल गया है.
बैंकों में पैसे की किल्लत!इस समय बैंकिंग सिस्टम में कैश की किल्लत बनी हुई है. मार्च 2025 तक बैकिंग सिस्टम में नकदी की कमी एक लाख 10 हजार करोड़ रुपये के आसपास पहुंच गई है. यानी रिकवरी के लिए मनी फ्लो बढ़ाने की जरूरत है. माना जा रहा है कि इसलिए भी सेंट्रल बैंक ने रेपो रेट कम कर दिया है. इससे बैंकों को सेंट्रल बैंक से मिलने वाला कर्ज सस्ता हो जायेगा और ग्राहकों को सस्ती दर पर लोन मिलेगा. दरों में हुई कटौती से नकदी बढ़ाने में और मदद मिलेगी.
GDP ग्रोथ बढ़ाने के लिए लिया फैसलाभारत की आर्थिक ग्रोथ में सुस्ती को लेकर चिंता जताई जा रही है. डॉनल्ड ट्रंप के रिसीप्रोकल टैरिफ ने ये चिंता और भी बढ़ा दी है. फाइनेंशियल ईयर 2024-25 की दूसरी तिमाही में भारत की GDP ग्रोथ 5.6 परसेंट रही, जो वित्त वर्ष 2023-24 के इसी दौरान के मुकाबले काफी कम है. हालांकि तीसरी तिमाही में भारत की विकास दर कुछ बढ़ी और 6.2 परसेंट तक पहुंच गई, लेकिन फिर भी यह RBI के 6.7 परसेंट के अनुमान से नीचे है. जानकारों की मानें तो आरबीआई ने आर्थिक ग्रोथ को बढ़ाने के लिए कर्ज को सस्ता करने का फैसला किया है.
रेपो रेट कम करने का फैसला कुछ और चीजों को देखकर भी लिया जाता है. जैसे कच्चे तेल के दाम. इस समय कच्चे तेल के दाम काफी नीचे आ चुके हैं. क्रूड से महंगाई का सीधा कनेक्शन है, क्योंकि क्रूड सस्ता रहेगा तो पेट्रोल-डीजल के दाम काबू में रहेंगे. अभी क्रूड 60 से 65 डॉलर प्रति बैरल के आसपास चल रहा है. बताते हैं कि क्रूड की कीमत कम होने के चलते भी, RBI को रेपो रेट कम करने का फैसला लेने में आसानी हुई है.
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