इस खबर को पढ़ने से पहले एक बार ज़रा अपने चारों ओर नज़र घुमाइए. आपको प्लास्टिक से जुड़ा कोई न कोई प्रोडक्ट ज़रूर दिख जाएगा. कोई पॉलीथिन, कोई बॉक्स, बच्चे का खिलौना, परफ्यूम कुछ भी. प्लास्टिक के इन सामानों में एक खास केमिकल का इस्तेमाल होता है. नाम है थैलेट्स (Phthalates). इसे Everywhere Chemical के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि ये लगभग हर प्लास्टिक की चीज़ में मौजूद होता है.
प्लास्टिक से दुनियाभर में लाखों मौतें, भारत का नंबर जानकर यूज करना छोड़ देंगे!
प्लास्टिक के सामान में एक खास केमिकल का इस्तेमाल होता है. नाम है थैलेट्स. थैलेट्स के परिवार का एक सदस्य है DEHP. ये DEHP पूरी दुनिया में दिल की बीमारियों से होने वाली 13% से ज़्यादा मौतों के लिए जिम्मेदार है.

थैलेट्स के ही परिवार का एक सदस्य है DEHP. यानी ‘di(2-ethylhexyl) phthalates’. क्या आपको पता है कि यही DEHP दुनियाभर में दिल की बीमारियों से होने वाली 13% से ज़्यादा मौतों के लिए जिम्मेदार है? साल 2018 में DEHP की वजह से पूरी दुनिया में साढ़े 3 लाख से ज़्यादा मौतें हुई थीं. ये सभी मौतें दिल की बीमारी से जुड़ी थीं. इसका शिकार 55 से 64 साल की उम्र के लोग हुए थे. इनमें से 1 लाख 3000 से ज़्यादा मौतें हमारे देश भारत में हुई थीं.

ये खुलासा हुआ है, The Lancet Group की जर्नल eBioMedicine में छपी एक रिसर्च में. इसे अमेरिका की न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने किया है. पता चला कि साउथ एशिया, ईस्ट एशिया, द पैसेफिक और मिडिल ईस्ट इस दिक्कत से सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं. DEHP की वजह से होने वाली कुल मौतों में करीब 75% मौतें इन्हीं क्षेत्रों में हुई हैं.
अगर देशों के हिसाब से देखें, तो सबसे बुरा असर भारत पर पड़ा है. जैसा हमने अभी बताया, DEHP की वजह से होने वाली दिल की बीमारियों से दुनियाभर में साढ़े 3 लाख से ज़्यादा मौतें हुई थीं. इनमें से 1 लाख 3 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत भारत में हुई है. दूसरा नंबर चीन का है. यहां करीब 61 हज़ार मौतें हुई थीं. तीसरा नंबर इंडोनेशिया का है. जहां साढ़े 19 हज़ार से ज़्यादा लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी.
रिसर्चर्स का मानना है कि ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि ये देश प्लास्टिक तो ज़्यादा पैदा करते हैं ही, लेकिन केमिकल सेफ्टी से जुड़े इनके नियम बहुत कमज़ोर हैं. वैसे रिसर्च का फोकस सिर्फ DEHP और एक खास आयु वर्ग पर था. इसलिए, मुमकिन है कि प्लास्टिक में मौजूद केमिकल्स से होने वाली मौतों की संख्या असलियत में और ज़्यादा हो.
मगर DEHP हमारे शरीर में पहुंचता कैसे है. इसका क्या नुकसान है? और, इससे दिल की बीमारियों के अलावा और क्या-क्या दिक्कतें हो सकती हैं. ये सवाल हमने पूछे फरीदाबाद के अमृता हॉस्पिटल में एडल्ट कार्डियोलॉजी के हेड डॉक्टर विवेक चतुर्वेदी से.

डॉक्टर विवेक कहते हैं कि DEHP छोटे-छोटे कणों में टूटकर हमारे शरीर में पहुंचता है. ये खाने, पानी, स्किन और हवा के ज़रिए शरीर में दाखिल हो सकता है. ये खून चढ़ाने और डायलिसिस जैसी मेडिकल प्रक्रियाओं के ज़रिए भी पहुंच सकता है क्योंकि DEHP कई मेडिकल उपकरणों में भी पाया जाता है.
जब ये शरीर में पहुंचता है. तो दिल की आर्टरीज़ यानी धमनियों में सूजन पैदा करता है. अगर ये सूजन लंबे वक्त तक बनी रहे, तो हार्ट अटैक आ सकता है. व्यक्ति को स्ट्रोक भी पड़ सकता है. वैसे सिर्फ दिल ही नहीं, थैलेट्स के संपर्क में आने से कई दूसरी दिक्कतें भी हो सकती हैं. जैसे हॉर्मोन्स का असंतुलन, डायबिटीज़, मोटापा, फर्टिलिटी से जुड़ी समस्याएं और यहां तक कि कैंसर भी. इसलिए कोशिश करें कि प्लास्टिक का इस्तेमाल कम से कम हो.
प्लास्टिक से बने सामान को कम से कम खरीदें. कोशिश करें कि प्लास्टिक के डिब्बों में खाना न रखें. सामान रखने के लिए कांच, स्टील, सेरामिक और लकड़ी के बर्तनों का इस्तेमाल करें. हालांकि डॉक्टर विवेक का कहना है कि ये एक गंभीर मुद्दा है. ज़रूरत है कि इस पर और ज़्यादा रिसर्च हो.
(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)
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