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'लेडी बर्ड': क्यों इस अवॉर्ड सीज़न में इस नन्ही सी फिल्म की दीवानगी है?

ऑस्कर-2018 की शीर्ष फिल्मों से एक, इस फिल्म को गर्ल्स ज़रूर देखें.

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क्रिस्टीन "लेडी बर्ड" अपनी दोस्त जूली के साथ पैदल घर लौटते हुए पॉश इलाके के एक घर के सामने रुक जाती है. बताती है कि काश वो यहां रहती. अगर यहां रहती तो निश्चित रूप से अपनी शादी घर के पिछले आंगन में करती. दोस्तों को रोज़ बुलाती. साथ में स्नैक्स खाते और उसके पास सुविधा होती कि स्नैक्स लेकर अलग से ऊपर बने टीवी रूम में जा सकती. ये सब उसकी कामनाएं हैं, लेकिन वो ऐसी सुविधाओं वाले घर में नहीं रहती. लेकिन इससे उसकी तमन्नाओं में कभी कमी नहीं आती. (फोटोः A24)
“प्यारी लेडी बर्ड, जब मैं तुम्हे लेकर प्रेग्नेंट हुई तो ये जादू था. मेरी उम्र ज्यादा थी. मैं करीब करीब 42 की हो चुकी थी. हमारे पास बच्चा मिगेल ही था और ऐसा लग रहा था कि दोबारा हम मां-बाप नहीं बन पाएंगे औऱ तभी तुम आई. मैं तुम्हे जानती भी नहीं थी तब से प्यार करती थी. तुम जब सिर्फ एक विचार थी तब से मैं तुम्हे प्यार करती थी. जब तुम 7 बजे पहुंची (12 घंटे की प्रसव पीड़ा के बाद), मैंने तुम्हे पहचान लिया. मुझे पता था कि तुम मेरी बच्ची हो. तुम्हे बड़ा होते देखना मेरी जिंदगी के सबसे शानदार एडवेंचर्स में से एक है. तुम हमेशा तुम ही रही हो. ज़िद्दी और मज़ाकिया और प्यारी और प्रतिस्पर्धी और शानदार. मैं उम्मीद करती हूं कि हम दोनों दोस्त बन पाएं. पता नहीं कब हमारा रिश्ता पटरियों से उतरता गया. मैं तुमसे कहना चाहती हूं कि मैं तुमसे बहुत ज्यादा प्यार करती हूं.”
- अमेरिका में कैलिफोर्निया के बड़े शहर सेक्रेमैंटो के एक अस्पताल में नर्स का काम करने वाली मैरियन अपनी 18 साल की बेटी लेडी बर्ड से नाराज़ है और उससे बात नहीं कर रही क्योंकि उसकी बेटी ने बिना बताए घऱ से दूर न्यू यॉर्क के ऊंचे कॉलेज में अप्लाई कर दिया और वहां जा रही है. मैरियन कुछ दिन बाद जब पाती है कि उसकी बेटी पहली बार उससे दूर जा रही है तो वो पिघल जाती है और भावुक होकर उसे लेटर लिखती है. लेकिन फिर एक के बाद दूसरा लेटर कचरे के डिब्बे में फेंक रही है. क्योंकि वो चाहती है कि बेटी को लिखा उसका लेटर परफेक्ट हो. अंततः वो कोई लेटर नहीं देती. लेकिन ‘लेडी बर्ड’ का डिप्रेशन से पीड़ित प्यारा पिता उन सब लेटर्स को कचरे के डिब्बे से निकालकर लेडी बर्ड के बैग में डाल देता है. जब वो न्यू यॉर्क पहुंचती है और अपना बैग खोलती है तो उसे अन्य पत्रों के साथ ये एक कुचला पत्र भी मिलता है जो मैरियन ने लिखा है.
लेडी बर्ड उसका असली नाम नहीं है. उसका असली नाम है क्रिस्टीन. लेकिन उसने बड़ी होने के बाद खुद अपना नया नामकरण कर लिया - क्रिस्टीन "लेडी बर्ड" मैकफर्सन. लेडी बर्ड वैसे तो उस लाल रंग के आकर्षक कीड़े का नाम होता है जिस पर काले बिंदु बने होते हैं लेकिन यहां अभिप्राय शायद ऐसी लड़की से है जो जीवन में उन्मुक्त, आज़ाद होकर उड़ती हो. क्रिस्टीन वैसी ही है. फिल्म के अंत में जब वो 18 साल की बालिग़ होती है तो शहर के एक स्टोर जाती है और वहां से सिगरेट का एक पैकेट, लॉटरी का एक टिकट और लड़कियों के लिए छपने वाली नग्न पुरुषों की तस्वीरों वाली प्लेगर्ल मैगज़ीन खरीदती है. स्टोर पर सामान दे रहे सिख युवक को वो बताती है कि अब बालिग़ हुई है और बर्थडे की खुशी में ये सब खरीद रही है. वो उसे बधाई देता है. बाहर आकर वो सिगरेट सुलगाती है और मैगजीन के पन्ने पलटने लगती है.
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इस फिल्म की तकरीबन सारी कहानी इससे पहले घटती है. जो 2002 में शुरू होती है. क्रिस्टीन (सर्शा रोनन) ईसाई धर्म वाले एक हाई स्कूल में पढ़ती है. खुले तौर पर वो कहती है कि उसे कैलिफोर्निया राज्य से नफरत है जिसमें सेक्रेमैंटो पड़ता है. वो कॉलेज की पढ़ाई के लिए ईस्ट-कोस्ट जाना चाहती है. एलीट कॉलेजों में. मां कहती है कि उसके पिता वहां के बड़े कॉलेजों की फीस अफोर्ड नहीं कर पाएंगे. वो अपनी बेटी के लिए दुनिया की बेस्ट चीजें चाहती है. लेकिन सीमित आय में घर चलाते हुए वो अपने बच्चों के लिए बढ़िया करने की कोशिश में बहुत तंग होती रहती है. जैसे कि मांएं होती हैं. वो बेटी से उम्मीद करती है कि वो समझेगी उनके घर का आर्थिक स्तर क्या है और वो उसी हिसाब से चलेगी. वो गलतियां करके सीखने के बजाय अपनी मां की सलाह पर चलेगी तो लाइफ में वो संघर्ष करने से बच जाएगी जो उसने किया. लेकिन लेडी बर्ड महत्वाकांक्षी है, बाग़ी है, क्रूरता की हद तक मुंहफट है, अपना स्वार्थ साधने के लिए अल्पकालीन झूठ बोलने से ज़रा भी नहीं हिचकती. उसे समाज, परिवार और विवशताओं के हिसाब से चलना मंजूर नहीं. जो उसे चाहिए वो चाहिए. अपनी चाहत की हर चीज़ पाने के लिए वो ट्राय करती है. चाहे उसमें असफलता ही क्यों न मिले. चाहे बाद में सॉरी ही क्यों न बोलना पड़े. अपने कमरे की दीवार पर उसने पोस्टर लगा रखा है – ‘वोट फॉर लेडी बर्ड’. उसके कैथलिक स्कूल की बुजुर्ग सिस्टर भी उसका ऐसा एक पोस्टर देखकर चौंक जाती है जिसमें लेडी बर्ड ने एक कबूतर के धड़ पर अपना सिर लगा लिया है और खुद को राष्ट्रपति चुनाव के प्रत्याशी के तौर पर दिखाया है. इससे पता चलता है उसके सपनों की उड़ान कितनी लाजवाब है.
बेसिकली, वो किसी भी दूसरी टीनएजर की तरह अधीर है और जीवन की बेस्ट चीजों को अनुभव करना चाहती है. इसमें मां हर जगह उसकी आलोचना करती है, टोकती है. और यही लेडी बर्ड को पसंद नहीं आता. दोनों के बीच बहुत ज़बानी लड़ाइयां होती हैं. वैसे ही जैसे हर मां-बेटी में होती हैं. या पिता-पुत्र में होती हैं. ये कहानी मां-बेटी के इसी रिश्ते का ऐसा प्रतिबिंब है जिसे देखते हुए दर्शक को लगेगा कि ये तो मेरी ही मां है, या मेरी ही बहन है, या मेरी ही बेटी है. कहानी के आखिर में लेडी बर्ड जानती है कि किस तरह वो बिलकुल अपनी मां जैसी ही है. किस तरह इतनी अडिग दिमाग वाली होने का गुण उसे अपनी मां से ही मिला है. उसकी नानी शराबी थी और उसकी मां को मारती-पीटती थी. लेकिन उसकी मां ने खुद को एम्पावर किया और वो जितनी भी आगे बढ़ पाई, उसी की बदौलत लेडी बर्ड इतनी आगे बढ़ पाई.
क्रिस्टीन (सर्शा) अपनी मां मैरियन (लॉरी मेटकाफ) के साथ शॉपिंग करते हुए. इस दौरान में दोनों के बीच विचारों का टकराव चलता रहता है. लेकिन साथ ही दिखता भी रहता है कि दोनों के व्यक्तित्व कितने समान हैं.
क्रिस्टीन (सर्शा) अपनी मां मैरियन (लॉरी मेटकाफ) के साथ शॉपिंग करते हुए. इस दौरान में दोनों के बीच विचारों का टकराव चलता रहता है. लेकिन साथ ही दिखता भी रहता है कि दोनों के व्यक्तित्व कितने समान हैं.

‘लेडी बर्ड’ इस लिहाज से बहुत ही आला दर्जे की फिल्म है जो रिश्तों की जटिलता, जिदंगी की फिलॉसफी और टीनएज होने के दौर को दिखाती है.
इसके अलावा आज के टाइम में ये फिल्म बहुत रेलेवेंट भी है. ये टाइम महिलाओं के मुखर होने और आगे आने का है. हर गैर-बराबरी के खिलाफ आवाज़ उठाने का है. पिछले साल #मी-टू जैसा ऐतिहासिक कैंपेन हुआ जिसमें दुनिया भर की महिलाओं ने झिझक पीछे छोड़ते हुए ताकतवर और बड़े लोगों की यौन हिंसा और शोषण को उजागर किया. टाइम मैगजीन ने इन महिलाओं पर कवर स्टोरी की. ‘लेडी बर्ड’ इस दौर और आने वाले समय की लड़कियों के लिए एक मस्ट वॉच फिल्म है. कि कैसे हर लड़की को अपनी-अपनी लड़खड़ाहटों वाले अनुभवों के साथ ही उड़ना सीखना चाहिए और बाग़ी होकर ऐसा करना चाहिए.
इस फिल्म को बनाया है ग्रेटा गरविग ने जो ख़ुद एक्ट्रेस हैं. राइटर और डायरेक्टर के तौर पर ये उनकी पहली फिल्म है. ‘लेडी बर्ड’ कुछ हद तक वे खुद हैं. वे खुद सेक्रेमैंटो में पढ़ीं. कैथलिक हाई स्कूल में. उनका भी अपनी मां से एक किस्म का रिश्ता रहा. उन्होंने भी कम उम्र में पाया कि कैसे लड़कियों के महत्वाकांक्षी होने के गुण को पुरुष आकर्षक नहीं पाते. कैसे छुई-मुई लड़कियों को कामुक रूप से पसंद किया जाता है. ग्रेटा स्कूल में लेडी बर्ड की तरह बाग़ी नहीं थी, बहुत आज्ञाकारी थीं. लेकिन इस कहानी में अपने पात्र से उन्होंने वो सब करवाया है जो वो खुद नहीं कर पाईं और जो लाखों दूसरी लड़कियां नहीं कर पाती हैं. इस फिल्म से पहले उन्होंने जिन फिल्मों में एक्टिंग भी की है उनमें भी उन्होंने मजबूत, आज़ाद ख़याल, अपारंपरिक स्त्रियों के कैरेक्टर निभाए हैं. इस सिलसिले में उनकी – ‘फ्रांसिस हा’ और ‘मिस्ट्रेस अमेरिका’ जैसी फिल्में देखी जा सकती हैं.

इतने सब के अलावा ‘लेडी बर्ड’ बहुत ही फनी और ताज़ा फिल्म है. ये किसी किस्म की भाषण देने वाली फिल्म नहीं है. लेडी बर्ड का रोल करने वाली सर्शा रोनन का अभिनय हाइलाइट है. स्पष्ट तौर पर इस साल ऑस्कर में बेस्ट एक्ट्रेस की श्रेणी वाली बाकी दिग्गज अभिनेत्रियों से कम नहीं है. लेडी बर्ड की मां मैरियन के रोल में लॉरी मैटकाफ है जिनके काम पर दर्शकों और फिल्म आलोचकों का दिल आया हुआ है. फिल्म में टिमथी शालामे भी हैं. वही जो इस ऑस्कर की टॉप फिल्मों में से एक ‘कॉल मी बाय योर नेम’ के लिए बेस्ट एक्टर नामांकित हुए हैं.
2018 के ऑस्कर्स में ‘लेडी बर्ड’: 5 नॉमिनेशन मिले हैं. बेस्ट पिक्चर – स्कॉट रूडिन, एली बुश, एवलिन ओनील बेस्ट एक्ट्रेस - सर्शा रोनन सपोर्टिंग एक्ट्रेस - लॉरी मेटकाफ डायरेक्शन - ग्रेटा गरविग ओरिजिनल स्क्रीनप्ले (राइटिंग) - ग्रेटा गरविग

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(Award tally edited post the Oscar ceremony on March 5, 2018.)

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