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ख़राब हवा से जान कैसे चली जाती है? हर साल 17 लाख जानें ले रहा प्रदूषण

वायु प्रदूषण में कई हानिकारक केमिकल्स पाए जाते हैं. जैसे PM 2.5, नाइट्रिक ऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड. जब ये शरीर में जाते हैं, तो भीतर से बहुत नुकसान पहुंचाते हैं.

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देश के कई शहरों में AQI सीवियर कैटेगरी में हैं

'हर साल खासकर सर्दियों में पॉल्यूशन बढ़ता ही है. इसमें नया क्या है?' अगर आप भी यही सोचते हैं. तो एक बात जान लीजिए. यही एयर पॉल्यूशन देश में हर साल 17 लाख से ज़्यादा जानें ले रहा है. ये सामने आया है द लैंसेट जर्नल की एक रिपोर्ट में. 

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इस रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 15 सालों में एयर पॉल्यूशन से होने वाली मौतों की दर तेज़ी से बढ़ी है. इन 17 लाख मौतों के पीछे बड़ा हाथ है PM 2.5 है. PM यानी पर्टिकुलेट मैटर. ये धूल, मिट्टी, पोलेन यानी पराग और केमिकल के बहुत बारीक कण होते हैं. जब आप प्रदूषण में सांस लेते हैं. तब ये कण सांस की नली के ज़रिए आपके फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं. इनका फेफड़ों में जाना ख़तरनाक है.

यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो की एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स रिपोर्ट 2024 के मुताबिक, भारत की हवा इतनी खराब है कि ये आपकी जिंदगी के 5 साल कम कर रही है. 

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अगर आप दिल्ली या उसके आसपास रहते हैं. तब तो आपके लिए ख़तरा और भी बड़ा है. पॉल्यूशन की वजह से आपकी ज़िंदगी के 8 साल घट रहे हैं. 

दिल्ली में हाई बीपी, डायबिटीज़ और मोटापे से इतनी जानें नहीं जातीं. जितनी एयर पॉल्यूशन से जाती हैं. इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन यानी IHME ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट से पता चला है कि साल 2023 में, दिल्ली में PM 2.5 की वजह से 17,188 मौतें हुई थीं.

ऐसे में डॉक्टर से जानिए कि क्या एयर पॉल्यूशन से मौत तक हो सकती है. अगर हां, तो क्यों. पॉल्यूशन से शरीर के अलग-अलग अंगों पर क्या असर पड़ता है. और, इस पॉल्यूशन से खुद को कैसे बचाएं. 

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क्या वायु प्रदूषण से जान तक जा सकती है?

ये हमें बताया डॉक्टर तनुश्री गहलोत ने. 

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डॉ. तनुश्री गहलोत, एडिशनल डायरेक्टर, पल्मोनोलॉजी, फोर्टिस, ग्रेटर नोएडा

दिल्ली–NCR में वायु प्रदूषण का लेवल अब गंभीर चिंता का कारण बन चुका है. इसकी जानलेवा रफ्तार लगातार बढ़ती जा रही है. प्रदूषण से फेफड़ों, दिमाग, दिल और कई ज़रूरी अंगों को नुकसान पहुंचता है. छोटे बच्चों, बुज़ुर्गों, प्रेग्नेंट महिलाओं और कमज़ोर इम्यूनिटी वाले लोगों पर इसका असर सबसे ज़्यादा पड़ रहा है. वायु प्रदूषण से जान जाने का ख़तरा भी तेज़ी से बढ़ा है. 

वायु प्रदूषण जानलेवा क्यों है?

वायु प्रदूषण में कई हानिकारक केमिकल्स पाए जाते हैं. जैसे PM 2.5, नाइट्रिक ऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड. ये सभी ज़हरीली गैसें हैं. जब ये शरीर में जाती हैं, तो भीतर से नुकसान पहुंचाती हैं. सबसे पहले ये फेफड़ों में जाती हैं और उसको नुकसान पहुंचाती हैं. ऑक्सीडेंट्स से फेफड़ों में कैंसर जैसी बीमारियां हो सकती हैं. 

जिन लोगों को अस्थमा या ब्रोंकाइटिस है, उनमें अटैक पड़ने का रिस्क होता है. बच्चों और बुज़ुर्गों में ये निमोनिया जैसी बीमारी पैदा कर सकता है. प्रेग्नेंट महिलाओं और उनके होने वाले बच्चों पर भी वायु प्रदूषण का बुरा असर पड़ता है. अगर किसी को पहले से डायबिटीज़ या हाई ब्लड प्रेशर है, तो प्रदूषण के चलते उन्हें हार्ट अटैक जैसी गंभीर दिक्कतें हो सकती हैं.

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प्रदूषण से बचने के लिए मास्क लगाकर ही घर से बाहर निकलें 

वायु प्रदूषण से शरीर के अलग-अलग अंगों को क्या नुकसान पहुंचता है?

वायु प्रदूषण अलग-अलग अंगों को अलग-अलग तरीके से नुकसान पहुंचाता है. हमारे फेफड़े और दिल सबसे ज़्यादा सेंसेटिव होते हैं. ये दोनों ही सबसे पहले प्रदूषण के संपर्क में आते हैं. जैसे-जैसे प्रदूषण का लेवल बढ़ता है, वैसे-वैसे हानिकारक कण फेफड़ों में जमा होते जाते हैं. इससे अस्थमा का अटैक पड़ सकता है. निमोनिया और लंग कैंसर जैसी बीमारियां बढ़ने लगती हैं.

हार्ट अटैक के मामले ज़्यादा देखने को मिलते हैं. स्ट्रोक के केस भी बढ़ते हैं, क्योंकि प्रदूषण से खून के बहाव पर असर पड़ता है. खून गाढ़ा हो सकता है, जो दिल और दिमाग दोनों पर असर डालता है. 

तीसरा अहम अंग दिमाग है, जिस पर प्रदूषण का असर दिखता है. ये ब्रेन फॉगिंग कर सकता है. यानी सोचने, याद रखने या ध्यान लगाने में दिक्कत होना. व्यक्ति की मानसिक क्षमता पर असर पड़ता है. याद्दाश्त कमज़ोर हो सकती है, कन्फ्यूज़न हो सकता है. 

साथ ही, प्रदूषण से स्किन में भी कई बदलाव देखने को मिलते हैं. जैसे चकत्ते पड़ना वगैरह.

वायु प्रदूषण से खुद को कैसे बचाएं?

वायु प्रदूषण से तभी बचा जा सकता है, जब हम सब अपना योगदान दें. अथॉरिटीज़ और सरकार प्रदूषण रोकने के लिए लगातार काम कर रही हैं. लेकिन, एक ज़िम्मेदार नागरिक के तौर पर हम भी कुछ चीज़ें कर सकते हैं. जैसे अपनी कार का रेगुलर चेकअप कराना. पॉल्यूशन सर्टिफिकेट (PUC) हमेशा अपडेट रखना. गाड़ियों का बहुत ज़्यादा इस्तेमाल न करना. अपनी सेहत और खानपान का ख्याल रखना. खूब पानी पीना. 

जिन्हें अस्थमा या ब्रोंकाइटिस है, वो डॉक्टर से मिलते रहें. घर में एयर प्यूरीफायर और बाहर मास्क का इस्तेमाल ज़रूर करें. बाज़ार में कई कंपनियों के एयर प्यूरीफायर आते हैं. आप अपने घर के लिए एक अच्छा एयर प्यूरीफायर खरीद लें. बाहर निकलें तो N-95 या नॉर्मल सर्जिकल मास्क ज़रूर पहनें. कोशिश करें कि बहुत प्रदूषित इलाकों में न जाएं.

घर से निकलने से पहले, एयर क्वालिटी इंडेक्स चेक कर लें. अगर AQI ज़्यादा है, तो बाहर निकलना अवॉयड करें. अगर बाहर जाना पड़ रहा है, तो मास्क लगाकर निकलें. आप घर पर एयर प्योरिफायर रख सकते हैं. अस्थमा या फेफड़ों की दूसरी बीमारियों से जूझ रहे मरीज़ इस वक्त अपना खास ख्याल रखें. कोई भी परेशानी होने पर तुरंत डॉक्टर से मिलें. 

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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