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हेपेटाइटिस बी की वैक्सीन लगवा लीजिए, वरना लिवर पूरी तरह फ़ेल हो जाएगा!

हेपेटाइटिस बी एक वायरस है. ये खून के ज़रिए फैलता है. भारत में हेपेटाइटिस बी होना बहुत आम है. 2022 में देश के करीब 3 करोड़ लोग इससे इंफेक्टेड थे.

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हेपेटाइटिस बी के मामले भारत में काफी आम हैं (फोटो:Getty Images)

अप्रैल 2025. लखनऊ में स्थिति निर्वाण संस्था में रहने वाले 9 बच्चों को हेपेटाइटिस बी इंफेक्शन हो गया. पहले बच्चों ने उल्टी, पेट दर्द और दस्त की शिकायत की. फिर अचानक बेहोश होने लगे. जब उनकी जांच हुई तो पता चला कि उन्हें हेपेटाइटिस हो गया है. अब उनका इलाज चल रहा है.

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अक्टूबर 2024. उत्तर प्रदेश का कानपुर शहर. यहां के एक अस्पताल में कुछ लोगों को खून चढ़ाया जा रहा था. इन लोगों में बच्चे भी शामिल थे. खून चढ़ा और इसके बाद 14 बच्चों को हेपेटाइटिस और HIV हो गया. इनमें से 7 बच्चों को हेपेटाइटिस बी हुआ.

फरवरी 2009. गुजरात का वडोदरा शहर. यहां एक 23 साल की महिला को हेपेटाइटिस बी हुआ. वजह? 5 महीने पहले लगाया गया इंजेक्शन. 

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हेपेटाइटिस बी इंफेक्शन के मामलों में, भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर है.

World Health Organization यानी WHO के मुताबिक, साल 2022 में हिंदुस्तान में हेपेटाइटिस बी के करीब 3 करोड़ मामले सामने आए थे. पिछले दिनों स्वास्थ्य राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने बताया कि पिछले 5 सालों में हेपेटाइटिस बी से 2,729 मौतें हुई हैं. इनमें से 607 मौतें पिछले साल ही हुई थीं. यानी हेपेटाइटिस बी देश के लिए एक बड़ी मुसीबत है. डॉक्टर्स इसे साइलेंट किलर भी कहते हैं.

लेकिन, ये हेपेटाइटिस बी है क्या? ये एक वायरल इंफेक्शन है, जो लिवर में सूजन पैदा करता है और उसे बुरी तरह नुकसान पहुंचाता है. इतना नुकसान, कि कई बार लिवर फ़ेल तक हो जाता है. हेपेटाइटिस बी, HBV यानी हेपेटाइटिस बी वायरस की वजह से फैलता है. ये इतना संक्रामक है कि दूषित सुई, खून यहां तक कि अनसेफ सेक्स से भी फैल सकता है.  

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ये बीमारी बहुत आम है. ऐसे में डॉक्टर से समझिए कि हेपेटाइटिस बी क्या है. ये हमारे देश में इतना आम क्यों है. हेपेटाइटिस बी क्यों होता है. इसके लक्षण क्या हैं. और, हेपेटाइटिस बी से बचाव और इलाज कैसे किया जाए.  

हेपेटाइटिस बी क्या होता है?

ये हमें बताया डॉक्टर दीप कमल सोनी ने. 

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डॉ. दीप कमल सोनी, कंसल्टेंट, गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट, इंडियन स्पाइनल इंजरीज़ सेंटर, नई दिल्ली

हेपेटाइटिस बी एक वायरस है. ये खून के ज़रिए फैलता है. भारत में हेपेटाइटिस बी होना बहुत आम है. 2022 में देश के करीब 3 करोड़ लोग इससे इंफेक्टेड थे. हेपेटाइटिस बी संक्रमित खून चढ़ाने या संक्रमित सुई के इस्तेमाल से फैल सकता है. अगर कोई इंजेक्शन ऐसे मरीज़ को लगा जिसे हेपेटाइटिस बी है. फिर वही इंजेक्शन दूसरे मरीज़ को लगा दिया गया. तब उस मरीज़ को भी हेपेटाइटिस बी हो सकता है. ये मां से बच्चे को भी हो सकता है. अगर किसी मां को हेपेटाइटिस बी है, तो वो उसके बच्चे को भी हो सकता है.

हेपेटाइटिस बी के लक्षण

अक्सर व्यक्ति को पता नहीं चल पाता उसे हेपेटाइटिस बी का इंफेक्शन हो गया है. दरअसल, हमारे शरीर की इम्यूनिटी इस वायरस से लगातार लड़ती रहती है. इसलिए, ज़्यादातर मामलों में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते. मगर जब किसी लंबी बीमारी, एक्सीडेंट, डायबिटीज़ या टीबी के कारण शरीर की इम्यूनिटी कमज़ोर हो जाती है. तब शरीर की इम्यूनिटी कमज़ोर हो जाती है. ऐसे में हेपेटाइटिस बी के लक्षण दिखने लगते हैं. जैसे पीलिया होना. पेशाब में पीलापन आना. आंखों में पीलापन होना. बहुत ज़्यादा थकान या कमज़ोरी लगना.

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हेपेटाइटिस बी की वैक्सीन लगवाना बहुत ज़रूरी है

हेपेटाइटिस बी से बचाव और इलाज

हेपेटाइटिस बी से बचने के लिए वैक्सीन लगवाना बहुत ज़रूरी है. 6 महीने में 3 डोज़ लगते हैं. ये वैक्सीन 6 से 10 साल तक की इम्यूनिटी देती है. हर व्यक्ति में ये इम्यूनिटी अलग-अलग समय तक बनी रहती है. आमतौर पर बच्चों को ये वैक्सीन दी जाती है. लेकिन, 18 साल से ऊपर के लोगों को भी इसकी ज़रूरत पड़ती है. अगर आप कभी ब्लड टेस्ट करवाएं, तो हेपेटाइटिस बी और सी की जांच ज़रूर करवाएं. अगर टेस्ट का रिज़ल्ट पॉज़िटिव आए, तो डॉक्टर से मिलें. 

अगर रिज़ल्ट निगेटिव आता है, तो भी वैक्सीन ज़रूर लगवाएं. इससे शरीर में करीब 10 साल तक की इम्यूनिटी बनी रहती है. इम्यूनिटी कितने समय तक रहेगी, ये व्यक्ति पर निर्भर करता है. बचाव के लिए हमेशा अच्छी जगह से ही खून चढ़वाएं. इलाज भी किसी अच्छे और सर्टिफाइड डॉक्टर से ही करवाएं. झोलाछाप डॉक्टरों से दूर रहें. बिना स्टरलाइज़ (पूरी तरह से साफ और कीटाणुरहित) हुई सुई या इंजेक्शन इस्तेमाल न होने दें. एक ही इंजेक्शन कई लोगों को लगता है, जिससे हेपेटाइटिस बी फैलता है. 

पहले हेपेटाइटिस बी का इलाज बहुत मुश्किल और कम असरदार होता था. मरीज़ों को 16 से 20 इंजेक्शन लगते थे, फिर भी आराम नहीं मिलता था. लिवर सिरोसिस हो जाता था, यानी लिवर सड़ने लगता था. कई बार मरीज़ की जान चली जाती थी या उन्हें लिवर कैंसर हो जाता था. लेकिन, अब एक ऐसी दवा आती है, जिसे दिन में सिर्फ एक बार लेना होता है. ये दवा वायरस को पूरी तरह कंट्रोल में रखती है.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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